मैं शब्दों से तुमको सजाता रहा
मैं जीता जागता रहा,
सुबह उठते ही चाय का प्याला पाया।
मैंने अपने साथ तुम्हें पाया,
मैं शब्दों से तुमको सजाता रहा।।
खुद को तेरे समक्ष मैंने देखा,
तेरे लिए मैंने हर वचन को निभाया।
प्रीत से प्रीत में अपनों को जोड़ा,
मैं शब्दों से तुमको सजाता रहा।।
दूर से ही तुझको देखता रहा,
इन नशीली आंखों के साथ आंखमिचौली खेलता रहा।
हर खुशियां तुझपे न्योछावर करता रहा,
मैं शब्दों से तुमको सजाता रहा।।
तुम रूठोगी तो मुझे मनाना होगा,
तेरे बिखरे जुल्फ़ों को मुझे संवारना होगा।
बलाओं से तुमको बचना होगा,
तुम जब भी गुस्सा होती रही,
मैं शब्दों से तुमको सजता रहा।।
स्वरचित, मौलिक रचना
कवयित्री, लेखिका
दुर्वा दुर्गेश वारिक "गोदावरी"
गोवा