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मेरी रचना



जाने क्यों तेरी याद मुझे सताती है।
हर पल तेरे लवो की मुस्कुराहट 
मुझे याद क्यों आती है?
नहीं चाहती तुझे याद करूं, 
फिर भी याद सताती है।
कैसा यह अनजाना रिश्ता
समझ नहीं आता है। 
कोई तेरे बारे में बोले 
मन को बहुत सुहाता है। ।
कैसा ये अनजाना  रिश्ता       
इस दिल को भाता है।।
ख्वाब हो या हकीकत ,
सामने जब तू आता है..
पता नहीं क्यों दिल में जादू सा होज़ाता हैं।
इस रिश्ते को नाम क्या दूं,
समझ नहीं फिर आता है।
ना देखूं तुझे सामने 
दिल क्यों घबराता है।
ना भैया है, ना बहना है,
ना कोई खून का रिश्ता 
ना दोस्त ना कोई ना सहपाठी
फिर क्यों जीवन वारी है।।
मन में हर पल जाने क्यों?
तेरे ख्याल ही आता हैं।
कुछ कहने से डर लगता है।
सामने जब तू आता हैं,
तेरे लिए खुशियों की दुआ 
ये दिल हर पल करता है।
होश अभी बाकी है मुझमें,
सूनी अँखियों मे चेहरा तेरा
तू नहीं तो सूना जग सारा     लगता हैं।
लगता मानो ऐसा जन्म- जन्म ,       का रिश्ता हैं

सीता सर्वेश त्रिवेदी 
जलालाबाद, शाहजहांपुर




जाने कहां चले गए,,
राष्ट्रपिता भारत के, 
जग में नाम करके ,सत्य पथ पर चलकर जाने कहां चले गए।।

धर्मनिरपेक्ष अपना के, जन-जन में ऊर्जा भर के, गीता ,कुरान,बाइबिल
 पढ़ के जाने कहां चले,गए।।

सत्य, अहिंसा ,अपना के, आध्यात्मिक विचार अपना के, विनोबा भावे को, शिष्य बनाके ,
जाने कहां चले गए ।।

देश के लिए अनशन करके, 144 दिन तक भूखे रहकर चंपारण ,खेड़ा, असहयोग ,आंदोलन करके।
जाने कहां चले गए ।।

मादक पदार्थों पर रोक लगाके, नमक कर समाप्त करके, जाने कहां चले गए।।

मृत्यु की सैया पर लेट के अंतिम चरण राम-राम बोल के, देश आजाद कर के जाने कहां चले गए।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी काव्या जलालाबाद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश।।



नवरात्रि द्वितीय दिवस मां ब्रह्मचारिणी  की जय ...हो
जिसने पूजा ब्रह्मचारिणी विजय श्री पाई हैं।
राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री
शिव को पति रूप में पाया आदि अनादि हैं जिनकी माया, घोर तपस्या किन्ही, हैं।
जिसने पूजा ब्रह्मचारिणी विजय श्री पाई हैं।
ब्रह् स्वरूपा  मां ब्रह्मचारिणी,
ज्ञान,तपस्या, बैरागी घोर तपस्या की नहीं है ब्रह्मचारी कहलाई।। 
बाए हाथ में  सोए कमंडल और दाएं हाथ में माला , यह भविष्य पुराण बताता, मां व्रह्मचारणी की जय...
जिसने पूजा ब्रह्मचारिणी विजय श्री विजय श्री पाई हैं।।
सफेद वस्त्र और सफेद पुष्प ही मां को भाते,हैं, मां ब्रह्मचारी की महिमा आज गाते हैं।
दूध ,और चीनी का भोग लगाते हैं,पीले फल ही मां को भाते हैं।
मां ब्रह्मचारी मेहनत का पाठ सिखाती है, बिना तपस्या कुछ संभावना यह माता बतलाती है।।
प्रसन्न हो आदि शक्ति मां, सारे बिगड़े काम बने, जिसने पूजा मां शक्ति को 
उसके सोए भाग्य जगे।।
जिसने पूजा ब्रह्मचारिणी विजय श्री पाई।  


सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश




जय हो चंद्रघंटा मां
तुम ही मेरी नाव खिवाइया, मां
तुम आनंद स्वरूपा  मां,
बेहद मनमोहक, आलोकिक,जीवन की आप हो संरक्षक मां,             
 खीर  का भोग लगाया, मां..
 लाल फूल और लाल चुनरी,  
लाई हूं मां....
सारे जगत से हार के आई हूं मां...
सारा जगत तुम्ही से मां.....
कृपा करो  मात भवानी,
चित को शांत  करती हो मां,
साधक को संतृप्ति देती हो मां
दिव्य सुगंध का अनुभव मां...
जीवन में भर देती मां....
अपने घंटे की धुन से मां.....     सारे संकट हर लेती हो मां....
तुम वेद मां  तुम्ही अवेद मां
तुम्ही विद्या  तुम्ही अविद्या मां।।
नाम अनेक  तुम्हारे मां है...
करती हो कल्याण सभी  का मां..
जग की  शक्ति तुम ही, जग की भक्ति हो मां...सब की पालक हो मां..
सब की रक्षक हो मां...
आदि शक्ति तुम्ही, तुम ही अंबा हो, मां....
सभी द्रव्यों को धारण करती हो मां
सबके कष्ट मिटाती हो तुम मेरी मां..


सीता सर्वेश त्रिवेदी  जलालाबाद शाहजहांपुर




 मां कुष्मांडा को नमन
सूर्य  की रश्मि धरा पर
मैं जागी नई भोर भई।
ध्यान धरा मां कूष्मांडा का,
जग  को बनाने बाली मां...
का हदय से आभार करू।।
सत्कार करूं,
मैं क्या मैया,सब तेरा दिया हुआ।
चरणों की धूल  लगाएं माथे,पर
आशीष तुम्हारा मिला हुआ।
तकदीर बनाई सुंदर मां,
दिए खुशियों के सारे खजाने मां।।
कर्म भी तुमसे, धर्म भी तुमसे,
जिसको मैया निभा रही हूं।।
जो प्रेम दिया तुमने मैया ,
उस ही से तुमको बुला रही
हर सुख सुविधा दी तुम्हारी मां
 हैं कोटि कोटि नमन मां..
आप ने ही शिखर पर पहुंचाया ..मां


सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर


 "कविता क्या है"
श्री रामचंद्र  शुक्ल जी  के आलेख, रूपी निबंध को पढ़ने के बाद जहां तक कुछ समझ आया हम उनके भावो ,को उस तरीके से नही लिख सकती आप की लेखनी का जो जादू बो हम नही  अपने शब्दो से लिख सकते, फिर कोशिश की है शब्दों  में पिरोने की,

जो कभी भाव हम अपने व्यक्त नहीं कर पाते हैं, उन भावों को हम कविता में लिख पाते हैं।।

जीवन का भाव , और स्वभाव,जब मुश्किल हो परिभाषित करना, तब हम कविता को रच पाते हैं।।।

लोक और परलोक की  गाथा सुनते और सुनते सही गलत सभी का उत्तर काव्य में दे पाते हैं।।

भाषा सीधी समझ न आएं,तब काव्य भाव जगाते,अपनी हर पीड़ा को जन जन तक  पहुंचाते हैं।।
 
सारे जहां की मन स्थितिया और परिस्थितियां, कम शब्दों में,गूढ़ रहस्य बताते हैं, वो हैं कविता,

सही और गलत का अंतर जब सही सही नही कर पाते हैं, तब एक सहारा हैं कविता जो उस तक हम  पहुंचाते हैं।।

प्रेयशी का प्रेम भाव  हम प्रेषित कविता में कर पाते हैं, कौवे की कांव-कांव में भी मधुरता ले जाते हैं।।

कविता से जीवन को  माधुर्य हम बनाते हैं, जो बात होती अधरो पर आसानी से कह पाते हैं,,

सीता सर्वेश त्रिवेदी  जलालाबाद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश


 कैसा वाल दिवस है आज
कैसा बाल दिवस है आज
 संविधान के बने नियम सब हो गए बेहाल
 कैसा बाल दिवस है आज
कोई दूध मलाई खाए
 कोई सूखी रोटीखाए 
कोई मौज बनाएं कैसा 
वाले दिवस है आज
 कैसा बाल दिवस है आज 
व्यथीथ हो रहा मन 
अंतरमन मेरा आज कचोटे।
 झुग्गी झोपड़ी के बच्चे 
नहीं खुशहाल।
कैसा बाल दिवस है आज
क्यों पेट के लिए रोटी कमाए
और अपने परिवार चलाएं ।
नहीं होता नियमों का पालन 
आज हमें बतलाएं।
कैसा बाल दिवस है आज।
 नहीं बच्चे खुशहाल 
कैसा बाल दिवस है आज 
रोटी दाल भले मिल जाए।
 मिले शिक्षा ना संस्कार,
 कैसा बाल दिवस है आज 
बने हुए हैं कई नियम ,
इन बच्चों की खुशियों के ,
क्यों नहीं हो रहा उनका पालन पूछे सीता आज।
 कैसा बाल दिवस है आज ।
हम सब की है नैतिक जिम्मेदारी, क्यों नहीं निभाते आज 
कैसा बाल दिवस है आज।
 अपनी आंखें खोल के देखो, कितने बच्चे हैं बेहाल ।
कैसा बाल दिवस है आज ।
भोले वाले इन चेहरों पर खुशी का नमोनिशान नहीं,
 जिनके हाथों में हो किताबें ,
पड़े हाथों में छाले हैं ।
कितने बच्चे हैं बेहाल ।
कैसा बाल दिवस है आज।



भट्टे पर मजदूरी करते और करते दुकानों पर ,
खुली आंख और बंद आंख से सपना कोई ना आए ,
ना देखें कितने बच्चों नेअपने
सपने अपने गवाएं ।
कैसा बाल दिवस है आज।
 उम्र है इनकी पढ़ने,की
 नशे से दूर नहीं है क्यों ये बच्चे कोई हमे बताए।
कभी न पूछे भाव हम इनके 
क्यों करते हैं भूल ।
सहमा, सहमा हर मासूम 
 बच्चा है।
 आओ मिलकर शपथ उठाएं ।
बाल मजदूरी ,कोई कार्य,
ऐसा जो बच्चे के हित में ना हो, आज से नहीं कराएं हम।
 हर बच्चा देश का बच्चा
मिलकर सब ,
राष्ट्र उत्थान करें 
हर मासूम के चेहरे  खुशियों का उपहार बने,
बने नियम जो बच्चों के लिए। कड़ाई से पालन कर बाए 
हम बिना डरे ,बिना रुके ,
देश को आगे बढ़ाएं 
आओ हम सब मिलकर
ऐसे बाल दिवस मनाएं 

स्वरचित मौलिक पंक्तियां सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर


 मिलन की चाह में कोई,  बहाना हो तो अच्छा है।
किसी की याद में "तन्हा", दिवाना हो तो अच्छा है।

जिन्हें है दूर से देखा, अनेको बार सड़कों पर, 
कभी घर पर मुझे अपने, बुलाना हो तो अच्छा है। 

निगाहें भी हजारों हैं , टिकी उन पर सदा रहतीं, 
हमारा दिल नजर उनकी , निशाना हो तो अच्छा है। 

कभी अपना बनाते हैं , कभी वो तोड़ जाते हैं, 
अगर दिल से कोई रिश्ता , निभाना हो तो अच्छा है। 

फसाने हैं सुने अक्सर , जुवाँ पर आम लोगों के, 
कभी अपना जुवानों पर , फसाना हो तो अच्छा है। 

बड़ा खुदगर्ज बड़ा जालिम , जमाना हो गया है क्यों ? 
लुटाये प्यार सब पर वो , जमाना हो तो अच्छा है। 

कभी वो राज़ की बातें , बताते ही नहीं "तन्हा",  
सभी दिल केे राज़ दिल में , छुपाना हो तो अच्छा है।।




 वो वतन के दीवाने
चूम कर फांसी का फंदा, वो वतन के दीवाने नाम जहां में कर गए।।
आजादी की अलख जगा कर
नए हौसला भर गए ।।
झुके नहीं वो फिरंगियों से, काकोरी एक्शन से जवाब करार दे गए।।
 वो वतन के दीवाने नाम जहां में कर गए।।
बिस्मिल, रोशन, अशफाक जी, 
नए हौसला नई उमंगे देखो जहां को दे गए ।।
धन्य है  जननी तुम्हारी आप सपूतों को जन्म दिया, धन्य है शाहजहांपुर नगरी धन्य जन  हैं देश के...आप वीरसपूतो को पाकर.
छक्के छुड़ाएं गोरो के, नहीं डरे, नहीं रुके ,नहीं झुके, वो अंग्रेजों की चालो से। 
चूम कर फांसी का फंदा वो वतन के दीवाने, नाम जहां में कर गए।।
ज्वालामुखी से फूट पड़े जड़े हिला दी फिरंगियों की...
सरफरोशी की तमन्ना गीत अमर वो कर गए।।
सोए हुए युवाओं को, वतन के लिए जगा गए..
आजादी की अलख जगा कर वीर सपूत चले गए...
हर पल आंखें नम होती है ,जब याद  तुम्हारी आती है...
वतन की खातिर देखो फंदे को चूम गए।
चूम कर फांसी का फंदा वो वतन के दीवाने नाम जहां में कर गए।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश





अटल थे अटल ही रहे आप।
ग्वालियर की धरा पर जन्मे थे आप, 
कृष्णा मां की ममता कृष्ण बिहारी पिता का प्यार थे आप।
अटल थे अटल ही रहे, आप ।
अंतर्मुखी, शांत स्वच्छ छबि अटल विश्वास आप।
भारत मां के लाडले भारत रत्न आप अटल हो अटल ही रहे आप।
कारगिल युद्ध में तीन दिवस तक मैदान-ए-जंग डटे रहे आप।
गोली बारूद से डिगे नहीं आप।
सेना को अटल आदेश दिए आप।
पाकिस्तानी घुसपैठ को दिए करारे जवाब आप।
अटल थे अटल ही रहे आप।
हिमालय से अटल व्यक्तित्व थे आप 
हिंदी कवि पत्रकार  प्रखर वक्ता थे आप।
राष्ट्रीयधर्म से ओतप्रोत स्वाभिमानी थे आप।
मेरी 51 कविता ताजमहल संघर्ष की कहानी थे आप। 
हे वीर पुरुष भारत के कण कण में आप।
सरस सरल मधुकर वाणी, शत्रु पर पड़ती थी भारी, सीधी होती थी बात।
लोकतंत्र की अटल प्रमाण थे आप।
राम भक्त हनुमान के समान थे आप। 
सच कहूं तो ब्रह्मांड से अभिन्न थे आप। 
देकर मिसाइल देश को मजबूत किये आप।
जन-जन के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते थे आप।
समझौते के रहे पक्षधर युद्ध नहीं करते थे आप।
शत्रु  फिर भी थर  थर कांपे ऐसे थे अटल जी आप ।
गठबंधन सरकार चलाकर सबको हिला दिए थे आप।
हे युग पुरुष शत-शत नमन तुम्हें आज। 
आज भी स्मरण में बस आप ही हो आप......

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या" 
जलालाबाद, शाहजहांपुर 
     उत्तर प्रदेश





 जाने क्यों तेरी याद मुझे सताती है।हर पल तेरे होठों की मुस्कुराहट मुझे याद आती है।
नहीं चाहती तुझे याद करूं, फिर भी याद सताती है,
कैसा यह अनजाना रिश्ता
समझ नहीं अब तक आया। कोई तेरे बारे में बोले मन को बहुत सुहाता है। कैसा ये अनजाना  रिश्ता मेरा, तेरा जो इस दिल को भाता है।।

ख्वाब हो या हकीकत ,
सामने जब तू आता है..
पता नहीं क्यों दिल में हलचल हो जाती हैं।
इस रिश्ते को नाम क्या दूं,
समझ नहीं फिर आता है।
आंखें कुछ कहती हैं।
दिल फिर क्यों घबराता है।
ना भैया है, ना बहना है ,
ना कोई परिवारी है। 
ना दोस्त ना कोई ना सहपाठी
फिर क्यों जीवन वारी है।।
मन में हर पल जाने क्यों ,
तेरे ख्याल आते हैं,
कुछ कहने से डर लगता हैं।
फिर चुप हो जाते हैं।
तेरे खुशियों की दुआ ये दिल 
हर पल करता हैं।।
होश अभी बाकी है मुझमें,
सूनी अँखियों में हैं चेहरा।
तू नहीं तो सूना जग सारा।
आँखों - आँखों में हैं पहरा ।

सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर


जाने क्यों तेरी याद मुझे सताती है।
हर पल तेरे होठों की मुस्कुराहट 
मुझे याद क्यों आती है।
नहीं चाहती तुझे याद करूं, 
फिर भी याद सताती है,
कैसा यह अनजाना रिश्ता
समझ नहीं अब तक आता है। 
कोई तेरे बारे में बोले 
मन को बहुत सुहाता है। 
कैसा ये अनजाना  रिश्ता मेरा, 
तेरा जो इस दिल को भाता है।।
ख्वाब हो या हकीकत ,
सामने जब तू आता है..
पता नहीं क्यों दिल में 
हलचल हो जाती है।
इस रिश्ते को नाम क्या दूं,
समझ नहीं फिर आता है।
आंखें कुछ कहती हैं।
दिल फिर क्यों घबराता है।
ना भैया है, ना बहना है,
ना कोई परिवारी है। 
ना दोस्त ना कोई ना सहपाठी
फिर क्यों जीवन वारी है।।
मन में हर पल जाने क्यों,
तेरे ख्याल आते हैं,
कुछ कहने से डर लगता है।
फिर चुप हो जाते हैं।
तेरे लिए खुशियों की दुआ 
ये दिल हर पल करता है।
होश अभी बाकी है मुझमें,
सूनी अँखियों में है चेहरा।
तू नहीं तो सूना जग सारा।
आँखों - आँखों में है पहरा ।

सीता त्रिवेदी "काव्या" 
जलालाबाद, शाहजहांपुर



आ जाओ ओ ... विघ्न विनाशक 
 विघ्न विनाशक सारे संकट दूर    
 करो ... ओ विघ्न विनाशक...
तेरी शरण में आई  हूं...
मैं  जग की सताई हूं...
ओ...विघ्न विनाशक
में अटकी  मोह में भटकी
मुझे राह दिखाओ 
आ जाओ ओ.. विघ्न विनाशक,
सुना है सबकी सुनते हो...
मेरी भी सुनो ओ .. विघ्न विनाश।
ना भक्ति है ना शक्ति है,,
ना मुझे वेदों  का ज्ञान ,
मुझे भी शक्ति दो,मुझे भी भक्ति दो,
हो जाऊं भव से पार,,,
ओ...विनाशक
इस जग का सब कुछ तेरा हैं ,
क्या हूं अर्पण करने लायक ओ..
विघ्नविनाशक ,तेरा तुझको अर्पण,
मैं नही किसी के लायक ओ ...
विघ्नविनाशक
मिले चरनो धूल ,,माफ करो मेरी हर  भूल ओ ....विघ्न विनाशक मुझे राग भरो दो अनुराग भरो,
मेरा अब कल्याण करो,,
ओ ....विघ्न विनाशक 
मैं जान गई पहचान गई,
ओ गौरा के लाल
बनो हम सबकीअब ढाल,
हम हैं विकल बेहाल ,
दे दर्श करो निहाल,
ओ... बिघ्नविनाशक।।।
तन बस में,ना मन बस में,
जीवन हुआ अशांत।
कटुता से भरी पड़ी हूं...
मुझे राह दिखाओ गणनायक।
ओ विघ्नहर्ता  बुद्धि दायक।
कड़ कड़ में बसने वाले मेरे हृदय में बस जाओ।
ओ विघ्नविनाशक ...
ओ विघ्नविनाशक....
आ जाओ आ ,जाओ ....

सीता सर्वेश त्रिवेदी  जिला शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश


 मैं क्या लिखूं? 
अपने मित्र को,
वो मित्र हैं मेरा,सब कुछ बिना ,
कहे, जाने लेता है।।
जिंदगी की कठिन राहों में जब कोई साथ नहीं देता मेरे गिरते कदम  को सहारा आगे बढ़कर देताहैं।।
मैं क्या लिखूं ?अपने मित्र को,
हर विपदा में मेरी ढाल बनकर,
हर मुश्किल से बचाता है।
मेरे लिए सारी दुनिया से लड़ जाता हैं,और मेरे लिए मेरे अपनो से ,, बेबजह डॉट खाता हैं,,
फिर भी मुझे ढांढस बंधाता है।
क्या लिखूं ??
अपने मित्र को, ना, भाई,सा, ना बहन सा,ना गुरु सा,
कोई, रिश्ता ऐसा नहीं...वो हर रिश्ते में नजर आता है।।
क्या लिखूं? अपने मित्र को,
लोगों को कैसे  बताऊं? वो एहसास, वो प्यार, और कैसे लिख दूं अपनी मित्रता की कोई किताब...
बहुत खूबसूरत एहसास जिसका कोई हिसाब नहीं है,,
सबसे अनोखा सबसे अलौकिक, बिना स्वार्थ के, खट्टा मीठा रिश्ता 
मैं क्या लिखूं ?
अपने मित्र कोई द्वंद्व नहीं होता है , विचारो का, दिन रात एक दूसरे की खुशियां,
खोजते हैं... बिना बात के लड़ना.. रूठना और मनाना उसके,बग़ैर कटता नहीं एक पल
क्या लिखूं ?
अपने मित्र को,
जीवन का हर पल इतना आसान नहीं होता है, मगर मित्र के साथ जीवन सफर तय करते हुए, दुख को भी आसानी से, सह जाती है जिंदगी।।
क्या लिखूं ?अपने मित्र को ,
इस मित्रता में बाधाऐं भी बहुत होती है, विश्वास की डोर से निभाता चला जाता है।।
क्या लिखूं ?अपने मित्र को 
जब जीवन में सब रिश्ते प्रश्न करते हैं एक दूसरे से,क्या दिया? क्या किया?
तभी सब की तीखी बातें सुन रहा होता है मेरा मित्र। 
कोई हिसाब नहीं होता है ,इस रिश्ते का, जज्बातों का सिर्फ मित्र मित्र की खुशी  चाहता है।
उसके सारे कष्टो को खुद में समेट लेना चाहता है?
वो है सच्चा मित्र..
क्या लिखूं? अपने मित्र को..
जरा - जरा सी बात पर अपने रूठ जाते हैं, तब भी मेरा हमराही बन, मेरे दिल का आईना बन जाता है।।
क्या लिखूं ?अपने मित्र को जाता 
जिंदगी के हर सफर में वो साथ देता है,..
क्या लिखूं ? अपने मित्र को
जिंदगी में जब-जब कोई परीक्षा ली मेरी, हर प्रश्न का हल खोजता है मेरा मित्र..
क्या लिखूं ?अपने मित्र को, 
जब दुनिया अपनी-अपने में मस्त होती है... एकअकेला दुनिया में मुझे खोजना है मेरा मित्र..
क्या लिखूं? अपने मित्र को।


सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"



 मैं क्या लिखूं ? अपने मित्र को,
वो मित्र हैं मेरा,सब कुछ 
बिना कहे जाने लेता है।
मेरे दिल की भाषा को 
पल भर में ही पहचान लेता है
जिंदगी की कठिन राहों में जब 
कोई साथ नहीं देता है 
मेरे गिरते कदमों को देकर सहारा 
आगे बढ़कर देता हैं।
मैं क्या लिखूं ?अपने मित्र को,
हर विपदा में मेरी ढाल बनकर,
हर मुश्किल से बचाता है।
मेरे लिए सारी दुनिया से लड़ जाता है,
और मेरे लिए मेरे अपनो से 
बेबजह डॉट खाता है,,
फिर भी मुझे ढांढस बंधाता है।
क्या लिखूं ?? अपने मित्र को, 
ना भाई सा, ना बहन सा, ना गुरु सा,
कोई रिश्ता ऐसा नहीं...
वो हर रिश्ते में नजर आता है।
क्या लिखूं? अपने मित्र को,
लोगों को कैसे  बताऊं? वो एहसास, 
वो प्यार है, 
और कैसे लिख दूं 
अपनी मित्रता की कोई किताब...
बहुत खूबसूरत है एहसास 
जिसका कोई हिसाब नहीं है,,
सबसे अनोखा सबसे अलौकिक, 
बिना स्वार्थ के, खट्टा मीठा रिश्ता 
मैं क्या लिखूं ? अपने मित्र को 
कोई द्वंद्व नहीं होता है विचारो का, 
दिन रात एक दूसरे की खुशियां खोजते हैं... 
बिना बात के लड़ना. रूठना 
और मनाना उसके बग़ैर कटता नहीं एक पल
क्या लिखूं ? अपने मित्र को,
जीवन का हर पल इतना आसान नहीं होता है, 
मगर मित्र के साथ जीवन सफर तय करते हुए, 
दुख को भी आसानी से सह जाती है जिंदगी।
क्या लिखूं ?अपने मित्र को ,
इस मित्रता में बाधाएं भी बहुत होती है, 
विश्वास की डोर से निभाता चला जाता है।
क्या लिखूं ?अपने मित्र को 
जब जीवन में सब रिश्ते प्रश्न करते हैं 
एक दूसरे से, क्या दिया? क्या किया?
तभी सबकी तीखी बातें सुन रहा होता है मेरा मित्र। 
कोई हिसाब नहीं होता है इस रिश्ते का, 
जज्बातों का सिर्फ मित्र मित्र की खुशी चाहता है।
उसके सारे कष्टो को खुद में समेट लेना चाहता है?
वो है सच्चा मित्र..क्या लिखूं? अपने मित्र को..
जरा - जरा सी बात पर अपने रूठ जाते हैं, 
तब भी मेरा हमराही बन, 
मेरे दिल का आईना बन जाता है।
क्या लिखूं ?अपने मित्र को 
निभाता है जिंदगी के हर सफर में वो साथ..
क्या लिखूं ? अपने मित्र को
जिंदगी में जब-जब कोई परीक्षा ली मेरी, 
हर प्रश्न का हल खोजता है मेरा मित्र..
क्या लिखूं ?अपने मित्र को, 
जब दुनिया अपने-अपने में मस्त होती है... 
एक अकेला दुनिया में मुझे खोजता है मेरा मित्र..
क्या लिखूं? अपने मित्र को।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"

 लोग पूछते हैं- कैसे हो? 
तो सुनो 
अनजान हूं, जान पाओगे  क्या? 
रूठा हुआ हूं, मना पाओगे  क्या? 
बिखरा हुआ हूं, समेट पाओगे  क्या? 
टूटा हुआ हूं, जोड़ पाओगे  क्या? 
खामोश सा हूं, सुन पाओगे  क्या? 
पागल सा हूं, साथ रख पाओगे  क्या? 
चिड़चिड़ा सा हूं, झेल पाओगे  क्या? 
सहमा हुआ हूं, सम्भाल पाओगे  क्या? 
रुआँसा सा हूं, हँसा पाओगे  क्या? 
हारा सा हूं, जीता पाओगे  क्या? 
नादान सा हूं, समझा पाओगे  क्या?



             : ‌* कड़वा सच *             
लिखते आज
जीवन का कड़वा सच
सब बोलते समानता है,
हम पूछते कहा वो.....
सच लिखते हैं।
आज भी समझा जाता है लड़कियों को बोझ।
बेटी को संतान नहीं पराया धन कहते हैं।
बो सच लिखते हैं।
बेटी ससुराल में परेशान 
शादी के बाद तो मां बाप पूछते ही नही
मगर धीरे से कहते,
आपस मे निपटो आप
सच में पराया कर देते....
वो अधरों का मौन लिखते हैं।
भाई बहिन कहने को सब अपने है,
नहीं चूकते ताने देने को  
वो सच लिखते हैं।
महिला आज भी है दिल बहलाने का 
केवल और केवल खिलौना है 
वो सच लिखते है।
सब की सेवा करे अपने हक में बोले तो 
मिलती हैं कुचाल कुलटा जाने क्या क्या उपाधियां..
हृदय बिदारक पीड़ा.. लिखते हैं।।
पुरुष काम करे तो महान सब का पेट पालक 
सब सेवा में लग जाते हैं।
सभी उसके आने का करते हैं इंतजार बेसब्री से 
महिला काम करे तो नक चढ़ी घमंडी 
साथ में घर के सारे काम करे फिर भी 
संसार कटाक्ष उसी पर करे ...
हम  वो सच लिखते हैं..
हमेशा अपने सपनो को कुचले 
चुप चाप सब सहती रहे 
फिर भी नहीं समझे कोई ..
वो सच लिखते है।
रिश्तों के इस माया जाल में, 
अधिकतर दोष महिलाओं को ही दिया जाता... 
वो सच लिखते हैं
पुरुष करे तो शान, स्त्री करे तो सभी करे बदनाम 
वो समाज का कड़वा सच लिखते हैं।
मन विचलित है बहुत 
लाखो हैं इसमें प्रश्न
थोड़े शब्दो से पूरा जहान लिखते हैं।
करू प्रार्थना ईश्वर से,
भेदभाव समाप्त कर खुशहाल करो।
मानव जीवन को।
मन व्यथित हो फिर कभी न 
ऐसा संसार बनाने की फरियाद लिखते हैं।  हो दोनों का सम्मान पूरक एक दूसरे के,मिटे सारा भेद भाव                                  
इस छोटे से जीवन की एक बड़ी उम्मीद लिखते हैं...
कोई छोटा नहीं होता है 
रिश्तो में बस सही से मर्यादा काअनुपालन हो 
एक दूसरे के लिए,.....
यही छोटी सी भेंट लिखते हैं..

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या" 
जलालाबाद, शाहजहांपुर




 पितृपक्ष में आ जा मां - 

पितृपक्ष में करूं प्रार्थना 
एक बार आ जाओ मां,                 
पितृपक्ष में ही नहीं हर पल याद सताती मां... 
कहां गई हो सोच कभी नहीं पाती मां,,      
चारों तरफ घूमाती नजरें,       
मगर नजर नहीं हो आती मां ...    
पितृ पक्ष में नहीं हर पल याद सताती मां... 
धरा पर खोजें, अंबर में खोजें        
मां खोजें चार दिशाओं में ...
पल पल याद करूं मैं तुझको 
अब तू ही बता दे कहां, हो कहां हो मां ....           
दर्द समेटे में बैठी हूं, खुशियां नहीं ये भाती मां ...   
हर पल तुझसे मिलने को तरसती अखियां मां।    
तू देती थी आशीष, सदा खुश रहेगी               
कहां गया तेरा आशीष मां, तू ही रूठ गई मां 
पितृ पक्ष में करूं प्रार्थना एक बार मिलने आजा मां,  
गिले शिकवे बहुत हैं मां उनको हल तू कर दे मां ...      
घर आंगन की तू ही रौनक होती थी,,                     
वो सब सूनी हो गई मां..          
पित्त पक्ष में करूं प्रार्थना, एक बार तू आजा मां, 
बरसों से आशा है मां एक बार तू आएगी, 
फिर देगी आशीष तू मुझको पितृ पक्ष में 
सभी पितरो को कोटि-कोटि प्रणाम है मां 
भूल हुई हो हम बच्चों से क्षमा करो मां,,, 
तेरे नाम का दीप जले मां हर दिन घर आंगन में... 
पित्त पक्ष में करूं प्रार्थना एक बार तू आ जा मां ।।    

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या" 
जलालाबाद, शाहजहांपुर
         (उत्तर प्रदेश)

 मोहब्बत लिखने की मोहताज नही,होती है,नही होती हैं, हां नही होती हैं।।

मोहब्बत की कोई किताब नही होती हैं नही होती हैं हां नही होती है।।

मोहब्बत कब किसे किससे हो जाए 
ये जताने की बात नही होती
हां नही होती हैं।।

मोहब्बत सिर्फ अहसास होती है,
हां होती हैं,किताब नही होती हैं।।

दिल से दिल की बात होती है,
अल्फाज नही लिखने को वो सिर्फ अहसास होती हैं।।

मोहब्बत सिर्फ  मोहब्बत होती,
इसकी की कोई  दुकान नही होती हैं।।

झूठे ख्वावो की कोई जगह नहीं होती हैं,मोहब्बत जब होती हैं,
जताने की  गुंजायस नही होती है।

मोहब्बत में बदला नही होता है,
मैं चाहूं वो भी मुझे चाहें,अगर ऐसा है तो मोहब्बत नही होती है
हां नही होती हैं।।

मोहब्बत राधा ने की कृष्ण से जताया कभी नही रही साथ उनके हां जताया कभी नही।।

मोहब्बत करने बाला टूटता कभी नही,अपने जख्मों को दिखाता कभी नही हां कभी नही।।

मोहब्बत में कोई हिसाब किताब होता हि नही हैं, मीत खुश रहे उसके आगे  कोई जख्म होता ही नही है।।
और जहा जख्म होता वहां प्यार होता ही नही हैं हां ,होता ही नही हैं।।

मोहब्बत में उलाहना होता ही नही है हां ,होता हो नही हैं।।।


सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद


निस्वार्थ प्रेम ह्रदय में,
पनपता बड़े भाग्य से।
पनप जाए गर कहीं 
फिर भुलाना आसान नहीं।।
हर कोई, नही हो सक्ता प्रेमी,
यू ही ना हर कोई प्रेम किसी का पाता।।
जब कोई किसी को इस कदर अपने में समाहित कर लेता है,
तन मन को अंतर आत्मा से अपने में रंग  लेता है उसके सिवा उसे कुछ नजर नहीं आता है।।
उसे हर पल उसके ही ख्याल आते ,सोते जागते उसकी तस्वीर नज़र आती चाहकर भी नही भूल पाता उसे ..ऐसा प्रेमी हर किसी के नसीब में नहीं होता हैं।
उसे परवाह नहीं होती.....अपनी सिर्फ उसके लिए ही जीता हैं,
ऐसा प्रेम बड़े भाग्य से मिल पाता हैं।।
जब मन घिरा हो अनेक विचारों में,मगर विचार उसके सिवा और किसी का ना आता हैं।।
वो हर पल अपने प्रेम के लिए सोचता, हर पल कसक रहती कब,मिलेगा वो, अंतर्द्वंद्व हर पल उसके मन मेंआता है l
अपने लब्जो से,दिल के कोने में  जब कोई अपनी भावनाओं को छिपाता हैं।।
कभी अंदर कभी बाहर उसी का इंतजार रहता,आखों को।
कही बिछड़ ना जाएं, मेरी सांसे रुक जायेगी उसी दिन,ऐसा प्रेम बड़े भाग्य से मिल पाता हैं।।
चला जाता है उसके बिना  विचारो के आगोस में ,
थम जाती है, जीवन की रफ्तार जब उसको वो पास नही पाती हैं।।
ऐसा प्रेम बड़े भाग्य से मिल पाता हैं।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी शाहजहांपुर




प्रेम और भाग्य=

निस्वार्थ प्रेम ह्रदय में,
पनपता बड़े भाग्य से।
पनप जाए गर कहीं 
फिर भुलाना आसान नहीं।
हर कोई नही हो सकता प्रेमी,
यूं ही हर कोई प्रेम किसी का नहीं पाता।
जब कोई किसी को इस कदर 
अपने में समाहित कर लेता है,
तन मन को अंतर आत्मा से रंग लेता है
अपने ही रंग रंग‌में 
उसके सिवा उसे कुछ नजर नहीं आता है।
उसे हर पल उसके ही ख्याल आते हैं 
सोते जागते उसकी तस्वीर नज़र आती है 
चाहकर भी नहीं भूल पाता उसे 
ऐसा प्रेमी हर किसी के नसीब में नहीं होता हैं।
उसे परवाह नहीं होती.....अपनी 
सिर्फ उसके लिए ही जीता है,
ऐसा प्रेम बड़े भाग्य से मिल पाता हैं।
जब मन घिरा हो अनेक विचारों में,
मगर विचार भी नहीं आते उसके सिवा 
वो हर पल अपने प्रेम के लिए सोचता, 
हर पल कसक रहती कब मिलेगा वो, 
अंतर्द्वंद्व हर पल उसके मन में रहता है 
अपने लब्जो से दिल के कोने में  
जब कोई अपनी भावनाओं को छिपाता हैं।
कभी अंदर कभी बाहर उसी का इंतजार रहता आखों को।
कही बिछड़ न जाए मेरी सांसे रुक जायेगी उसी पल 
ऐसा प्रेम बड़े भाग्य से मिल पाता है।
हर पल रहता है उसके विचारो के आगोस में ,
थम जाती है जीवन की रफ्तार 
जब उसको वो पास नहीं पाती है।
ऐसा प्रेम बड़े भाग्य से मिल पाता हैं।
हां सच यही है 
ऐसा प्रेम बड़े भाग्य से मिल पाता हैं।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी काव्या
जलालाबाद, शाहजहांपुर



मेरे पापा मेरे हीरो है।
आंखों में  कभी  आसूं नही आने दिए हर सपने को साकार करते मेरे पापा ।। 
बिखरते सपनों की जान हैं पापा
समाज में ,हर पल  चलना सिखाते मेरे पापा।।
मेरे पापा मेरे हीरो है। 
समानता अपने हक के लिए कहना सिखाते ते मेरे पापा।
सही गलत का भेद बताते मेरे पापा। 
मेरे पापा मेरे हीरो हैं
मेरी आभा, मेरी सासें मेरे पापा है।
में किसी से डरी नही क्योंकि,
मेरे पापा है।
मेरे हीरो मेरे पापा है।।
हर किसी के लिये कमाते मेरे पापा है।
नही कोई वेतन पाते मेरे पापा है,
रात दिन बिना थके मशीन की तरह,काम करते मेरे पापा हैं।।



मेरे पूरे घर  सजाते संवारते छोटी से बड़ी  समस्याओं से उबारते पापा है।
कभी भाई झगड़ा कभी दीदी का
बिना कान खींचे निपटाते पापा हैं।।
हर व्यक्ति का पूर्ण  ध्यान रखते मेरे पापा है।
मेरे हीरो मेरे पापा हैं।।
मेरेआंखों की चमक चेहरे की मुस्कान मेरे पापा है।।
मेरे हीरो मेरे पापा।।
आज दूर  भले हो हमसे मेरे पापा मेरी आभा हर सांस में मेरे पापा है।। 
क्यो की मेरे  हीरो मेरे पापाहैं।।
लड़खड़ाते कभी मेरे कदम मेरी ताकत मेरे पापा।।
मेरे हीरो मेरे पापा हैं।।
मेरे ईमान मेरे विश्वास मेरे पापा हैं।
हर समस्या का समाधान मेरे पापाहैं।।
हर जनम में आपकोही पापा के रूप में पाऊं ।।
मेरी भगवान मेरे पापाहै।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"


 ये दिल की बात कही दिल में ना रह जाए,जिंदगी के सफ़र में।।

जिक्र हर  लम्हे  है तेरा ,
ये बात दिल की दिल में ही न रह जाएं  कही।
इस लिए समय रहते ,दिल से दिल की बात जवां से हो जाएं,
फिर भले हम दोनों,जहां में खो जाएं कहीं।।



 अभी तुमको मेरी जरूरत नहीं हैं।
क्योंकि तुमको मुझसे मोहब्बत नही है।।

जब मन की किया खेलो हो  मुझसे,अब तुमको मेरी जरूरत नहीं है।।

वादे  किए लाख तुमने थे मुझसे,
आज कल लगता जुबा ही नही हैं।

सब कुछ अपना तेरे हवाले किया,
फिर भी क्यों ना तू मेरा  हुआ।

इस बात की किससे शिकायत करू में,अब तुझको मेरी जरूरत नहीं हैं।।

जो मर्जी थी वो कर रहे थे,
फिर भी कहते शरारत नही थी।

अभी तुमको मेरी जरूरत नहीं है।
पछिताओ  गये  एक दिन तुम।।


तू मेरा प्यार है। 
तू मेरा इकरार है। 
कैसे कहूं कि तेरा हर पल इंतजारहैं।।
तू मेरा प्यार है, 
मेरी आंखों में बस तेरा इंतजार है।।
मेरी लफ्जों पर बस तेरा ही नाम है। 
मुझको तो बस तुझसे ही प्यार है।।
सांसों में तू हर पल मचलता है दिल की धड़कन में तू ही धड़कता है।
क्यों तुझसे मुझे इतना प्यार  बेशुमार है।।
तेरी बाहों में आने को हर पल दिल बेकरार है।।
मुझे तुझसे प्यार है मुझे तुझसे प्यार है।।
मेरे ख्यालों में तू मेरे जज्बातों में तू, मेरे लबों के हर हालत में तू।।
मुझे तुझसे प्यार है मुझे तुमसे प्यार है।।
जान यह कैसा अंजना बंधन है।।
ना कोई नाम है इस रिश्ते का ,
मुझे तुमसे प्यार है मुझे तुमसे प्यार है।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी काव्या


 तेरे इश्क का है असर छायाहैं
 रोम रोम में तेरा नाम आया।।

प्रीत ज्वाला जल रही, इश्क का खुमार है। 

अब तेरा ही तेरा इंतजार है।

धूप से बदन काला  नंगे पांव पड़े छाला,ये कैसा असर हैं तेरे प्यार का।।
आंसुओं झड़ी और तेरा इंतजार है,इसके गवा येआसमां और ज़मी है,।

यह कैसा मोड़ है ज़िन्दगी का तेरी ही  ज़रूरत है और तेरी ही कमी है।

विटप भी जल उठे, पंछी किलकौर करे, तेरे इश्क में दिल भी हिलोर करें।
तू ही तो औषधि है तू ही आग है, 
तू मेरे तन मन की बरसों की प्यास है।।


: साहित्य सेवा को 
वास्तविक से रूप में 
सार्थक कर रहे हैं 
वो हैं -
डा. अनिल शर्मा जी।
हम देखते हैं
जहाँ एक ओर 
अधिकांश लोग लगे हैं 
केवल और केवल 
अपने ही साहित्य सृजन में 
ऐसे में एक आप हैं
जो समर्पित भाव से  
नवोदित रचनाकारों को 
बिना स्वार्थ पहुँचा रहे हैं 
देश के साहित्य पटल तक।
धन्य हैं आप और 
धन्य है आपकी साहित्य सेवा 
आपके जन्मदिवस पर 
मेरी है यही कामना 
आप स्वस्थ रहें, दीर्घायु रहें।

सीता त्रिवेदी "काव्या" 
जलालाबाद, शाहजहाँपुर



 आओ मिलकर योग करें। 
तन को हम निरोग करें।।
जीवन को सुख की ओर करें आओ मिलकर योग करें।।
मन बुद्धि और व्यवहार से
संयम से नित योग करें।।
आओ मिलकर योग करें। 
पतंजलि  ऋषि मुनियों नेयोग अपनाया  सहस्त्र वर्ष जीवन पाया।।
अगर बचाना जीवन में मेहनत का धन, तो अपनाइए योग को।।
सुबह पीओ गुनगुना पानी,
पाचनतंत्र मजबूत करे ।
आओ मिलकर योग करे।
तन मन में स्फूर्ति भरे।
शुद्ध मलय शीतल पवन,
मन मस्तिक मजबूत करें। 
आओ मिलकर योग करे।
मन में सुंदर विचार भरें।
मन को व्यवचारो से  दूर करे,
प्रकृति से हम प्यार करे,
इससे न खिलवाड़ करे,
जीवन को खुशियों से भरे।
आओ मिलकर योग करे।।
स्वास्थ्य और परवेश स्वच्छ रखें।
आओ मिलकर योग करें।।
शुद्ध सरल भोजन को पाएं।
शाकाहारी जीवन अपनाएं।।
प्राणायाम भरपूर करें ।
आओ मिलकर योग करें।

सीता सर्वेश त्रिवेदी " काव्या" शाहजहांपुर


आओ मिलकर योग करें। 
तन को हम निरोग करें।
जीवन को सुख की ओर करें 
आओ मिलकर योग करें।
मन बुद्धि और व्यवहार से
संयम से नित योग करें।
आओ मिलकर योग करें। 
पतंजलि ऋषि मुनियों ने योग अपनाया  
सहस्त्र वर्ष जीवन है पाया।
अगर बचाना जीवन में मेहनत का धन, 
तो अपनाइए योग को।
सुबह पीओ गुनगुना पानी,
पाचनतंत्र मजबूत करें।
आओ मिलकर योग करें।
तन मन में स्फूर्ति भरें।
शुद्ध मलय शीतल पवन,
मन मस्तिक मजबूत करें। 
आओ मिलकर योग करें।
मन में सुंदर विचार भरें।
मन को व्यवचारो से दूर करें,
प्रकृति से हम प्यार करें,
इससे न खिलवाड़ करें,
जीवन को खुशियों से भरें।
आओ मिलकर योग करें।
स्वास्थ्य और परवेश स्वच्छ रखें।
आओ मिलकर योग करें।
शुद्ध सरल भोजन को पाएं।
शाकाहारी जीवन अपनाएं।
प्राणायाम भरपूर करें।
आओ मिलकर योग करें।



सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या" 
     शाहजहांपुर


 एक बार हमें आने को कहो ना
कुछ किस्से अधूरे हैं ...मेरे - तेरे
उनको पूरा करने को कहो ना...
माना कि ना समझी थी मुझ में,
गलती भी मेरी थी,, 
फिर भी 
एक बार आने को कहो ना...
जब साथ थी तुम्हारे 
सारा जहां अपना लगता था
जब से आप रूठ गए मानो 
किस्मत ही रूठ गई हो... 
एक बार फिर माफ कर दो ना...
आप हर पल हमारी हर खुशी में, 
खुश रहते थे।
मेरी जीत के लिए खुद हारते थे,
क्या हुआ अब तुम्हे कुछ तो बोलो ना....
क्या ऐसा हुआ  जो तुम रूठ गये 
कभी मिलने मिलाने को कहो ना....
अब ऊब चुकी हूं, अपने जीवन से
एक बार फिर से खुशियों से जीवन भरो ना...
मैं तिल - तिल टूट चुकी हूं ,
कोई अपना नजर आता नहीं है...
एक बार फिर बाहों में भरने को कहो ना.. 
मैने माफ कर दिया,
आप मेरी जिंदगी हो,
वापस जिंदगी में आ जाओ ना....
तुम्हारी हर शर्त स्वीकार है,
मुझे एक बार कह दो कि मुझे तुमसे प्यार है, 
तुमसे ही घर है तुम्हारा आ जाओ ना...
एक बार आने को कहो ना..
फिर से प्यार का गीत गुनगुनाओ ना...
आज भी हर पल इंतजार करती हूं
आपके फोन, मैसेज और
आपके आने का 
बे-सबरी से एक बार पलट कर देखो ना...


सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"


 आने को कहो ना 
एक बार हमें आने को कहो ना
कुछ किस्से अधूरे हैं ...मेरे - तेरे
उनको पूरा करने को कहो ना...
माना कि ना समझी थी मुझ में,
गलती भी मेरी थी,, 
फिर भी 
एक बार आने को कहो ना...
जब साथ थी तुम्हारे 
सारा जहां अपना लगता था
जब से आप रूठ गए मानो 
किस्मत ही रूठ गई हो... 
एक बार फिर माफ कर दो ना...
आप हर पल हमारी हर खुशी में, 
खुश रहते थे।
मेरी जीत के लिए खुद हारते थे,
क्या हुआ अब तुम्हे कुछ तो बोलो ना....
क्या ऐसा हुआ  जो तुम रूठ गये 
कभी मिलने मिलाने को कहो ना....
अब ऊब चुकी हूं, अपने जीवन से
एक बार फिर से खुशियों से जीवन भरो ना...
मैं तिल - तिल टूट चुकी हूं ,
कोई अपना नजर आता नहीं है...
एक बार फिर बाहों में भरने को कहो ना.. 
मैने माफ कर दिया,
आप मेरी जिंदगी हो,
वापस जिंदगी में आ जाओ ना....
तुम्हारी हर शर्त स्वीकार है,
मुझे एक बार कह दो कि मुझे तुमसे प्यार है, 
तुमसे ही घर है तुम्हारा आ जाओ ना...
एक बार आने को कहो ना..
फिर से प्यार का गीत गुनगुनाओ ना...
आज भी हर पल इंतजार करती हूं
आपके फोन, मैसेज और
आपके आने का 
बे-सबरी से एक बार पलट कर देखो ना...
सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"


 लगाकर दिल कहीं मुझसे, 
बदलन जाना,।।
फसा के प्रेम अपने , विरह में छोड़ न जाना ।।
दिखा कि अपना पन कहीं मुख,
मोड़ ना जानना।।
बनके मीत मेरे बदल न जाना तुम।।
दिल में खिला के प्रेम के कमल कभी कुंठा ना दे जाना।।
खुशी मांगी है पल भर की, 
जीवन भर की गम न दे जाना।।
बन के मेरे अपने तुम कहीं दगा न दे जाना ।।
हम प्यार करें तुमको तुम मुझे तमाशा न बना जाना।।
मिले पूनम की तरह मुझको, 
जीवन अमावस न कर जाना।।
बनके दोस्त मेरे मुझे दगा न दे जाना ।।
विश्वास दिया मुझको , मेरे जीवन में विष न घोल  जाना।।
यह वादा करो मुझसे फिर अपना बनाना।।
सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर

 गम के दिन ढल गए हैं।
भोले दिल में बस गए हैं।

विनती सबकी सुनने वाले।
संकट जिसने सबके टाले।
एक सहारा प्रभु तुम्हारा।
और नहीं है कोई हमारा।
जग है दुख में हंसने वाला
हृदय कमल खिल गए हैं
भोले दिल में बस गये हैं,,,,,,,

डगमगाती मेरी जब नैया।
शिव बन गए मेरे खिबैया।
शिव का सहारा मिल गया है।
मुझको किनारा मिल गया है।
गम नहीं है मुझे अब कोई,
जख्म भी मेरे अब भर गए हैं।
भोले दिल में बस गए हैं ,,,,,,,, 

सच्ची लगन हैं जो भी रखते।
काम सभी हैं उसके बनते।
भाव समर्पित करके देखा। 
बदल गई किस्मत की रेखा।
कांटे जितने राह में थे,
वो फूल सभी बन गए हैं।
भोले दिल में बस गए हैं ,,,,,,,, 

सीता त्रिवेदी "काव्या"
जलालाबाद शाहजहांपुर

 आईना हो तुम
तुम मे हीसूरत रत दिखती है,
क्या कारू तेरे बिन, सासें,
नही चलती हैं।।
मेरी हर धड़कन में ,ना जाने क्यो???
नाम तुम्हारा होता हैं,,
आयना हो तुम मेरा ,तुम में मेरी ,
सूरत दिखाती हैं।।
अब हर उम्मीद ,तुमसे ही जुड़ी हैं,
तुमपे ही खत्म होती हैं,,
तुम आयना हो मेरा हर उम्मीद आप में दिखाती हैं।।
हमने चलना छोड़ दिया था प्रेम राह के पथ पर,,
जब से मिले हो तुम फिर से अहसास जागे हैं, जैसे सूखे,सावन में,फिर से मेघ घने हैं,,,
लगता की प्यार की बारिश फिर होने बाली हैं,फिर मिलन के गीत,
ओठ गुनगुनाते हैं।।
जैसे मधुबन में भोरें गुंजन करते हैं।।
आज आयना खुद से बोल उठा,
क्यों इतनी हलचल भरी हुई,,
क्या प्रियतम से,आज मिलन तेरा,,
जो तेरा चहेरा खिला हुआ।।।
नजरे तेरी झुकी हुई,मौसम ने ली अगड़ाई हैं??
हे प्रिय बता क्या तू सच में, प्रियतम से मिलने आई हैं।।
सीता सर्वेश त्रिवेदी शाहजहांपुर


 तुम मे फिर वही  मेरा चेहरा नजर आता है।
नजर आता हैं,तेरे नैनो में मेरा चहरा नज़र आता हैं, नज़र आता हैं, ...
तू मिला कल हैं भले मुझे, रिश्ता जन्मों से नज़र आता हैं।।
जाने क्यों दिल तू इतना भाता हैं,
तेरे बिना कुछ और नज़र नही आता हैं,
तेरी बातों का दिल पे असर है,ना कुछ भी समझ आता हैं।।
बस तू ही नजर आता हैं......
तुम मे फिर एक ख्याल नजर आता है
अब तो बसी हो सासों में यादों में,मेरी बातो में, बस  तेरा ही जिक्र नजर आता हैं।
कभी,खुशियों,में,कभी, तू ही यार बन नज़र आता हैं।।
मेरी खामोशियां अक्सर ढूढ़े तुझे,
दिन -निशा, हर पल तू ही नज़र आता हैं।।
क्या नाम दू इस मोहब्बत को, बस तू हर पल  नजर आता हैं
यह प्यार फिर मुझे, तुम मे नजर आता  ।।
सीता सर्वेश त्रिवेदी

 आईना हो तुम
तुम में ही सूरत दिखती है,
क्या कारू तेरे बिन, 
सासें नही चलती हैं।
मेरी हर धड़कन में न जाने क्यों ???
नाम तुम्हारा रहता है,
आईना हो तुम मेरा
तुम में मेरी सूरत दिखाती हैं।
अब हर उम्मीद तुमसे ही जुड़ी है,
तुमपे ही होती है खत्म,
तुम आईना हो मेरा 
जिसमें हर उम्मीद दिखती है।
हमने चलना छोड़ दिया था प्रेम के पथ पर,,
जब से मिले हो तुम फिर से अहसास जागे हैं, 
जैसे सूखे सावन में फिर से मेघ घने छाए हों,,,
लगता की प्यार की बारिश फिर होने बाली हैं,
फिर मिलन के गीत ओठ गुनगुनाते हैं।
जैसे मधुबन में भौरें गुंजन करते हैं।
आज आईना खुद से बोल उठा,
क्यों इतनी हलचल है भरी हुई,,
क्या प्रियतम से आज मिलन तेरा ?
जो तेरा चहेरा खिला हुआ।
नजरे तेरी झुकी हुई मौसम ने ली अगड़ाई है ?
हे प्रिय ! बता क्या तू सच में, 
प्रियतम से मिलने आई हैं।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"
      शाहजहांपुर


 तुम में फिर वही मेरा चेहरा नजर आता है।
नजर आता है तेरे नैनो में 
मेरा चहरा नज़र आता हैं, नज़र आता हैं, ...
तू मिला कल है भले मुझे, 
रिश्ता जन्मों से नज़र आता हैं।
जाने क्यों दिल को तू इतना भाता है,
तेरे बिना कुछ और नज़र नहीं आता है,
तेरी बातों का दिल पे असर है,
ना कुछ भी समझ आता हैं।
बस तू ही तू नजर आता है......
तुम में फिर एक ख्याल नजर आता है
अब तो बसी हो सासों में यादों में,
मेरी बातो में, बस तेरा ही जिक्र नजर आता है।
मेरी हर खुशियों में तू ही यार नज़र आता हैं।
मेरी खामोशियां अक्सर ढूँढ़े तुझे,
सुबह शाम हर पल तू ही नज़र आता हैं।
क्या नाम दूँ इस मोहब्बत को, 
बस तू हर पल नजर आता है।
तुममें ही मेरा बिछडा़ प्यार नजर आता है।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"


: दिल उस पर हो गया, पल भर में कुर्बान। 
जब से तन्हा देख ली, अधरों की मुस्कान।।

ना तो दिन को चैन है, सुकूँ नहीं है रात। 
मुझे मोहब्बत में मिली, है ऐसी सौगात।।

हमदम बनकर आ गए, जब से मेरे पास। 
मेरे दिल को है मिला, एक सुखद एहसास।।



इश्क में आंसू नहीं बहते हैं,
सहमे - सहमे चुप रहते हैं ।।
इश्क में आंसू चुप रहते हैं।
अंदर - अंदर दुआ हमेशा 
ये करते हैं ,,,
सदा खुश रहो ।
मेरे प्रियतम तुम हर - पल 
दुआ यही करते रहते हैं....
 इश्क में आंसू नहीं बहते हैं।
शुद - बुद अपनी खो देते हैं,,, 
उनके होके ही जीते हैं,,
 इश्क में आंसू चुप होते हैं,,
 किससे कहें?? क्या कहें ??
अपना दर्द नहीं कहते....
 इश्क में आसूं चुप रहते हैं,
किसी से  कुछ नहीं कहते हैं।
कुछ पूछो  मुस्का देते हैं....
अंग- अंग से घायल जख्मी ,
फिर भी आहा ना भरते हैं,,,
 ये आशिक सच्चे होते हैं ।
नम आंखों से भी ,मुस्कातेहैं
सहमे - सहमे  चुप रहते हैं ।।
ना इन्हे जिस्म की चाह है ।।
ना इनको कोई अभिलाषा  हैं। 
इनको हर पल हर जगह बस,
अपना प्यार नजर आता हैं।
आशिक की खुशी में,खुश होते हैं।।
उनके लिए जीते मरते हैं,
रहे कही भी ये.. मगर ये दिल से 
उनके ही होते हैं।।
इश्क में आसूं नही बहते हैं, 
सहमे सहमे चुप रहते हैं।।
सीता सर्वेश त्रिवेदी



मोहब्बत लिखने की मोहताज नही,होती है,नही होती हैं, हां नही होती हैं।।

मोहब्बत की कोई किताब नही होती हैं नही होती हैं हां नही होती है।।

मोहब्बत कब किसे किससे हो जाए 
ये जताने की बात नही होती
हां नही होती हैं।।

मोहब्बत सिर्फ अहसास होती है,
हां होती हैं,किताब नही होती हैं।।

दिल से दिल की बात होती है,
अल्फाज नही लिखने को वो सिर्फ अहसास होती हैं।।

मोहब्बत सिर्फ  मोहब्बत होती,
इसकी की कोई  दुकान नही होती हैं।।

झूठे ख्वावो की कोई जगह नहीं होती हैं,मोहब्बत जब होती हैं,
जताने की  गुंजायस नही होती है।

मोहब्बत में बदला नही होता है,
मैं चाहूं वो भी मुझे चाहें,अगर ऐसा है तो मोहब्बत नही होती है
हां नही होती हैं।।

मोहब्बत राधा ने की कृष्ण से जताया कभी नही रही साथ उनके हां जताया कभी नही।।

मोहब्बत करने बाला टूटता कभी नही,अपने जख्मों को दिखाता कभी नही हां कभी नही।।

मोहब्बत में कोई हिसाब किताब होता हि नही हैं, मीत खुश रहे उसके आगे  कोई जख्म होता ही नही है।।
और जहा जख्म होता वहां प्यार होता ही नही हैं हां ,होता ही नही हैं।।

मोहब्बत में उलाहना होता ही नही है हां ,होता हो नही हैं।।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद



 जब इश्क किसी से हो जाता है,
हर जगह वो  नजर आता हैं।
जब इश्क किसी से हो जाता हैं।।
जाने क्यों दिल को वो भा जाता हैं।।
प्यार बरसता बारिश  की  बूंदों सा जब साथ उसका होता हैं।
दिल में खुशियां छा जाती है,
जब साथ हमारे होता हैं।।
ना गरीबी ,ना अमीरी,
ना शादी ना रंग रूप ,
कुछ भी नज़र नही आता हैं।
जब इश्क किसी से हो जाता हैं।
उसे पाकर चहरा गुलाब की पंखुड़ियां सा खिल जाता है। 
जब इश्क किसी से हो जाता हैं।
उसे देखकर बदन बारिश की  बूंदों सा हो जाता हैं।
अश्क बहते हैं खुशी के 
आंख से जब इश्क किसी से हो जाता हैं।।
जीवन की हर उम्मीद उसी के साथ नज़र आती है,उसके इश्क में आशिक के रंग मे डूब जाता हैं,जब इश्क किसी से हो जाता हैं
प्रीत के  गहरे रंग से दिलों में बस जाते है।
जब इश्क किसी से हो जाता हैं।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी


मैं क्या लिखूं? अपने मित्र को,
वो मित्र हैं मेरा सब कुछ बिना ,
कहे जाने लेता है।।
जीवन की कठिन राहों में जब कोई साथ नहीं देता मेरे गिरते कदम  को सहारा आगे बढ़कर देताहैं।।
मैं क्या लिखूं ?अपने मित्र को,
हर विपदा में मेरी ढाल बनाकर,
हर मुश्किल से बचाता है।
मेरे लिए सारी दुनिया से लड़ जाता हैं।।
क्या लिखूं अपने मित्र को, ना, भाई,सा, ना बहन सा,ना गुरु सा,
कोई, रिश्ता, वो हर रिश्ते में नजर आता है।।
क्या लिखूं? अपने मित्र को,
लोगों को कैसे  बताऊं? वो एहसास, वो प्यार, और कैसे लिख दूं अपनी मित्रता की कोई किताब...
बहुत खूबसूरत एहसास जिसका कोई हिसाब नहीं है,,
सबसे अनोखा सबसे अलौकिक, बिना स्वार्थ के, खट्टा मीठा रिश्ता 
मैं क्या लिखूं ?अपने मित्र कोई द्वंद्व नहीं होता है , विचारो का, दिन रात एक दूसरे की खुशियां,
खोजते हैं।
क्या लिखूं ?अपने मित्र को,
जीवन का हर पल इतना आसान नहीं होता है, मगर मित्र के साथ जीवन सफर तय करते हुए, दुख को भी आसानी से, सह जाती है जिंदगी।।
क्या लिखूं ?अपने मित्र को ,
इस मित्रता में बाधाऐं भी बहुत होती है, विश्वास की डोर से निभाता चला जाता है।।
क्या लिखूं ?अपने मित्र को 
जब जीवन में सब रिश्ते प्रश्न करते हैं एक दूसरे से,क्या दिया? क्या किया?
तभी सब की तीखी बातें सुन रहा होता है मेरा मित्र। 
कोई हिसाब नहीं होता है ,इस रिश्ते का, जज्बातों का सिर्फ मित्र मित्र की खुशी  चाहता है।
उसके सारे कष्टो को खुद में समेट लेना चाहता है?
वो है सच्चा मित्र..
क्या लिखूं? अपने मित्र को..
जरा - जरा सी बात पर अपने रूठ जाते हैं, तब भी मेरा हमराही बन, मेरे दिल का आईना बन जाता है।।
क्या लिखूं ?अपने मित्र को जाता 
जिंदगी के हर सफर में वो साथ देता है,..
क्या लिखूं ? अपने मित्र को
जिंदगी में जब-जब कोई परीक्षा ली मेरी, हर प्रश्न का हल खोजता है मेरा मित्र..
क्या लिखूं ?अपने मित्र को, 
जब दुनिया अपनी-अपने में मस्त होती है... एकअकेला दुनिया में मुझे खोजना है मेरा मित्र..
क्या लिखूं? अपने मित्र को।

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"



 मीत 
कब मिला कैसे मिला पर मीत मिला।।
पल- पल का साथी मन का मीत मिला।।
सुख में खट्टा मीठा ,संकट में सावन के जैसा मिला।।
भाई नहीं ,बहन सा नहीं, मां सा नहीं, खून का रिश्ता नहीं, है ,उससे,फिर भी इन सारे रिश्तों से ऊपर मेरा मीत मिला।।
मेरी जान पर आती है जब भी,कोई बात, सबसे पहले होती उससे मुलाकात,ऐसा मीत मिला।।
कौन सा रिश्ता है, पता नहीं,
मगर एक पल भी उसके बगैर कटता नहीं।।
मेरी मुस्कान से, मुस्कान आती उसके चेहरे पर, मेरे उदास चेहरे से रो पड़ता है,ऐसा मीत मिला।।
मेरी जिंदगी से उसकी जिंदगी पर खतम होती हैं, ऐसा अनमोल मीत मिला।।
जिस दिन बात न हो ऐसा लगता है जीवन, नीरस है उसके बिना।।
हर पल आतुर वह रहता है।
उसके विन।।
मेरा मीत ही मेरी जिंदगी हैं, मेरी हर सांस में हैं ऐसा मीत मिला।।
अपने मीत को समर्पित 
 एसके त्रिवेदी


तुम बिन जीवन क्या है।
तुम राहत हो तुम चाहत हो।
तुम बिन सब सूना जीवन 
तुमसे सब जीवन की खुशियां।
तुम ही मेरी आस
सांसों में बस गए हो तुम,
दिल से दिल का तार मिला है।
दिल की धड़कन हों तुम।
तुम्हें बिना देखे एक पल न कटता
कान तरसते हैं हर पल तुझको ही सुनने को।
तुम बिन जीवन, जीवन क्या है?
मिलने की बैचेनी रहती, डर लगता है, विछुड़ने का, 
तेरे बिन ये जीवन क्या?
पल भर बरसों सा लगता है 
तुझे लड़ना तुझे झगड़ना जाने क्यों अच्छा लगता है..
एक पल की भी इस दूरी से,
मरने को जी करता है।
ये कैसा रिश्ता सांसों का,
पल भर न अब कटता है।
आंखें गहरी मेरी शांत नदिया सी हो जाती हैं, 
कोई कुछ कहता है तो सिर्फ चुप हो जाती हैं।
धीरे-धीरे नम होकर अंदर बहती रहती हैं।
बस धीरे से कहते हैं, छोड़ दो जग के सारे बंधन, 
बस बाहों में आ जाओ,..
सारी रश्मे कसमे छोड़ो बस मेरे ही हो जाओ...
बस मेरी ही हो जाओ....
पास सभी हैं फिर भी सुनी रातें, 
आहें भरती रहती हैं, 
इधर करवटें उधर करवटें कर..
सिर्फ यादों में ही रहते हैं...
दिन होता है भरा भरा..
फिर मन अंदर से खाली है।।
तेरी ही सूरत से सिर्फ होठों पर लाली है...
तेरे बिन सब व्यर्थ यहां है,,
यह जीवन खाली खाली है...

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"


 महाकवि तुलसीदास की गाथा गाते हैं, 
हम कथा सुनाते हैं।
आत्माराम पिता है जिनकी हैं हुलसी माता 
उनकी कथा गाते हैं।
सब जन्में है नौ माह में,
बारह माह में जन्में ऐसे,
बालक महिमा गाते हैं।
गिरा धरा पर तब देखा
थे मुंह में उनके सारे दांत,
भौचक्के थे सभी परिजन घर-घर इसकी चर्चा थी,
वह कथा सुनाते हैं, 
महाकवि तुलसीदास की गाथा गाते हैं।
हम कथा सुनाते हैं।
जब मुंह खोल राम बोला वो कथा सुनाते हैं।‌ 
सात वर्ष की आयु में गुरु नरहरि से शिक्षा पाई, 
ऐसे राम भक्त की कथा सुनाते हैं। 
तेज प्रखर बुद्धि का बालक 
संस्कृत, व्याकरण, वेदांग, वेदांत, ज्योतिष का अध्ययन, 
कम उम्र में कर डाला, 
ऐसे नरहरि शिष्य राम भोले की कथा सुनाते हैं।
नरहरि जी ने रामबोला से नाम तुलसीदास रख डाला,
ऐसे महाकवि की कथा सुनाते हैं।
वापस शिक्षा लेकर चित्रकूट में आए।
जन-जन को राम कथा महाभारत सुनाएं 
ऐसे महाकवि की गाथा गाते हैं।
हम कथा सुनाते हैं।
माता-पिता की आज्ञा मानी बुद्धिमती रत्नावली से विवाह रचाया था।
वो कथा सुनाते हैं ‌
कुछ समय उपरांत तारक रूप में बेटा पाया,
कालचक्र घूमा ऐसा बेटा यम के पास गया।
दुःख का बादल छाया था।
ऐसे में तुलसी जी ने रत्ना जी से आसक्त हुए, 
दूरी उन्हें ना भाती थी। 
बिना बताए रत्नावली अपने मायके जाती है, 
वह कथा सुनाते हैं।
ना पाया रत्ना को अर्धरात्रि पहुंचे तुलसी जी, 
बोली रत्नावली कृत्य तुम्हारा ठीक नहीं, 
घटित हुई जो घटना वो, कथा सुनाते हैं।
अस्थि चर्म मम देह में जिसमें ऐसी प्रीत ऐसी हो श्री राम से,
जग से मिलती-मुक्ति, ऐसे वचन सुनातीं हैं,
वो कथा सुनाते हैं, 
महाकवि तुलसी की गाथा गाते हैं।
भ्रम टूटा प्रेम का रत्नावली जी को त्याग दिया,
सन्यासी बन राम खोज में निकल पड़े, 
उस राम भक्त की कथा सुनाते हैं।
तीर्थ स्थलों का दर्शन करते वाराणसी वो पहुंच गए 
धर्म कर्म शास्त्रों का अध्ययन जन- जन तक पहुंचाते हैं।
वो कथा सुनाते हैं 
ऐसे राम भक्त की कथा सुनाते हैं।
वाराणसी में भेंट हुई थी हनुमत से तुलसी जी की, 
यह शास्त्र बताते हैं वह कथा सुनाते हैं।
हनुमत ने तुलसी से कहा 
तुम चित्रकूट को जाओ वहां मिले श्री राम जी उनके दर्शन पाओ 
राम भक्त की गाथा गाते हैं।
हम कथा सुनाते हैं ।।
राम लखन के दर्शन पाए पर पहचान ना पाए हैं, 
राम कौन है? लखन कौन है? यह जान न पाए हैं,
ऐसे परम भक्त की हम कथा सुनाते हैं।
एक दिवस जब बीत गया भोर हुई घाट पर आए, 
मस्तक पर अपने थे चंदन लेप लगाए।
जान गए राम लखन पहचाने हैं, 
नैनों में जल छलके हिय से हर्षाए हैं।
वो कथा सुनाते हैं ऐसे  राम भक्त की हम गाथा गाते हैं।
भवसागर से तर जाने को रामचरित लिख डाला, 
ऐसे राम भक्त तुलसी की गाथा गाते हैं। 
शत - शत शीश झुकाते हैं। 
हम शत शत शीश झुकाते हैं।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या" 
जलालाबाद, शाहजहांपुर


 भारत के वीर सपूतों की याद आई। 
याद आई,आई हां याद आई,
तेरी कुर्बानी याद आई।।
तुझसे बिछड़ने की कैसेकरूं? भरपाई,,
देश की खातिर तूने जो दर्द सहे,
इन लब्जो से ,बलिदान वो कैसे कहे,
याद आई, हां याद तेरी आई।
लहरता हुए ये तिरंगा,याद दिलाता हैं , फक्र से सीना मेरा चौड़ा हो जाता हैं।।
याद आई, आई हां तेरी याद आई।।
तेरी कुर्बानी की बदौलत खुशियां वतन में  छाई,हर सांस तू मौजूद हैं, भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस 
चन्द्र  शेखरआजाद, राजगुरु, रोशन लाल , भारत मां के वीर सपूतो,
याद आई ,आई हां,याद आई।
 देश के  लाल की,याद बहुत आई। क्या-क्या जुल्म सहे फिरंगियों, फिर कैसे धूल चटाई।
अपने ही अंतर्मन पूछ,
कैसे करूं?भरभाई।
कोटि कोटि नमन है।
भारत के वीर सपूतों को, 
अपनी जान गवा कर भारत, 
मां की लाज बचाई।।
याद आई, आई, हां याद आई।


 मैं हिंदी हूं

मैं राष्ट्र की शान हूं।
मैं भारत की पहचान हूं।
सुंदर हूं,
मनोरम हूं,
मीठी हूं,
सहज हूं,
सरल हूं,
प्रवास में परिचय हूं।
मैं वेद हूं, पुराण हूं, साहित्य का संसार हूं।
सूर्य, कबीर, मीरा, तुलसी, 
सबकी भाषा में विद्यमान हूं।
विद्वानों की, सज्जनों की गुंजित पुकार हूं।
मैं देश का गौरव हूं। 
वात्सल्य हूं, प्रेयसी का प्रेम हूं। 
गीत हूं, गायन हूं, वेदना हूं , 
मैं राष्ट्र को जगाने की चेतना हूं।
राष्ट्र के संपूर्ण विकास का मार्ग हूं।
मैं हिंद और मैं ही हिंदुस्तान हूं।
मैं हिंदी हूं, मैं भारत की शान हूं।

 सीता त्रिवेदी "काव्या" 
जलालाबाद शाहजहांपुर



 ये समाज -

हम सभी 
सुनते आ रहे हैं
दिन प्रति दिन 
नारी उत्पीड़न 
अत्याचार - व्यभिचार 
तब सोचने को 
विवस होता है ह्रदय 
क्यों गिरता जा रहा है 
मानवता से मानव ?
वहन - बेटियों के मध्य रहकर भी
क्यों हो गया है इतना निर्लज्ज। 
जबकि - 
अपने परिवार के लिए 
रखता है चाह 
स्वच्छ समाज की।
मगर खुद में बसाए है 
एक खूंखार शैतान।
पीडा़ तो तब अधिक होती है 
जब निकलती है
नारी ही नारी की हत्यारी
तब ऐसे समाज के लिए 
बद्दुआ निकलती है।
जब किसी दुष्कर्म में सहायक 
पीडिता की ही बुआ निकलती है।।
   विजय "तन्हा" 
9450412708



मेरी बांके बिहारी नंदलाल दर्श मोहे दे दी जो,
दे दीजो, हां,हा दे दी जो...

जब से आई इस दुनिया में, 
लोभ मोह में संलिप्त पड़ी हूं
अब तुझसे ही प्रीत लगानी,
कृपा करो बनवारी.....

मेरी बांके बिहारी नंदलाल दर्श मोह दे दी जो, हां दें दीजों...

काले - काले बदरा  उमड़- घुमड़  बरसे खुल गए जेल के ताले,
कटे संकट सारे,दर्श मोहे दे देना।

मेरे बांके बिहारी नंदलाल दर्श मोह दे दे ना हां दे देना...

अद्भुत रूप सुहाना,छटा बरनी जाएं ना, वासुदेव, देवकी,भूल गए,सब दुख अपना सारा,
हैं  देवकीनंदन दुलारा जग उजियारा,,,

मेरे  बांके बिहारी नंदलाल दर्श मोहे दे देना  हां ,दे देना.......

माखन मिश्री तुमको भाती,
रहे छाछ के चेरे,गोकुल हैं धाम तुम्हारा, व्रज वासी  ओ नदलाला।
दर्श मोह दे देना, हां दे देना...

गीता ज्ञान दिया अर्जुन को,
किया धर्म का पालन,
असुरो का संघार किया ,
बने हो जग के पलक,
दर्श मोहे दे देना हां दे देना,

कहां लो  महिमा लिखूं तिहारी,
ओ  गोवर्धन गिरधारी,दर्श मोहे दे देना हां दे देना,,

मन विकार  तुम मिटाओ,
मेरी पाप हरो  बनवारी,
दर्श मोह दे दे ना, हां दे देना ना,
जय जयकार करू  मैं तुम्हारी..
मेरी बांके बिहारी नंदलाल दर्शमोह  दे देना , हां दे देना....

सीता सर्वेश त्रिवेदी



हिंदी दिवस पर पूछे हिंदी,
कैसा दिवस हमारा है।
उत्साहित हो सब लिखते हैं,
हिंदी जान है, हिंदी राष्ट की पहचान है, 
मैं हिंदी हूं, सब भाषाओं में श्रेष्ठ हूं 
सभी कवि और कवियत्री बताते हैं......
पाश्चात सभ्यता हावी है मन और मस्तिष्क पर, 
कैसा हिंदी दिवस मनाते हैं ???
भारत मां के लालो से व्यथित होकर कहती हूं, 
पश्चिमी सभ्यता का माहौल बदलना होगा।
आंग्ल भाषा की रूढ़िवाद से हमें बाहर निकलना होगा।
मान रहे हमको अपना तो
घुटन भरी सारी परतों से पर्दा आज गिराना होगा।
गर्व से अपनी भाषा को जन - जन तक पहुंचना होगा।
आंग्ल भाषा के आगे किसको क्या दिखता है,
खड़ी हो गईं हैं जो दीवारें उनको आज गिराना होगा।
हिंदी को सिर्फ दिवस नही, धरा से अंतरिक्ष तक पहुंचाना होगा।
भाव बढ़ाएं अंग्रेजी के सबने कैसे काम सँवारे वो,
मैं हिंदी हूँ अपने हिंद में ही बेघर सी हो जाती हूं।
अपनी भाषा को जन - जन तक पहुंचना होगा।।
सबसे आगे बढ़ जाने की धुन में रिश्ते सब तोड़ रहे।
बड़े बड़े मंचो पर आंग्ल भाषा बोल रहे,....
आभा मंडल बना विदेशी उसको आज गिराना होगा। निज भाषा को उन्नति पथ के शिखर पर पहुंचाना होगा।
एक दिवस ही नहीं हर दिवस हिंदी दिवस मनाना होगा।
हर घर में फिर से वीर सपूत विवेकानंद को लाना होगा।
अपनी भाषा से नहीं हमको मुंह छिपाना होगा।
मैंने व्यथा सुनाई अपनी हमने कहकर देख लिया है,
अब तो आप की बारी है।
मिला कदम से कदम चलें हम, सबकी  जिम्मेदारी है, राष्ट भाषा मेरी हिंदी, 
जहां में सबसे प्यारी हो,....
ना दुखियारी लाचारी हो......
हिंदी ही हिंद की प्यारी हो....
लम्बा पथ है लक्ष्य दूर है, हाथ मिलाकर चलना होगा,
हिंदी को जन - जन तक पहुंचना होगा।
अपनी राष्ट भाषा विदेशो में बोलना होगा।
शर्म से नहीं गर्व से कहना होगा,
हिंदी मेरी मातृ भाषा है, राष्ट्र भाषा है,
हर मंचो से बोलना होगा....

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"
जालालाबाद,  शाहजहांपुर 
     उत्तर प्रदेश



 जाने क्यों तेरी याद मुझे सताती है।
हर पल तेरे होठों की मुस्कुराहट 
मुझे याद क्यों आती है।
नहीं चाहती तुझे याद करूं, 
फिर भी याद सताती है,
कैसा यह अनजाना रिश्ता
समझ नहीं अब तक आता है। 
कोई तेरे बारे में बोले 
मन को बहुत सुहाता है। 
कैसा ये अनजाना  रिश्ता मेरा, 
तेरा जो इस दिल को भाता है।।
ख्वाब हो या हकीकत ,
सामने जब तू आता है..
पता नहीं क्यों दिल में 
हलचल हो जाती है।
इस रिश्ते को नाम क्या दूं,
समझ नहीं फिर आता है।
आंखें कुछ कहती हैं।
दिल फिर क्यों घबराता है।
ना भैया है, ना बहना है,
ना कोई परिवारी है। 
ना दोस्त ना कोई ना सहपाठी
फिर क्यों जीवन वारी है।।
मन में हर पल जाने क्यों,
तेरे ख्याल आते हैं,
कुछ कहने से डर लगता है।
फिर चुप हो जाते हैं।
तेरे लिए खुशियों की दुआ 
ये दिल हर पल करता है।
होश अभी बाकी है मुझमें,
सूनी अँखियों में है चेहरा।
तू नहीं तो सूना जग सारा।
आँखों - आँखों में है पहरा ।

सीता त्रिवेदी "काव्या" 
जलालाबाद, शाहजहांपुर

गणेश चतुर्थी की ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाइयां मेरे प्यारे सर को सबपरिवार🙏🙏🙏💐💐
आ जाओ ओ ... विघ्न विनाशक 
 विघ्न विनाशक सारे संकट दूर    
 करो ... ओ विघ्न विनाशक...
तेरी शरण में आई  हूं...
मैं  जग की सताई हूं...
ओ...विघ्न विनाशक
में अटकी  मोह में भटकी
मुझे राह दिखाओ 
आ जाओ ओ.. विघ्न विनाशक,
सुना है सबकी सुनते हो...
मेरी भी सुनो ओ .. विघ्न विनाश।
ना भक्ति है ना शक्ति है,,
ना मुझे वेदों  का ज्ञान ,
मुझे भी शक्ति दो,मुझे भी भक्ति दो,
हो जाऊं भव से पार,,,
ओ...विनाशक
इस जग का सब कुछ तेरा हैं ,
क्या हूं अर्पण करने लायक ओ..
विघ्नविनाशक ,तेरा तुझको अर्पण,
मैं नही किसी के लायक ओ ...
विघ्नविनाशक
मिले चरनो धूल ,,माफ करो मेरी हर  भूल ओ ....विघ्न विनाशक मुझे राग भरो दो अनुराग भरो,
मेरा अब कल्याण करो,,
ओ ....विघ्न विनाशक 
मैं जान गई पहचान गई,
ओ गौरा के लाल
बनो हम सबकीअब ढाल,
हम हैं विकल बेहाल ,
दे दर्श करो निहाल,
ओ... बिघ्नविनाशक।।।
तन बस में,ना मन बस में,
जीवन हुआ अशांत।
कटुता से भरी पड़ी हूं...
मुझे राह दिखाओ गणनायक।
ओ विघ्नहर्ता  बुद्धि दायक।
कड़ कड़ में बसने वाले मेरे हृदय में बस जाओ।
ओ विघ्नविनाशक ...
ओ विघ्नविनाशक....
आ जाओ आ ,जाओ ....
सीता सर्वेश त्रिवेदी  जिला शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश


 जाने क्यों तेरी याद मुझे सताती है।
हर पल तेरे लवो की मुस्कुराहट 
मुझे याद क्यों आती है?
नहीं चाहती तुझे याद करूं, 
फिर भी याद सताती है।
कैसा यह अनजाना रिश्ता
समझ नहीं आता है। 
कोई तेरे बारे में बोले 
मन को बहुत सुहाता है। ।
कैसा ये अनजाना  रिश्ता       
इस दिल को भाता है।।
ख्वाब हो या हकीकत ,
सामने जब तू आता है..
पता नहीं क्यों दिल में जादू सा होज़ाता हैं।
इस रिश्ते को नाम क्या दूं,
समझ नहीं फिर आता है।
ना देखूं तुझे सामने 
दिल क्यों घबराता है।
ना भैया है, ना बहना है,
ना कोई खून का रिश्ता 
ना दोस्त ना कोई ना सहपाठी
फिर क्यों जीवन वारी है।।
मन में हर पल जाने क्यों?
तेरे ख्याल ही आता हैं।
कुछ कहने से डर लगता है।
सामने जब तू आता हैं,
तेरे लिए खुशियों की दुआ 
ये दिल हर पल करता है।
होश अभी बाकी है मुझमें,
सूनी अँखियों मे चेहरा तेरा
तू नहीं तो सूना जग सारा     लगता हैं।
लगता मानो ऐसा जन्म- जन्म ,       का रिश्ता हैं

सीता सर्वेश त्रिवेदी 
जलालाबाद, शाहजहांपुर

 उठो वसुंधरे मत हो उदास 
तेरा प्रियतम तुझसे मिलने आया है।
आगोश से जाग धरा,
कोहरे का कोलाहल चला गया
सुंदर सजीली स्वर्ण किरणों से 
आंचल तेरा सजाया है।
अली तेरा दास आया है।
अरे तू उठ धरा मुस्करा दे,
मिलने तेरा प्रियतम आया है।
छट गई धरा दुख बदरी,
अब बसंत बहार आया है। 
कोयल कुहू- कुहू गीत सुनाने 
फिर से उपवन में आई है।
फूलों पे भ्रमर गुंजन करते।
अली तुझे मनाने आए हैं। 
फूल खिले पीले - पीले 
कलियां भी मुस्काई  हैं।
झुलसे वृक्षो में देख अली,
नई कोपले आई हैं।
नव सृजित हो रहे पेड़ सभी 
आम भी बौराए है ।
ओ वसुंधरा, तू देख जरा !
रितुराज भी मिलने आए हैं।
चारों तरफ शोर मचाए हैं,
वन उपवन सब हिलोर भरे, 
पशु-पक्षी सब किलकोर करें ।
मंद -मंद पवन बहे ,
हिय को बहुत लुभाती है,
उठो धरा नयनों को खोलो। 
तू सजी हुई दुल्हन सी आज, 
तेरे कोमल ओंठ सजीले,
तेरे लिए लाया में अद्भुत उपहार 
सभी देव तेरे घर में आये,
कर रहे हैं तेरा इंतजार,
माघ नहाने सब देव आए,
नर नारी बच्चे हर्षायें।।


     सीता त्रिवेदी 
जलालाबाद, शाहजहांपुर



 सब के हृदय में बसते राम सीताराम सीताराम।
बोलो राम - राम - राम बोलो राम - राम - राम।

पतित पावन नाम राम का जीवन का आधार, 
रामलला को पूजिए राम नाम से करिए प्यार,

जन जन के ह्रदय बसे जन जन के अति प्यारे,
कौशल्या के प्यारे और दशरथ नंदन राज दुलारे, 

सज गई अवध नगरिया, सजे सभी हैं नर नारी,
रामलला हैं वहाँ विराजे जिनकी छवि लगती न्यारी,

राम, लखन और भारत, शत्रुघन थे अयोध्या की जान, 
धाम अयोध्या बनी है देखो अपने भारत की पहचान,  

सिया, उर्मिला, मांडवी, श्रुतिकीर्ति प्यारी अवध दुलारी,
राज भवन की बहुएं ये सास ससुर की सबसे प्यारी,

मात के बचन निभाए लौट लखन संग बापस आए,
चौदह वरस वनवास लिया आज्ञाकारी जो कहलाए,

संतो के हितार्थ बने जो  संत जनो के तारणहारे, 
दुष्टो का  संहार  किया सब संतो  के  कष्ट उबारे, 

अवध में राम जी आए राम नाम है प्यारा नाम,
बोलो राम राम राम राम सीता राम राम राम।

सीता त्रिवेदी



 पग- पग संघर्षों के नये आयाम गढ़े।
अपने विराट व्यक्तित्व से जिसने 
भारत में नये इतिहास लिखे।
थें मजबूत इरादों के पक्के 
राजनीति के घोर विरोधी भी 
रहते थे भौंचक्के,
एक नहीं अनेकों क्षेत्रों में जिसने 
महारथ हासिल की।
साहित्यिक कलात्मक, समृद्धि और 
समरसता के सच्चे पालक थें।
पग पग निति संघर्षों से जिसने 
नए आयाम गढ़े।
मीठी वाणी कोमल हृदय 
शीतल मन और स्वच्छ
सरल विचार हर वर्ग से पायें
अनंत गहराइयों से प्यार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक बनकर 
अविवाहित रहने का संकल्प लिया।
राष्ट्रधर्म पांचजन्य अर्जुनवीर 
राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत 
पत्रिकाओं के संपादन का कार्य किया।
देश के तीन बार प्रधानमंत्री बने 
फिर भी नहीं गुमान किया।
धोती कुर्ता खादी सदरी 
देशी परिधानों से प्यार किया।।
तीन- तीन  भाषाओं का ज्ञाता फिर भी 
हर सभा में हिंदी से उद्बोधन दिया।
राष्ट्रभाषा हिंदी को सम्मान दिया।
कारगिल की चोटी पर जब शत्रु ने 
घुसपैठ किया, मुंह तोड़ जवाब दिया दुश्मन को 
कारगिल को कब्जा मुक्त किया।।
स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना से चहुंदिश विकास किया
कावेरी जल विवादों का पल भर में समाधान किया।
संरचनात्मक ढांचे, कार्य दल, सॉफ्टवेयर विकास प्रौद्योगिकी विद्युतीकरण आयोग का गठन किया। राष्ट्रीय राजमार्ग, हवाई अड्डे ,टेलीकॉम, 
बुनियादी ढांचों को मजबूत किया 
निर्धनता उन्मूलन का कार्य प्रारंभ किया 
अटल ऐसा नाम जगत में जिसका कोई दुश्मन ना,
वैचारिक मतभेद भले हो किसी के मनभेद ना,
सच में अटल अटल थे। 
अजातशत्रु भीष्म लोग इन्हें कहते थे।
पग पग से नित संघर्षों से जिसने नये आयाम गढ़े।
पेड़े के दीवाने ठंडाई के शौकीन रहे 
मनमौजी स्वभाव चेहरे पर मीठी मुस्कान रहे।
भारत रत्न भले मिला को उनको बाद में।
वो पहले से ही हर दिल के भारत रत्न रहे।
हार जीत से नहीं घबराते,
जब जनसभा संबोधित करते 
उनके व्यक्तित्व को सुनने हिंदू ही नहीं 
बड़े-बड़े मुस्लिम जन आते।
कहां तक लिखूं महिमा आपकी अपार रही 
आज भी आपकी याद हर दिल में बेशुमार रही 
हर दिल में बेशुमार रही।
आज आप के जन्म दिवस को 
सुशासन दिवस में मनाते हैं।

सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर



 मुझको निर्बल मत समझो- -

मुझको निर्बल क्यों समझे, जन-जन की निर्माता हूंँ। 
सहनशीलता, क्षमाशीलता मैं ही उसकी प्रदाता हूँ। 

मां, बहन, भार्या, लक्ष्मी, दुर्गा सभी रूप हमारे हैं।  
फिर इस जग में मानव को हम न लगते प्यारे हैं।

सब कहते वरदान है बेटी, शान है बेटी, स्वाभिमान है बेटी। 
फिर भी सबकी नजरों में क्यों अनचाहा वरदान है बेटी।

मानव समाज जन्मदात्री बन, हर इच्छा पूरी करती हूँ।
मन मसोसकर मैं अपना, खुशियां दांव पर रखती हूँ।

मुझको निर्बल समझे मानव, सुखदाता ,दुखहर्ता बेटी।
ममता का सागर है पर, पग पग लज्जित होती बेटी।

गली मोहल्ले, चौराहों पर, कैसी कैसी नजरों से देखें। 
मानव जन्मदायनी को ही, बुरी नजर से आँखें सेकें।

बिन बेटी गर सुखद है जीवन, तो आज ही मिटा डालो।
घुट घुट कर जीने से अच्छा रस्ते से ही तुम हटा डालो।
 
मैं सहनशील तब भी थी, मैं सहनशील अब भी हूँ।
कमजोर नहीं हूंँ किंचित भी, संस्कारो में ढली हूँ।

मैं ममता की मूरत हूँ, सहन सभी कुछ कर सकती हूंँ।
सहूँगीं अपने हृदय की पीडा़, जब तक सह सकती हूँ।

बेटी की क्यों गर्भ में हत्या, इक माता ही कटवाती है।
निज बेटी की हत्या कर, मां बिलकुल नहीं लजाती है।

किससे करूं शिकायत मैं, माँ को क्यो नहीं भाती बेटी।
मां मुझको निर्बल न समझो, अंश तुम्हारा ही पाती बेटी।

 सीता त्रिवेदी 
जलालाबाद, शाहजहांपुर



चट्टानों से टकराती है।
ना धन दौलत की चाह।
चलते अपनी राह।
चाहे मिले मौत के पैगाम।
ऐसे पत्रकारों को प्रणाम।
नहीं रुकी फिर कभी कलम,
जन-जन की जन-जन तक पहुंचाते आवाज।
अभिव्यक्ति की कुशलता, 
हर व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार 
जन-जन तक पहुंचने का किया प्रसार।
प्रेस ना होती दबी रहती तमाम प्रतिभाएं
प्रेस को हम करते दिल से सलाम।
लोकतंत्र में सशक्त राष्ट्र का मूल आधार।
जब जब दुराचारियों का पाप बढा
तब तब आवाज बनी प्रेस, सच्ची प्रीत बनी 
भेदभाव रहित सच्ची प्रीत है हमारी प्रेस।
और सच्ची मीत है हमारी प्रेस।
मुख्य भूमिका है इसकी राष्ट्र का विकास
प्रेस दिवस है, हम सबके लिए खास 
संपूर्ण राष्ट वसुधैव कुटुंबकम बनाया 
तलवार की धार पर करती है काम बड़े-बड़े कलम,
अत्याचारियों का कर दिया काम तमाम
कलम की ताकत क्या है जन-जन को बताया है,
सजग प्रहरी वन निष्पक्ष न्याय दिलाया हैं
इसको कभी ना खोने देना।
हम सब की नैतिक जिम्मेदारी सदा करें सम्मान।
जो खड़े राष्ट्र के हित में हैं।
सब का दर्पण और समर्पण प्रेस की आवाज।
प्रेस ना होती तो प्रतिभाओं का होता दमन 
सभी प्रेस और पत्रिकाएं हैं देश की जान।
आप सभी पर है देश को अभियान। 

सीता त्रिवेदी 
जलालाबाद शाहजहांपुर





 कैसा वाल दिवस है आज 

कैसा बाल दिवस है आज
संविधान के बने नियम 
सब हो गए बेहाल
कैसा बाल दिवस है आज
कोई दूध मलाई खाए
कोई सूखी रोटी खाए 
कोई मौज बनाएं  
कैसा बाल दिवस है आज 
व्यथित हो रहा मन 
अंतर्मन मेरा आज कचोटे।
झुग्गी झोपड़ी के बच्चे 
नहीं दिखें खुशहाल।
कैसा बाल दिवस है आज
कैसे पेट के लिए रोटी कमाएं
और अपना परिवार चलाएं।
नहीं होता नियमों का पालन 
आज हमें बतलाएं।
कैसा बाल दिवस है आज।
नहीं बच्चे खुशहाल 
कैसा बाल दिवस है आज 
रोटी दाल भले मिल जाए।
मिले शिक्षा ना संस्कार,
कैसा बाल दिवस है आज 
बने हुए हैं कई नियम ,
इन बच्चों की खुशियों के
क्यों नहीं हो रहा उनका पालन 
पूछे सीता आज।
कैसा बाल दिवस है आज ।
हम सब की है नैतिक जिम्मेदारी, 
क्यों नहीं निभाते आज 
कैसा बाल दिवस है आज।
अपनी आंखें खोल के देखो, 
कितने बच्चे हैं बेहाल।
कैसा बाल दिवस है आज। 

भोले वाले इन चेहरों पर 
खुशी का नमोनिशान नहीं,
जिनके हाथों में हो किताबें ,
पड़े हाथों में छाले हैं ।
कितने बच्चे हैं बेहाल ।
कैसा बाल दिवस है आज।
बच्चे भट्टे पर मजदूरी करते 
और करते होटलों पर ,
खुली आंख और बंद आंख से 
सपना कोई ना आए ,
ना देखें कितने बच्चों नेअपने
सपने अपने गवाएं ।
कैसा बाल दिवस है आज।
उम्र है इनकी पढ़ने,की
नशे से दूर नहीं है क्यों ये बच्चे कोई हमे बताए।
कभी न पूछे भाव हम इनके 
क्यों करते हैं भूल ।
सहमा, सहमा हर मासूम बच्चा है।
आओ मिलकर शपथ उठाएं ।
बाल मजदूरी कोई कार्य, 
बच्चे के हित में कदम बढाएं हम 
आज से ही सौगंध उठाएं हम।
हर बच्चा देश का बच्चा
मिलकर सब राष्ट्र उत्थान करें 
हर मासूम के चेहरे पर
खुशियों का उपहार बने,
बने नियम जो बच्चों के लिए। 
कड़ाई से पालन करबाएं 
हम बिना डरे बिना रुके
देश को आगे बढ़ाएं 
आओ हम सब मिलकर
ऐसे बाल दिवस मनाएं।। 

 सीता त्रिवेदी 
जलालाबाद शाहजहांपुर



 आओ मिलकर अभियान चलाएं 
देश को नशा मुक्त कराए 
जहां-जहां हो नशे के अड्डे
उन पर सख्त नियम अपनाएं
आओ मिलकर कदम बढ़ाए 
देश को नशा मुक्त कराएं  
स्कूलों कॉलेजों में और संस्थानों में 
प्रारंभिक जीवन से ही यह अपनाया जाए।
पाठ्यक्रम में इसको शामिल कराया जाए
नशा निषेध है इस जीवन में 
कभी नहीं अपनाया जाए 
नशा करने वाले जन को
किसी पद पर न बिठाया जाये।
न समाज का हिस्सा उसको माना जाए।
इस अभियान से जोड़कर नशा मुक्त कराया जाए
छिपी है मौत तुम्हारी क्यों 
करते हो जीवन ख्वारी 
यह भी पाठ सिखाया जाए
नशा करता जो व्यक्ति 
कुछ कर नहीं पाता है 
सब कुछ अपना खोकर भी
अपमान जगत में पाता है
आओ हम सब मिलकर संकल्प करें 
देश को नशा मुक्त बनाया जाए
आओ मिलकर कदम उठाएं 
जहां-जहां हो नशे के अड्डे
उनको ख़तम कराया जाए
आओ मिलकर शपथ उठाएं 
देश को नशा मुक्त कराएं 
नव राष्ट्र का निर्माण कराएं 
आओ मिलकर अभियान चलाएं।।
 
सीता त्रिवेदी  
जलालाबाद, शाहजहांपुर





 किसी को दिल में बिठा कर देखो।
किसी  को अपना बना कर देखो। 

गुजारो हंस कर, सदा यह जीवन, 
अश्क आँखो के, छिपाकर देखो।

खुशी का लम्हा, अगर हो छोटा,
बडा तुम उसको, बनाकर देखो।

मिले  तुमको प्यार में  गर धोखा,
मगर दिल फिर से, लगाकर देखो।

चलेगा हमसफर  बनकर भी  वो,
दिल में उसको ही, बसाकर देखो।

फिदा वो जान  कर देगा  तुम पर,
कभी तो  यूँ  आजमा  कर  देखो।

जिन्दगी भर तुम, रहो उसके ही, 
नफरत दिल से को हटा कर देखो।।


 सीता त्रिवेदी 
जलालाबाद, शाहजहांपुर


 उठो वसुंधरे मत हो उदास 
तेरा प्रियतम तुझसे मिलने आया है।
आगोश से जाग धरा,
कोहरे का कोलाहल चला गया
सुंदर सजीली स्वर्ण किरणों से 
आंचल तेरा सजाया है।
अली तेरा दास आया है।
अरे तू उठ धरा मुस्करा दे,
मिलने तेरा प्रियतम आया है।
छट गई धरा दुख बदरी,
अब बसंत बहार आया है। 
कोयल कुहू- कुहू गीत सुनाने 
फिर से उपवन में आई है।
फूलों पे भ्रमर गुंजन करते।
अली तुझे मनाने आए हैं। 
फूल खिले पीले - पीले 
कलियां भी मुस्काई  हैं।
झुलसे वृक्षो में देख अली,
नई कोपले आई हैं।
नव सृजित हो रहे पेड़ सभी 
आम भी बौराए है ।
ओ वसुंधरा, तू देख जरा !
रितुराज भी मिलने आए हैं।
चारों तरफ शोर मचाए हैं,
वन उपवन सब हिलोर भरे, 
पशु-पक्षी सब किलकोर करें ।
मंद -मंद पवन बहे ,
हिय को बहुत लुभाती है,
उठो धरा नयनों को खोलो। 
तू सजी हुई दुल्हन सी आज, 
तेरे कोमल ओंठ सजीले,
तेरे लिए लाया में अद्भुत उपहार 
सभी देव तेरे घर में आये,
कर रहे हैं तेरा इंतजार,
माघ नहाने सब देव आए,
नर नारी बच्चे हर्षायें।।


     सीता त्रिवेदी 
जलालाबाद, शाहजहांपुर





  पग- पग संघर्षों के नये आयाम गढ़े।
अपने विराट व्यक्तित्व से जिसने 
भारत में नये इतिहास लिखे।
थें मजबूत इरादों के पक्के 
राजनीति के घोर विरोधी भी 
रहते थे भौंचक्के,
एक नहीं अनेकों क्षेत्रों में जिसने 
महारथ हासिल की।
साहित्यिक कलात्मक, समृद्धि और 
समरसता के सच्चे पालक थें।
पग पग निति संघर्षों से जिसने 
नए आयाम गढ़े।
मीठी वाणी कोमल हृदय 
शीतल मन और स्वच्छ
सरल विचार हर वर्ग से पायें
अनंत गहराइयों से प्यार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक बनकर 
अविवाहित रहने का संकल्प लिया।
राष्ट्रधर्म पांचजन्य अर्जुनवीर 
राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत 
पत्रिकाओं के संपादन का कार्य किया।
देश के तीन बार प्रधानमंत्री बने 
फिर भी नहीं गुमान किया।
धोती कुर्ता खादी सदरी 
देशी परिधानों से प्यार किया।।
तीन- तीन  भाषाओं का ज्ञाता फिर भी 
हर सभा में हिंदी से उद्बोधन दिया।
राष्ट्रभाषा हिंदी को सम्मान दिया।
कारगिल की चोटी पर जब शत्रु ने 
घुसपैठ किया, मुंह तोड़ जवाब दिया दुश्मन को 
कारगिल को कब्जा मुक्त किया।।
स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना से चहुंदिश विकास किया
कावेरी जल विवादों का पल भर में समाधान किया।
संरचनात्मक ढांचे, कार्य दल, सॉफ्टवेयर विकास प्रौद्योगिकी विद्युतीकरण आयोग का गठन किया। राष्ट्रीय राजमार्ग, हवाई अड्डे ,टेलीकॉम, 
बुनियादी ढांचों को मजबूत किया 
निर्धनता उन्मूलन का कार्य प्रारंभ किया 
अटल ऐसा नाम जगत में जिसका कोई दुश्मन ना,
वैचारिक मतभेद भले हो किसी के मनभेद ना,
सच में अटल अटल थे। 
अजातशत्रु भीष्म लोग इन्हें कहते थे।
पग पग से नित संघर्षों से जिसने नये आयाम गढ़े।
पेड़े के दीवाने ठंडाई के शौकीन रहे 
मनमौजी स्वभाव चेहरे पर मीठी मुस्कान रहे।
भारत रत्न भले मिला को उनको बाद में।
वो पहले से ही हर दिल के भारत रत्न रहे।
हार जीत से नहीं घबराते,
जब जनसभा संबोधित करते 
उनके व्यक्तित्व को सुनने हिंदू ही नहीं 
बड़े-बड़े मुस्लिम जन आते।
कहां तक लिखूं महिमा आपकी अपार रही 
आज भी आपकी याद हर दिल में बेशुमार रही 
हर दिल में बेशुमार रही।
आज आप के जन्म दिवस को 
सुशासन दिवस में मनाते हैं।

सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर



सब के हृदय में बसते राम सीताराम सीताराम।
बोलो राम - राम - राम बोलो राम - राम - राम।

पतित पावन नाम राम का जीवन का आधार, 
रामलला को पूजिए राम नाम से करिए प्यार,

जन जन के ह्रदय बसे जन जन के अति प्यारे,
कौशल्या के प्यारे और दशरथ नंदन राज दुलारे, 

सज गई अवध नगरिया, सजे सभी हैं नर नारी,
रामलला हैं वहाँ विराजे जिनकी छवि लगती न्यारी,

राम, लखन और भारत, शत्रुघन थे अयोध्या की जान, 
धाम अयोध्या बनी है देखो अपने भारत की पहचान,  

सिया, उर्मिला, मांडवी, श्रुतिकीर्ति प्यारी अवध दुलारी,
राज भवन की बहुएं ये सास ससुर की सबसे प्यारी,

मात के बचन निभाए लौट लखन संग बापस आए,
चौदह वरस वनवास लिया आज्ञाकारी जो कहलाए,

संतो के हितार्थ बने जो  संत जनो के तारणहारे, 
दुष्टो का  संहार  किया सब संतो  के  कष्ट उबारे, 

अवध में राम जी आए राम नाम है प्यारा नाम,
बोलो राम राम राम राम सीता राम राम राम।

सीता त्रिवेदी


*मुझको निर्बल मत समझो- -*

मुझको निर्बल क्यों समझे, जन-जन की निर्माता हूंँ। 
सहनशीलता, क्षमाशीलता मैं ही उसकी प्रदाता हूँ। 

मां, बहन, भार्या, लक्ष्मी, दुर्गा सभी रूप हमारे हैं।  
फिर इस जग में मानव को हम न लगते प्यारे हैं।

सब कहते वरदान है बेटी, शान है बेटी, स्वाभिमान है बेटी। 
फिर भी सबकी नजरों में क्यों अनचाहा वरदान है बेटी।

मानव समाज जन्मदात्री बन, हर इच्छा पूरी करती हूँ।
मन मसोसकर मैं अपना, खुशियां दांव पर रखती हूँ।

मुझको निर्बल समझे मानव, सुखदाता ,दुखहर्ता बेटी।
ममता का सागर है पर, पग पग लज्जित होती बेटी।

गली मोहल्ले, चौराहों पर, कैसी कैसी नजरों से देखें। 
मानव जन्मदायनी को ही, बुरी नजर से आँखें सेकें।

बिन बेटी गर सुखद है जीवन, तो आज ही मिटा डालो।
घुट घुट कर जीने से अच्छा रस्ते से ही तुम हटा डालो।
 
मैं सहनशील तब भी थी, मैं सहनशील अब भी हूँ।
कमजोर नहीं हूंँ किंचित भी, संस्कारो में ढली हूँ।

मैं ममता की मूरत हूँ, सहन सभी कुछ कर सकती हूंँ।
सहूँगीं अपने हृदय की पीडा़, जब तक सह सकती हूँ।

बेटी की क्यों गर्भ में हत्या, इक माता ही कटवाती है।
निज बेटी की हत्या कर, मां बिलकुल नहीं लजाती है।

किससे करूं शिकायत मैं, माँ को क्यो नहीं भाती बेटी।
मां मुझको निर्बल न समझो, अंश तुम्हारा ही पाती बेटी।

 सीता त्रिवेदी 
जलालाबाद, शाहजहांपुर



नहीं किसी से घबराती है।
चट्टानों से टकराती है।
ना धन दौलत की चाह।
चलते अपनी राह।
चाहे मिले मौत के पैगाम।
ऐसे पत्रकारों को प्रणाम।
नहीं रुकी फिर कभी कलम,
जन-जन की जन-जन तक पहुंचाते आवाज।
अभिव्यक्ति की कुशलता, 
हर व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार 
जन-जन तक पहुंचने का किया प्रसार।
प्रेस ना होती दबी रहती तमाम प्रतिभाएं
प्रेस को हम करते दिल से सलाम।
लोकतंत्र में सशक्त राष्ट्र का मूल आधार।
जब जब दुराचारियों का पाप बढा
तब तब आवाज बनी प्रेस, सच्ची प्रीत बनी 
भेदभाव रहित सच्ची प्रीत है हमारी प्रेस।
और सच्ची मीत है हमारी प्रेस।
मुख्य भूमिका है इसकी राष्ट्र का विकास
प्रेस दिवस है, हम सबके लिए खास 
संपूर्ण राष्ट वसुधैव कुटुंबकम बनाया 
तलवार की धार पर करती है काम बड़े-बड़े कलम,
अत्याचारियों का कर दिया काम तमाम
कलम की ताकत क्या है जन-जन को बताया है,
सजग प्रहरी वन निष्पक्ष न्याय दिलाया हैं
इसको कभी ना खोने देना।
हम सब की नैतिक जिम्मेदारी सदा करें सम्मान।
जो खड़े राष्ट्र के हित में हैं।
सब का दर्पण और समर्पण प्रेस की आवाज।
प्रेस ना होती तो प्रतिभाओं का होता दमन 
सभी प्रेस और पत्रिकाएं हैं देश की जान।
आप सभी पर है देश को अभियान। 

सीता त्रिवेदी 
जलालाबाद शाहजहांपुर



: आओ मिलकर अभियान चलाएं 
देश को नशा मुक्त कराए 
जहां-जहां हो नशे के अड्डे
उन पर सख्त नियम अपनाएं
आओ मिलकर कदम बढ़ाए 
देश को नशा मुक्त कराएं  
स्कूलों कॉलेजों में और संस्थानों में 
प्रारंभिक जीवन से ही यह अपनाया जाए।
पाठ्यक्रम में इसको शामिल कराया जाए
नशा निषेध है इस जीवन में 
कभी नहीं अपनाया जाए 
नशा करने वाले जन को
किसी पद पर न बिठाया जाये।
न समाज का हिस्सा उसको माना जाए।
इस अभियान से जोड़कर नशा मुक्त कराया जाए
छिपी है मौत तुम्हारी क्यों 
करते हो जीवन ख्वारी 
यह भी पाठ सिखाया जाए
नशा करता जो व्यक्ति 
कुछ कर नहीं पाता है 
सब कुछ अपना खोकर भी
अपमान जगत में पाता है
आओ हम सब मिलकर संकल्प करें 
देश को नशा मुक्त बनाया जाए
आओ मिलकर कदम उठाएं 
जहां-जहां हो नशे के अड्डे
उनको ख़तम कराया जाए
आओ मिलकर शपथ उठाएं 
देश को नशा मुक्त कराएं 
नव राष्ट्र का निर्माण कराएं 
आओ मिलकर अभियान चलाएं।।
 
सीता त्रिवेदी  
जलालाबाद, शाहजहांपुर




: कैसा वाल दिवस है आज 

कैसा बाल दिवस है आज
संविधान के बने नियम 
सब हो गए बेहाल
कैसा बाल दिवस है आज
कोई दूध मलाई खाए
कोई सूखी रोटी खाए 
कोई मौज बनाएं  
कैसा बाल दिवस है आज 
व्यथित हो रहा मन 
अंतर्मन मेरा आज कचोटे।
झुग्गी झोपड़ी के बच्चे 
नहीं दिखें खुशहाल।
कैसा बाल दिवस है आज
कैसे पेट के लिए रोटी कमाएं
और अपना परिवार चलाएं।
नहीं होता नियमों का पालन 
आज हमें बतलाएं।
कैसा बाल दिवस है आज।
नहीं बच्चे खुशहाल 
कैसा बाल दिवस है आज 
रोटी दाल भले मिल जाए।
मिले शिक्षा ना संस्कार,
कैसा बाल दिवस है आज 
बने हुए हैं कई नियम ,
इन बच्चों की खुशियों के
क्यों नहीं हो रहा उनका पालन 
पूछे सीता आज।
कैसा बाल दिवस है आज ।
हम सब की है नैतिक जिम्मेदारी, 
क्यों नहीं निभाते आज 
कैसा बाल दिवस है आज।
अपनी आंखें खोल के देखो, 
कितने बच्चे हैं बेहाल।
कैसा बाल दिवस है आज। 

भोले वाले इन चेहरों पर 
खुशी का नमोनिशान नहीं,
जिनके हाथों में हो किताबें ,
पड़े हाथों में छाले हैं ।
कितने बच्चे हैं बेहाल ।
कैसा बाल दिवस है आज।
बच्चे भट्टे पर मजदूरी करते 
और करते होटलों पर ,
खुली आंख और बंद आंख से 
सपना कोई ना आए ,
ना देखें कितने बच्चों नेअपने
सपने अपने गवाएं ।
कैसा बाल दिवस है आज।
उम्र है इनकी पढ़ने,की
नशे से दूर नहीं है क्यों ये बच्चे कोई हमे बताए।
कभी न पूछे भाव हम इनके 
क्यों करते हैं भूल ।
सहमा, सहमा हर मासूम बच्चा है।
आओ मिलकर शपथ उठाएं ।
बाल मजदूरी कोई कार्य, 
बच्चे के हित में कदम बढाएं हम 
आज से ही सौगंध उठाएं हम।
हर बच्चा देश का बच्चा
मिलकर सब राष्ट्र उत्थान करें 
हर मासूम के चेहरे पर
खुशियों का उपहार बने,
बने नियम जो बच्चों के लिए। 
कड़ाई से पालन करबाएं 
हम बिना डरे बिना रुके
देश को आगे बढ़ाएं 
आओ हम सब मिलकर
ऐसे बाल दिवस मनाएं।। 

 सीता त्रिवेदी 
जलालाबाद शाहजहांपुर


किसी को दिल में बिठा कर देखो।
किसी  को अपना बना कर देखो। 

गुजारो हंस कर, सदा यह जीवन, 
अश्क आँखो के, छिपाकर देखो।

खुशी का लम्हा, अगर हो छोटा,
बडा तुम उसको, बनाकर देखो।

मिले  तुमको प्यार में  गर धोखा,
मगर दिल फिर से, लगाकर देखो।

चलेगा हमसफर  बनकर भी  वो,
दिल में उसको ही, बसाकर देखो।

फिदा वो जान  कर देगा  तुम पर,
कभी तो  यूँ  आजमा  कर  देखो।

जिन्दगी भर तुम, रहो उसके ही, 
नफरत दिल से को हटा कर देखो।।


 सीता त्रिवेदी 
जलालाबाद, शाहजहांपु




 चाय 
जाने कैसी आदत हो गई तेरी,
आंख खुलते ही बस तू नजर आती है,,
रूप तेरा कोई भी हो,
लेमन टी , ग्रीन टी, ब्लेक टी,, 
मिल्क टी,
किसी न किसी रूप में सभी को भाती है, सब करते तेरी बुराई,,,,
 तू ठीक नही हैं सेहत के लिए,,,
फिर भी बिन तेरे नही रह 
पातेहैं, 
तेरे इश्क का अजीब सा जादू है,, 
तेरे सामने आते ही,,
तेरी तरफ हाथ बड़ जाते है,,,
कोई,,,कई बार,, कोई सुबह शाम,,,
कोई कभी कभार,,,
तेरे दामन को थामे बिना नही रह पाता है,
कैसी तुझसे चाहत है,
हर सुख  में भले कम भाती  हो मगर दुख  की पक्की सहेली हो,, 
दुनिया छोड़ कर जब किसी का अपना चला जाता है,
दुख के सागर में डूबा होता है,,
उस दुख में भी तुम्ही सहारा होती हो ,,
उस समय निवाला होती हो,
अजब सी कसक है तुम्हारी भी,,
ना  चाहते हु भी सब की धड़कन हो,
हम से अच्छी तुम हो,
बच्चे,, युवा ,,बुजुर्ग ,सभी की चहेती हो,,
वाह क्या किस्मत पाई हो, 
जो हर दिल पर छाई हो,
आप का ढंग सब को सुहाता।
बदले चेहरे, बदले लोग सब करते हैं तेरा उपयोग,,
क्या खासियत पाई है तूने ,
तेरा  जादू सब पर छाया है,
गरीब अमीर सब में नजर ना आता।।।
दिल में जब जख्म ही जख्म हो,
दर्द  ऐसा हो सहा नही जाता।।।
हाथ में बस बार बार तेरा प्याला नजर आता है,
निर्णय लेने पर लेते है मदद तेरी,
पूर्ण हो या अपूर्ण  दिन हो या रात
हर पल तेरा साथ है,
दुख हो या दर्द 
जन्म हो मृत्यु हो,
लाभ हो या हानि हो,,
दुनिया जब कोई ना आस
हो  तब भी तुम्ही पास हो,
इस लिए ना चाहते हुए भी,,
बस तुम मेरी खास हो
सीता सर्वेश त्रिवेदी



  क्यों रूठे हो सूरज भैया ?
धरती तपती तपती गइया,
गरम हुआ मौसम इतना,
घर में तपती मेरी मैया,
टप टप टपके खूब पसीना,
मुश्किल हम बच्चों का जीना,,
क्यों करते हमको परेशान???
बाग बगीचे सूख रहे हैं,
सूख गई मेरे घर की  कुइया,
चिड़िया मेरे घर ना आती, 
ना कोयल अब गीत सुनाती,
पीहू पीहू पपिया बोले हैं,,
धरती मैया भी विलख रही है,,
तिल  तिल देखो झुलस रही है,,
जीव जंतु सब तड़प  रहे हैं,।
आग बदन अब उगल रहे हैं,
नदिया नहरें सूख रहीं हैं,
तेज तपन से झुलस रहीं हैं,
क्यों दया न तुमको आती है ?...
हुई भूल तुम उसे भूलाओ,, 
त्राहि माम है करता मानव ,
अपनी भूल को मान रहे हैं।
वृक्ष धरा पर लगा रहे हैं,
बरखा मैया आओ ना 
नीर बरसाओ ना ...
ताप कम करो बरखा मैया
जल से भर दो ताल तलैया
शीतल कर दो धरा को मैया।
हम करते हैं सब तुमसे वादा,,
प्रकृति से नहीं खिलवाड़ करेंगे,
वृक्ष लगाकर सिंगार करेंगे।

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या" 
      जलालाबाद




क्यो रूठे हो सूरज भैया,
धरती तपती तपती गइया,
घर में तपती मेरी मैया,
टप टप टपके खूब पसीना,
मुश्किल हम बच्चों का जीना,,
क्यों करते हमको परेशान???
बाग बगीचे सुख रहे हैं,
सुख गई मेरे घर की  कुइया,
चिड़िया मेरे घर ना आती, 
ना कोयल अब गीत सुनाती,
पीहू पीहू पपिया बोले हैं,,
धरती मैया भी विलख रही है,,
तिल  तिल देखो झुलस रही है,,
जीव जंतु सब तड़प  रहे है,।
आग बदन अब उगल रहे हैं,
नदिया नहरे सूख रही है,
तेज तपन से झुलस रही है,
क्यो?
दया न तुमको आती है...
हुई भूल तुम उसे भूलाओ,, त्राहे माम अब कर रहे मानव ,
अपनी भूल को मान रहे हैं।
वृक्ष धरा पर लगा रहे हैं,
बरखा मैया आओ ना नीर
बरसाओ   ना ...
ताप कम करो  बरखा मैया
जल से भर दो ताल तलैया
शीतल कर दो धरा को मैया।
हम करते हैं सब तुमसे वादा,,
प्रकृति से नहीं खिलवाड़, करेंगे,
वृक्ष लगाकर सिंगार  करेगे।
सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद


 पत्रकार
नम आंखों में जिसका कोई नही, उन आसुओं  की आवाज हैं  पत्रकार । 
बिखरते सपनों की जान हैं पत्रकार ।
समाज की रीढ़,हर दिल की आवाज हैं पत्रकार।।
संविधान  का चौथा स्तंभ
है पत्रकार।
वे साहरे  का सहारा ,
जन -जन की पुकार है पत्रकार
हर हक की झंकार और साज  हैं, पत्रकार।
हर किसी के हक की बात रखता पत्रकार ।
कोई वेतन नहीं ,निशुल्क सेवा करता है पत्रकार।।
समाज को  सजाते संवारते हैं,पत्रकार , 
कभी - कभी सही होते हुए भी, 
अपवाद के पात्र बनते है ,पत्रकार।
हर व्यक्ति का पूर्ण निखार होते है, पत्रकार, 
अपने जीवन की परवाह न करते हैं , पत्रकार।।
आंखों की चमक चेहरे की मुस्कान होते है पत्रकार ।।
अपने भी दूर होते  कभी आप  की आवाज से , फिर भी नही डिगते अपने ईमान से,,,
बो है पत्रकार।।
जन्म - जन्म  का  साथ है समाज ,और आप का, समझे  सच्चे साथी  होते है  पत्रकार।।
देश से विदेश तक की जानकरी देते हैं,पत्रकार।।।
जब-जब जुल्म भ्रष्टाचार आगे बढ़ा उसके खिलाफ लड़ते हैं ,पत्रकार।।
हर रूप में हैं स्वीकारा है इस जग ने आप को, 
क्यों की देश के सच्चे देश भक्त  होते है पत्रकार,,
आप ना होते तो कौन उठाता आवाज समाज की,,,,
सम्माज की पूरी धुरी होता है, पत्रकार।।
🙏💐💐💐
अनुभवी सच्चे समाज सेवक,पत्रकार को, पत्रकारिता दिवस की  
तहे दिल ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाइयां आप हमेशा स्वस्थ रहें मस्त रहें,, 
सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"



समय निधि है ।
समय विधि है।
समय सफलता,
समय असफलता,
समय के साथ नहीं जो चलता, 
कभी न मिलती उसे सफलता । 
समय है, ताना ।
समय है बाना ।
समय जड़ी है ।
समय घड़ी है ।
समय समय पर समय दो सबको 
नहीं समय पर पछताओगे।
समय गया फिर समय ना आए।
गया समय, फिर ना पाओगे।
समय को समझो,
समझ, समझ कर।
समय है कर्ता ।
समय है धर्ता।
समय के साथ जो नहीं सुधरता ।
उसे जीवन मे कहां सफलता ।
समय न रुकता ।
समय न झुकता।
गया समय फिर कभी न मिलता।
समय को जानो ,
समय को पहचानो ।
न शिकवा न गिला है।
समय के साथ जो नहीं जगा है।
प्रायश्चित्त के सिवा कुछ नहीं मिला है।
गर तुम समय को व्यर्थ गंवाओगे।
तो जीवन भर पछताओगे।

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"
जलालाबाद, शाहजहांपुर





दो वक्त की रोटी के लिए,
करनी पड़ती है कमाई
फिर भी जीवन में दो वक्त की रोटी ढंग से नहीं है ..पाई।।
इस रोटी के खातिर देखो कितने जतन किए हैं।
देश और परदेश में भटके नाना काम किए हैं,झूठ और सच सब करते रोटी के खातिर,,,
उधड़ रही साँसो की तुरपाई
इस रोटी के खातिर ,,
मेहनत और मस्कत करते,
इस रोटी की खातिर,
रिश्ते नाते सभी टूटते इस रोटी की खातिर,,
वादा करके मुकर गए सब इस रोटी की खातिर,,
वक्त के पड़े सब बदल गये है...
इस रोटी की खातिर।।
अपनी  अपनी लगा के बुद्धि खेल रहे सब खेल ,,,
कौन किसे मात कब कब दे दे,,
इस रोटी की खातिर।।
अपनो का कब साथ छोड़ दे,,,
ये दो रोटी का मेल,,,
जोड़-तोड़ के सारे रिश्ते भौतिक सुखों पर टिकते है, दो दिल धड़कन 
जहां एक दूजे के लिए धड़कते,,
अहसासों के तले एक दूजे को रोज रौंदतेदो रोटी के खातिर।।
किसी का सपना है मुझको दो वक्त की रोटी मिल जाए,,
सब जाने क्षण भंगुर जीवन फिर भी तो इतराते हैं।।
देखो बड़े-बड़े अमीरों को,
गरीबों को दो रोटी के खातिर देखो कितने रांव दिखाते हैं।
कल किसी ने मुझे सुनाया
था दो रोटी के खातिर बेटे ने मां को वृद्ध आश्रम भिजवाया था
मौलिक स्वरचित पंक्तियां सीता  सर्वेश त्रिवेदी




क्यो होता है ? 

दर्द  सीने में,
खता नैनो की होती है।।

तड़पता दिल मिलने को,
खाता नैनो की होती हैं,

जागती रातभर आखें,,
बैचेन तन मन होता है,,

भाता नैनो को सब कुछ,
होठ कहने को मचलते हैं,,

आता सामने जब भी, बो,
होठ खामोश होते है,,,

बात सब नैन करते,,
धड़कता दिल जोरो से।।

प्रेम होते हुए भी,लब्ज़  खामोश होते हैं,

दिल होती चुभन ढेर सी
लबों पर भी, ना आती है।
 क्यों ???

दिल में होता कुछ,
होठ कहते कुछ क्यो???

जिन पे भरोसा हम करते हैं, तोड़ते दिल वो क्यों ???

लोग कहते है आजमाओ
फिर प्रेम करो उसको,,

इश्क में होता ऐसा भी  बताओ जरा ,,,,
कहीं ऐसा भी होता हैं,

प्यार पूछकर होता बताओ जरा,,,,
क्यो ??

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"


गीत -१
पौध रोपते फोटो खिंचाई
फिर पौधे पर ध्यान नहीं।।
एक पौधे को पकड़ा दस-दस  जनों ने,हां दस-दस जनों ने, जिम्मेदारी एक ना निभाई सिर्फ फोटो खिंचाई।।
फोटो खींचने से क्या पेड़ बचत हैं।।
बिना पेड़ क्या होता है जीवन।
उसकी ही करनी पाई सिर्फ फोटो खिंचाई।।
कंक्रीट के महल ऊंचे , ऊंचे बनाएं, उसमें भी कृत्रिम पौधे लगाए एसी लगाकर फिर इतराएं 
अब क्यों रोते ताप देखकर।
है सबकी असामत आई,
सिर्फ फोटो खिंचाई।।
पौध रोपत फोटो खिंचाई फिर पौधे पर ध्यान नहीं।।
कर्म के फल तुम ही पाओगे।
पर्यावरण की करते दुहाई।
 सिर्फ फोटो खिंचाई।।
भाषण लंबे-लंबे मंच पर सुनाएं हर वर्ष पौधे, ग्राम पंचायत में लगाएं,  लंबे-लंबे बजट देखो डाटा में आएं।
पौधे कहां वह खबर नहीं पायें
सिर्फ फोटो खिंचाई।।
पौधे लगाकर खबर ली नहीं,
पूछा गया तो फिर क्या है बताया,,
कभी सुख का बहाना कभी बाढ़ को बताया कभी बकरी का बहाना बताया,
सिर्फ फोटो खिंचाई,
लगे हुए पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलवाई।
अपनी मौत तुमने खुद है बुलाई।।
क्यों रो रहे हो अब मेरे भाई।।
सिर्फ फोटों खिंचाई।
सुधर जाओ अभी कुछ नहीं बिगड़ा, पौधे लगा कर धरा को सजाओ।
ये जीवन आधार सभी का, 
वृक्ष लगाकर पालन पोषण करो, 
अपनी जिम्मेदारी भी निभाओ ,
वृक्ष जीवन का आधार यहीहैं,
अपना कुछ दायित्व निभाओ।
पौध रोपते फोटो खिंचाई
फिर पौधे पर ध्यान नहीं।।।
सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर।


एक बात पुरानी है ।
बस तुमको बतानी है।
हां तुम्हें बतानी है,
मेरे जीवन की कहानी
हैं,  
नैनो में वसा मेरे दिल को भाता था.....
एक मीत था.. मेरे पचपन का ..जो मुझको भाता था..
वो गली मुहल्ले में फिर शोर मचाता था...वो हवा आता था हवा सा जाता था,,,
घुंघराली झुलफे उसकी,,
रातों की नीद चुराता था..
पता नही  जाने क्यों मुझसे 
इठलाता था,...
एक बात बतानी है
जो बहुत पुरानी है।।
 नहीं पता मुझे क्यों इतना सुहास था।।
वो पास नहीं मेरे दिल में समाया है..


  गीत - २ 
पौधा एक लगाऊं मैं भी,
उसको पालूं बालक -सा।
भोर - साझ ,उसमे पानी लगाऊं।
पानी लगाऊं ,उसे लोरी सुनाऊं।
खरपतवार से उसको बचाऊं,
जैविक खाद फिर उस में लगाऊं।
अपने पौधे को मैं स्वस्थ रखूंगी।
जीवन मूल्य समर्पित करूंगी।
पालू बालक सा।।
जब मेरा पौधा बड़ा हो जाएगा,
छाया भी देगा फल भी देगा,
औषधि बनकर जख्म भर देगा,
साथ में जीवन बचाएंगा।।
पौधा एक लगाऊं मैं भी,
पालूं बालक सा,
जीव जंतुओं का आशियाना बन जाएगा। 
सूर्य की गर्मी से सबको बचाएगा।
सबको बचाएगा, हां सबको बचाएगा।
फिर से गौरैया मेरे आंगन में आएगी, आंगन आएगी गीत को सुनाएंगी, जीते कृष्ण की बसंत फिर आएगा, बसंती फिर आएगा पानी बरसाएंगा आएंगा।
पानी बरसेगा, पानी बरसेगा,
सारा जग खुशियां फिर पाएगा।
प्यासी धरा की प्यासी बुझेगी,
सारे, जग का ताप मिट जाएगा।
जीवन दाता वह कहलाएगा।।
पौधा एक लगाऊं मैं भी,
उसको पालूं बालक-सा।।
सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर



🙏🙏पौधा एक लगाऊं मैं भी,
उसको पालूं बालक -सा।
भोर - साझ ,उसमे पानी लगाऊं।
पानी लगाऊं ,उसे लोरी सुनाऊं।
खरपतवार से उसको बचाऊं,
जैविक खाद फिर उस में लगाऊं।
अपने पौधे को मैं स्वस्थ रखूंगी।
जीवन मूल्य समर्पित करूंगी।
पालू बालक सा।।
जब मेरा पौधा बड़ा हो जाएगा,
छाया भी देगा फल भी देगा,
औषधि बनकर जख्म भर देगा,
साथ में जीवन बचाएंगा।।
पौधा एक लगाऊं मैं भी,
पालूं बालक सा,
जीव जंतुओं का आशियाना बन जाएगा। 
सूर्य की गर्मी से सबको बचाएगा।
सबको बचाएगा, हां सबको बचाएगा।
फिर से गौरैया मेरे आंगन में आएगी, आंगन आएगी गीत को सुनाएंगी, 
फिर बसन्त आंगन आएगा पानी बरसाएंगा आएंगा।
सारा जग खुशियां फिर पाएगा।
प्यासी धरा की प्यासी बुझेगी,
सारे, जग का ताप मिट जाएगा।
जीवन दाता वह कहलाएगा।।
पौधा एक लगाऊं मैं भी,
उसको पालूं बालक-सा।।
सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर


प्रेम कोई नाजुक वस्तु नही जो खो जाए।।
प्रेम सांसों  के सूत से बुना जाता हैं, स्नेह के धागे से प्रेम की  अदभुत गाठों से  से बंधा बंधन है,।।
विश्वास जिसे  संजोए  रहता है।
जीवन के हर मोड़ पर होते हैं,इन्तिहान प्रेम संभलता है।।
प्रेम  जहर को भी अमृत बनाता है,
प्रेम गर सच्चा है तो हर इंसान को राधा कृष्ण बनाता है।।
कभी कभी दुखों के सैलाब आते है जीवन में,प्रेम ही उन आसुओं
को मोती बनाता है।।
कभी मीठा कभी तीखा
कभी खामोश होता प्रेम ।।
कभी हास तो कभी परिहास होता प्रेम।।
कभी गीत कभी संगीत,
कभी मन मीत होता प्रेम।।
प्रेम को खोया नही जा सकता।
प्रेम अहसास है,अनुभब किया जाता है।।
प्रेम वस्तु नही जो भेट कर दो किसी को, ये  एहसास है सासों 
जो महसूस किया जाता है,,
संभालो इसे बड़े जतन से 
टूटने  मत दो इसे अहंकार से,,
टूटा हुआ प्रेम विखरता है ,,
इसे सभालो सभालकर
प्रेम सासो से शुरू सफर ,
सासो पर ही खतम होता है।।
सीता सर्वेश त्रिवेदी काव्या



 जो वसा है ह्रदय ,भूलना कहा है,।

जो मुस्कान हो अधरो की उसे 
भूलना कहा है।।

जो हर समस्या का समाधान उसे भूलना कहा।।

जो अनकही पीड़ा की मरहम उसे खोना कहा है।।

जो मिला हो बड़े जतन से उसे खोना कहा है।।

जो सासों की डोर सा हो उसे खोना कहा है।।

जो सच्चा निस्वार्थ प्रेम हो उसे खोना नही है।।

जो आत्माके अंधकार को दूर करता हो,उसे खोना कहा हैं।।
सीता सर्वेश त्रिवेदी काव्या



सुबह होते ही जिसकी याद आए,
फिर एक मुस्कान लाएं वो प्रेम हो,तुम।।

दिन भर काम के थकान  के बाद ,
जिसकी बाते थकान मिटा दे दवा हो तुम।।

अक्सर चलते, चलते  रुक जाती थी मैं,उस राह पर उंगली पकड़ कर साथ चलाने वाले राही हो तुम।।

जब सब अपनी खुशियों में में खोए होते थे, मेरे अकेले पन को
दूर करने वाले , मीत हो तुम।।

सब तरफ धोखा मक्कारी से भरे लोग थे,उन सबसे बचाने वाले फरिस्ते हो तुम।

अक्सर दर्द से भरा होता है मन,
तब बो दर्द कम करते वो मरहम हो तुम।। 
 सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"



  एक भूल का अहसास हुआ।
मन व्यथित हुआ ,,....
बार बार थी चाह मुझे,...
उससे मिलने की फिर भी निष्ठुर बना रहा मूक बधिर बना देख रहा,,
मैं पश्चाताप की आग में जलती रही,,,वो मुझे जलाकर निकल गया...
मैं इस भूल की सजा क्या दूं खुद को,, विचिलित है मन आज...
खुद से खुद ही प्रश्न करूं 
मुझसे भूल हुई कैसे...समझ न आता आज...
भूल व्यथा के मिलन को कैसे खत्म कर डालू...
खुद का सर झुका झुका कर 
व्याकुल मन को समझा लू  ...
समझ न आता क्यो मुझे सजा मिली थी क्यों....
मैने तो वफ़ा की थी,, 
मुझे जफा मिली क्यों।।
आतुर मन को मना - मना कर हारी हूं।
 तुमको  निकट बैठा कर पुंछ  
पर नहीं  
तुम्हारा अहम समझने नही देगा तुम्हे कुछ भी न समझा पाऊंगी,
क्यो किया तूने ऐसा ...
ये प्रश्न हमेशा दुहराउगी,,
व्यथित हृदय,मन अति अधीर,,,
जो सौ सौ बार पूछता हैं।।
क्यों तिल तिल कर तोड़ा मुझे,,,
क्यों? मरने को छोड़ा है।।
व्याकुल मन मेरा तिल - तिल
कर बिखराया  क्यों??
सीता सर्वेश त्रिवेदी


 एक भूल का जब अहसास हुआ।
मन बहुत व्यथित हुआ ,,....
बार बार थी चाह मुझे,...
उससे मिलने की 
फिर भी वो निष्ठुर बन मूक बधिर बना देखता रहा,,
मैं पश्चाताप की आग में जलती रही,,,
वो मुझे जलाकर निकल गया...
मैं इस भूल की सजा क्या दूं खुद को,, 
विचिलित है मन आज भी...
खुद से खुद ही प्रश्न करूं 
मुझसे भूल हुई कैसे...समझ न आता आज...
भूल की व्यथा के मिलन को कैसे खत्म कर डालू...
खुद का सर झुका झुका कर 
व्याकुल मन को समझा लूं  ...
समझ न आता क्यो मुझे सजा मिली थी ये....
मैने तो वफ़ा की थी,, 
मुझे जफा मिली क्यो ?
आतुर मन को मना - मना कर हारी हूं।
तुमको निकट बैठा कर पुंछू पर नहीं  
तुम्हारा अहम समझने नही देगा 
तुम्हे कुछ भी न समझा पाऊंगी,
क्यों किया तूने ऐसा ...
ये प्रश्न हमेशा दोहराउंगी,,
व्यथित हृदय, मन अति अधीर,,,
जो सौ सौ बार पूछता है।
क्यों तिल तिल कर तोड़ा मुझे,,,
क्यों? मरने को छोड़ा है।
व्याकुल मन मेरा तिल - तिल
कर बिखराया क्यों आखिर क्यों ??

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या"



  लगाकर आग सीने में, तुम्ही ने बुझाई हैं।।

हमेशा  पास हूं , नहीं  तुम समझ न पाए हो।

जतन की  क्या जरूरत हैं मिलन ये रूह से रूह का हैं।।

हकीकत हूं तुम्हारी  जिसे ख्वाब में अपना बनाते हो।

मोहब्बत है  वसी  दिल में, हमारे  शब्द  कहते हैं ,हां हमारे शब्द कहते हैं।।

कलम ही तो सहारा है मोहब्बत को जताते का।।

हमारे  दिल  की हर धड़कन, तुम्हारा नाम लेती है ,हा नाम लेती है।।

हर  सांस  बो मेरी जिसे तुम गुन गुनाते  हो।।

बसा  दिल में  तेरी यादें जिनके साथ रहती हूं।।

मोहब्बत  के  चिरागों  से तन्हाइयो का अंधेरा मिटाती हूं।।




 लगानी आग ना आती,  मुझे तो याद आती है।।
 
हमेशा   दूर  रहकर भी, तुम्हारे पास रहती हूं।।

जतन जो किए तूने, निसफल वो ना जाएंगे, मिलन होगा मिलन होगा।।
नही ये ख्वाब  नही तेरा हकीकत
हैं ,हकीकत हैं, हकीकत,हैं।।

मोहब्बत है  वसी  दिल में, हमारी हर सांस कहती हैं।।

हां जताते हैं कलम अपनी चलाकर के, मोहब्बत को जताते हैं।।
कलम ही तो सहारा है,पैमाना मेरे दिल का,ये हर हाल बया करती।।

हमारे  दिल  की हर धड़कन, तुम्हारा नाम लेती है, हां नाम लेती हैं। ।

मेरी सांसों  की सरगम है, तार तुमसे है,और  तुम ही बजाते हो हां तुम ही बजाते हो।।

बसा  दिल में  अंधेरा था, तुमिही ने मिटाया है , हां  तुम ही ने मिटाया हैं।।

मोहब्बत  के  चिरागों  से,  तुम्ही  रोशन  बनाते हो हां खुशी के दीप जलाते हो।।

बिना दीदार के  भी तो दिलों में प्यार होता है, हां प्यार होता हैं।।


दिल को लूटना दिलदारका काम होता हैं,तभी तो आशिक उनका नाम होता हैं।।
हां नाम होता हैं, हां नाम होता हैं,,
हो अपने हमारे  तभी तो जान लुटाते हो।।
हां जान लुटाते हो,,
 



लगाकर आग  पानी में, मुझे अक्सर  सताते हो।
हमेशा   दूर  रहते  हो, नहीं  तुम पास आते  हो।

जतन में लाख करता हूंँ, मिलन ये हो नहीं पाता,
हमारे  ख्वाब  में  आकर, हमें अपना  बनाते हो।

मोहब्बत है  वसी  दिल में, तुम्हारे  शब्द  कहते हैं,
कलम अपनी चलाकर के, मोहब्बत को जताते हो।

हमारे  दिल  की हर धड़कन, तुम्हारा नाम लेती है,
मेरी सांसों  की सरगम है, जिसे तुम ही बजाते हो।

बसा  दिल में  अंधेरा था, सदा  खाता  रहा ठोकर।
मोहब्बत  के  चिरागों  से,  तुम्ही  रोशन  बनाते हो।

बिना  दीदार  के  ही तुम,  बने  दिल  के  लुटेरे हो,
हमें  अपना  बना कर के, हमी  पर  जाँ लुटाते हो। 

कभी  ना  भूल  पाएगा,  तुम्हारे  प्यार  को "तन्हा",
जिसे हम भी छुपाते हैं, जिसे तुम भी  छुपाते हो।।




उलझनों से रिश्ता जुड़ गया ।
जीवन के साथ ही।।

आशाओ और निराशाओ से रिश्ता  जुड़ गया जीवन के साथ ही।।

गम का रिश्ता जुड़ गया खुशियों के साथ ही।।
सफलता का रिश्ता जुड़ गया मेहनत के साथ ही।।
उलझन  का रिश्ता  जुड़ गया जीवन के साथ ही।।
प्रेम का रिश्ता  जुड़ गया  नफरत के साथही।।
सत्य के साथ जुड़ गया असत्य के साथ ही।।
अपनों को धोखा दे गया अपनों का साथ ही।।
सीधा धोखा खाया परपंचो की चल से।।
सीता सर्वेश त्रिवेदी



 जिंदगी में दूसरे झांके नाम उलझन  होगया।।
कभी कोशिश तो कभी बिना कोशिश के उलझ गई जिंदगी।। उलझनो  से बदल गई जिंदगी
कभी हसाती तो कभी बिना समय के रुलाती हैं,कभी अनकहे पहलू पर  फसती है जिंदगी।।
कभी चुप कभी खामोश,कभी,
सवालों में उलझाती है जिंदगी।।
कभी अपना पन कभी अहसानो की एहसास तले दवाती है जिंदग कभी आशाओं से कभी निराशों से दामन भरती है जिंदगी।।
कभी लक्ष्य कभी बिना लक्ष्य के चलती है, जिंदगी।।
कभी प्रेम कभी नफरत में कटती है जिंदगी।।
कभी संयम कभी विषाद में करती है जिंदगी।।
कभी मीठी जादुई सी लगती है जिंदगी।।
कभी अनचाहे दर्द से भर्ती है जिंदगी।।
कभी सवालों और जवाबों में होती है जिंदगी।।
कभी अनकहे संकटों को सुलझाती है जिंदगी।।
सीता सर्वेश त्रिवेदी


सारी उलझने मिटा दो,
आज मेरी गंगा मैया।
ऊब गई हूँ दुनिया से,
राह दिखाओ मेरी मैया।
अपनो से है उलझन पाईं 
सभी उलझने मिटा दो मैया,
गंगाजल से तन मैल छूटे 
मन का मैल मिटा दो मैया।
धूप दीप मैं सदा जलाऊँ,
ईर्ष्या को तुम जला दो मैया।
उलझन मेरी मिटा दो मैया।
अपने और पराए का 
भेद ह्रदय में रहता है
मन से भेद मिटा दो मैया।
गंगा मैया मेरी मां ।।
बर्फी पेड़ा सभी चढ़ाने
तेरे दर पर लाते मैया 
मैं भी बर्फी पेड़ा लाई, 
स्वीकार आप करलो यह 
मेरी मीठी वाणी बना दो मैया
जय गंगा मैया, जय गंगा मैया,
मेरी मन पीड़ा को हर ले गंगा मैया।।

सीता त्रिवेदी "काव्या"


वो वतन के दीवाने
चूम कर फांसी का फंदा, वो वतन के दीवाने नाम जहां में कर गए।।
आजादी की अलख जगा कर
नए हौसला भर गए ।।
झुके नहीं वो फिरंगियों से, काकोरी एक्शन से जवाब करार दे गए।।
 वो वतन के दीवाने नाम जहां में कर गए।।
बिस्मिल, रोशन, अशफाक जी, 
नए हौसला नई उमंगे देखो जहां को दे गए ।।
धन्य है  जननी तुम्हारी आप सपूतों को जन्म दिया, धन्य है शाहजहांपुर नगरी धन्य जन  हैं देश के...आप वीरसपूतो को पाकर.
छक्के छुड़ाएं गोरो के, नहीं डरे, नहीं रुके ,नहीं झुके, वो अंग्रेजों की चालो से। 
चूम कर फांसी का फंदा वो वतन के दीवाने, नाम जहां में कर गए।।
ज्वालामुखी से फूट पड़े जड़े हिला दी फिरंगियों की...
सरफरोशी की तमन्ना गीत अमर वो कर गए।।
सोए हुए युवाओं को, वतन के लिए जगा गए..
आजादी की अलख जगा कर वीर सपूत चले गए...
हर पल आंखें नम होती है ,जब याद  तुम्हारी आती है...
वतन की खातिर देखो फंदे को चूम गए।
चूम कर फांसी का फंदा वो वतन के दीवाने नाम जहां में कर गए।।
सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश
 


अटल थे अटल ही रहे आप।
ग्वालियर की धरा पर जन्मे थे आप, कृष्णा मां की ममता कृष्ण बिहारीपिता  का प्यार थे आप।।
अटल थे अटल ही रहे, आप ।
अंतर्मुखी ,शांत स्वच्छ छबि अटल विश्वास आप।
भारत मां के लाडले भारत रत्न आप अटल हो अटल ही रहे आप।।
कारगिल युद्ध में तीन दिवस तक मैदान-ए-जंग डटे रहे आप।
गोली  बारूद से डिगे नहीं आप।।
सेना को अटल आदेश दिए आप।। पाकिस्तानी घुसपैठ को दिए करारे जवाब आप ।।
अटल थे अटल ही रहे आप।
हिमालय से अटल व्यक्तित्व थे आप हिंदी कवि पत्रकार  प्रखर वक्ता थे आप।
राष्ट्रीयधर्म से ओतप्रोत स्वाभिमानी थे आप।।
मेरी 51 कविता ताजमहल संघर्ष की कहानी थे आप। हे वीर पुरुष भारत के कण कण में आप।।
सरस सरल मधुकर वाणी, शत्रु पर पड़ती  थी भारी, सीधी होती थी बात।
लोकतंत्र की अटल प्रमाण थे आप।
राम भक्त हनुमान के समान थे आप। सच कहूं तो ब्रह्मांड से अभिन्न थे आप। 
देकर मिसाइल देश को मजबूत किये आप।
जन-जन के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते थे आप।।
समझौते के रहे  पक्षधर युद्ध नहीं करते थे आप ।
शत्रु  फिर भी थर  थर कांपे ऐसे थे अटल जी आप ।
गठबंधन सरकार चलाकर सबको हिला  दिए थे आप।
हे युग पुरुष शत-शत नमन तुम्हें आज। आज भी स्मरण में बस आप ही हो आप......

सीता सर्वेश त्रिवेदी काव्या जलालाबाद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश



अटल थे अटल ही रहे आप।
ग्वालियर की धरा पर जन्मे थे आप, 
कृष्णा मां की ममता कृष्ण बिहारी पिता का प्यार थे आप।
अटल थे अटल ही रहे, आप ।
अंतर्मुखी, शांत स्वच्छ छबि अटल विश्वास आप।
भारत मां के लाडले भारत रत्न आप अटल हो अटल ही रहे आप।
कारगिल युद्ध में तीन दिवस तक मैदान-ए-जंग डटे रहे आप।
गोली बारूद से डिगे नहीं आप।
सेना को अटल आदेश दिए आप।
पाकिस्तानी घुसपैठ को दिए करारे जवाब आप।
अटल थे अटल ही रहे आप।
हिमालय से अटल व्यक्तित्व थे आप 
हिंदी कवि पत्रकार  प्रखर वक्ता थे आप।
राष्ट्रीयधर्म से ओतप्रोत स्वाभिमानी थे आप।
मेरी 51 कविता ताजमहल संघर्ष की कहानी थे आप। 
हे वीर पुरुष भारत के कण कण में आप।
सरस सरल मधुकर वाणी, शत्रु पर पड़ती थी भारी, सीधी होती थी बात।
लोकतंत्र की अटल प्रमाण थे आप।
राम भक्त हनुमान के समान थे आप। 
सच कहूं तो ब्रह्मांड से अभिन्न थे आप। 
देकर मिसाइल देश को मजबूत किये आप।
जन-जन के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते थे आप।
समझौते के रहे पक्षधर युद्ध नहीं करते थे आप।
शत्रु  फिर भी थर  थर कांपे ऐसे थे अटल जी आप ।
गठबंधन सरकार चलाकर सबको हिला दिए थे आप।
हे युग पुरुष शत-शत नमन तुम्हें आज। 
आज भी स्मरण में बस आप ही हो आप......

सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या" 
जलालाबाद, शाहजहांपुर 
     उत्तर प्रदेश



मां मैं छाया हूं आपकी।
ये जिंदगी दी हुई है आपकी।
ज़िन्दगी का हर फ़लसफ़ा,
हर हुनर दिया आप‌ने,
जीवन का हर किस्सा शुरू है आप से मां,,,
जब भी कोई मुसीबत आई किसी मोड़ पर 
आपने पल भर में दूर कर दी मां,,,
तू बंदगी है मेरी,
दुआ हो दवा हो सब कुछ हो मां,,,
जो अनकहा प्यार, कह नहीं पाई
आप से वो प्यार हो तुम मां,,,,
मेरी वफ़ा है तू ,,मां,,
मेरी वफ़ा पर उठी जब भी उंगली  
लड़ी मेरी जफ़ा के लिए तू मां,,
मैं अधूरी हूँ या पूरी हूं।
बस तेरी लाडली हूँ, 
तू तेरे दिल की धड़कन सासें
सब कुछ तेरी है मां,,,
तू मेरा ख़्वाब तू है ,
सपना, उम्मीद, सब तू ही है मां,,
मेरी जिंदगी का हर किरदार तू है मां,,
मां तू जरा देख ले एक बार मुझे,
कैसी लग रही हूं।
तेरी परछाई हूं मां।
मेरे जीवन के हर पहलू पर जिक्र होता है तेरा मां,
मेरे जीवन की कहानी का हर किरदार है, 
सिर्फ तुझ से ही मां,,
मैं अच्छा करूं या बुरा,
सब तेरा ही जिक्र करते हैं मां,
असली नायिका, तू ही है मां,,,
मेरे जीवन की इस किताब के
हर पन्ने पर तेरा ही नाम है मां
तू दिल उदास कभी मत करना मां,,,
तेरे पुण्य कर्मो का फल हम पा रहे मां 
तेरे बहुत एहसान है मां,,,
मैं कतरा कतरा दे दूं तुझे तब भी 
चुका नहीं पाऊंगी तेरे लहू का कर्ज मां,,,,,
मेरी हर सांस तेरी मां,,
तुझसे हर पल मिलने की रहती है आस मां,,
मैं रहूं कहीं भी मां, में रहती हूं 
हर पल तेरे पास मां।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी, "काव्या "
जलालाबाद शाहजहांपुर



एक बार मां आवाज सुना दो

एक बार मां आवाज सुनादो
टूटा हूं ,ह्रदय से लगालो मां।
एक बार आवाज सुना दो। 
गोद में लिटा के लोरी को सुना दो मां एक बार मेरे सर को सहला दो मां।।
क्योंकि चिर नींद सोई मां,आवाज दे दो मां।
पुनः आगमन का भरोसा तो दे दो मां।
कब आओगी मां यह तो बता दो।।
तरसे मन की आस बुझा दो,,
जीवन  की हर खुशी सिर्फ तुमसे थी मां क्यों रूठी हो मुझे एक बार बतादो मां।।
खेल खिलौने सब तुझ पर बारु मां।
हर बात मानू तेरी एक बार बोल मां।।
नितप्रति पईया पखारू मां।।
सखा संग खेलन ना  जाऊं मां।
कभी ना खिजाऊ तुझे ना लजाऊँ मां।।
एक बार बोल ना अखियां तो खोल ना मां।।
भीगी पलकें छलके नयनों में नीर मां,
तेरे बिन सूना जीवन का आंगन मां।
तेरे तेरे चरणों में सर  है झुका मां।
एक बार प्यार से फिर से उठा लेना।।
सारी गलती भूल कर गले से लगा ले
मां....
कान पकड़ के दो चपत तो लगा दे मां...
तू रूठ मत मां तू रूठ मत मां...
एक बार बस आवाज सुना देना मां..   

 सीता सर्वेश त्रिवेदी "काव्या" जलालाबाद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश



 आया लोहड़ी का त्योहार
आया लोहड़ी का त्योहार सब नाचो मिलकर भैया।।

तिल, गटिया, मूंगफलियां ,और और बंटें रेवड़िया ,उपला, लकड़ी, जलें खूब फिर, ढोल बजेगा भाई,।।
आया लोहड़ी का पर्व पर नाचो मेरे भैया।। 

नए-नए सब वस्त्र पहनकर, आपस में गले मिलेंगे, छोड़ के की सारी बुराई अपने सभी बनेंगे,
नाचे  तातक थैया।

आया  लोहड़ी का त्योहारसब  मिल नाचों जो मेरे भैया ।

बेटियों का सम्मान करो ये लोहड़ी पर्व  सिखाता  है मिले बेटियों को विशेष उपहार आया लोहड़ी त्योहार।।

आया लोहड़ी का पर्व ,सब नाचो मिलकर भैया।।

शीत ऋतु की करो,विदाई बांटों खूब मिठाई,आने वाली बसंत ऋतु स्वागत करो भाई,

आया लोहड़ी का पर्व सब नाचो मिलकर भैया।

सूर्य देव सहित सब देवों को करो नमन है ,
नई फसले घर में आने बाली  खुशियां होगी आली।।
आया लोहड़ी का पर्व सब नाचो मिलकर भैया।।

क्या मुन्ना क्या मुन्नी क्या पापा क्या मम्मी सब मिल, धूम मचाओ आया लोहड़ी का पर्व सब मिल नाचों भैया।।

पंजाबी फिर करे भांगड़ा, 
खुशियों की ऋतु आई।।
आया लोहड़ी त्योहार सब नाचो मेरे भैया।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी जनपद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश


 खिचड़ी,
भोजन में सरल है, खिचड़ी।
चाहे वृद्धजन, हो या बालक
सभी की पालक है खिचड़ी ।।
दाल चावल का अनुपम मेल है, खिचड़ी।।
कामकाजी, विद्यार्थियों के लिए सहज है खिचड़ी।
नाम अनेक देखो, खिचड़ी के, 
उड़द दाल संग बनती खिचड़ी।
मूंग दाल संग नाम हैं भदरी।
चना दाल संग द्ववलारी खिचड़ी। 
जीरा  संग जीरा की खिचड़ी।।
सेहत से भरपूर है खिचड़ी।
व्यक्ति का पूर्ण आहार खिचड़ी। 
योगी, भोगी ,रोगी,  सबके लिए हितकर खिचड़ी। 
सुपाच्य और सहज है खिचड़ी।।
लोकप्रिय भारतीय व्यंजन खिचड़ी।।
कार्बोहाइड्रेट कैल्शियम विटामिन प्रोटीन से परिपूर्ण है खिचड़ी। 
गैस कब्ज को दूर भागती खिचड़ी। 
डायबिटीज वजन को कम करती खिचड़ी। 
पित्त और  कफ के लिए अमृत है, खिचड़ी। 
मकर संक्रांति की शान है खिचड़ी उत्तर भारत की जान है खिचड़ी।
सीता सर्वेश त्रिवेदी जनपद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश



मां शारदे, मां शारदे ज्ञान दें, मां ज्ञान दें।
मन में बसी नीरसता,मां मधुर स्वर डाल दे।
मां शारदे, मां शारदे - - 

शब्द साधना न जानू, न जानू मैं व्याकरण,
कृपा आप ऐसी करो, स्वच्छ रहे ये आचरण,
कैसे करूँ आराधना मां ज्ञान का भंडार दे,
मां शारदे, मां शारदे - - 

ना फूलों के हार मां, ना व्यंजन पकवान मां,
सदमार्ग पर मैं चलूँ, न हो कभी अपमान मां,
सब तुम्हारी ही कृपा है, मान दे या सम्मान दे,
मां शारदे, मां शारदे मां - - 

वीणा वादिनी मातु शारदे सारे वेदो की तू ज्ञाता, 
ज्ञान का भण्डार भरो माँ, हे माता बुद्धि प्रदाता,
मम कंठ में आप विराजो, शब्द मंत्र में ढाल दे,
मां शारदे मां शारदे - - 

  सीता त्रिवेदी काव्या


जाने क्यों तेरी याद मुझे सताती है।
हर पल तेरे लवो की मुस्कुराहट 
मुझे याद क्यों आती है?
नहीं चाहती तुझे याद करूं, 
फिर भी याद सताती है।
कैसा यह अनजाना रिश्ता
समझ नहीं आता है। 
कोई तेरे बारे में बोले 
मन को बहुत सुहाता है। ।
कैसा ये अनजाना  रिश्ता       
इस दिल को भाता है।।
ख्वाब हो या हकीकत ,
सामने जब तू आता है..
पता नहीं क्यों दिल में जादू सा होज़ाता हैं।
इस रिश्ते को नाम क्या दूं,
समझ नहीं फिर आता है।
ना देखूं तुझे सामने 
दिल क्यों घबराता है।
ना भैया है, ना बहना है,
ना कोई खून का रिश्ता 
ना दोस्त ना कोई ना सहपाठी
फिर क्यों जीवन वारी है।।
मन में हर पल जाने क्यों?
तेरे ख्याल ही आता हैं।
कुछ कहने से डर लगता है।
सामने जब तू आता हैं,
तेरे लिए खुशियों की दुआ 
ये दिल हर पल करता है।
होश अभी बाकी है मुझमें,
सूनी अँखियों मे चेहरा तेरा
तू नहीं तो सूना जग सारा     लगता हैं।
लगता मानो ऐसा जन्म- जन्म ,       का रिश्ता हैं

सीता सर्वेश त्रिवेदी 
जलालाबाद, शाहजहांपुर


जाने कहां चले गए,,
राष्ट्रपिता भारत के, 
जग में नाम करके ,सत्य पथ पर चलकर जाने कहां चले गए।।

धर्मनिरपेक्ष अपना के, जन-जन में ऊर्जा भर के, गीता ,कुरान,बाइबिल
 पढ़ के जाने कहां चले,गए।।

सत्य, अहिंसा ,अपना के, आध्यात्मिक विचार अपना के, विनोबा भावे को, शिष्य बनाके ,
जाने कहां चले गए ।।

देश के लिए अनशन करके, 144 दिन तक भूखे रहकर चंपारण ,खेड़ा, असहयोग ,आंदोलन करके।
जाने कहां चले गए ।।

मादक पदार्थों पर रोक लगाके, नमक कर समाप्त करके, जाने कहां चले गए।।

मृत्यु की सैया पर लेट के अंतिम चरण राम-राम बोल के, देश आजाद कर के जाने कहां चले गए।।

सीता सर्वेश त्रिवेदी काव्या जलालाबाद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश।।


 नवरात्रि द्वितीय दिवस मां ब्रह्मचारिणी  की जय ...हो
जिसने पूजा ब्रह्मचारिणी विजय श्री पाई हैं।
राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री
शिव को पति रूप में पाया आदि अनादि हैं जिनकी माया, घोर तपस्या किन्ही, हैं।
जिसने पूजा ब्रह्मचारिणी विजय श्री पाई हैं।
ब्रह् स्वरूपा  मां ब्रह्मचारिणी,
ज्ञान,तपस्या, बैरागी घोर तपस्या की नहीं है ब्रह्मचारी कहलाई।। 
बाए हाथ में  सोए कमंडल और दाएं हाथ में माला , यह भविष्य पुराण बताता, मां व्रह्मचारणी की जय...
जिसने पूजा ब्रह्मचारिणी विजय श्री विजय श्री पाई हैं।।
सफेद वस्त्र और सफेद पुष्प ही मां को भाते,हैं, मां ब्रह्मचारी की महिमा आज गाते हैं।
दूध ,और चीनी का भोग लगाते हैं,पीले फल ही मां को भाते हैं।
मां ब्रह्मचारी मेहनत का पाठ सिखाती है, बिना तपस्या कुछ संभावना यह माता बतलाती है।।
प्रसन्न हो आदि शक्ति मां, सारे बिगड़े काम बने, जिसने पूजा मां शक्ति को 
उसके सोए भाग्य जगे।।
जिसने पूजा ब्रह्मचारिणी विजय श्री पाई।  
सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश


 जय हो चंद्रघंटा मां
तुम ही मेरी नाव खिवाइया, मां
तुम आनंद स्वरूपा  मां,
बेहद मनमोहक, आलोकिक,जीवन की आप हो संरक्षक मां,             
 खीर  का भोग लगाया, मां..
 लाल फूल और लाल चुनरी,  
लाई हूं मां....
सारे जगत से हार के आई हूं मां...
सारा जगत तुम्ही से मां.....
कृपा करो  मात भवानी,
चित को शांत  करती हो मां,
साधक को संतृप्ति देती हो मां
दिव्य सुगंध का अनुभव मां...
जीवन में भर देती मां....
अपने घंटे की धुन से मां.....     सारे संकट हर लेती हो मां....
तुम वेद मां  तुम्ही अवेद मां
तुम्ही विद्या  तुम्ही अविद्या मां।।
नाम अनेक  तुम्हारे मां है...
करती हो कल्याण सभी  का मां..
जग की  शक्ति तुम ही, जग की भक्ति हो मां...सब की पालक हो मां..
सब की रक्षक हो मां...
आदि शक्ति तुम्ही, तुम ही अंबा हो, मां....
सभी द्रव्यों को धारण करती हो मां
सबके कष्ट मिटाती हो तुम मेरी मां..
सीता सर्वेश त्रिवेदी  जलालाबाद शाहजहांपुर


मां कुष्मांडा को नमन
सूर्य  की रश्मि धरा पर
मैं जागी नई भोर भई।
ध्यान धरा मां कूष्मांडा का,
जग  को बनाने बाली मां...
का हदय से आभार करू।।
सत्कार करूं,
मैं क्या मैया,सब तेरा दिया हुआ।
चरणों की धूल  लगाएं माथे,पर
आशीष तुम्हारा मिला हुआ।
तकदीर बनाई सुंदर मां,
दिए खुशियों के सारे खजाने मां।।
कर्म भी तुमसे, धर्म भी तुमसे,
जिसको मैया निभा रही हूं।।
जो प्रेम दिया तुमने मैया ,
उस ही से तुमको बुला रही
हर सुख सुविधा दी तुम्हारी मां
 हैं कोटि कोटि नमन मां..
आप ने ही शिखर पर पहुंचाया ..मां
सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर


"कविता क्या है"
श्री रामचंद्र  शुक्ल जी  के आलेख, रूपी निबंध को पढ़ने के बाद जहां तक कुछ समझ आया हम उनके भावो ,को उस तरीके से नही लिख सकती आप की लेखनी का जो जादू बो हम नही  अपने शब्दो से लिख सकते, फिर कोशिश की है शब्दों  में पिरोने की,

जो कभी भाव हम अपने व्यक्त नहीं कर पाते हैं, उन भावों को हम कविता में लिख पाते हैं।।

जीवन का भाव , और स्वभाव,जब मुश्किल हो परिभाषित करना, तब हम कविता को रच पाते हैं।।।

लोक और परलोक की  गाथा सुनते और सुनते सही गलत सभी का उत्तर काव्य में दे पाते हैं।।

भाषा सीधी समझ न आएं,तब काव्य भाव जगाते,अपनी हर पीड़ा को जन जन तक  पहुंचाते हैं।।
 
सारे जहां की मन स्थितिया और परिस्थितियां, कम शब्दों में,गूढ़ रहस्य बताते हैं, वो हैं कविता,

सही और गलत का अंतर जब सही सही नही कर पाते हैं, तब एक सहारा हैं कविता जो उस तक हम  पहुंचाते हैं।।

प्रेयशी का प्रेम भाव  हम प्रेषित कविता में कर पाते हैं, कौवे की कांव-कांव में भी मधुरता ले जाते हैं।।

कविता से जीवन को  माधुर्य हम बनाते हैं, जो बात होती अधरो पर आसानी से कह पाते हैं,,

सीता सर्वेश त्रिवेदी  जलालाबाद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश




माधव का माह।
माघ का माह।
देवी देवताओं का धरा आने का माह। जप तप यज्ञ का माह।
ठंडी ठंडी शरद ऋतु जाने का माह ।
गुनगुनी धूप आने का माह।
रश्म रिवाजों का महा ।
हृदय से हृदय के मिलन का
माह ।
पर्वों का महा, मां सरस्वती के जन्म उत्सव का महा।
पुरानी बातें भूल नहीं बहारों का माह।
धरा की अंगड़ाई का माह,
सजने संवरने का माह,
प्रेम के संगम का महा।
पतझड़ गुजरने का माह।
नई कोपलें आने का माह ।
खुशियों से जीने का माह।
सीता सर्वेश त्रिवेदी काव्या जलालाबाद शाहजहांपुर


दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।

🎉🙏🏾 दीयों की रोशनी आपको खुशी और सफलता की राह पर ले जाए।🎉🙏🏾

आपके जीवन में सामान्य से सामान्य व्यक्ति का भी महत्व 
जुगनू की तरह ही सही, सदा बना रहे और आप उनको "आशा दीप" की भांति उजाला भरते रहें।


देवाधिदेव महादेव काशी विश्ववनाथ की कृपा से आपको कामयाबी, 
सुख, शान्ति और समृद्धि सदा प्राप्त होती रहे। स्वस्थ रहें, मुस्कुराते रहें। 
मैं बड़ी भाग्यशाली हूं,जो आप हमे, पथ प्रदर्शक के रुप,में एक सखा के रूप में मिले,
आप का स्नेह हमेंशा बना रहे,माता लक्ष्मी,भगवान विष्णु,गणेश जी की कृपा हमेशा बनी रहे, 
आप और आपके प्रियजनों को 

दीपावली की हार्दिक बधाई  शुभकामनाएं 🎉🎉🎉
सीता सर्वेश त्रिवेदी

कैसा वाल दिवस है आज
कैसा बाल दिवस है आज
 संविधान के बने नियम सब हो गए बेहाल
 कैसा बाल दिवस है आज
कोई दूध मलाई खाए
 कोई सूखी रोटीखाए 
कोई मौज बनाएं कैसा 
वाले दिवस है आज
 कैसा बाल दिवस है आज 
व्यथीथ हो रहा मन 
अंतरमन मेरा आज कचोटे।
 झुग्गी झोपड़ी के बच्चे 
नहीं खुशहाल।
कैसा बाल दिवस है आज
क्यों पेट के लिए रोटी कमाए
और अपने परिवार चलाएं ।
नहीं होता नियमों का पालन 
आज हमें बतलाएं।
कैसा बाल दिवस है आज।
 नहीं बच्चे खुशहाल 
कैसा बाल दिवस है आज 
रोटी दाल भले मिल जाए।
 मिले शिक्षा ना संस्कार,
 कैसा बाल दिवस है आज 
बने हुए हैं कई नियम ,
इन बच्चों की खुशियों के ,
क्यों नहीं हो रहा उनका पालन पूछे सीता आज।
 कैसा बाल दिवस है आज ।
हम सब की है नैतिक जिम्मेदारी, क्यों नहीं निभाते आज 
कैसा बाल दिवस है आज।
 अपनी आंखें खोल के देखो, कितने बच्चे हैं बेहाल ।
कैसा बाल दिवस है आज ।
भोले वाले इन चेहरों पर खुशी का नमोनिशान नहीं,
 जिनके हाथों में हो किताबें ,
पड़े हाथों में छाले हैं ।
कितने बच्चे हैं बेहाल ।
कैसा बाल दिवस है आज।

भट्टे पर मजदूरी करते और करते दुकानों पर ,
खुली आंख और बंद आंख से सपना कोई ना आए ,
ना देखें कितने बच्चों नेअपने
सपने अपने गवाएं ।
कैसा बाल दिवस है आज।
 उम्र है इनकी पढ़ने,की
 नशे से दूर नहीं है क्यों ये बच्चे कोई हमे बताए।
कभी न पूछे भाव हम इनके 
क्यों करते हैं भूल ।
सहमा, सहमा हर मासूम 
 बच्चा है।
 आओ मिलकर शपथ उठाएं ।
बाल मजदूरी ,कोई कार्य,
ऐसा जो बच्चे के हित में ना हो, आज से नहीं कराएं हम।
 हर बच्चा देश का बच्चा
मिलकर सब ,
राष्ट्र उत्थान करें 
हर मासूम के चेहरे  खुशियों का उपहार बने,
बने नियम जो बच्चों के लिए। कड़ाई से पालन कर बाए 
हम बिना डरे ,बिना रुके ,
देश को आगे बढ़ाएं 
आओ हम सब मिलकर
ऐसे बाल दिवस मनाएं 
स्वरचित मौलिक पंक्तियां सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर


 कोई मिलने की वजह दे दो ना।
रात दिन तड़पती हूं तुम्हारे लिए,
मत रूठों इस कदर
गिले शिकवे की वजह दे दो ना ।
यूं खामोश होना तुम्हारा कही मार डाले ना मुझे
दिल में छुपी हसरतो को कहिने की वजह दे दो ना।
नहीं भाती तुम्हारी बेरुखी अब हमें
थोड़ी खुशियों की वजह दे दो ना।
काश मेरे दिल में भी तेरे दिल के जैसा दिल होता,
जितना तू बेखबर है वो भी  बेखबर होता,,,
क्यों क्यों रूठे हो मुझे मनाने की वजह दे दो ना।।
जाने क्यों सांसे आती तेरी सांसों से ,
तेरे बिन जीने का मन नहीं करता,,,
मुझे भी जहां से जाने का हक देदो ना । 

जुबां है फिर भी खामोसी से सब कैसे सहलेते हो, मुझे भी सब्र रखने का हक मुझे दे दो ।।
क्यों किए वादे तूने,क्यों मुकर गए,
उन्हे निभाने का हक मुझे दे दो ना।।

इश्क़ में हद से बेहद इंतज़ार कर ने लगे थे क्यूं दोनों क्यों तड़पाते हो इतना,,
अब मिलने की वजह दे दो ना।।

जीवन बीत रहा कसमकस मे,तुम अपनी ज़िद पर, क्यों अड़े, अभी तक
ये बंदिशे खत्म करने की वजह दे दो ना।।

भूल जाओ वो पल जिनसे रूठे है आप
अब मानने की वजह दे दो ना।।

दर्द बहुत है दिल मे एक कॉल करने की वजह दे दो ना।।।

सीतासर्वेश त्रिवेदी जालाबाद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश



धरा का मन खिल खिल जाए रे।
तन मन ले रहा अंगड़ाइयां ,
देखो 
प्रकृति का नजारा ,
हरमन बन रहा बंजारा।
चारों ओर है मस्त हवाएं मस्त फिजाएं ,
धारा का अंधेरा अब छठ गया है, धरा ने ओड़ी पीली चुनरिया, पीली चुनरिया रुके ना डगरिया धरा मुस्कुराऐ और बलखाए 
रवि आलिंगन से प्रफुल्लितधरा है, बालों में गजरा सज़ा नैनों में कजरा लगाऐं ,हाथों में मेहंदी रचाई पैर में पहनी पायलिया रे, ओड़ी पीली चदरिया, चदरिया छम छम नाचे धरा।।।
ओढ़ पीली नीली चुनरिया जिसमें किरणों के मोती जड़े हैं।।
सबके मन को भाई ,
ऐसी रितु है आई, नर नारी सब खुश होने लगे हैं, बच्चे अंबर निहारे धरा निहारे,खिल खिलाएं 
खुशियों के गीत गाए
शरद ऋतु जाने लगी है
गुनगुनी धूप भाने लगी है 
बसंत ऋतु का स्वागत करें 
फूल बागों में खिलने लगे हैं,
पशु पक्षी कलरव  करने लगे,
जिया मेरा उमड़ने लगा है।। 
पतझड़ का मौसम अब जाने लगा है ।।
प्रकृति सुंदर मनुहार कर रही है,
 देखो धरा पर सुवर्ण आ गया है।।
 सज गई है दुल्हन सी आज धरा मां सरस्वती का जन्म दिवस आ गया है मन खिल गया है 
प्रकृति नजारा  बदल रहा है।।
चारों तरफ खुशियां ही खुशियां हैं।।
सीता त्रिवेदी स्वरचित मौलिक पंक्तियां जलालाबाद शाहजहांपुर

जिंदगी तेरे लिए,
कौन-कौन से सपने नहीं देखे,
मैंने जिंदगी तेरे लिए,
रात दिन मेहनत की, धूप छांव की परवाह किए बिना हर पल चलती रही तेरे लिए,।।
छल कपट किसी से घबराई नहीं, बुराई पैसे कमाने को मचलती रही, जिंदगी तेरे लिये फिर भी नहीं तू मेरी हुई।।।
चांद को छिपा बादलों में हर खुशी तेरे में ढूंढती रही, ज़िन्दगी तेरे लिए।।
ए जिंदगी फिर भी तूने नहीं बताया कि मैं कितनी और हूं, और किसकी हूं ।।क्यों हूं?
कभी भोजन कभी कपड़ा कभी शोहरत के पीछे दौड़ती रही,
जिंदगी तुझे संवारने में पूरा जीवन लगा दिया।।
लेकिन तू फिर भी नहीं मेरी हुई।।
भाई बहन रिश्ते नाते सब तेरे लिए छोड़ दिए।।
क्योंकि जिंदगी में कोई हलचल और भूचाल ना आ जाए।।।
लेकिन वह आता ही रहा,
ये जिंदगी फिर तूने कुछ क्यों नहीं कहा ,
ए जिंदगी तू है तो ऐसा लगता है साराआसमां जमीन पर है।।
जिंदगी तू ना होती तो कोई ना होता, प्रेम न प्रेमी,
इसलिए,,
ए जिंदगी तू जन्नत या जाहुनम।।
जैसी है तू मेरी हैं,।।
ऐसा लगता चलते चलते ये जिंदगी तू थक न जाना रुक ना जाना,
तू रुकी जो सांसें रुक जायेगी,।
ये जिन्दंगी सारे रिस्ते जुड़े ,, 
तुझसे, ये जिंदगी तू कितनी खुशनसीब खूबसूरत है,
जिंदगी तेरे लिए सब कुछ है।।
स्वरचित मौलिक पंक्तियां सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर



जिंदगी तेरे लिए,
कौन-कौन से सपने नहीं देखे,
मैंने जिंदगी तेरे लिए,
रात दिन मेहनत की, धूप छांव की परवाह किए बिना हर पल चलती रही तेरे लिए,।।
छल कपट किसी से घबराई नहीं, बुराई पैसे कमाने को मचलती रही, जिंदगी तेरे लिये फिर भी नहीं तू मेरी हुई।।।
चांद को छिपा बादलों में हर खुशी तेरे में ढूंढती रही, ज़िन्दगी तेरे लिए।।
ए जिंदगी फिर भी तूने नहीं बताया कि मैं कितनी और हूं, और किसकी हूं ।।क्यों हूं?
कभी भोजन कभी कपड़ा कभी शोहरत के पीछे दौड़ती रही,
जिंदगी तुझे संवारने में पूरा जीवन लगा दिया।।
लेकिन तू फिर भी नहीं मेरी हुई।।
भाई बहन रिश्ते नाते सब तेरे लिए छोड़ दिए।।
क्योंकि जिंदगी में कोई हलचल और भूचाल ना आ जाए।।।
लेकिन वह आता ही रहा,
ये जिंदगी फिर तूने कुछ क्यों नहीं कहा ,
ए जिंदगी तू है तो ऐसा लगता है साराआसमां जमीन पर है।।
जिंदगी तू ना होती तो कोई ना होता, प्रेम न प्रेमी,
इसलिए,,
ए जिंदगी तू जन्नत या जाहुनम।।
जैसी है तू मेरी हैं,।।
ऐसा लगता चलते चलते ये जिंदगी तू थक न जाना रुक ना जाना,
तू रुकी जो सांसें रुक जायेगी,।
ये जिन्दंगी सारे रिस्ते जुड़े ,, 
तुझसे, ये जिंदगी तू कितनी खुशनसीब खूबसूरत है,
जिंदगी तेरे लिए सब कुछ है।।
स्वरचित मौलिक पंक्तियां सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर





बदलाव 


अचानक नहीं आता समय रहते धीरे-धीरे आता है।
हालात इस तरह लिखने को मजबूर कर देते हैं ।
जो नहीं बदलता मिट जाता है।
चेहरे की मुस्कान ,
वो माथे लगी हुई बिंदी
कुछ कहती है।।
पर कौन समझे।
और क्यों सबकी अपनी 
अपनी आवश्यकताओं से मतलब है।
आप की कोई बात नहीं।
शादी से पहले का एक दौर था,
हमको क्या चाहिए ,हर बात के लिए समय था  मां बाप के पास भाइयों के पास, हमेशा हंसाने के सभी बहाने ढूढ़ते थे, खाना ना खाने पर बार-बार आगे पीछे रहते थे।।
पर वो दौर कुछ और था।
शादी कर दी। 
ऐसा लगता मानो एक बोझ उतारकर किसी दूसरे को दे दिया
अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गये। कभी लगता ही नहीं कि मेरी बेटी है। भले किसी की पत्नी हो मां हो पहले बेटी है।
आप कैसे इतनी आसानी से भूल गए हो।
जब से शादी हुई है सारे रिश्ते ही बदल गए है।
हम बेटी बहू, चाची ,ताई ,भाभी, जाने कितने रिश्ते बन गए हैं। 
जब नई -नई दुल्हन बनकर ससुराल आई थी। सब चेहरा मेरा देखते हम 
सबका चेहरा देखकर, रहते,
कोई गलती ना हो जाए मुझसे, सारे समय सास की इच्छा  अनुसार काम करना, इनकेआगे पीछे घूमना, जैसे कभी थकती नहीं थी।
मेरी जिंदगी जैसे कि बहुत खूबसूरत हो हर पल सजना संवरना हिस्सा था।
मेरी सांसो से इनकी सांसे धड़कती  मेरी सांसों पर ही रुकती , 
मैं किसी परी से कम खूबसूरत नहीं आंकी जाती थी।
यहाँ तक की पूरी दिनचर्या की पल पल जानकारी जुटाई जाती ।।
मजाल है।
कि जरा सा भी आवाज ऊपर नीचे हो हो जाएं,।
तर्क कुतर्क किसकी हिम्मत,
एक छोटी सी गलती होने पर,, आसमान ही घर में आ जाता था
,सारा दिन रोते-रोते, और मनाते- मनाते गुजर जाता था।।
डर था  मेरी खबर माता पिता तक ना पहुंच जाएं।
हाथ पैर जोड़ -जोड़ कर थक जाती थी कोई मानता नहीं था।
अंदर से टूटी हुई,
बार-बार सबको मनाना पड़ता था, जब तक मां न मान जाएं, कब तक ये भी रूठी रहते थे,
फिर मनाना पड़ता था,,
सांझ ढले हम बिस्तर जो होना होता ।
पर
वक़्त के साथ बहुत
कुछ बदला
हम दो से तीन और फिर चार, पंद्रह वर्ष गुज़रे हुए हो गए,,
अब हमारा भी स्वर बदल गया , मैं एक पत्नी से मां बन गई हूं।
जिम्मेदारियां लगातार बढ़ गई हैं, रुठना और भी बढ़ने लगा
अब इनको देखे या बच्चों को , अब हृदय परिवर्तन होने लगा है,।
मुझमें भी वो जोश नहीं रहा,
मेरी तरफ से भी लापरवाही
बढने लगीं हैं।
नोक झोक कभी कभी इतना तूल पकड़ लेती कि,
कई दिनों बात न होती
फिर भी जिंदगी
चलती और आज बड़ी जा रहीं,
बच्चे बड़े होने लगे, रुठने मनाने के किस्से  कुछ -कुछ खत्म होने लगे,
आज
इस मोड़ पर 
लगता है, प्रेम नहीं था,
पहले वाला प्रेम 
देह के लिए था।
जो
वक़्त के साथ
खत्म हो गया,।
तभी तो अब शीशे की तरफ  ध्यान नहीं जाता,
बाल बंधे या नहीं बंधे,
बिंदी लगी या नहीं लगी,
अब नहीं 
ध्यान नहीं जाता इधर, समय पर
अब भोजन दवा की
जिम्मेदारियों तक जीवन,सिमट जाता।
कभी कभी सोचती हूं
कितना ?
जीवन में बदलाव, हां समय के साथ कुछ नहीं ,
सब कुछ बदल गया
जीवन में , हां 
ये हैं जीवन।
सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर

उलछी उलझी सी उम्र बीत रही है।

क्योंकि समझने सवरने का मुझको सलीका नहीं आया।

उलझनों से कोशिश की अपने को बचाने की।

मगर बच नहीं पाई गुलाब के कंटको से 

छुपाती  रहूंगी ,अपने को।

क्योंकि कांटो से बचने का सलीका नहीं आया।

प्रश्न करती रही हर पल बच्चो सा आज तक

प्रश्न करने का  सलीका नही आया।।

आंसू आंखों मे आए ,हर पल छुपाने का सलीका नही आया।।

बनाते बो मेरी खिल्ली।।

 जिन्हें जीने का तरीका सिखाया।

आसूं  देखकर मेरे उनका मजाक उड़ाया ।।

क्यों की मुझे रोने का सलीका नही आया।।

प्यार किया उनसे गुनाह किया क्योंकि मुझे स्वार्थी, बेबफा बनाना नही आया।

क्योंकि मुझे बफा करने का सलीका नही आया।

तड़पी रात दिन जिनके लिए

 करवटें  बदल कर रातें गुजारी आज तक अब बो कहते है मुझे सोने का सलीका नहीं आया ।।

सब के लिए पल उपलब्ध रही,सब की परेशानी समझी 

फिर भी मुझे दरिया दिल होने का सलीका नहीं आया ।।

खाई पल पल  चोट दिल पर अव वो कहते हैं 

मुझे पत्थर बने का सलीका नहीं आया ।।

वफा ही करनी है उनसे वचन दिया  है उनको,,

बचन तोड़ने का  मुझको सलीका नहीं आया।।।


जिंदगी बीत रही 

हर हाल में हैं।

आपको भूलना तो चाहा,

भूल न पाई।

भीड़ लाखों की है, यहां

खुद को तन्हा पायी।

जिन्दगी के बरसो बाद भी,

याद दिल से मिटा पाई ना।

हर तरफ दिल के कोने में तस्वीर तेरी, हर तरफ दिल के कोने मेंतस्वीर तेरी, क्यों मिटती नहीं यादें तेरी,

आज से तेरी कसमे मुझे याद आई।।

क्यों दी मुझे कसमे ओ मीत मेरे, हद से ज्यादा तेरी, आज याद आईं हैं।

 हद से जादा तेरी हां ज्यादा है

तेरी याद आई है।

क्यों तन्हाई , तन्हाई तन्हाई आई। क्यों पीछा नहीं छोड़ती तेरी यादें, क्यों पीछा नहीं छोड़ती तेरी बातें 

क्यों मान नहीं लेती कि तूने कदर नहीं की मेरी।

जब पास में थी मैं ,तेरे ,तुम पास नहीं था मेरे।

तब न कभी कीमत की,

दिल में प्रेम  दिखाकर कहां चले गए तुम बेवफा वन के।

झूठे वादे किए साथ देंगे तेरा।  

तूने क्यों  बादे किए।

मोर पंखी की तेरी लाई  हुई रखी है आज तक सजोकर मैंने ।

वह पेज मेरे पास बो कलम मेरे पास जिससे तूने लिख्खा तेरे बिन दिल है उदास।।

तेरे दिए  गुलाब सूख गये।

 खुशबू आज भी आती है

खुशबू की सहारे जीती हुं।

तन्हाई सह लेती हूं।

जिस राह से तू गया 

उस राह को निहार रही हूं।।

तुम्हारी वो प्यार भरी बातें  जिनके सहारा  जीती हूं।

कहां हो तुम कैसे हो कोई, मिल जाए  खबर उस उम्मीद के सहारे जीती हुं।

वैसे तो कहने को मेरा भी एक परिवार है।

वजह से आपने दूरी बना ली है।

भूल गये तुम कैसे, परिवार तुम्हारा हैं।

आंखें ढूढ़ती है तुम्हें,आज तक। ये  सच्चा प्यार तुम्हारा है।


पूछा था ना मैंने ,

साथ कहां तक दोगे तुम

बीच राह में आकर 

मेरा हाथ तो न छोड़ दोगे तुम।

अगर जानते  तो जरूर बताते हम।

जीवन हर पल तेरे साथ बिताते

सच तो यह है ,।

जीवन है किसी का,

नैनों में चेहरा है ,आपका।

खामोश तुम नहीं हो,

,खामोश मैं भी हूं। 

फिर भी खामोशी से सफर जी रही हूं। 

याचित वेदना तुम समझ क्यों नहीं पा रहे हो। 

जिसमें मेरा अंग-अंग  तुम्हारे   रंग में रंग रहा है।

क्यों न समझ रहे हो,

समझ न सका तुम्हारा जवाब मे,

शायद मन ही मन बोले थे तुम

दिल बहलाने वाले शब्द 

दिल से खेल जाने वाले ,

निभाते नहीं कभी जीवन हम भर साथ।।

नहीं येसा प्यार में कभी हो नहीं सकता।।

तुम्हारे साथ गुजारा जो वक्त भुला दिया जाएं।।

वहीं मौसम, वहीसावन, वहीं झूले,

वहीं यादें वहीं खुशबू आज तक सांसों में बसी है।

कैसे कह दिया प्यार को खिलौना

क्यों समझते नहीं  हो तुम...

हर पल तुम्हारे साथ रह ने की रहने की रहती  चाहत ,

वक्त को शायद यही मंजूर हैं।

ना समझो बेबफा मुझको।।

हर पतझड़ के बाद  बहार आती हैं,समय बदलेगा एक दिन जरूर,

तुम भी समझोगे मेरे प्यार को।।

अब न आते दिल में जज्बात कोई  तुम्हारे सिवा ।।।

तेरे बिन कल्पना करना गुनाहा

बस तुम ही हो, तुम ही हो, तुम ही हो तुम।।

क्यों समझने की  भूल कर रहें हों।


तेरे मिलने के बाद,

मेरी हर खुशी हो तुम,

मेरा चैन हो तुम।

तुझसे जीवन की हर खुशी है

तुझ ही से जीवन कीआस है।।

दिल में बस चाहत तुम्हारी और ना भाती कोई बात।।

दिल चाहता है पल-पल तुम्हें ,

हर सांस में हो तुम्हारा साथ।।

रखू यूं ही सदा लब्जों पर तेरा नाम । ।

तेरे मिलने के बाद,हुआ दिल का हाल ये,

कहीं भूल न जाना सनम मुझे,

इस दुनिया की पथरीली राहों में।।

हम हैं ,सनम तुम्हारे 

तुम्हारे लिए ये जीवन हमारा,

जीवन का हर सुख तेरी राहों में हों।

तू हर पल हो मेरी बाहों में।

तुम हो गीत मेरा,तुम ही जीवन की डोर,मेरे मितवा ।।

ये दिल हर पल तड़पता, तुम्हारे लिए है।

तुम हो तो सदा मुझको मिलती है जीत।।।

मत भुलाना मुझे मत भुलाना मुझे जी पांऊगां तेरे बिन,

मेरे मीत ,ओ मेरे मीत, ओ  मेरे मीत ,ओ मेरे मितवा।।

तुम ही जान हो, तुम ही हो मेरा मेरा जीवन सफर।।

तुमने छोड़ा जो साथ, मैं जाऊंगी विखर।।

ओ मेरे मीत, तुम से हर खुशी।

तुम हो मेरी रूह तुम ही प्यास हो

हर आस  हो विश्वास हो।।

दिल चाहता है ,तुम्हे बस तुम्हें, हीओ मेरे मीत

तुझसे मिलने के बाद 

तुम्हारे लिए ये साँसों का चलना, तुम्हें ये न पाएं, इनका रुकना है लाजमी है लाजमी, ओ मीत मेरे मितवा।।

तुझसे मिलने के बाद दिल हो गया है तुम्हारा।।

ओ मीत मेरे मितवा।।


सब के हृदय में बसते राम सीताराम सीताराम।

बोलो राम - राम - राम बोलो राम - राम - राम।


पतित पावन नाम राम का जीवन का आधार, 

रामलला को पूजिए राम नाम से करिए प्यार,


जन जन के ह्रदय बसे जन जन के अति प्यारे,

कौशल्या के प्यारे और दशरथ नंदन राज दुलारे, 


सज गई अवध नगरिया, सजे सभी हैं नर नारी,

रामलला हैं वहाँ विराजे जिनकी छवि लगती न्यारी,


राम, लखन और भारत, शत्रुघन थे अयोध्या की जान, 

धाम अयोध्या बनी है देखो अपने भारत की पहचान,  


सिया, उर्मिला, मांडवी, श्रुतिकीर्ति प्यारी अवध दुलारी,

राज भवन की बहुएं ये सास ससुर की सबसे प्यारी,


मात के बचन निभाए लौट लखन संग बापस आए,

चौदह वरस वनवास लिया आज्ञाकारी जो कहलाए,


संतो के हितार्थ बने जो  संत जनो के तारणहारे, 

दुष्टो का  संहार  किया सब संतो  के  कष्ट उबारे, 


अवध में राम जी आए राम नाम है प्यारा नाम,

बोलो राम राम राम राम सीता राम राम राम।


सब के हृदय में बसते राम सीताराम सीताराम।

बोलो राम - राम - राम बोलो राम - राम - राम।


पतित पावन नाम राम का जीवन का आधार, 

रामलला को पूजिए राम नाम से करिए प्यार,


जन जन के ह्रदय बसे जन जन के अति प्यारे,

कौशल्या के प्यारे और दशरथ नंदन राज दुलारे, 


सज गई अवध नगरिया, सजे सभी हैं नर नारी,

रामलला हैं वहाँ विराजे जिनकी छवि लगती न्यारी,


राम, लखन और भारत, शत्रुघन थे अयोध्या की जान, 

धाम अयोध्या बनी है देखो अपने भारत की पहचान,  


सिया, उर्मिला, मांडवी, श्रुतिकीर्ति प्यारी अवध दुलारी,

राज भवन की बहुएं ये सास ससुर की सबसे प्यारी,


मात के बचन निभाए लौट लखन संग बापस आए,

चौदह वरस वनवास लिया आज्ञाकारी जो कहलाए,


संतो के हितार्थ बने जो  संत जनो के तारणहारे, 

दुष्टो का  संहार  किया सब संतो  के  कष्ट उबारे, 


अवध में राम जी आए राम नाम है प्यारा नाम,

बोलो राम राम राम राम सीता राम राम राम।


बोलो राम- राम- राम -बोलो राम राम -राम।

सीताराम राम- राम  सीतराम राम राम।

पतित पावन नाम राम का ,

जीवन का आधार, बोलो राम- राम -राम बोलो राम - राम- राम 

दशरथ नंदन राज दुलारे, कौशल्या के प्राणों प्यारे ,

बोलो राम -राम- राम बोलो राम राम- राम- राम

सीताराम राम- राम-राम।

सज गई अवध नगरिया, सज गए  सब नर नारी,।।

बोलो राम -राम -राम- राम

बोलो राम- राम -राम ।।

कोई मंगल गीत गाए, कोई करे आरती, बोलो राम -राम -राम।।

राम, लखन और भारत शत्रुघन  थे अयोध्या की जान, बोलो राम राम- राम- राम।।

बोलो राम राम- राम सिया ,उर्मिला  मांडवी, श्रुतिकीर्ति प्यारी अवध की राज दुलारी बहुएं  ,

वोलो  राम -राम- राम सीता राम राम- राम  राम- राम ।।

मात पिता की वचन निभाए लौट के वापस अयोध्या आए।

सबने अपने-अपने धर्म निभाएं, कोई किसी से शिकवा न करता बोलो राम- राम -राम।

कैकेई के राम प्राण प्यारे,

कैसे बन को भेजे दुलारे सबके राम है तारण हारे ,सब का हित चाहे कैकई  माता।।

हृदय पर रख के पत्थर कैसे बन को भेजे राम।।

बोलो -राम- राम -राम बोलो राम राम राम 

आज राम घर वापस आए 

सबसे अधिक कैकेई हर्षित ,

आज राम घर वापस आए ।

चौदह वर्ष बिन लाल बिताएं।

आज अवध में राम जी आए बोलो राम राम नाम बोलो राम  राम राम राम 

राम राज्य में सब जन सुख पाया। 

ना था कोई रोगी, सबकी सुंदर काया।

बोलो राम- राम -राम -राम सीता राम राम राम।

सब के हृदय में बसते सीताराम बोलो राम राम राम बोलो राम राम।।


तेरे मिलने के बाद

चलो आज एक कहानी सुनाती हूं।

अपनी जिंदगी के कुछ सपनों कि किस्से बताती हूं।

रात दिन सपने देखती रही आसमान छूने के बाद क्या हुआ उसकी एक झलक दिखाती हूं।

तुझसे मिलने के बाद।

न जाने कोई रात बीती हो जिस दिन तू और तेरी बातें मेरे मन को न सताती हो ।।

तू बात ना करें मन का कचोटता है  बिबस ,लाचार होती हूं  मैं

बात करने बहुत मन करता है, रात को  भी  तुझसे।।

 कई रात नींद नहीं आई, तुझसे ही बातें करती रही अकेले सो नहीं पाई। ।

मन बहुत  अधीर होता है ,

जब तू परेशान होता है।

 कितनी परेशान होती हूं ,,शायद तुझे यकीन ही नहीं होगा ,जब से मिली हूं ,तुझसे तेरी हो गई हूं ।

हर पल तेरे ही बारे में सोचती रहती हूं ,

कौन सा दिन वह होगा जब तेरी जिंदगी में चमत्कार होगा ,तेरे पास भी शानदार बंगला सुंदर सी गाड़ी होगी।

न जाने कितनी वार दिन में अकेले रहने का मन करता है।।

मगर रह नहीं पाती तुझसे बातें बगैर करें।।

बहुत बार मन को समझाती हूं,

ना परेशान करे तुझे।।

तुझसे बात नहीं की उस दिन

ऐसा लगा मानो जिंदगी अधूरी हो गई।।

मेरा तेरा रिश्ता अद्भुत है, अनमोल।

इस दुनिया में बस तेरा ही साथ हैं बस अब तो यूं लगता है।

तू नहीं होगा जिस दिन जहां में, मेरी भी आखिरी रात होगी।।

वैसे तो कोई रिश्ता नहीं है ,मेरा तेरा, बस तू वो अहसास है जिस  का कोई नाम नहीं।।

तो फिर क्यों तू मेरा दिल तोड़ देता है।।

हां माना कि मेरी भी कोई गलती होगी।।

तू रूठता है मनाती हूं।।

मुझे भी तो लगता कभी तो भी मुझे मनाएं।

ये दोस्त मेरी तेरी दोस्ती को किसी की नजर ना लग जाए।।



धन्य था, धन्य था, वो वीर,

सहना अन्याय जिसने,

सीखा नहीं ।।

मां प्रभावती पिता जानकी दास, के लाल को नमन।।

देश के लाल को नमन है ।।

नमन हां, नमन है, नमन हां नमन है नमन नमन नमन नमन ।।

स्वतंत्रता ही जिसका एक स्वप्न था ,

उस लाल को नमन।।

सिविल सेवा  काम उसको नहीं है भाया।।

कर दिया त्याग देश के लिए।

उस लाल को नमन।।

राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़ा वो,

 दे दिया नारा जय हिंद का,

कर दिया आजाद हिंद फौज का गठन उस लाल को नमन।।

सत्यमेव जयते में जिसका का था विश्वास, देश का वो सरताज था।

उस लाल को नमन।।

सौम्यता झलकती थी जिसके चेहरे पर, खौलता था खून फिरंगियों के बोल पर,

उस लाल को नमन उस लाल को नमन।।

महानायक स्वतंत्रता संग्राम का जिसने हर युवा को जगा दिया, अपना पराक्रम दिखा दिया, उस लाल को नमन।।

अपनी शक्ति के साहस जिसने, अपने देश के लिए हर पल जिया उनकी  तपस्या का फल हम सब को मिल गया,

ऐसे वीर को नमन ।।

सीता त्रिवेदी शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश


बेटियां बोझ नहीं 

किसने कहा में बोझ हूं।

मैं अपने पिता की शान हूं।

मां की संस्कारों की पहचान हूं।

अपने पिता  का अभिमान हूं।

हर संघर्ष लड़ने को तैयार हूं ।

मैं आन ,वान ,शान हूं ,कितनी भी मुसीबतें क्यों ना जीवन में

,उन सबसे लड़ने को तैयार हूं।

 मैं लक्ष्मी का ही अवतार हूं।।

 मैं परमात्मा का वरदान हूं ।

हर रूप में ही तो हूं ।                    मां

बेटी ,पत्नी बुआ ,चाची ,नानी,मामी, मैं कैसे, बोझ हो सकती हूं ।

क्योंकि मैं वसुंधरा हूं ।

अधिकारों की चाहा नहीं।

 यह सब अधिकार हमारे है ।

मां बनकर पुरुष को जन्म दिया। उसको पाल पोषकर  बड़ा किया।

सबका बोझ सहने ,वाली बोझ नहीं सकती हूं।

सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर


आओ गुफ्तगू करें,

 ऐ दोस्त मिले हो एक अरसे के बाद आओ बैठ कर कुछ बातें करें।

कहां खो गए वो दिन, जब एक दूसरे के बातें समाप्त नहीं होती थी ,ना कोई डर था ना भय था।

आपस में अनोखा प्रेम था।

कभी तूअपनी कहता कभी मैं अपनी कहती, बिना भेदभाव

के जीवन था।

कभी मैं अपने घर के किस्से सुनाती तो कभी तू कितने खुशी की वो पल होते थे। 

कभी तो, तू अपनी छत होता मैं अपनी छत पर इशारो इशारो में घंटो बातें होती रहती थी।

मम्मी पापा की डांट खाकर बड़े खुश होते थे।

ये दोस्त वो। भी क्या दिन होते थे

आओ कुछ फिर गुफ्तगू करते हैं

वो खुशी फिर कहीं ढूढ़ते हैं।

तू खामोश हो जाता तो ,मैं तुझे हिलाती थी , और बोलती कहां खो गया है।

तू धीरे से मुस्कुरा कर कहता था मैं देख रहा हूं कि तेरी सुन रही है कि नहीं ।

हम दोनो इसी तरह बात पर घंटो हंसते रहते थे।

फिर मैं खामोश हो जाती 

फिर तू आहिस्ता बोलता

क्यों चुप हो गई मेरी गुफ्तगू रानी

मैं पूछती थी तुम्हारा पढ़ाई में दिल नहीं लगता क्या ।

कहीं प्यार तो नहीं हो गया है।

इसलिए नहीं करते हो गुफ्तगू।

नहीं मुझे प्रेम और तुमसे ऐसा नहीं सकता।

इन दो शब्दों में दिन बीत जाता था।

जाने कहां चले गए वो दिन।

जब तू मिला नहीं तब पता लगा।

कि तेरे बिन जिंदगी कितनी अधूरी हो गई है।

तुझे आज भी आंखें ढूढ़ती है

कहां चले गए वो दिन, एक साथ खाना उठा बैठना लड़ना फिर बातें करना।

कोई रोक टोक नहीं थी जीवन में,

न छल ना कपट न संदेह ना रिश्तो में मलीनता थी ,वह जिंदगी बेमिसाल थी।

आज बरसों बाद मिला तू मुझे। बड़ा सकून पाया।

हा सच है तू अपने में खो गया, मैं अपनी में खो गई, भले मै किसी की हो गई, तू  किसी का हो गया

वो सकून नहीं  मिला आज तक जो तेरे साथ होने से मिलता था।

दोस्त 

अब तो रिश्तो में जिंदगी 

बंधगई  है, सब स्वार्थी रिश्ते हैं।

प्रेम तो ऐसे लगता है कि जीवन से खो गया है।

आज मिले हो तो आओ गुफ्तगू कर ले। 

चलो  तुम कुछ  मुझसे कह लो,

नहीं अब दिल नहीं है कोई गुफ्तगू करने को।।

अब मन करता है सारे संसार को छोड़कर फिर उसी बचपन में हम खो जाए वैसे ही हो जाए 

ए झमेले की जिंदगी रास नहीं आती मुझे।

बस तू छोटा हो जाए और मैं छोटी हो जाऊं फिर गुप्तगूं कर लूं।।

सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर


अक्सर मेरी बात अधूरी छोड़कर,

कहां चले जाते हो तुम।

समझ नहीं आता किससे घवराते हो  तुम, फिर दोस्ती करने की जरूरत क्या थी।

अब तो नफरत हो ने लगी है खुद से लगता कोई बदला ले रहे थे हमसे तुम।

क्या जरूरत थी तुम्हें हर बार सताने की आंखों में आंसू देने की अब तो ग़म को अपना लिया मैने।

क्यों कि यही काम आता है हर बार बार बार।

था कोई खास प्यारा तुम्हारा,

तो हमें जरूर बताते तुम ।

विना बताएं बात नहीं करना,रास ना आता मुझे।

कुछ पूछना चाह हमने, क्षमा करना कहकर काम चलाते तुम।

आज की बात को भूल न जाना तुम।।

मोहब्बत है येसा कहते थे, उससे,

फिर क्यों येसा करते थे, तुम सामने आना नहीं कभी तुम्हारे अब।

 दिल थोड़ते हो बार बार तुम।।

अब दगा नहीं दे ना  पाओगे तुम।।

मैंने तो परिवार माना तुम्हें,

तुम जाने क्या मानते थे मुझे।।

हम दोनों तो दोस्त थे फिर क्यों बंदिशें थी बात में। ना

निभाओगे ये दोस्ती तुम।।

दोस्त को भूल जाओगे तुम।।

मुझे पता नहीं था पहले।

कि इतना रुलाओगे तुम।

अक्सर लोग प्रेम,दोस्ती में,

दोस्ती को ही चुनते थे।

आप जो किया अच्छा किया।

सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर।


 जिंदगी बीत रही 

हर हाल में हैं।

आपको भूलना तो चाहा,

भूल न पाई।

भीड़ लाखों की है, यहां

खुद को तन्हा पायी।

जिन्दगी के बरसो बाद भी,

याद दिल से मिटा पाई ना।

हर तरफ दिल के कोने में तस्वीर तेरी, हर तरफ दिल के कोने मेंतस्वीर तेरी, क्यों मिटती नहीं यादें तेरी,

आज फिर तेरी कसमे मुझे याद आई।।

क्यों दी मुझे कसमे ओ मीत मेरे,

 हद से ज्यादा तेरी,आज याद आईं हैं।

क्यों तन्हाई , तन्हाई तन्हाई आई। 

क्यों पीछा नहीं छोड़ती तेरी यादें,

क्यों पीछा नहीं छोड़ती तेरी बातें 

क्यों मान नहीं लेती कि

तूने कदर नहीं की मेरी।

जब पास में थी तेरे,

तू पास नहीं था मेरे।

तब न कभी कीमत की,

दिल में प्रेम  दिखाकर कहां चले गए तुम बेवफा वन के।

झूठे वादे किए साथ देंगे तेरा।  

तूने क्यों  बादे किए।

मोर पंखी की तेरी लाई  हुई रखी है आज तक सजोकर मैंने ।

वह पेज मेरे पास बो कलम मेरे पास जिससे तूने लिख्खा तेरे बिन दिल है उदास।।

तेरे दिए  गुलाब सूख गये।

खुशबू आज भी आती है

खुशबू की सहारे जीती हुं।

तन्हाई सह लेती हूं।

जिस राह से तू गया 

उस राह को निहार रही हूं।।

तुम्हारी वो प्यार भरी बातें  जिनके सहारा  जीती हूं।

कहां हो तुम कैसे हो कोई, मिल जाए  खबर उस उम्मीद के सहारे जीती हुं।

वैसे तो कहने को मेरा भी एक परिवार है।

वजह से आपने दूरी बना ली है।

भूल गये तुम कैसे, परिवार तुम्हारा हैं।

आंखें ढूढ़ती है तुम्हें,आज तक। ये  सच्चा प्यार तुम्हारा है।

उलछी उलझी सी उम्र बीत रही है।

क्योंकि समझने सवरने का मुझको सलीका नहीं आया।

उलझनों से कोशिश की अपने को बचाने की।

मगर बच नहीं पाई गुलाब के कंटको से 

छुपाती  रहूंगी ,अपने को।

क्योंकि कांटो से बचने का सलीका नहीं आया।

प्रश्न करती रही हर पल बच्चो सा आज तक

प्रश्न करने का  सलीका नही आया।।

आंसू आंखों मे आए ,हर पल छुपाने का सलीका नही आया।।

बनाते बो मेरी खिल्ली।।

 जिन्हें जीने का तरीका सिखाया।

आसूं  देखकर मेरे उनका मजाक उड़ाया ।।

क्यों की मुझे रोने का सलीका नही आया।।

प्यार किया उनसे गुनाह किया क्योंकि मुझे स्वार्थी, बेबफा बनाना नही आया।

क्योंकि मुझे बफा करने का सलीका नही आया।

तड़पी रात दिन जिनके लिए

 करवटें  बदल कर रातें गुजारी आज तक अब बो कहते है मुझे सोने का सलीका नहीं आया ।।

सब के लिए पल उपलब्ध रही,सब की परेशानी समझी 

फिर भी मुझे दरिया दिल होने का सलीका नहीं आया ।।

खाई पल पल  चोट दिल पर अव वो कहते हैं 

मुझे पत्थर बने का सलीका नहीं आया ।।

वफा ही करनी है उनसे वचन दिया  है उनको,,

बचन तोड़ने का  मुझको सलीका नहीं आया।।।

दिन बीता साथ  तुम्हारे ,

हर पल संघर्ष में देखा।

दया ,धर्म, यश, कीर्ति ,दिल में 

सभी के लिए दर्द देखा।

दिन बीता साथ ,तुम्हारे 

हर पल जीवन में नया नूतनपन देखा। दिन भर क्या हुआ ?

जब शाम आई ।

एक मीठी सी याद की उम्मीद आई।

सारा दिन कैसे वीता ?

श्रम के चर्चे आत्मविश्वास से भरा चेहरा मसीहा बनके सामने आया। 

एक नहीं रोशनी लाया ।।

सहजने को एक एक बात,

बीते पलों  के लिए रात आई।।

अपनी गोद में रखने के लिए चांदनी की किरणें  एहसास लाई।।

 दिन बीता उलझनो में।

आराम के लिए रात आई ।

मां का दुलार , लोरी की याद आई।।

अब  थकी आंखें बोलती की रात आई ।

मत सोच कुछ भी ,

तू सुखद आगोश् में खो जा।

 रात आई ।।

भूल जा सभी कशमकश को,रात

 आई ।।

दिन वीता साथ तेरे रात आई ।।

हां रात आई।।

सहज सरल मृदु भाषा, हिंदी 
राष्ट्र और राजभाषा हिंदी ।
हम सब का  सम्मान है, हिंदी।
युगों युगों से अभिमान है, हिंदी। सब भाषाओं में, अनमोल है ,हिंदी संस्कार सभ्यता है हिंदी।
निज गौरव स्वाभिमान है, हिंदी।
दैनिक और व्यावहारिक हिंदी। पूरब से पश्चिम तक हिंदी।
 सब भाषाओं में एक है ,हिंदी स्वतंत्रता से राष्ट्र एकता अस्मिता की सक्ति है हिंदी।।
 हर रूप में प्यारी  हिंदी। वैज्ञानिकता ,मौलिकता ,सरलता,
सुबोधता ,सभी में सद्भाव है ,हिंदी जन जन की अभिलाषा हिंदी। मैथिली शरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत हरिशंकर परसाई  सब कवियों की भाषा हिंदी 
विश्व की अभिलाषा हिंदी।भाषाओं की सरताज हिंदी 
सभी गुणो से परिपूर्ण है हिंदी।।
भारत की पहचान हिंदी ।
विश्व पटल पर  शान है, हिंदी।
जीवन का वरदान है हिंदी।
सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर

यह जिंदगी के पल भी ,

क्या अजीब होते हैं।

 कभी बहुत प्यार कभी, 

 नफरत देते हैं ।

कभी हद से ज्यादा सकून,

 कभी हस से ज्यादा खुशिया  देते हैं ।

कभी हद से ज्यादा तकलीफ देते है।

 कभी वो दवा दुआ बनकर जीवन देती है।

 कभी वही दवा विश बनकर प्राण लेती है।।

 जिंदगी के पल कितने अजीब होते हैं।।

कभी जीवन अनचाही खुशियां और देते हैं।

कभी अन चाहा  दर्द दे देते हैं सहन करना मुश्किल पड़ता है।

जिंदगी की पल भी क्या अजीब होते।

कब किसे मसीहा बनाकर पेश कर दे,।

कब किसी दुश्मन बना दे भेष बदल दे।

जिंदगी के पल भी क्या अजीब होते हैं।।

कब किसे जमीन से  उठाकर आसमां से बिठा दे।।।

कब किसकी तकदीर में भीख लिखने।।

जिंदगी के पल क्या अजीब  होते।।

मैं नूतन वर्ष हूं ।

नूतन वर्ष हूं।

समय की आगाज़ हूं।

मैं ही नव वर्ष हूं ।

सदियों से वक्त की उदगार हूं। 

संभल सको तो ,

संभल जाओ ।

मैं जीवन की बौछार हूं ।

जीवन का विस्तार हूं।

मैं नूतन वर्ष हूं।

वक्त हूं आपका ।

सदियों से ,

गुजरे वक्त का मंथन हूं।

क्या खोया ,क्या पाया ,अनवरत   पहचान हूं।

सुख-दुख सब समाहित मुझमें सब  करते  हो आप  ही।

मैं गजल हूं ।।

सजल हूं।।

संस्कृति , सभ्यता ,सच  का प्रमाण हूं।

मैं वर्ष हूं ,नव वर्ष , हूं।

जीवन की हरआओ और हवा हूं।

 मुझमें ही वर्ष हैं।

दुखियों की पुकार ।

सुख का भंडार हूं ।

कभी इंतिहान हूं।

 मैं हर पल नई बहार हूं ।

मैं जीवन का जय घोष  हूं।

संभलने  का अवसर और चेतावनी  में हीं हूं।

 मैं नव वर्ष हूं ।

मैं संकल्पित विश्व का प्रमाण हूं।

 शांत हूं ,अखंड हूं  

मैं ही समय हूं। 

मैं अभी के लिए  नव बर्ष हूं।

मै अनंत हूं ।

सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर



 सांसें


सांसो का क्याl

आयी न आयी।

तन का भरोसा

कब मिट जाये।

पता नही।।

आज है कल का पता नही।

किसने देखा यहां जीवन में,

जब जीवन का पता नही।

कब आयी जबानी कब

चली गयी, पता नही ।।

किसके हिस्से मे क्या

सांसो का पता नही।।

इसलिए सकून से जियो जीवन को हैं सांसों का पता नहीं।।

कभी सोचती हूं;

दिन रात काम ही,काम

नही कही आराम,फुर्सत के दो पल 

ढूंढ़ती हू तुझमे ,

थोडी सी जिन्दगी

सकून भरी अपने हिस्से की

सासों का पता नही।।।

शिकायत नही करना चाहती कभी

दिल से हकीकत ये है।

मगर ये निगाहें अटकती कही

तेरी नजरों मे नसीले बदन में।

और नखरे भरी अदाओ पे

सांसो का पता नही है।

रात दिन तड़पतीं सिसकियां भरती ,अश्क बहाती रातों मे।

नही जानता कोई यहां

क्या हालत है ,दिल दारों की।

सामने तू फिर भी खामोशी,

क्यो होता तू यांदो मे।

दिल धक -धक करता

क्यो हर पल जैसे ,

तू नही मिला हो

बरसों से।

ऐसी तड़प क्यो है दिल मे

तू हर पल रहे ख्वाबों मे।

आसान नही जीवन जीना

कब तक रखूं दिल मे धीरज।

वे जुवां निगाहें।।।।

क्यो ढूंढ़ती हर पल तुझे

इसका कोई जबाब नही।।।


 पढी चिट्ठियां तुम्हारी।

मिले हाल सब तुम्हारे।

फिर भी चैन मिला न दिल को क्यों।।

जो हाल है हमारा,

क्या हाल है, तुम्हारा क्यो लगा मुझे,इस में अधूरी हैं बातें, अधूरी हैं रातें, लगा पाती से क्यों।।

कब के बिछड़ें हैं हम,कब से,

जो ख्वाइश हैं हमारी क्या ख्वाइश  है तुम्हारी, तन् में मिलने की जो है, तड़प।।

चैन नही ,है दिल को

तुम कहां हम कहां,

और रैन कहां,

चैन मिले ,ना पल -पल

अब मिलन की आस जगी है।।

पढी चिट्ठियां तुम्हारी

ना कुछ तुमनें सुनाया ना कुछ हमने सुनाया

ये सब मूक रहेगा कब तक।।

खफा होना ही था

कभी तुम्हें कभी हमें, फिर मिलने की हसरतें है क्यों,

मुझे लगता है जो, क्या तुम्हें लगता है वो,

कब मिलेगी प्यार से नजरें

होगी प्यार की बातें,

रूठना मनाना चलता ही रहेगा।।

तू कुछ मुझसे कहे मे कुछ तुझसे

यहू ये जीवन चलता रहेगा।।

समय है, ना किसी के बस मे,

जो जाते यहा से ,फिर मिलते नही

इसलिए जिद करते नही।।

तूने वादे किये,

मैंने वादे किये।

अब उनको निभाना होगा।।

तुझे जिद को छोड़ना होगा,

तू किताब बन गया मेरी जिन्दगी की।।

मै पन्ना, नही बनना चाहती।

मनाने के तरीके, नही आते मुझे,

प्यार से वास्ता पड़ा ही नही ,

तू मेरा दोस्त है।

पहला और आखिरी,

दिल दुखाने का पूरा हक है तुझे,

मत रूठ इस कदर टूटती है सांसे मेरी।।।।।

पढी चिट्ठियां तुम्हारी।।


 मेरी ख्वाहिश

तू हंसता रहे हर पल 

कभी दुख की छाया भी न हो तेरे पास।।

तेरे चारों ओर हों खुशियों की बगिया, न हो कोई पा बन्दियां।

काम का बोझ तुझे सताये ना।।

तू हर पल साथ हो हमारे, तूं, बने प्रियतम  हमारा,

बन जाऊं तेरी प्रियतमा,बस हो तेरी बाहों का सहारा।।

 खुशियों से भर दूं जीवन सारा,

दुख का एक पल भी ना हो जीवन में ,

रवि से मांगू दुआं बस यहीं।

तुझे पाने की ज़िद है मेरी।।

ज़िद है मेरी, ज़िद है मेरी,।।

चाहे सारी दुनिया आवारा पागल कहें मुझे,

चांहे आशिक दीवाना कहें,

तेरी खुशियों का बगीचा बनू मैं 

सारा बदन ढक लू तेरा

कोई संकट की किरणे पड़े ना

जीवन में 

तू हंसता रहे हर - पल ,हर पल

हर ख्वाहिश पूरी करू मै।।

मेरा सपना है बस यहीं।।


 बात दिल की मान कर तो देखो

सत्य पथ अपना कर देखों, मिलेगी हर मंजिल तुम्हें जरा संघर्ष करके देखो।।

व्यर्थ संशय व्यर्थ बातें,कुत्सित भाव त्याग कर देखों।

बनेंगे सभी अपने जरा अपना बनाकर देखो, दिल की बात मानकर देखो।

दिल कहता  सच सदा कभी  अपने को अन्दर झांक कर देखो।।

सत्य पथ साधु संत की संगत, अपनेको सन्मार्ग पर चलाकर देखों मिट जाएंगे सारे कष्ट 

कभी अपना कर देखो।।

निति साथी मिले सही और गलत,

उनको उत्तम रहा दिखाकर देखो।

बिखरे शूल है धरा पर जरा फूलों को बिछाकर देखो।। 

बन जाएंगे सभी अपने यहां जरा दिल से बनाकर देखो।।

कोई नीचा दिखाएं तो दिखाने दो,

 झगड़े तो झगड़ने दो , अपना मन शांत बनाकर देखो मिट जाएंगे झगड़े सभी जरा दिल की मान कर देखो।।।

हां सच हैं कि दुनिया में अलग-अलग मत भेद भरे,

 मगर अक्षर बही है शब्द बनाकर देखो, बन जाएंगे मनमीत जरा दिल मिलाकर देखो।।

सबको आगे रहने की आदत होती है, जहां पर 

आप जहां हो अपने को प्रथम मानकर देखो ,कोई आगे न होगा कोई पीछे न होगा ।।

कभी यह  दिल से मानकर देखो, 

मिट जाएंगे सारे गिले-शिकवे यहां सभी को अपनी नजर से अपना बनाकर देखो।।

अपनी मन मर्जी से पहले, दूसरों की मर्जी जानकर देखो,

खुश हो जाएगा हर पल ,खुशनुमा झोली में खुशियां भर के देखों ,

खुशियां भर के देखो।।।।

कभी अपने नजरिए को बदल कर देखो।।

मिट जाएंगे सारे गिले-शिकवे सभी उसको अपनी नजर से देखों 

उसकी मजबूरी समझकर देखो छोड़िए बेमतलब की तकरार को ,थोड़ा सा प्यार बांटकर देखो।।

थोड़ी दिल की बात मानकर देखो।

सारा जहां अपना हैं ।

ये जानकर देखो।।

मिलेगा बड़ा सकून‌ दिल से मानकर देखो।।।।।

सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर 


मेरी ख्वाहिश

तू हंसता रहे हर पल 

कभी दुख की छाया भी न हो तेरे पास।।

तेरे चारों ओर हों खुशियों की बगिया, न हो कोई पा बन्दियां।

काम का बोझ तुझे सताये ना।।

तू हर पल साथ हो हमारे, तूं, बने प्रियतम  हमारा,

बन जाऊं तेरी प्रियतमा,बस हो तेरी बाहों का सहारा।।

 खुशियों से भर दूं जीवन सारा,

दुख का एक पल भी ना हो जीवन में ,

रवि से मांगू दुआं बस यहीं।

तुझे पाने की ज़िद है मेरी।।

ज़िद है मेरी, ज़िद है मेरी,।।

चाहे सारी दुनिया आवारा पागल कहें मुझे,

चांहे आशिक दीवाना कहें,

तेरी खुशियों का बगीचा बनू मैं 

सारा बदन ढक लू तेरा

कोई संकट की किरणे पड़े ना

जीवन में 

तू हंसता रहे हर - पल ,हर पल

हर ख्वाहिश पूरी करू मै।।

मेरा सपना है बस यहीं।।


बात दिल की मान कर तो देखो

सत्य पथ अपना कर देखों, मिलेगी हर मंजिल तुम्हें जरा संघर्ष करके देखो।।

व्यर्थ संशय व्यर्थ बातें,कुत्सित भाव त्याग कर देखों।

बनेंगे सभी अपने जरा अपना बनाकर देखो, दिल की बात मानकर देखो।

दिल कहता  सच सदा कभी  अपने को अन्दर झांक कर देखो।।

सत्य पथ साधु संत की संगत, अपनेको सन्मार्ग पर चलाकर देखों मिट जाएंगे सारे कष्ट 

कभी अपना कर देखो।।

निति साथी मिले सही और गलत,

उनको उत्तम रहा दिखाकर देखो।

बिखरे शूल है धरा पर जरा फूलों को बिछाकर देखो।। 

बन जाएंगे सभी अपने यहां जरा दिल से बनाकर देखो।।

कोई नीचा दिखाएं तो दिखाने दो,

 झगड़े तो झगड़ने दो , अपना मन शांत बनाकर देखो मिट जाएंगे झगड़े सभी जरा दिल की मान कर देखो।।।

हां सच हैं कि दुनिया में अलग-अलग मत भेद भरे,

 मगर अक्षर बही है शब्द बनाकर देखो, बन जाएंगे मनमीत जरा दिल मिलाकर देखो।।

सबको आगे रहने की आदत होती है, जहां पर 

आप जहां हो अपने को प्रथम मानकर देखो ,कोई आगे न होगा कोई पीछे न होगा ।।

कभी यह  दिल से मानकर देखो, 

मिट जाएंगे सारे गिले-शिकवे यहां सभी को अपनी नजर से अपना बनाकर देखो।।

अपनी मन मर्जी से पहले, दूसरों की मर्जी जानकर देखो,

खुश हो जाएगा हर पल ,खुशनुमा झोली में खुशियां भर के देखों ,

खुशियां भर के देखो।।।।

कभी अपने नजरिए को बदल कर देखो।।

मिट जाएंगे सारे गिले-शिकवे सभी उसको अपनी नजर से देखों 

उसकी मजबूरी समझकर देखो छोड़िए बेमतलब की तकरार को ,थोड़ा सा प्यार बांटकर देखो।।

थोड़ी दिल की बात मानकर देखो।

सारा जहां अपना हैं ।

ये जानकर देखो।।

मिलेगा बड़ा सकून‌ दिल से मानकर देखो।।।।।

सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर से


 मन कि बात


मन से मन  की हर बात करती हूं  हर दिन।

कभी लगी नही दूरियां है,क्यों की आत्मा मे बसते है बो।

बो हर सांस कब बन गए मेरी,

अजब सी कसमकस है,बता भी नही सकती उन्हें,

जिस्म से जिस्म  मिलने की तमन्ना ही नहीं है ।।

रूह से रूह की हर बात हो रही है हर पल 

अब संवेदनाएं सारी तुम्हारे लिए है।।

कविता ,कहानी आती है तुमसे पता नही कैसी मोहब्बत हो तुम


ढूंढती हैं निगाहें मेरी तुझे ही हर लम्हें में  ,,

बिन कहे सब कुछ तो आज मैं कह ही रही ।।


सच क्या झूठ क्या सही क्या गलत क्या  अब पता ही नहीं

अब भरोसा है तुझ पर तो मेरा ही है।।

यह शरीर भले किसी को दिया है मन और भावनाएं तुझको ही दी है सब कुछ है तू किस से कहूं ।।

मैं

तेरी आवाज के जादू में मैं खो ही रही तेरी खुशियों मैं क्यों में ही ढूंढती हूं खुशियां सारी यह दौलत तुम्हारे लिए है।



जो मन को भाता है वह कह ही देती हूँ मैं,


कब कौन इस जहाँ में रहे या ना रहे  यह मुझको पता भी नहीं है।।

तू विश्वास मेरा भले तोड़ दे मैं विश्वास तेरा न तोड़ू कभी।।


ये स्नेह शाश्वत बने यह आज मैं लिख ही रही ।।


जाने क्यों ये लेखनी बिन लिखे रुकती ही नहीं ,,

तेरी हर बात का जबाब हर बार मै

दे रही थी मैं ।।

प्रेम क्या है मुझे ए पता तो नही मगर तेरे बिन जिंदा भी नही।


कभी कुछ कहने का तेरा मन जो कहे  मुझसे आप किस भरोसे को सलाम।।


दुआ दो ना दो पता तो नहीं

जब तक हूं जहां मे,प्रभु से मांगू दुआ  सलामत रहे तेरा परिवार सदा।।।


 गिले  सिकबे को जीवन में हटा कर देखो।

रिश्तों में कुछ हल्कीनरमी लाकर देखो ।।

नीरस  मत बनाओ  ज़िन्दगी को  थोड़ा मुस्कराकर देखो।


मिली है बढ़ी मुस्किल से ये जिंदगी जरा परमार्थ कर के देखो।।।


मिलेगी सारी खुशियां तुम्हे जरा खुशी लुटाकर देखो।।

हम ना भागे परछाइयों के पीछे

जरा सच्चाई समझ कर देखो।।


सुकून को  आदत बनाकर देखो।

बनेंगे बेगाने भी यहां अपने ज़रा 

 दिल में बसाकर देखो।।


ज़िन्दगी यूँ ही न बीत जाये गिले शिकवों में कही।।


बेचैनियों को  राहत बनाकर देखो।

बदल रहा बे वजह मौसम यहां।

जरा मौसम मे रिश्तों की लियाकल देखो।।


बेवजह मत कसो ताने किसी पर

उसकी वजह समझ कर देखो।।


सुलझ जायेगे सारे मसले  यहां,

उसकी जगह खुद को रखकर देखो।।


मोहब्बत कुर्बानियां है लाखों, देखो।

 कभी किसी से मोहब्बत कर के देखो।।


 गिले  सिकबे को जीवन में हटा कर देखो

रिश्तों में कुछ हल्की नरमी लाकर देखो 


नीरस मत बनाओ ज़िन्दगी को थोड़ा मुस्कराकर देखो।

मिली है बढ़ी मुस्किल से ये जिंदगी जरा परमार्थ कर के देखो।।।

मिलेगी सारी खुशियां तुम्हे जरा खुशी लुटाकर देखो।


हम ना भागे परछाइयों के पीछे

जरा सच्चाई समझ कर देखो।।


सुकून को आदत बनाकर देखो।

बनेंगे बेगाने भी यहां अपने ज़रा 

 दिल में बसाकर देखो।।


ज़िन्दगी यूँ ही न बीत जाये गिले शिकवों में कही।।

बेचैनियों को  राहत बनाकर देखो।

बदल रहा वे वजह मौसम यहां।

जरा मौसम मे रिश्तों की लियाकत देखो।।


बेवजह मत कसो ताने किसी पर

उसकी वजह समझ कर देखो।।


सुलझ जायेगे सारे मसले  यहां,

उसकी जगह खुद को रखकर देखो।।


मोहब्बत कुर्बानियां है लाखों देखो।

कभी किसी से मोहब्बत कर के देखो।।


 कौन है किसका यहां।


हर दिन न सही कभी कभार

खुशनुमा पलो की याद करनी, पड़ती यहां ।।

कितने भी बनो स्वाभिमानी यहां सब को जररूरत पढ़ती हैं एक ना एक दिन यहां।।

अमृत की ना पानी की भी जरूरत पढ़ती  जिसके बिना जीवन ना  यहां।।


जीवन भर किसने साथ निभाया किसका का अपना मूल्य समझना पढ़ता खुद सबको यहां।।

कौन किसके लिए जीता यहां 

सब अपने लिए जीना पड़ता है यहां।।


दिन के भी होते यहां चार पहिर उसको भी अलग अलग तरीकों से जीना पड़ता यहां।।

कौन कहिता  जीवन सरल है यहां हर प्रकार की परिस्थितियों से लड़ना पड़ता है यहां।।


शिक्षा अशिक्षा ,गरीबी अमीरी, ऊंच नीच तमाम भेदभाव  समाप्त है यहां  उसके लिए है तमाम शास्त्र यहां।

फिर भी  नजरों से गिराता  एक दूसरे को  मनुष्य यहां।।


तमाम परिस्थितियों से जूझी हूं आज ऊब गई हू यहां अब अकेली राहिना चाहती हुं यहां।।

हरदिन जीने लिए कामना पड़ता है यहां मिले नहीं गर काम भूखे पेट सोना पड़ता है यहां।।

 कौन किसे पूछता यहां सब जीते अपने लिए यहां  ।।

मत तड़पो किसी के लिए यहां 

लोग समझते  खिलौना दिल बहिलाते और फेकतें यहां।।


मत रो मेरे दिल चलो  कही इस जहां से दूर चलते हैं आज कही।  सफर  तन्हा तेरे  साथ।।


 सभी दिव्यांगजनो को प्रणाम

उस शक्ति को प्रणाम 

जो चल नहीं सकते

सुन नहीं सकते

और बोल नहीं सकते,

जिनकी क्रियाएं आधारित हैं

केवल और केवल अन्तर्मन पर।

कहा जाता है जिसे दिव्यांग

जिसके साथ रहती है ईश्वरीय शक्ति

प्रणाम ऐसे उन सभी को।

जो कदमों से नहीं चल सके

मगर 

धरा पर दुनियां को दिखाया हौसलों से अपनी

ऊँची उड़ान को।

प्रणाम उनके जज्बे को।

देखी नहीं बाहरी दुनिया 

फिर भी अंतर मन से लिख दी किताब।

अपने अंतर्मन के चक्षु से 

बिना देखे सारे जहां।

उन सभी को बारम्बार प्रणाम 

उनकी अद्भुत शक्ति को प्रणाम।

जिसने सुना नहीं दुनिया का शोर

फिर भी रूह से लिख दी दिल की बात।

भर दिया जग में संगीत 

उस व्यक्ति को प्रणाम।

कभी विचलित हुए नहीं।

न शिकायत की संसार से, 

जो भी दिया परमात्मा ने उसे 

समझा वरदान मिला 

उस शक्ति को प्रणाम।

न नयनो की शिकायत न कानों की बात 

न होठों से कहीं,चलने फिरने की  कोई बात।

न हुए कभी उदास इस दुनिया में

फिर लिखे नए इतिहास 

उस शक्ति को प्रणाम।

नहीं कहा हम हैं विकलांग।

गर्व से कर दिखाया हम हैं ,

प्रभु का अद्भुत चमत्कार हम 

हम हैं दिव्यांग ,  

हां हम हैं दिव्यांग ।

रखते हैं ऊंची उड़ान भरने का दम

नहीं हैं हम किसी से कम।।

सीता त्रिवेदी जलालाबाद, शाहजहांपुर


गम है 

कुछ ग़म हमे कि,

जो बने हमारे 

बो हम नही

जो भी था मन में हमे बताना था

क्या शिकायत थी,मुझसे

बोल देते तो हम ऐसे ही

इस ज़िन्दगी से चले जाते 

 तो होता कोई गम नहीं।।

मेरी आंखे नम है।

ये मुझे गम नही।।

मगर बो अपने बनके।

बेगाने बने ये गम नही।।

अभी तो मिले भी नही।

दर्द इतना दिया ए हमे 

गम नहीं,था दिल्लगी

का  मौसम नही।

इक वादा तो था ।

कोई थी क़सम नहीं

इस तरह दी सजा।

ए कोई  गुना नही था।


चाँद भी रोया हाय

रोई रजनी भी जब

सुनी उसने दर्द की

दास्ता अपना बनके ,

बना बेरहम झूठी खोखली 

बातो से तूने क्यू दिया 

अपनापन मैने नही मागा था

प्यार फिर क्यों  दगा दिया तूने

मैंने कब मांगी थी बफा।

जो तू बेवफा  बना।

 तू बेदर्द बना

कोई गम नही।

आप सा प्रेमी कोई 

किसी का बने नहीं,

जो आपको न लिखूं तो,

अब बो मैं नहीं ।

अब मुझे तुझ से शिक्बा नहीं।


 हाँ ये सच है कि, कई बार झूठ बोलता हूँ मैं। 

आज ये राज, सभी के सामने खोलता हूँ मैं।


खुश हूँ मैं बहुत, कहता हूँ हर किसी से यहाँ।

लेकिन कौन जाने यहाँ कि, झूठ बोलता हूँ मैं।


मेरे झूठ बोलने से, कई लोग मुस्कुरा जाते हैं। 

उस सच्ची मुस्कान के लिए, झूठ बोलता हूँ मैं।


सच बोलकर अक्सर, रिश्ते टूटते देखे हैं मैंने।

बस रिश्ते बचाने के लिए, झूठ बोलता हूँ मैं।


हर जगह तो यहाँ झूठों की, महफ़िल सजी है। 

इसलिए महफ़िल में झूठों से, झूठ बोलता हूँ मैं।


वो हमारे बिना नहीं रह सकते, झूठ बोलेते हैं। 

मैं उनके बिना खुश हूँ, उनसे झूठ बोलता हूँ मैं।


सच बोल दूंगा, तो कई लोग मुझे झूठा कहेंगे। 

इसलिए सच्चा दिखने के लिए, झूठ बोलता हूँ।


 मृदा है खान जीवन की

पोषित तुम्हे करती।

मृदा को नही बचाते हो।

है।

  भूल मानव की,


                          सभी जीवो के जीवन का

                          छुपा है राज खजाने में 

                          मिलाते क्यो मिलावट हो

                          लगे हो क्यो जीवन गवाने मे 


लगाओ प्राकृतिक खादें

फसल अच्छी उगाने मे

स्वस्थ रखो मृदा को

ये जीवन तुम्हारा है


                         बने क्यो खुद के हो

                          दुश्मन यहां

                          अपने ही जीवन के

विश्व को रखना यदि स्वस्थ

खाद्य सुरक्षा जलवायु परिवर्तन 

शमन गरीबी उन्मूलन

अगर विकास पथ पर आना है

 

                        जगाओ सारी दुनिया को

                        मृदा को अब बचाना है

क्षरण ना हो मृदा का अब

सबको पौधे लगाना है

                             खत्म हो निर्जल रेत यहां

                             मृदा उपजाऊ बनाना है

मृदा हो स्वस्थ 

हम हो पुष्ट

अपना जीवन बचाना है

                             बडे कैसे उपज मेरी

                             सभी को चिंतन करना है।

धरा रहे सुरक्षित

प्रदूषण मुक्त करना है।

                              यही संकल्प हमारा है।

                              धरा मां को बचाना है।

हम सभी मिलकर खुशी के गीत गायेंगे।

धरा मां को  बचाएंगे


वो मेरे सामने बैठी है, मुझे ख़्वाब लग रही है। 

यहाँ गुल ही गुल खिले हैं, वो गुलाब लग रही है।


वो कितनी खूबसूरत है, उसको खबर नहीं है।

मुझको तो खूबसूरत, वो बेहिसाब लग रही है।


उसकी नशीली आंखे, हाए मैं बहक रहा हूँ।

कोई  उसे बता दो, वो शराब लग रही है।


यहां मेरी ज़िंदगी में, बस छाया है अंधेरा।

मेरी काली रातों में, वो माहताब लग रही है। 


जो सवाल पूछता हूँ, मैं खुद से अकेले में।

मेरे हर सवालों का, वो जवाब लग रही है।


मेरी नज़र मिली जब, नज़रों से जाके उसकी।

तब से दिल की धड़कन, बेताब लग रही है। 


मेरा दिल कह रहा है, उसको आज पढ़ लूँ।

मुझको वो शायर की, एक किताब लग रही है।


 यहाँ गुल ही गुल खिले हैं, वो गुलाब लग रही है।


वो कितनी खूबसूरत है, उसको खबर नहीं है।

मुझको तो खूबसूरत, वो बेहिसाब लग रही है।


उसकी नशीली आंखे, हाए मैं बहक रहा हूँ।

कोई  उसे बता दो, वो शराब लग रही है।


यहां मेरी ज़िंदगी में, बस छाया है अंधेरा।

मेरी काली रातों में, वो माहताब लग रही है। 


जो सवाल पूछता हूँ, मैं खुद से अकेले में।

मेरे हर सवालों का, वो जवाब लग रही है।


मेरी नज़र मिली जब, नज़रों से जाके उसकी।

तब से दिल की धड़कन, बेताब लग रही है। 


मेरा दिल कह रहा है, उसको आज पढ़ लूँ।

मुझको वो शायर की, एक किताब लग रही है।


कोई मिलने की वजह 

 वजह दे दो तुम,

रात दिन तड़पती हूं तुम्हारे लिए

मत रूठों इस कदर गिले शिकवे की वजह दे दो ना।

यूं खामोश होना तुम्हारा कही मार डाले ना मुझे ,दिल में छुपी हसरतो को कहिने की वजह दे दो ना।

नहीं भाती तुम्हारी बेरुखी,अब हमें, थोड़ी खुशियों की वजह, ढूंढो ना।

काश मेरे दिल में भी तेरे दिल के जैसा दिल होता, जितना तू बेखबर है,

 मैं भी ऊतनी बेखबर होती है।

जाने क्यों सांसे आती तेरी सांसों से,मुझे भी जहां से जाने का हक दे दो ना । 

जुबां है ,फिर भी खामोसी से सब्र रखने का हक मुझे दे दो।

क्यों किए वादे  तूने , 

उन्हे निभाने का हक मुझे दे दो ना।

इश्क़ में हद से बेहद

इंतज़ार कर ने लगे थे क्यूं  दोनों ,

अब मिलने की वजह दे दो ना।

जीवन बीत रहा कसमकस मे।

अब ये बंदिशे खत्म करने की वजह  दे दो ना। 

भूल जाओ बो पल जिनसे रूठे है आप ,अब मानने की वजह दे दो ना

       दर्द बहुत है दिल मे एक कॉल करने की वजह दे दो ना।

         सीता त्रिवेदी


 कोई मिलने की वजह दे दो तुम

रात दिन तड़पती हूं तुम्हारे लिए

मत रूठों इस कदर

गिले शिकवे की वजह दे दो ना

यूं खामोश होना तुम्हारा कही मार डाले ना मुझे

दिल में छुपी हसरतो को कहिने की वजह दे दो ना

नहीं भाती तुम्हारी बेरुखी अब हमें

थोड़ी खुशियों की वजह ढूंढो ना

काश मेरे दिल में भी तेरे दिल के जैसा दिल होता जितना तू बेखबर है मैं भी ऊतनी बेखबर होती 

जाने क्यों सांसे आती तेरी सांसों से 

मुझे भी जहां से जाने का हक दे दो ना  

जुबां है फिर भी खामोसी से

सब्र रखने का हक मुझे दे दो तुम

क्यों किए वादे तूने 

उन्हे निभाने का हक मुझे दे दो ना

इश्क़ में हद से बेहद इंतज़ार कर ने लगे थे क्यूं दोनों ,

अब मिलने की वजह दे दो ना

जीवन बीत रहा कसमकस मे

अब ये बंदिशे खत्म करने की वजह दे दो ना

भूल जाओ वो पल जिनसे रूठे है आप

अब मानने की वजह दे दो ना

दर्द बहुत है दिल मे एक कॉल करने की वजह दे दो ना।


 !!बीते लम्हे पास नहीं आते!!

,बीते लम्हे हाथ  नही आते।

जो फिर गुज़र जाते,।

बो वापस नहीं आते

बनालो अपना उनको,

फिर ये एहसास नहीं आते।

 गुजरे हुए पल फिर हाथ नहीं आते।

रह जाते हैं एहसास ,

जो हर पल सताते हैं।।

जी लों इन लम्हों को जो वापस नहीं आते ।।।

मिली जो मुद्दत से चाहत,

ठुक राओ ,ना उसे,

 फिर 

ऐसी चाहत वापस नहीं 

आती।

ओ ओ......

ये जिंदगी क्यों गुजार रहे हो।

सूनी , फिर ये बाहर के मौसम, वापस नहीं आते।

बीते लम्हे बापस नहीं आते।

कल मिले  सकून और चैन ,

मत करो दिल से समझौता।

बीते हुए पल वापस नहीं आते।

जो मिला है तुमको रब की मर्जी है,फिर ये मौके  वापस नहीं आते।

 लगी आग तेरी मोहब्बत की

जले बदन  ऐसे ,लम्हे नहीं आते।

मचलता आज तन और मन।

फिर ये प्यार के बादल वापस नहीं आते।

बरसने दो ,आज इनको,लगी है आग तन मन  में बुझने दो ।।

ये  प्यार के मौसम वापस नहीं आते।

ओ ओ .......


 बताए कैसे 


मन था  परेशान बताए कैसे।

आप से  मिला प्यार  बताए कैसे।।


हर बात को हमनें , दर किनार किया।

आज की मधुर  घटना  बताएं कैसे।।



समय बदला बदली किस्मत बदले नज़ारे।

अब बदलते समय की बात बताऐं  कैसे।

हर लम्हा जिसके बिन न बीते

बो राज बताएं कैसे।।।

उस को बिन देखे मछली सी तड़प। वो पल बताएं कैसे।

कैसे मिली प्रेम निगाहें।

बो मिलन बताएं कैसे।

बो प्रेम है उसका सबको बताएं कैसे।।

उसकी झलक न मिले खुद को जिंदा ना माने वो बताएं कैसे।।

उस पर  हर एतवार प्यार 

वो न मिले तो हो परेशान ।

दिल की धड़कन है वो बताए कैसे।।


उसके अरमा हो तुम ,अधूरी कहानी हो तुम ये बात 

बताए कैसे।।

आप को लगता हम अपने नही।

मुझे नहीं लगता बताएं कैसे।


 ये दस्ता कब शुरू हुई क्यू शुरू हुई  राज पता ही नही तो बताएं कैसे।


जिंदगी ठहरी थी अब चले लगी 

वो मंजिल है उसकी बताएं कैसे।।।

 रूह कब बन  गया है बो ।

उसको बताएं कैसे।।।


 मन था  परेशान बताए कैसे।

आप से  मिला प्यार  बताए कैसे।।

हर बात को हमनें , दर किनार किया है।

आज की मधुर  घटना  बताएं कैसे।।

समय बदला, बदली किस्मत, बदले नज़ारे।

अब बदलते समय की बात, बताऐं कैसे।

हर लम्हा जिसके  बिन न बीते

वो राज बताएं कैसे।।।

उस को बिन देखे  मछली सी तड़प।

वो पल बताएं कैसे।

कैसे मिली  प्रेम निगाहें।

बो मिलन बताएं कैसे।

वो प्रेम है उसका   सबको बताएं कैसे।।

उसकी झलक न मिले 

खुद को जिंदा ना माने वो

 बताएं कैसे।।

उस पर  हर एतवार प्यार का

वो न मिले तो हो परेशान ।

दिल की धड़कन है वो 

बताए कैसे।।

उसके अरमा हो तुम ,अधूरी कहानी हो तुम

 ये बात बताए कैसे।।

आप को लगता हम अपने नही।

मुझे नहीं लगता बताएं कैसे।

ये दस्ता कब शुरू हुई क्यू शुरू हुई   राज पता ही नही तो बताएं कैसे।

जिंदगी ठहरी थी अब चलने लगी 

वो मंजिल है उसकी   बताएं कैसे।।।

रूह कब बन  गया है बो ।

उसको बताएं कैसे।।।


 !!बीते लम्हे पास नहीं आते!!

,बीते लम्हे हाथ  नही आते।

जो फिर गुज़र जाते,।

बो वापस नहीं आते

बनालो अपना उनको,

फिर ये एहसास नहीं आते।

 गुजरे हुए पल फिर हाथ नहीं आते।

रह जाते हैं एहसास ,

जो हर पल सताते हैं।।

जी लों इन लम्हों को जो वापस नहीं आते ।।।

मिली जो मुद्दत से चाहत,

ठुक राओ ,ना उसे,

 फिर 

ऐसी चाहत वापस नहीं 

आती।

ओ ओ......

ये जिंदगी क्यों गुजार रहे हो।

सूनी , फिर ये बाहर के मौसम, वापस नहीं आते।

बीते लम्हे बापस नहीं आते।

कल मिले  सकून और चैन ,

मत करो दिल से समझौता।

बीते हुए पल वापस नहीं आते।

जो मिला है तुमको रब की मर्जी है,फिर ये मौके  वापस नहीं आते।

 लगी आग तेरी मोहब्बत की

जले बदन  ऐसे ,लम्हे नहीं आते।

मचलता आज तन और मन।

फिर ये प्यार के बादल वापस नहीं आते।

बरसने दो ,आज इनको,लगी है आग तन मन  में बुझने दो ।।

ये  प्यार के मौसम वापस नहीं आते।

ओ ओ .......


बिषय-अधूरी ख्वाहिशें


कब पूरी होगी ख्वाहिसे

सारा जहां घूमी ।

मुकम्मल न हुई ख्वाहिशें।।


जिंदगी को मिली ,हर जगह मिली बंदिशें-ही-बंदिशें।।

जी रही ख्वाब मे ख्वासें।।

रिश्तों की दीवारों मैं दम तोड़तें ख्वाब,

चहारदीवारी में कैद होकर रह गई ख्वाइशें।

बचपन में माता-पिता समाज की बंदिशें यह करो वो करो 

,ये बोलो मत बोलो , यहां जाओ बहा न जाओ,जीने की स्वतंत्र ख्वाबों में ही रह गई ख्वाइश से।।

जिसके साथ रिश्तों मे बंधी एक शांत सागर सा एक में लहिरों सी हलचल पल खुलकर जीने की अधूरी ख्वाहिशें ।।।

जिंदगी  ठहर गई हम सफ़र पाकर भी, बच्चों के  ही सपने पूरे कर की जिद्द अपने सपनों कि अधूरी ख्वाहिशे।।

मिला एक मीत जीवन में उसके साथ एक लम्हा बितानें की अधूरी ख्वाहिसें ।।

सारा जग घूमा फिर रहि गई ,अनकही अधूरी ख्वाइशे।।

धारा से अंबर सब देखने की ख्वाहिशे।।

खुशकिश्मत हम इतने ना  थे

 सब हसरतें पूरी होनें की ख्वाहिशें।।

किसी से क्यो उम्मीद थीं मुझें,

की ये हैं मेरा ,मगर ख्वाब में ही मेरी ख्वाहिशें।।

जीवन भरा उशूलो से क्यों उनका,

बनता तमाशा यहां किस से कहूं 

अधूरी ख्वाइसे ।।।


अपने अरमानों को हर पल  कुचलती जिंदगी।।


हद से जायदा तन्हाई खोती जिंदगी खवावो मैं आपनो को खोजती ख्वाहिशों।।

 किस से कहूं अपना दर्द 

दूर-दूर तक दिखता नहीं 

कोई सपने पूरा करने बाला,

दिखता नहीं ख्वाब अधूरे ।

दम तोड़ती  ख्वाईसे।।

सोचती हूं अपना  कभी कभी हर ख्वाब करू पूरा ।।

बार बार मन विचलित करती ख्वाइसें ।।

 मुझे

आभास है।

तुम भी  रूठ जाओगे।

एक दिन

जानती हूं सब ।

पतझड़ की तरह

उन फूलों का खिलना।

भौरों के आते ही खुशबू।

अपने  में समाहित हो जातें।।

बिछड़ने  नहीं मिलते।

आसमां और धारा की तरह।

नहीं मिलते ।

मगर

एक दूजे के बिना नहीं कोई मुकाम

फिर भी इंतजार 

करने वाले नहीं 

कभी थकते।

इंतजार करते करते

किससे कहें ये दर्द और दास्तां।।

जब से मिली निगाहें।

दिल भरता ही नहीं।

विछड़ने के डर का।।

आभास जीने ही नहीं देता हैं।।


 मन पीड़ा 

आज थक गई हुं बहुत झूठे ।खोखले ,रिश्ते एक तरफा ,निभाते हुए।।

 जो मगरूर है अपने मैं

मैं सब कुछ हूं।

जमकर दिल तोड़ते,

अपनो का,समझते आधुनिक

जमकर तमाशा बनाते रिश्तों का,।

लगता बो सही कर रहें।

एक दिन जरूर रोते है।

अपनो को रुलाने वाले।


रंगों से भरी दुनिया में

अपने को खोजती है,

अपनो के सामने,बेरंग ,बदरंग,

बना दिया अपनो को,

क्या मिली दौलत अपनो को,

नफ़रत बढ़ा दी ए दौलत ने 


त्रस्त हो दिन रात पूछती है जिंदगी,।

क्यों

आंसू के घूंट पीकर रह गई जिंदगी,

अपनो के बीच ठगी सी,

क्यों रह गई जिंदगी।।


जीने की आशा छोड देती हूं

मगर कुछ और रिश्ते है जीवन के

जुबां है फिर भी चुप हैं,रिश्ते बचाने मैं।

आहों से सॉसें निकल जाती

बिलख बिलख कर रोती है

उफ तक न कह सकती है।

अपनों के लिये जीती है

अपना सर्वस्व निछावर करती

रही ना था उस का कोई मोल

पिघलती रहती मोम की बत्ती जैसा

आख़िर अकेली सब से दूर रह जाती  हूं।

ममता से भरा जीवन बताऊं,

किसे अपनो में, ढूंढती

जीने का राह हर पल।।


 देती है

किंतु अपने आपको पीड़ा देती हुईं भी

अपने रिश्तों को सजाती  हूं।।


 तुम्ही हो प्रीत मां 

तुम्हें ही  मेरी पूजा मां।

तुमसे तो प्यारा कोई दिखेना दूजा मां ।।

किस से कहुं मैं दिल की बात मां तेरे बिन नही कोई  दूजा मां।।

मन की सारी ही बात, किस से कहूं मां कोई नहीं हमारा मां पकड़ो हाथ ओ मैया मैं मझधार में अत कई



रख दो मेरे सर पर हाथ, चैन मैं पाऊँ मां ओ मां.....

ओ मां बसी हो तुम ही तो , हर पल  मन में दिल में,

आए खुशबू हर लम्हे मां तेरी ममता की।।

दर्श की प्यास बुझा दो मां ,

तू दर्श अपने दिखा दो मां

ओ मां ओ मां।।

व्यथित मन पे कुछ बूँद कृपा की  बरसादे  मां ,मां।।

सांसे तेरा ही नाम,  पुकारे मां आजा मां, आजा मां,

मूरत तेरी ही सूरत , हृदय में रहती


 मत मांगो इंसान से,

 मांगो खाटू श्याम से।।

चढ़े बोझ जै संसार  का जो मांगा इंसान से।।

थोडी सी जिसमें करी मदद ,

बातें करें हजार।।

बदले में ना किया कभी तो, मिलता नहीं सम्मान।।

इसीलिए कहती हूं।।

मत मांगो इंसान से, मांगो खाटू श्याम से।।

मंडप पर चढ़ना दौलत का खुमार, भूलता है, मानवता को।

समझ बैठा खुद को भगवान।।

इसलिए प्रेम से कहती हूं।।

जो,भी तुमको मांगना,

 मांगो खाटू श्याम से।।

 उपकारी ब्रह्मांड विधाता, 

सारे संकट वही मिटता।।

भरत झोली खाली बिना एहसान के।।

इसलिए फिर कहती हूं,

मत मांगो इंसान से ,मांगो खाटू श्याम से।।

रोम रोम में श्याम हो, श्याम हो,,  श्याम हो, श्याम हो,  श्याम हो, 

कलियुग के वरदान हो,ओ मेरे भगवान हो।।

ओ तीन बाड़धारी ,शीश के दानी आई शरण खाटू श्याम के।।

जय बोलो, खाटू श्याम की 

जय बोलो खाटू श्याम की

 जय बोलो खाटू श्याम की

 जय बोलो खाटू श्याम की।।


 कहा से बो आ गया जिंदगी

मैं ।

जिंदगी चली  जा रही थी।

पता ही नही  चला कब बो  जिंदगी में समा गया बोआजनबी 

का चेहरा खास बन गया।

उसके आने की आहट नहीं थी, मेरे जीवन मैं।

बिना आहट के ही बो आ गया।।

 दिल नही था बो

अब दिल के बहुत करीब आ गया 

कब प्यार पनप गया उसके लिए।

बो पल ढूंढ रही हूं मैं,

ना चाहते हुए भी जीवन  का हिस्सा बनने लगा।

उसे देखना अच्छा लगने लगा

मुझसे एक पल दूर  जाना भी मुझे खलने लगा ।।

अब तो सारा दिन  उसी के साथ गुजरने लगा।

एक पल भी आखों से ओझल ,मुझे पल पल खालने लगा।

अब लगता हाथों की लकीरों को बदल दू।

और लड़ लू किस्मत से जंग

हर पल इन्तजार इंतजार रहि ता उस का  जैसे बो हमारे लिए बना हो ।

अब नहीं है किसी  हक ।

चुभन होती उसे किसी के साथ 

भी एक पल देखकर।।

दर्पण देखू  तो बस बो ही नजर आता।।

 हसू तो उसकी हंसी और  कुछ नही बो एक पल के लिए भी दिल से नहीं जाता।

जिंदा थी तो अब उसके लिए अब उसमे ही सारा जहां नजर आता।निगाहे खोजती हर पल उसे ही।

बो हटता नही  एक पल भी।

इस कदर  प्रेम में उससे  किए जा रही।।


हरपल 

उत्सुक रहती सांसे उस से मिलने को  ढूँढ रही  निश्चल,

पल-पल 

हर खुशी बो मेरी क्यो बन गया।

उसकी रंगत का  रंग  मुझे चढ़ गया।


 अन्नदाता इस दुनिया में क्यों रहता परेशान।

आज पूछूं में सबसे क्यों रहता परेशान रे ,

 हे हे हे हे हे हे,,,,, इसके  बिना ना चलता जीवन ,

 दुखी धरा  का भगवान रे।।

रात दिन में मेहनत करता,

क्यों नहीं मिल रहा कोई लाभ।।

कभी प्रकृति  मार सहे,  कभी आवारा पशुओं की।

 कभी मिले न सही कीमत,

 किससे कहें किसान अपने दर्द को।

सब देते झूठी दिलासा है, कोई तो बंधाये उसको आशा ।

उसके बिना चलता ना किसी का जीवन है, 

दिन भर तपता नहीं निकलता  कोई  हल । 

मसीहा बनकर आया किसान महा संगठन जब,

जन-जन से बात की धरा के भगवान की।

मत करो आत्म हत्या हम सभी  तुम्हारे हैं।

बात करेंगे चल कर सरकार से।।

हे हे हे........

क्यो दुश्मन बने धरा के भगवान के । क्यों अन्नदाता बैठे हैं सड़कों पर,

 हम सब मिलकर प्रश्न करें,

 वर्तमान सरकार

जय जवान और जय किसान के 

नारे का फिर मिलकर सम्मान करें।

गांव गांव में घर-घर जाकर रोज  रोजगार दिए  

महिला पुरुष चेहरे पर मुस्कान दिए।

सिलाई मशीन बहनों को देखकर रोजी-रोटी के उपकार किये।

जिस बिटिया की हुई ना शादी उसके पीले हाथ किए।

किसान महा संगठन ने हजारों घर रोशन किये।। 

सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर


 नयनो मे बसाकर तुम

तस्वीर ना देखो।

तस्वीर नही है वो

तेरे दिल की हकीकत है।


सभल कर तू रहना

उन कातिल निगाहों से

हृदय मे बसाकर 

लूट ना ले तुझको

नयनों मे बसाकर यूं तस्वीर ना देखो।


तू जगा रात रात भर

उसे पता है क्या

वो जगती है क्या

उससे पूछा है क्या


धडकता तेरा दिल जिसके लिए


 मतलबी संसार किसको कहोगे अपना।

झूठे हैं सब रिश्ते नाते इस जग के मां ओ मां।

तू ही एक सहारा मां, किससे कहूं दिल की बातें ना कोई सुनता मां।।

तू ही तो साथी है माता के दर तेरा सांचा मां।।

खूब भटकली इस दुनिया में कोई मिलाना अपना  मां।

सब उलझे अपनी उलझन में कोई किसी को  सुलझाएं ना।

बड़ा जटिल दुनिया का मायाजाल है।

उस माया में घिरी पड़ी हूं ओ मां मेरी मां।।

तेरी माया के खेल निराले  खेल निराले,

तोड़ दे सारे बंधन मां ओ मां ओ मां ओ मां ओ मां।

तेरी कृपा बिन हिले न पत्ता तू सब जाने मां।

आज बचा ले इस दुनिया से तू ही संभाले मां,

पूरी तरह से बुरी तरह से फंसी हुई हूं इस दुनिया में मां,ओ मां 

  कृपा करें जगदंबा भवानी मैं हूं तेरी बेटी मां,

भव सागर से तर जाऊंगी तू जो कृपा कर दे मां।।

तू दे दे शक्ति मां तू दे दे शक्ति मां


 अन्नदाता इस दुनिया में क्यों रहता परेशान।

आज पूछूं में सबसे क्यों रहता परेशान रे ,

 हे हे हे हे हे हे,,,,, इसके  बिना ना चलता जीवन ,

 दुखी धरा  का भगवान रे।।

रात दिन में मेहनत करता,

क्यों नहीं मिल रहा कोई लाभ।।

कभी प्रकृति  मार सहे,  कभी आवारा पशुओं की।

 कभी मिले न सही कीमत,

 किससे कहें किसान अपने दर्द को।

सब देते झूठी दिलासा है, कोई तो बंधाये उसको आशा ।

उसके बिना चलता ना किसी का जीवन है, 

दिन भर तपता नहीं निकलता  कोई  हल । 

मसीहा बनकर आया किसान महा संगठन जब,

जन-जन से बात की धरा के भगवान की।

मत करो आत्म हत्या हम सभी  तुम्हारे हैं।

बात करेंगे चल कर सरकार से।।

हे हे हे........

क्यो दुश्मन बने धरा के भगवान के । क्यों अन्नदाता बैठे हैं सड़कों पर,

 हम सब मिलकर प्रश्न करें,

 वर्तमान सरकार

जय जवान और जय किसान के 

नारे का फिर मिलकर सम्मान करें।

गांव गांव में घर-घर जाकर रोज  रोजगार दिए  

महिला पुरुष चेहरे पर मुस्कान दिए।

सिलाई मशीन बहनों को देखकर रोजी-रोटी के उपकार किये।

जिस बिटिया की हुई ना शादी उसके पीले हाथ किए।

किसान महा संगठन ने हजारों घर रोशन किये।।


 कौन करे वफ़ा यहां


किसको कहूं अपना यहां।

दर्द देते सब  यहां,

जग रही  जिसके लिए में,रात के अंधेरे में, पूछूं आसमाँ के तारों से,

नींद नहीं आती कभी  नैनो में, कौन जाकर पूछें, क्या हाल उनका भी है यह।।

 कौन की वफ़ा यहां,

 ना हम कह सके है,न वो कह सके, अपने इजहार के किस्से, सिर्फ किस्से ,

अनकही पहेली सी जिंदगी रह गई , उनको बाहों में सुलाने की तमन्ना तमन्ना रह गई।

मैं जिक्र  करूं तो करु किससे

 इस जमानेको हम दोनों गवारा नहीं।।

कभी झूठे वादे और कसमे खाते रहे वो,

प्यार का वास्ता देते रहे वो।

 हम समझते रहे कि वह वफा हैं वो

बेवफाई हम से करते रहे।।

जो किसी के लिए वह तड़पते रहे।।

कौन भूल थी उनकी जो सजा पाते रहे।

मजनू जो बने वो उसके प्यार में लोग प्यार पे पत्थर बरसाते रहे

वह तन्हा अकेले ही रोते रहे।

किसने खाए पत्थर फिर उसके लिए।।

कोई तो बता प्यार की यह सजा क्यों।

प्यार बस में नहीं कुदरत की देन है।।।

इस जमाने को सजा देने का क्या हक है यहां।।

कैसे यकीन कर लूं अपनी किस्मत में।।

किस्मत पर यकीन करने वाले रोते रहे।।

अब ना रोना मुझे अपनी किस्मत पे है।।

अब पाना मुझे जो मेरा है

लिखूंगी अपनी ही तकदीर अपने हाथों से, अब रव पर भी मेरा भरोसा नहीं।।

सच्चा है या झूठा है यह पता तो नहीं।।

मैंने अपने लिए बिलखते देखा   यहां।।


मैंने आशिकों को आवारा घूमते देखा यहां

कोई पगला ,कहे कोई दीवाना कहे।।

कोई किस्मत का मारा कहता उसे,

प्यार के लिए सब कर दिया कुर्बान ,

अंगारों पर चलते रहे है 

नहीं बना मुझे ऐसा आशिक कोई, इस जमाने को आशिक जरूरत नहीं।।

मैं करूं वफा किसके लिए वो वफा की कीमत समझता नहीं।।


 कोई तो समझे


कोई समझे उसे,

वो दीवाना बना।


वो दीवाना बना,

वो करे न वफा

वो क्यो इतना खफा


वफा सुनने को

तैयार ना,


आंसू उसके वहे,फिर भी ना कहे,

टूटा है इस कदर से वो,


मिलता नही है किनारा।

दिखाये सुंदर सपने प्यार के।।

प्यार के प्यार के।


प्यार मे जब डूबने लगा वो,

उसमे ही खोने लगा,रात दिन,रात दिन,

हां रात दिन,हां रात दिन,


एहसास ऐसे जगाये थे उसने,

रूह मे बसने लगा,

बसने लगा ,बसने लगा।।


कोई समझे उसे

वो दीवाना बना।।

हां दीवाना बना दीबाना बना।


घायल दिल पंक्षी सा तडपे।

पीडा सही ना जाये,

पीडा सही ना जाये।


न कोई बैध है,ना कोई दवा,

दर्द से आह भरे।।


क्यो वहलाती थी दिल मेरा,

मन मानी वो करे यादो से

बाते करता हू और लड पडता हू।

दिया दर्द उसने फिर भी ना माने।

मन माने, माने मन।


 कोई तो समझे


कोई समझे उसे,

वो दीवाना बना।


वो दीवाना बना,

वो करे न वफा

क्यो इतनी खफा


वफा सुनने को

तैयार ना,


आंसू उसके वहे,फिर भी ना कहे,

टूटा है इस कदर से वो,


मिलता नही है, किनारा।

दिखाये सुंदर सपने प्यार के।।

प्यार के प्यार के।


प्यार मे जब डूबने लगा वो,

उस मे ही ,खोने लगा,रात दिन,रात दिन,

हां रात दिन,हां रात दिन,


एहसास ऐसे जगाये थे उसने,

रूह मे बसने लगा,वो

बसने लगा ,बसने लगा।।


कोई समझे उसे

वो दीवाना बना।।

हां दीवाना बना दीबाना बना।


घायल दिल पंक्षी सा तडपे।

पीड़ा सही ना जाये,

पीड़ा सही ना जाये।


न कोई बैध है,ना कोई दवा,

दर्द से आह भरे।।


क्यो वहलाती थी दिल मेरा,

मन मानी वो करे यादो से

बाते करता हूं ।और लड़ पडता हू।

दिया दर्द उसने फिर भी ना माने।

मन माने, माने मन,मेरा मन ।।।


 कैसे करूं  तेरा ध्यान,

ओ भोले बाबा शिव शंकर।

मेरी सुनलो बिनती आज,

ओ भोले बाबा शिव शंकर।

तन ,मन  व्यथित हैं आज,

ओ भोले बाबा शिव शंकर।

कब से खड़ी हूं,तेरे दर पे बाबा,

है, दर्शन की आस बाबा।

शंकर हो संकट के नाशक,

मेरी बिपदा हरो तुम आज।

ओ भोले बाबा शिवशंकर ,

तुम्ही सहारा,तुम्ही किनारा,

तुम पर ही विश्वास ,ओ

भोले बाबा शिवशंकर।

ना मुझमें शक्ति, ना मुझमें भक्ति,

ना वेदों का ज्ञान ,दंभ भरा है ,

इस जीवन में,इस को मिटा दो,

प्रभु आज ओ भोले बाबा शिवशंकर, कैसे करूं तेरा ध्यान, ओ, भोले बाबा शिवशंकर।

        सीता त्रिवेदी, शाहजहांपुर 

स्वरचित भजन


 मेरी माटी ,मेरा देश,

 जिस माटी में जन्म लिया,

 वह माटी नहीं ,मेरी मां है।।

 जिसकी गोद में, हम सबका लालन पालन होता है।

 जिस माटी में कृष्ण-राम, भीमा काजी, कमला नेहरू ,  अरविंद घोष, सरदार पटेल, भगत सिंह,अनसूया, सबका जीवन बीता है। 

जहां वेद, पुराण ,कुरान  ग्रंथों में गीता है।

रंग -रूप ,अलग-अलग, अलग-अलग भाषाएं अलग-अलग धर्म सभी के,

एक माला के हम सब मोती, 

मां भारतीय  के लाल ।

वीरों की यह वसुंधरा है,

कतरा ,कतरा मां मे समाया।

मैं इतराती अपने भाग्य पर,

इस  धरा पर जन्म मैंने, पाया

जिस की गोदी में, हम सब का लालन-पालन होता है ।

पेड़-पौधे जीव -जंतु ।

सभी इसी में पलते हैं ।

सब की मां है,देश  की माटी, खड़ा हिमालय इसी वजह से,

 देता है यह संदेश ,

दुश्मन आना पाये,

कभी हमारे देश।

नदियां करती किलकोरे,

 मां की गौरव गाथा से मैं हूं निशब्द।

जीवन का सब खेल तुम से चलता मां,।।

थकता जीवन का रथ तुम ही, सुलाती आंचल में मां

 सुख -दुख दोनों की साथी, 

मेरी माटी मां, तुझ पर मैं बलिहारी हूं।

सब तत्वों का भंडार तुम्हीं में, संसार तुम ही में समाया है,

मेरी माटी मेरा देश 

तू ही मेरा साया है ।

,तू नहीं ,तो कुछ भी नहीं।

 स्वरचित मौलिक , पंक्तियां सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर


 आजाद की आजादी,

आजाद की आजादी को, सलाम करते हैं।

हर दिन तेरी कुर्बानी को याद करते हैं ।

कम उम्र में गौरो से लोहा ले गए, आजाद हंसते-हंसते चौदह वेत 

सह गए ।

ऐसे मां सपूत को सलाम करते हैं। काकोरी में अंग्रेजों को सबक सिखा गए, 

हम हैं सच्चे भारतीय बात बता गये ।

लाल की मौत का बदला गौरो, से ले गए,

 हर जगह अपने वीरता के चर्चे कर गए ।

ऐसे क्रांतिवीर को सलाम करती हूं।

 चिंगारी आजादी की हर दिल में जगा गए, अंग्रेजों को लोहे के,चने चबा गये।

 देश के खातिर अपना कतरा, कतरा लगा गए ।

ऐसे क्रांतिवीर को सलाम करती हूं चौबीस बरस की जिंदगी में, आजादी का मतलब सिखा गए, हर भारतीय के दिल में एक जज्बा  जगा गए ।

ऐसे आजाद वीर को हम याद करते हैं।

 हम सलाम करते हैं ।

सीता त्रिवेदी शाहजहांपुर

उत्तर प्रदेश


 गुरु है ज्ञान का सागर कोई माने, या न माने , बिना गुरु के कभी कोई कहीं, ना मान पाता है,बिना गुरु के कभी ना, सच्चा ज्ञान पाता है,।

 जीवन में अंधियारा जब,

काली घटा बन आता है

 विचलित होता मन , मस्तिक, तनाव, तन से जब दिखता ,

रास्ता पाने का कोई मुझे साधन, नहीं दिखता है,।

जीवन में हार,ही हार,

मन के मंथन से,जब ,हल नहीं मिलता।

सिखाता युक्त  गुरु ही हैं,

चहरे पर कान्ति लाता हैं।

हमारी हर समस्या को झट से,

सुलझाता है।


मां के रूप में गुरु हमको रास्ता बताती है ।

पिता के रूप में हम को संघर्ष सिखाता है,।

 सही क्या है, गलत क्या है,

 हमें अनुभव सिखाते हैं।

 जीवन की हर डगर पर  हमें  रास्ता दिखाते है ।

बिना गुरु के कोई सफल नहीं बन पाता ।

गुरु है ज्ञान का सागर, कोई माने या न माने,।

    सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर


फौजी भाई की पत्नियों को समर्पित किया रचना

तुमसे लगी है प्रीत पिया जी


तुमसे लगी है

 प्रीत पिया जी

ना दिन कटता 

ना रात कटे जी

आप तो बैठे वार्डर पर

मैं चंदा तारों में तुम्हें ढूंढती।



तुमसे लगी है प्रीति पिया जी

आज हैं करवा चौथ पिया जी

माथे पर बिंदी लाल सजी है

हाथों में चूड़ी खन खन बजती

 सर पर चुनर लाल सजी हैं

 और बालों में गजरा।


पैरों में पायल छन छन बाजे 

करवा चौथ का व्रत करती हूं

आज निहारू चांद 

चंद्र देव से करूं प्रार्थना

मेरा चांद की रक्षा करना।


इतनी विनती सुन लेना

यह मेरे चांद से तू कह देना

तेरी सजनी तेरी हैं

तू पहरा ऊपर देता

मन को शीतल करता है

मेरा पिया भी तेरी तरह ही देश की रक्षा करता है

 मैं खुश हूं आज तुझे देख

 तू तो देखा करता है।


हे चंद्र देव तुम रक्षा करना 

तुम जग की रक्षा करते हो

वह देश की रक्षा करता है

 अमर करो तुम प्रेम हमारा 

सोलह श्रृंगार प्रीतम के लिए

यह व्रत मेरा स्वीकार करो।


 तुम चंद्र देव 

वह चांद हमारा 

तुम ही तो हो एक सहारा हो

बॉर्डर पर सब की रक्षा करना 

कभी नहीं घबराना

उसे जाकर कह दो चंद्रदेव 

तुम जल्दी घर वापस आना।



 सजनी तुम्हारी सजी हुई है

 सिर्फ आप की खातिर

आप लाखों बहनों के 

सुहाग की रक्षा करते हो।


गर्व मुझे होता है तुम पर

 मैं तुम्हारी सजनी हूं

कभी नहीं घबराना रण में

तुम ही मेरा हो अभिमान।


 तुम देश की शान हो

इस सजनी की जान हो 

यह तन तुझ पर ही न्योछावर

,कभी नहीं घबराना



सीता त्रिवेदी 

लेखक रचनाकार शाहजहांपुर।


 आंखें सच बोलती है

बिना कहे सब कुछ पढ़ लेती हैं, आंखें 

नजर और नजरिया दोनों,को देखती है आंखें,

फिर क्यों ना तू इन आंखों का करता विश्वास।

जीवन के सारे राज खोलती है ,आंखें

प्यार हो या नफरत।

खुशी हो या गम।

चेहरे को हर तरफ से आंकती ,है आंखें।

छुपाओ कितना भी इनसे , कुछ  नहीं छुपता  हैं।

हृदय की  गति नापती आंखें।

जमी से आसमां तक देखती हैं आंखें।

कौन क्या है यह सब जानती है आंखें।।

फिर भी शांत रहती हैं आंखें।

प्यार में मुस्कुराये आंखें, दुःख में झील सी डब डबआऐ आंखें,

फिर भी चुप रहती,

 सब सहती है आंखें।

 प्रकृति की हर चीज का रस लेते हैं आंखें,

 बिना कहे ही सब कुछ कह जाती आंखें,।

इसलिए सबसे प्यारी मुझे लगती तेरी आंखें,

बिना छल कपट के अपना बनाती है ,आंखें।

इसलिए जब कोई भी विछुड़ता  बिना कहे सब कुछ कहती है आंखें,।

इसलिए रोती है आंखें

इसलिए पवित्र प्यार ढूढ़ लेती आंखें।

हर सच का आईना होती है

आंखें,

हर भेद को खोलती है आंखें।

सबसे प्यारी है तेरी आंखें

 विन कहे सब कुछ बोलती है आंखें,


 बात नहीं है यह बहुत पुरानी

गुरु गोविंद सिंह की सुनो कहानी

दशम गुरु सिखों के कहलाए

जिसने खालसा पंथ बनाएं

14 युद्ध लड़े मुगलों के सग

वीर योद्धा बहुत बड़े बो दानी

बात नहीं है यह बहुत पुरानी

धर्म की पत रखने को जिसने

पूरे परिवार का बलिदान किया

अलगीदार दशमेश बाजा वाले

जग में ऊंचा नाम किया

नहीं जग में सम कोई बलिदानी

बात नहीं है यह बहुत पुरानी

प्रेम सदाचार भाईचारे का जिसने

सदा ही है संदेश दिया

किया अहित जो अगर किसी ने

तो भी उसे प्रेम किया

भय काहू को देत नहीं नहीं भय मानत आनी

 बात नहीं है यह बहुत पुरानी

सहनशीलता और मधुरता सौम्यता थी जिनकी पहचान

धर्म की खातिर त्याग दिया सब दे दी अपनी जान

धर्म का मार्ग न्याय का मार्ग यह थी उनकी वाणी

प्रेम की खातिर जिसने दी हर पल कुर्बानी

बात नहीं है यह बहुत पुरानी


: जवानी 

लोगो अपनी जीवन कहानी

सुनाते हैं।

फिर जवानी के किस्से सुनाते हैं।

जिसके पीछे तुम दौड़ोगे वो पल दौड़ता , तुम्हें,आज बताते है

ये बताता, जीवन हैं।।

सादगी क्यों दिखावे की जिंदगी से  डर रही है, तू जैसी है वैसी ही अच्छी है, ऐसा क्यों कर रही हैं तू।।

झूठ पर मत इतरा जवानी  मेडीक्योर पेडीक्योर थोडें दिन

की निशानी ।

मत आको कम किसी को सब कृतिया प्रभू की निराली।

इसलिए मत इतराओ अपनी  जवानी पर

जवानी के जोश में,मत होश खो जवानी में।

मत कमजोर समझ किसी को रावण जैसे विद्वान,न रहे भीम से बलशाली , दुर्योधन से अभिमानी।

इसलिए मानव को मानव समझ जवानी।

 ये झूठ का खाका है संसार ये समझ तू जवानी इसलिए मत किसी को सता जवानी।

 

कभी तन, कभी भौतिक  संसाधनों, कभी बनावटी सुंदरता, कभी धन का अभिमान,

 मत कर जवानी।

कर्मों का फल बड़ा महान होता है,

इसलिए सोच समझकर कोई कदम बढ़ाओ इस जवानी में।।

दिन को सूरज होता है ,कौन जानता रात कहां होनी है।

नहीं है।


समय का चक्कर घूमते देर नहीं लगती,  जिंदगी आम आदमी, और विशेष दोनों को  नचाती है।

इसलिए जिंदगी सोच-समझकर जी तू जवानी।


इसलिए मत बन अभिमानी,मत दिल दुखा किसी का, सब देख रहा है ऊपर बैठा इस जग का स्वामी।।

इसलिए प्यार कर सभी से, मत कर ऐसी नादानी ,

जीवन है पल दो पल का आपस में मिल जुलकर खुशी से बिता जवानी।।

कभी 

सोचकर देखिए भूल किससे नहीं होती यहां, फिर ये मस्त बीते गीं जवानी।

सादगी पूर्ण सही से जीवन बिता 

जीवन का भरोसा नहीं है।।


 बात दिल की मान कर तो देखो

सत्य पथ अपना कर देखों, मिलेगी हर मंजिल तुम्हें जरा संघर्ष करके देखो।।

व्यर्थ संशय व्यर्थ बातें,कुत्सित भाव त्याग कर देखों।

बनेंगे सभी अपने जरा अपना बनाकर देखो, दिल की बात मानकर देखो।

दिल कहता  सच सदा कभी  अपने को अन्दर झांक कर देखो।।

सत्य पथ साधु संत की संगत, अपनेको सन्मार्ग पर चलाकर देखों मिट जाएंगे सारे कष्ट 

कभी अपना कर देखो।।

निति साथी मिले सही और गलत,

उनको उत्तम रहा दिखाकर देखो।

बिखरे शूल है धरा पर जरा फूलों को बिछाकर देखो।। 

बन जाएंगे सभी अपने यहां जरा दिल से बनाकर देखो।।

कोई नीचा दिखाएं तो दिखाने दो,

 झगड़े तो झगड़ने दो , अपना मन शांत बनाकर देखो मिट जाएंगे झगड़े सभी जरा दिल की मान कर देखो।।।

हां सच हैं कि दुनिया में अलग-अलग मत भेद भरे,

 मगर अक्षर बही है शब्द बनाकर देखो, बन जाएंगे मनमीत जरा दिल मिलाकर देखो।।

सबको आगे रहने की आदत होती है, जहां पर 

आप जहां हो अपने को प्रथम मानकर देखो ,कोई आगे न होगा कोई पीछे न होगा ।।

कभी यह  दिल से मानकर देखो, 

मिट जाएंगे सारे गिले-शिकवे यहां सभी को अपनी नजर से अपना बनाकर देखो।।

अपनी मन मर्जी से पहले, दूसरों की मर्जी जानकर देखो,

खुश हो जाएगा हर पल ,खुशनुमा झोली में खुशियां भर के देखों ,

खुशियां भर के देखो।।।।

कभी अपने नजरिए को बदल कर देखो।।

मिट जाएंगे सारे गिले-शिकवे सभी उसको अपनी नजर से देखों 

उसकी मजबूरी समझकर देखो छोड़िए बेमतलब की तकरार को ,थोड़ा सा प्यार बांटकर देखो।।

थोड़ी दिल की बात मानकर देखो।

सारा जहां अपना हैं ।

ये जानकर देखो।।

मिलेगा बड़ा सकून‌ दिल से मानकर देखो।।।।।

सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर से


 तुमसे लगी है

 प्रीत पिया जी

ना दिन कटता 

ना रात कटे जी

आप तो बैठे वार्डर पर

मैं चंदा तारों में तुम्हें ढूंढती।



तुमसे लगी है प्रीति पिया जी

आज हैं करवा चौथ पिया जी

माथे पर बिंदी लाल सजी है

हाथों में चूड़ी खन खन बजती

 सर पर चुनर लाल सजी हैं

 और बालों में गजरा।


पैरों में पायल छन छन बाजे 

करवा चौथ का व्रत करती हूं

आज निहारू चांद 

चंद्र देव से करूं प्रार्थना

मेरा चांद की रक्षा करना।


इतनी विनती सुन लेना

यह मेरे चांद से तू कह देना

तेरी सजनी तेरी हैं

तू पहरा ऊपर देता

मन को शीतल करता है

मेरा पिया भी तेरी तरह ही देश की रक्षा करता है

 मैं खुश हूं आज तुझे देख

 तू तो देखा करता है।


हे चंद्र देव तुम रक्षा करना 

तुम जग की रक्षा करते हो

वह देश की रक्षा करता है

 अमर करो तुम प्रेम हमारा 

सोलह श्रृंगार प्रीतम के लिए

यह व्रत मेरा स्वीकार करो।


 तुम चंद्र देव 

वह चांद हमारा 

तुम ही तो हो एक सहारा हो

बॉर्डर पर सब की रक्षा करना 

कभी नहीं घबराना

उसे जाकर कह दो चंद्रदेव 

तुम जल्दी घर वापस आना।



 सजनी तुम्हारी सजी हुई है

 सिर्फ आप की खातिर

आप लाखों बहनों के 

सुहाग की रक्षा करते हो।


गर्व मुझे होता है तुम पर

 मैं तुम्हारी सजनी हूं

कभी नहीं घबराना रण में

तुम ही मेरा हो अभिमान।


 तुम देश की शान हो

इस सजनी की जान हो 

यह तन तुझ पर ही न्योछावर

,कभी नहीं घबराना


 आंखें सच बोलती है

बिना कहे सब कुछ पढ़ लेती हैं, आंखें 

नजर और नजरिया दोनों,को देखती है आंखें,

फिर क्यों ना तू इन आंखों का करता विश्वास।

जीवन के सारे राज खोलती है ,आंखें

प्यार हो या नफरत।

खुशी हो या गम।

चेहरे को हर तरफ से आंकती ,है आंखें।

छुपाओ कितना भी इनसे , कुछ  नहीं छुपता  हैं।

हृदय की  गति नापती आंखें।

जमी से आसमां तक देखती हैं आंखें।

कौन क्या है यह सब जानती है आंखें।।

फिर भी शांत रहती हैं आंखें।

प्यार में मुस्कुराये आंखें, दुःख में झील सी डब डबआऐ आंखें,

फिर भी चुप रहती,

 सब सहती है आंखें।



 प्रकृति की हर चीज का रस लेते हैं आंखें,

 बिना कहे ही सब कुछ कह जाती आंखें,।

इसलिए सबसे प्यारी मुझे लगती तेरी आंखें,

बिना छल कपट के अपना बनाती है ,आंखें।

इसलिए जब कोई भी विछुड़ता  बिना कहे सब कुछ कहती है आंखें,।

इसलिए रोती है आंखें

इसलिए पवित्र प्यार ढूढ़ लेती आंखें।

हर सच का आईना होती है

आंखें,

हर भेद को खोलती है आंखें।

सबसे प्यारी है तेरी आंखें

 विन कहे सब कुछ बोलती है आंखें,


 कोई तो समझे


कोई समझे उसे,

वो दीवाना बना।


वो दीवाना बना,

वो करे न वफा

वो क्यो इतना खफा


वफा सुनने को

तैयार ना,


आंसू उसके वहे,फिर भी ना कहे,

टूटा है इस कदर से वो,


मिलता नही है किनारा।

दिखाये सुंदर सपने प्यार के।।

प्यार के प्यार के।


प्यार मे जब डूबने लगा वो,

उसमे ही खोने लगा,रात दिन,रात दिन,

हां रात दिन,हां रात दिन,


एहसास ऐसे जगाये थे उसने,

रूह मे बसने लगा,

बसने लगा ,बसने लगा।।


कोई समझे उसे

वो दीवाना बना।।

हां दीवाना बना दीबाना बना।


घायल दिल पंक्षी सा तडपे।

पीडा सही ना जाये,

पीडा सही ना जाये।


न कोई बैध है,ना कोई दवा,

दर्द से आह भरे।।


क्यो वहलाती थी दिल मेरा,

मन मानी वो करे यादो से

बाते करता हू और लड पडता हू।

दिया दर्द उसने फिर भी ना माने।

मन माने, माने मन।


 कौन करे वफ़ा यहां


किसको कहूं अपना यहां।

दर्द देते सब यहां,

जग रही  जिसके लिए में, रात के अंधेरे में, पूछूं आसमाँ के तारों से,

नींद नहीं आती कभी नैनो में, कौन जाकर पूछें, क्या हाल उनका भी है यह।।

 कौन सी वफ़ा यहां,

 ना हम कह सके है, न वो कह सके, अपने इजहार के किस्से, सिर्फ किस्से ,

अनकही पहेली सी जिंदगी रह गई, उनको बाहों में सुलाने की तमन्ना तमन्ना रह गई।

मैं जिक्र करूं तो करु किससे

 इस जमाने को हम दोनों गवारा नहीं।।

कभी झूठे वादे और कसमे खाते रहे वो,

प्यार का वास्ता देते रहे वो।

हम समझते रहे कि वह वफा हैं वो

बेवफाई हम से करते रहे।।

जो किसी के लिए वह तड़पते रहे।।

कौन भूल थी उनकी जो सजा देते रहे।

मजनू जो बने वो उसके प्यार में लोग प्यार पे पत्थर बरसाते रहे,

वह तन्हा अकेले ही रोते रहे।

किसने खाए पत्थर फिर उसके लिए।।

कोई तो बता प्यार की यह सजा क्यों।

प्यार बस में नहीं कुदरत की देन है।।।

इस जमाने को सजा देने का क्या हक है यहां।।

कैसे यकीन कर लूं अपनी किस्मत में।।

किस्मत पर यकीन करने वाले रोते रहे।।

अब ना रोना मुझे अपनी किस्मत पे है।।

अब पाना मुझे जो मेरा है

लिखूंगी अपनी ही तकदीर अपने हाथों से, अब रव पर भी मेरा भरोसा नहीं।।

सच्चा है या झूठा है यह पता तो नहीं।।

मैंने अपने लिए बिलखते देखा यहां।।

मैंने आशिकों को आवारा घूमते देखा यहां, सड़कों पे ठोकरे खाते देखा।

कोई पगला ,कहे कोई दीवाना कहे।।

कोई किस्मत का मारा कहता उसे,

प्यार के लिए सब कर दिया कुर्बान ,

अंगारों पर चलते रहे है ।

नहीं बना मुझे ऐसा आशिक कोई, इस जमाने को आशिक जरूरत नहीं।।

मैं करूं वफा किसके लिए वो वफा की कीमत समझता नहीं।।

 नयनो मे बसाकर तुम

तस्वीर ना देखो।

तस्वीर नही है वो

तेरे दिल की हकीकत है।


सभल कर तू रहना

उन कातिल निगाहों से

हृदय मे बसाकर 

लूट ना ले तुझको

नयनों मे बसाकर यूं तस्वीर ना देखो।


तू जगा रात रात भर

उसे पता है क्या

वो जगती है क्या

उससे पूछा है क्या।


धडकता तेरा दिल जिसके लिए

वह धडका है क्या

तू दुखो को झेले वो

तुझे समझती क्या।


किस्मत की अनोखी

दास्ता उसको सुनाई क्या

नयनों मे बसाकर तू

तस्वीर न देखे उसकी।


तन्हा तडपता है

सबके होते हुए तू

क्यो उसकी वे वफाई को 

समझता नही तू

नयनो मे बसाटर तुम 

तस्वीर न देखो।


 नयनो मे बसाकर तुम

तस्वीर ना देखो।

तस्वीर नही है वो

तेरे दिल की हकीकत है।


सभल कर तू रहना

उन कातिल निगाहों से

हृदय मे बसाकर 

लूट ना ले तुझको

नयनों मे बसाकर यूं तस्वीर ना देखो।


तू जगा रात रात भर

उसे पता है क्या

वो जगती है क्या

उससे पूछा है क्या


धडकता तेरा दिल जिसके लिए


सब कुछ छोड कर भी।

अब पाऊ तो क्या पाऊं

दर्द दिल का दिखाऊँ 

तो क्या दिखाऊँ


न समझ है वो

क्या समझाऊं

आशा वो ही तो है

जीवन की

रोशनी की किरण

उसे क्या दिखाऊं


अमीरो की वस्ती मे

मत जा तू अब

खोखले है 

वो प्यार के लिए


उन्हे वही पसंद

जो उन्हे जरूरत

पूरी कर सके

तुम उनकी जरूरत नही हो

प्यार उनको नही

पैसे की भूख है

उनको


घुटना छोड दो

उन पलो के लिए

जो तुम्हारे नही है


नव निर्माण करो जीवन मे

सम्भालो खुद को

दुराचारों से बचो

सदाचारों को अपना लो तुम


तेरे भोलेपन से ज्यादा

अव कुछ चाहिए नही

मत हो निराश

अव किसी और के लिए


वो बात अलग

तू समझना नही चाहता

मेरी वेवसी का इम्तिहान ना है

फिर तुमसे मुलाकात हो ना हो


हर सांस हे तेरी

बस इसे इतना समझ ले


 कहा से वो आ गया जिंदगी मैं।

जिंदगी चली जा रही थी।

पता ही नही चला कब वो  जिंदगी में समा गया 

वो आजनबी का चेहरा खास बन गया।

उसके आने की आहट नहीं थी, मेरे जीवन मैं।

बिना आहट के ही वो आ गया।।

 दिल नही था वो

अब दिल के बहुत करीब आ गया 

कब प्यार पनप गया उसके लिए।

वो पल ढूंढ रही हूं मैं,

ना चाहते हुए भी जीवन  का हिस्सा बनने लगा।

उसे देखना अच्छा लगने लगा

मुझसे एक पल दूर  जाना भी मुझे खलने लगा ।।

अब तो सारा दिन  उसी के साथ गुजरने लगा।

एक पल भी आखों से हो ओझल 

मुझे पल पल खालने लगा।

अब लगता हाथों की लकीरों को बदल दू।

और लड़ लू किस्मत से जंग

हर पल इंतजार रहता उस का 

जैसे वो हमारे लिए बना हो ।

अब नहीं है किसी का हक ।

चुभन होती उसे किसी के साथ भी एक पल देखकर।।

दर्पण देखू  तो बस वो ही नजर आता।।

 हसू तो उसकी हंसी और  कुछ नही

 वो एक पल के लिए भी दिल से नहीं जाता।

जिंदा थी तो अब उसके लिए 

अब उसमे ही सारा जहां नजर आता।

निगाहे खोजती हर पल उसे ही।

वो हटता नही  एक पल भी।

इस कदर प्रेम में उससे  किए जा रही।।

हरपल 

उत्सुक रहती सांसे उस से मिलने को  ढूँढ रही  निश्चल,

पल-पल 

हर खुशी बो मेरी क्यो बन गया।

उसकी रंगत का  रंग  मुझे चढ़ गया।


 मन था  परेशान बताए कैसे।

आप से  मिला प्यार  बताए कैसे।।

हर बात को हमनें , दर किनार किया है।

आज की मधुर  घटना  बताएं कैसे।।

समय बदला, बदली किस्मत, बदले नज़ारे।

अब बदलते समय की बात, बताऐं कैसे।

हर लम्हा जिसके  बिन न बीते

वो राज बताएं कैसे।।।

उस को बिन देखे  मछली सी तड़पू।

वो पल बताएं कैसे।

कैसे मिली है  प्रेम निगाहें।

बो मिलन बताएं कैसे।

वो प्रेम है उसका और मेरा सबको बताएं कैसे।।

उसकी झलक न मिले 

खुद को जिंदा ना माने वो

 बताएं कैसे।।

उस पर  हर एतवार प्यार का

वो न मिले तो हो परेशान ।

दिल की धड़कन है वो 

बताए कैसे।।

उसके अरमा हो तुम ,अधूरी कहानी हो तुम

 ये बात बताए कैसे।।

आप को लगता हम अपने नही।

मुझे नहीं लगता बताएं कैसे।

ये दस्ता कब शुरू हुई क्यू शुरू हुई   राज पता ही नही तो बताएं कैसे।

जिंदगी ठहरी थी अब चलने लगी 

वो मंजिल है उसकी   बताएं कैसे।।।

रूह कब बन  गया है बो ।

उसको बताएं कैसे।।।


 कोई मिलने की वजह दे दो तुम

रात दिन तड़पती हूं तुम्हारे लिए

मत रूठों इस कदर

गिले शिकवे की वजह दे दो ना

यूं खामोश होना तुम्हारा कही मार डाले ना मुझे

दिल में छुपी हसरतो को कहिने की वजह दे दो ना

नहीं भाती तुम्हारी बेरुखी अब हमें

थोड़ी खुशियों की वजह ढूंढो ना

काश मेरे दिल में भी तेरे दिल के जैसा दिल होता जितना तू बेखबर है मैं भी ऊतनी बेखबर होती 

जाने क्यों सांसे आती तेरी सांसों से 

मुझे भी जहां से जाने का हक दे दो ना  

जुबां है फिर भी खामोसी से

सब्र रखने का हक मुझे दे दो तुम

क्यों किए वादे तूने 

उन्हे निभाने का हक मुझे दे दो ना

इश्क़ में हद से बेहद इंतज़ार कर ने लगे थे क्यूं दोनों ,

अब मिलने की वजह दे दो ना

जीवन बीत रहा कसमकस मे

अब ये बंदिशे खत्म करने की वजह दे दो ना

भूल जाओ वो पल जिनसे रूठे है आप

अब मानने की वजह दे दो ना

दर्द बहुत है दिल मे एक कॉल करने की वजह दे दो ना।

जय बोलो शं नो वरूण:

नील श्वेत बस जिन पेश शोभित

जो भारत मां के वीर सपूत 

समुद्री मोर्चे  पर शांति बनाए।


जय बोलो शं नो वरूण: ।।

अरब सागर बंगाल की खाड़ी 

हिंद महासागर की बलिहारी ।

तटी की सुरक्षा करती नौ सेना

सदा बसत जल की धारा में।।


जय बोलो शं नो वरूण:।

थर थर कांपे घुसपैठी

देख जल के सख्त प्रहरी ।।

सभी सुरक्षित भारतीय जन है।

भारत मां के लाल

जल को रखते अपनी मुट्ठी में ।

आंधी तूफान से लड़ जाते ।

नहीं कभी घबराते हैं।

रोक सकी ना इनको लहरें

यह लहरों में बसे हैं ।

जो आये  देश दुश्मन ,

कहर से बरसते हैं ।

नमन करू इन जावाजों को

जो सीना  ताने खड़े हुए।

सुसज्जित पनडुब्बी जलियांन

और आधुनिक हथियारों  से ।

अपने प्राणों को न्योछावर करने को रहते

 जो हर पल तैयार।

जय बोलो शं नो वरूण:

गिले  सिकबे को जीवन में हटा कर देखो

रिश्तों में कुछ हल्की नरमी लाकर देखो 


नीरस मत बनाओ ज़िन्दगी को थोड़ा मुस्कराकर देखो।

मिली है बढ़ी मुस्किल से ये जिंदगी जरा परमार्थ कर के देखो।।।

मिलेगी सारी खुशियां तुम्हे जरा खुशी लुटाकर देखो।


हम ना भागे परछाइयों के पीछे

जरा सच्चाई समझ कर देखो।।


सुकून को आदत बनाकर देखो।

बनेंगे बेगाने भी यहां अपने ज़रा 

 दिल में बसाकर देखो।।


ज़िन्दगी यूँ ही न बीत जाये गिले शिकवों में कही।।

बेचैनियों को  राहत बनाकर देखो।

बदल रहा वे वजह मौसम यहां।

जरा मौसम मे रिश्तों की लियाकत देखो।।


बेवजह मत कसो ताने किसी पर

उसकी वजह समझ कर देखो।।


सुलझ जायेगे सारे मसले  यहां,

उसकी जगह खुद को रखकर देखो।।


मोहब्बत कुर्बानियां है लाखों देखो।

कभी किसी से मोहब्बत कर के देखो।।


: पग- पग नित संघर्षों से जिसमें नऐ आयाम गढ़े।

अपने विराट व्यक्तित्व से जिसने भारत में नये इतिहास लिखे।

थें,मजबूत इरादों के पक्के ,

 राजनीति के घोर विरोधी भी रहते थे ,भौंचक्के,।

एक नहीं अनेकों क्षेत्रों में जिसने महारथ हासिल की।

साहित्यिक कलात्मक,

समृद्धि और 

समरसता के सच्चे पालक थें।

पग पग निति संघर्षों से जिसने

 नएआयाम गढ़े।

मीठी वाणी कोमल हृदय 

शीतल मन ,और स्वच्छ

सरल विचार हर वर्ग से पायें

अनंत गहराइयों से प्यार ।।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक बनकर अविवाहित रहने का संकल्प लिया।

राष्ट्रधर्म पांचजन्य अर्जुनवीर राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत पत्रिकाओं के  संपादन का कार्य किया।

देश के तीन बार प्रधानमंत्री फिर भी नहीं गुमान किया।

धोती कुर्ता खादी सदरी देशी परिधानों से प्यार किया।।

तीन- तीन  भाषाओं का ज्ञाता फिर भी 

हर सभा में हिंदी से उद्बोधन दिया।

राष्ट्रभाषा हिंदी को सम्मान दिया।

कारगिल की चोटी पर जब शत्रु ने घुसपैठ किया, मुंह तोड़ जवाब दिया दुश्मन को ,

 कारगिल को कब्जा मुक्त किया।।


स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना से चहुंदिश विकास किया,।

कावेरी जल विवादों का पल भर में समाधान किया।

संरचनात्मक ढांचे ,कार्य दल, सॉफ्टवेयर विकास प्रौद्योगिकी विद्युतीकरण आयोग का गठन किया। राष्ट्रीय राजमार्ग, हवाई अड्डे ,टेलीकॉम, बुनियादी ढांचों को मजबूत किया निर्धनता उन्मूलन का कार्य प्रारंभ किया अटल ऐसा नाम जगत में,

जिसका कोई दुश्मन ना,

वैचारिक मतभेद भले हो

किसी के मनभेद ना,

सच में  अटल अटल थे। 

अजातशत्रु भीष्म  लोग इन्हें कहते थे।

पग पग से नित् संघर्षों से जिसने नये आयाम गढ़े।

पेड़े के दीवाने ठंडाई के शौकीन रहे मनमौजी स्वभाव ,चेहरे पर मीठी मुस्कान रहे।

भारत रत्न भले मिला को उनको बाद में।

वो पहले से ही हर दिल के भारत रत्न रहे।

हार जीत से नहीं घबराते,

जब जनसभा संबोधित करते उनके व्यक्तित्व को सुनने हिंदू ही नहीं बड़े-बड़े मुस्लिम जन

 आते।

कहां तक लिखूं महिमा आपकी अपार रही आज भी आपकी याद हर दिल में बेशुमार रही हर दिल में बेशुमार रही ।।।

आज आप के जन्म दिवस को सुशासन दिवस में मनाते हैं।


सीता त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर


 जन्म दिवस के पावन अवसर,

पर गीत गाते हैं , खुशी मनाते हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रणेता,आदर्श पुरुष महामना की उपाधि से विभूषित, भारत के आदर्श महापुरुषका जन्म दिवस मनाते हैं।

 पंडित मदन मोहन मालवीय कहते हैं।।

पत्रकारिता वकालत समाज सेवा भारत माता की सेवा अपना जीवन अर्पण कर डाला।

जो स्वयं करते वही करते थी

विद्यार्थी को शिक्षित करना अपना धर्म बना डाला सत्य ब्रह्मचर्य व्यायाम आत्म त्याग देशभक्ति सदा समाहित थी।

सरल और मृदभाषी कभी रोज कड़ी भाषा जीवन में प्रयोग किया ना ऐसे कर्म ही उनका जीवन था। आन मान मर्यादा का जिसे हर पल ध्यान किया।

भारत माँ के लाड़ले आप

देश हित में सारे काम किये।

जब तक सूरज चाँद रहेगा।

मालवीय जी आपका नाम रहेगा।

जन्म पाया धरा पर सफल जीवन किया, बड़े-बड़े कामों से जग में ऊंचा नाम किया।।।।

अच्छा जगत में अपने शिक्षा जगत में अपने नए-नए आयाम दिए भारत नहीं पूरे विश्व की पहचान बनें।

गर्व करें सब भारत वासी, आप सा सपूत धरती मां ने पाया।

आज सिसकती, सीता भी

ऐसा लाल  क्यों है गमायां ।।

आज कुछ कहते हैं

जीवन का कड़वा सच

सब बोलते समानता है,

हम पूछते कहा बो सच लिखते है।

आज भी लड़कियों को बोझ समझा जाता बो सच लिखते है।

बेटी को संतान नहीं पराया धन  कहिते बो सच लिखते हैं।

बेटी ससुराल में परेशान शादी के बाद तो मां बाप पूछते नही मगर धीरे से कहते आपस मे, निपटो आप ,सच में पराया कर देते

वो अधरों का मौन लिखते हैं।।

भाई बहिन कहने को सब अपने है,नही चूकते ताने देने  वो कड़वा 

सच लिखते है।।

महिला आज भी है दिल बहलाने  खिलौना वो सच लिखते है।।

सब की सेवा करे ,अपने हक में बोल दी तो कुचाल कुलटा जाने क्या क्या उपाधियां

हृदय बिदारक पीड़ा लिखते हैं।।

पुरुष काम करे तो महान सब का पेट पालक सब सेवा में लग जाते हैं ।

उसके आने का  इंतजार सब बेसब्री से करते है।

महिला काम करे तो नक चढ़ी घमंडी साथ में घर के सारे काम करे फिर भी संसार कटाक्ष,उसी पर करे हमेशा अपने सपनो को कुचले चुप चाप सब साहिती 

 वो सच लिखते है।

रिश्तों के इस माया जाल में, अधिकतर दोष महिलाओं को ही दिया जाता वो सच लिखते हैं

पुरुष करे तो शान स्त्री करे बही तो ,सभी करे बदनाम वो समाज का कड़वा सच लिखती हूं।

मन विचलित है बहुत ।

लाखो है इसमें प्रश्न

थोड़े शब्दो से पूरा जहान लिखती हू।

ईश्वर से प्रार्थना करती हूं ,सच मैं 

भेदभाव समाप्त खुश हाल करो।

मानव जीवन को।।

मन व्यथित हो फिर कभी ना ऐसा संसार बनाने की  फरियाद लिखती हूं।

 इस छोटे से जीवन की एक बड़ी उम्मीद  लिखती हूं।

कोई छोटा नहीं होता है रिश्तो में बस सही से मर्यादा का अनुपालन हो एक दूसरे के लिए, यही छोटी सी भेंट लिखती हूं।


     मौसम सुहाना है,दिल ये दीवाना है।

तू पास नही मेरे,

यही  अफसाना है।

ओ साथियां, ओ साथियां

तेरे विन जी ना लगे, साथियां

आजा रे,आजा रे,आजा रे। साथिया ओ ..साथिया.. ओ

कोयल सी कुहकू में 

मछली सी तडपू में

तुझे मिलन की आस 

ओ साथियां, ओ साथियां।।

मेरा बुरा हाल है।

जो मेरा हाल क्या,तेरा भी ऐसा है।

ओ साथियां, ओ सांथिया।

मौसम बेईमान है,जीने नही देता 

तन लेता अगडाई है,

ओ साथिया ओ साथिया।।।

आजा रे आजा रे हरजाई हर 

तेरे बदन की खुशबू,

मेरे बदन मेरे बदन से  आती है,  तेरे मिलने की प्यास अब तो सही जाती है.....ओ साथिया ओ साथिया

ओ मेरे मन मीत रे।

ओ मेरे गीत


 मिली जो निगाहे उनकी निगाहों से

तो कुछ यूं सिलसिले हो गए

इरादा तो सिर्फ दोस्ती का था

मगर हम इश्क के घायल हो गए।

क्या उन्हे पता है,आप जिनसे निगाहें मिला बैठे

आप तो मोहब्बत कर बैठे

या उनको भी मोहब्बत तुम से है।

मोहब्बत की हकीकत जाने बगैर

क्यो बेबफा से मोहब्बत कर बैठे

अरे उसकी फिदरत है दिल लगाना और तोड देना

क्यो बेबफा से मोहब्बत कर बैठे।

तुम्हें तडपना ना है तो

तडपो यहां उसको तडपने की आदत ना।

बनकर मेंरी रूह बो मुझे सताती है फिर तन्हा  मुझको क्यो छोड़ जाती है।।

दिल ही दिल में हल्के बोल जाती है तू ठहर जरा मैं लौट के आती हूं।

इस तरह से मुझे हर पल सताती हैं है क्यों करती है वह बेवफ़ाई फिर समझ ना आता है।।

मैं सुकून की चाह में उसके पीछे भटक रहा हूं।। 

और अब जीने की तमन्ना ना मुझे मर मर के जी रहा हूं।

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