-श्रीराम कथा को सुनने मात्र से ही भक्त भगवान की कृपा को पा लेते हैं : विजय कौशल महाराज
- शाहजहांपुर। कलश शोभायात्रा के उपरांत कथा मंडप परिसर में स्थापित हनुमान मंदिर में समस्त साधु-संतों के द्वारा पूजन एवं प्राण प्रतिष्ठा की गई। इसके बाद कलश स्थापना एवं रामायण स्थापना हुई। महाविद्यालय की प्रबंध समिति के पूर्व सचिव सुरेश सिंघल के द्वारा जगतगुरु रामानुजाचार्य, वासुदेवाचार्य, विजय कौशल महाराज, स्वामी हरिहरानंद सरस्वती एवं स्वामी अभेदानंद सरस्वती का पूजन किया। मुमुक्षु शिक्षा संकुल के मुख्य अधिष्ठाता स्वामी चिन्मयानंद ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि मेरे जीवन के 75 वर्ष पूर्ण होने के शुभ अवसर पर मुमुक्षु आश्रम में शिक्षा के साथ-साथ धर्म का संगम दृष्टिगोचर हो रहा है।
जगतगुरु रामानुजाचार्य, स्वामी वासुदेवाचार्य के द्वारा श्रोताओं को आशीष वचनों से अभिसिंचित किया गया। श्री रामायण वंदना एवं श्री गणेश वंदना के साथ पावन श्रीराम कथा का शुभारंभ हुआ। श्रीराम कथा का आरंभ श्रीरामचरित मानस की चौपाई "मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सो दशरथ अजिर बिहारी" से हुआ। कौशल जी महाराज ने भगवान की भक्ति को प्राप्त करने के लिए गुरु के आशीर्वाद को परम आवश्यक बताया और कहा कि बिना गुरु की कृपा से भक्तों के लिए ईश्वर की भक्ति का पूर्ण फल नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि भगवान की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल मार्ग प्रभु की कथा का श्रवण है। भगवत कथा को सुनकर भक्त गण बहुत ही सरलता से भगवान की कृपा को प्राप्त कर सकते हैं। एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि एक बार किसी ने विभीषण से पूछा कि तुम तो लंका के निवासी हो, राक्षस राज रावण के भाई हो ऐसे माहौल में रहने के बाद भी तुम राम के भक्त कैसे हो गए। तुम राम की शरण में कैसे आ गए। इस पर विभीषण ने कहा जब हनुमान लंका गए और लंका में वह मेरे निज निवास पर पहुंचे तब मैंने हनुमान के मुख से श्री राम जी की कथा को सुना। हनुमान जी ने श्री राम जी की कथा को इतना तन्मय होकर इतनी मीठी आवाज में सुनाया कि मैं श्री राम की कथा की सुंदरता और उसकी महानता पर मंत्रमुग्ध हो गया। मेरे मन में विचार आया जिस भगवान की कथा इतनी प्यारी है तो वह साक्षात कितने प्यारे होंगे, यही लालसा मुझे भगवान श्री राम जी के चरणों में लेकर आई है। उन्होंने एक भजन गाया- नाम तुम्हारा तारणहारा जाने कब दर्शन होगा, जिसकी महिमा इतनी सुंदर, वह कितना सुंदर होगा। कथा व्यास ने कहा कि राम की कथा और कृष्ण की कथा दोनों एक दूसरे के पूरक हैं अर्थात भगवत की कथा का श्रवण करके भक्तगण भगवान के चरणों को प्राप्त कर सकते हैं जिसके लिए गुरु की कृपा भी अति आवश्यक है। बिना गुरु के मार्गदर्शन के भगवान की भक्ति को प्राप्त करना कठिन है। उन्होंने कहा भगवान का स्वभाव बड़ा कोमल है। कौशल जी महाराज ने भगवान की भक्ति को भक्तगण कैसे प्राप्त करें? इस संदर्भ में अनमोल वचनों से श्रोता गणों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा भगवान की लीला बड़ी अपरंपार है और उसकी कथा को सुनने मात्र से ही भक्त भगवान की कृपा को पा लेते हैं। इसलिए सभी को अपने कानों से कथा को सुनना चाहिए, उसी कथा पर बात करनी चाहिए। वैसे भी बड़े बुजुर्ग भी कहते हैं कि अच्छा ही सुनना चाहिए और अच्छा ही बोलना चाहिए। बोलने के लिए सुनना बहुत आवश्यक होता है, तो जैसा सुनोगे वैसा बोलोगे, तभी हम भगवान के श्री चरणों में तन मन धन से समर्पित हो पाएंगे। हमारा आचरण जिन चीजों से निर्मित होता है उनमें से अच्छी और ज्ञान की बातों का श्रवण या फिर जो ज्ञान की बातें हैं उनका श्रवण इन दोनों चीजों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए हमारा आचरण यदि पवित्र होगा तभी हम निश्छल मन से भगवान की भक्ति में कथा श्रवण के उत्तम मार्ग के माध्यम से उनकी कृपा को प्राप्त कर सकेंगे। राधे राधे रटो चले आएंगे बिहारी गीत पर पंडाल में मौजूद अनगिनत श्रोता भाव विभोर होकर झूमने लगे। कथा का समापन हे राजाराम तेरी आरती उतारू के साथ हुआ। कथा कार्यक्रम में महाविद्यालय की प्रबंध समिति के सचिव डॉ अवनीश मिश्रा, महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ अनुराग अग्रवाल, विधि महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. जयशंकर ओझा, शंकर मुमुक्षु विद्यापीठ के प्रधानाचार्य नरेंद्र शर्मा, मुमुक्षु शिक्षा संकुल के सभी शिक्षक शिक्षिकाओं सहित हजारों की संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे। कथा के उपरांत प्रसाद वितरण हुआ।