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रौनक थी घरों में कभी अब तो सिर्फ, खंडहर है


 रौनक थी घरों में कभी

अब तो सिर्फ, खंडहर है

बनाया था जिन शिल्पी हाथों ने

व्याकुलता  में हैं वह कारीगर है। 


रौनक रहती  नहीं अब

सिर्फ बुड्ढी आंखें इंतजार ही करती है

आश नहीं  खंडहर को

दिखाते नहीं टूटे हुए छत को


सुख-साधन की चाहत में

 फंसे है उत्तराखंडी 

बंगला और गाडियां चाहिए

नयी नवेली हसीनाओं को भी

घर देहरादून हल्द्वानी में 

आलीशान चाहिए 

बचानी है शिल्पकला पहाड़ की तो

अब पुख्ता इंतजाम 

कुछ पैनी होनी चाहिए

सरकार चाहें कितना भी

ढिंढोरा पीटने लगे 

पहाड़ के इन घरों की

 उदासीनता कभी मिटती नहीं

रौनक थी घरों में कभी

अब तो सिर्फ, खंडहर है।

     गंगा शाह आशुकवि 

        आकाशवाणी केंद्र नई टिहरी

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