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भक्त की पीर


भक्त की पीर 

मुझसे छीनी मेरी तस्वीर,
बताओ कान्हा ! 
काहें लिखी ऐसी तकदीर।।

जिंदगी की राह कठिन क्यों की ? 
पथ जब चलूं तो, जाय पग फिसली।
काहें बिछाई ऐसी कंकरीट।
बताओ कान्हा ?
काहें लिखी ऐसी तकदीर।।

मंजिल मुख मोड़, मेरे मार्ग से खड़ी।
छूने जब चली तो, पड़ी हाथ हथकड़ी।
मुझे काहें बांधी ऐसी जंजीर।
बताओ कान्हा ?
काहें लिखी ऐसी तकदीर।।

प्रेम पूज्य पंथ की मैं प्रहरी,
ना समझे ये निष्ठुर नगरी।
ठगी गई मैं सरेआम सगरी।
कहां दूं मैं अपनी तहरीर।
बताओ कान्हा ?
काहें लिखी ऐसी तकदीर।।

स्वरचित_मौलिक_अर्चना आनंद गाजीपुर उत्तर प्रदेश

 

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