नीलकंठ का सावन
नीलकंठ का सावन आयों,
ईधर-उधर भक्तगन का शोर भयों।
सावन झूला झूले सखीयां,
बम भोले को भाये भंगीयां।
डूब जाती नैया जिसकी,
नैया पार करते शंकर उसकी।
भक्त गाते हैं भजन अपार,
आशुतोष सुनते हैं उनकी पुकार।
जो सच्चे मन से उपवास करते,
अष्टमूर्ति सावन में प्रसन्न होते।
शूलपाणी सावन में धरातल पर आते,
गौरा जी के संग खूब झूला झूलते।
जो सेवा भाव से पूजा पाठ करते,
स्वयं को ध्यान अर्चना में एकमेव पाते।
भक्त ह्रदयतल से याद करते,
शिव शंभू क्षण में दर्शन देते।
इच्छा पूर्ति कावड़ यात्रा करते,
दुख, क्लेश, रोग से मुक्ति पाते।
शिव चर्चा जो कोई घर में कराता,
सुख, सम्पत्ति, धन लाभ पाता।
स्वरचित, मौलिक रचना
दुर्वा दुर्गेश वारीक 'गोदावरी' (गोवा)
नीलकंठ का सावन आयों, ईधर-उधर भक्तगन का शोर भयों।
Thursday, July 24, 2025
0
Tags