- अल्हागंज। झोलाछापों को बचाने के लिए पूरे जिले में खेल चल रहा है। लोगों की जान दांव पर लगाने वाले झोलाछाप को कार्रवाई के नाम पर नोटिस तो दिए जाते हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं की जाती। बाद में नोटिस के बदले उनसे वसूली और कर ली जाती है। फिर झोलाछाप अपने बचने के लिए कोई दूसरा रास्ता निकाल लेते हैं। अल्हागंज कस्बें मे डिप्टी सीएम ओ द्वारा करीब 7 लोगो को नोटिस दिये गये थे जिनमे कुछ लैंव संचालक व झौलाछाप डाक्टर मौजूद थे। कुछ दिन बाद जिले पर बुलाकर उन लोगो से चाय पानी कर ली गयी। और खिलबाड़ करने के लिए छोड दिया गया।
नगर में झोलाछाप बिना किसी डर के चिकित्सा व्यवसाय कर रहे हैं। करीब तीन महीने पहले डिप्टी सीएम ओ की ओर से नगर में छापेमारी कर 7 से ज्यादा झोलाछाप को नोटिस दिए गए थे। इसके बाद भी अब तक कार्रवाई नहीं की गई है। इतना ही नहीं झोलाछापों को नोटिस जारी करने वाले जिम्मेदारों को भी नहीं पता कि कितने झोलाछापों को नोटिस दिया गया था और अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई। गांव-देहात की बात छोड़ दें तो नगर क्षेत्र में भी झोलाछाप की कोई कमी नहीं है। चर्चा इस बात की भी है कि नोटिस देने के बाद हर बार की तरह इस बार भी खेल कर लिया गया। इसी के चलते कार्रवाई नहीं की जा रही। कुछ झोलाछाप को बचने का मौका भी दिया जा रहा है।
डॉक्टरों को दवाओं और जांचों में 15 से 35 प्रतिशत कमीशन तय
मौसमी बीमारियां शुरू होते ही नगर में डॉक्टराें, पैथोलॉजिस्ट और दवा विक्रेताओं में कमीशन का खेल तेज हो गया है, जिससे मरीज के घर का बजट बिगड़ रहा है। मरीज को जांच की जरूरत हो या न हो, कई झौलाछाप डॉक्टर दवा लिखने से पहले पैथोलॉजी की जांच जरूर कराते हैं। कारण साफ है- दवाओं और जांचों में डॉक्टरों को 15 से 35 प्रतिशत तक कमीशन मिलता है। ऐसे में बुखार आने पर मरीज को जांच में ही 500 से 700 रुपए की चपत लग जाती है। यदि डॉक्टर ने खून की जांच लिख दी, तो 250 से 450 रुपए का भार और पड़ेगा। इसके बाद भी डॉक्टर कमीशन के चक्कर में जेनेरिक दवाओं की जगह ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं। सामान्य जुकाम, खांसी और बुखार में भी मरीज के डेढ़ से दो हजार रुपए जबरन खर्च करा दिए जाते हैं।
बिना जांच के नहीं मिलता इलाज
ऐसा शायद ही हो कि आपको खांसी, जुकाम, बुखार है और डॉक्टर कई जांच न लिखे। इस मौसम में आने वाले मरीजों की , टाइफाइड, हीमोग्लोबिन जैसी जांचें होना आम है। सूत्रों की मानें, तो पैथोलॉजिस्ट जांच के लिए मरीज भेजने वाले डॉक्टर को 20 से 30 प्रतिशत कमीशन देता है और इसी कमीशन के लालच में जरूरी न होने पर भी झौलाछाप डॉक्टर जांच करवाते हैं। दूसरा कारण यह भी है कि डाक्टरो को मर्ज की जानकारी न होने के कारण लैव रिपोर्ट के आधार पर दबाई चलाई जाती है।