- गुरुवार, 7 सितंबर को अगस्त्य तारा उदय हो रहा है। दक्षिण दिशा में दिखने वाला सबसे चमकदार तारा है अगस्त्य (Canopus)। जनवरी से अप्रैल तक दक्षिण दिशा में इस तारे की तरह कोई अन्य तारा इतना चमकदार नहीं होता है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, ये तारा भारत के दक्षिणी क्षितिज पर और अंटार्कटिका में सिर के ऊपर दिखाई देता है। ये तारा पृथ्वी से करीब 180 प्रकाश वर्ष दूर है। ये तारा सूर्य से लगभग सौ गुना अधिक बड़ा है। शास्त्रों में अगस्त्य मुनि से जुड़ी एक कथा बताई गई है।
सूर्य के साथ ही अगस्त्य तारा भी करता है वाष्पीकरण
सूर्य के साथ ही अगस्त्य की वजह से ही समुद्रों से वाष्पीकरण होता है। सूर्य जनवरी में उत्तरायण होता है और अगस्त्य तारा मई तक उदय रहता है। इस कारण अगस्त्य तारे के अस्त होने तक समुद्रों से वाष्पीकरण की प्रक्रिया चलती रहती है। जब अगस्त्य तारा अस्त हो जाता है, उसके कुछ दिनों के बाद वर्षा ऋतु शुरू हो जाती है। आचार्य वराहमिहिर के सिद्धांत में लिखा है कि सूर्य और अगस्त्य तारे की वजह से मेघ यानी बादल बारिश के लिए तैयार हो जाते हैं।
अगस्त्य तारे के अस्त होने के बाद मई के अंतिम सप्ताह से मानसून केरल से शुरू हो जाता है और जून के अंतिम सप्ताह में उत्तर भारत में पहुंचता है।
अगस्त्य तारे से जुड़ी धार्मिक कथा
अगस्त्य तारे के संबंध में धार्मिक मान्यता ये है कि पुराने समय में वृत्तासुर नाम का एक राक्षस था। देवराज इंद्र ने वृत्तासुर का वध कर दिया तो उसकी सेना समुद्र में छिप गई थी। रात में असुरों की सेना समुद्र से निकलती और देवताओं पर आक्रमण कर देती थी और फिर समुद्र में छिप जाती थी। सभी देवता समुद्र में असुरों को खोज नहीं पा रहे थे।
तब सभी देवता विष्णु जी के पास पहुंचे। विष्णु जी ने देवताओं को अगस्त्य मुनि के पास भेज दिया। अगस्त्य मुनि ने देवताओं की परेशानी समझी और समुद्र का पानी पी लिया। इसके बाद देवताओं ने असुरों की सेना का संहार कर दिया।
इस कथा की वजह से कहा जाता है कि अगस्त्य तारा समुद्र का पानी पी लेता है। अगस्त्य तारे की वजह से समुद्र से वाष्पीकरण होता है, इसे ही अगस्त्य का समुद्र पीना कहते हैं39।