मन की हारजब ठान ली है मन की हार
तो बात बढ़ाना क्यों,
रुको नहीं आगे बढ़ो,
किसीसे कुछ कहो नहीं,
दिल की बात किसी को बताओं नहीं,
प्यार मोहब्बतें, इश्क तो रहेगा,
मगर सागर जैसी गहराई में उतरेगा कौन,
जब मान ली मन की हार,
तो जीवन की सच्ची डगर पर कैसे चलोगे,
प्रेम से भरी सच्चाई की राह कैसे जिओगे,
खुद को खुद से कैसे बचाओगे,
अपनी जिंदगी कैसे संवारोगे।
स्वरचित, मौलिक रचना
दुर्वा दुर्गेश वारिक "गोदावरी"
गोवा
जब ठान ली है मन की हार तो बात बढ़ाना क्यों,
Thursday, December 12, 2024
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