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हादसे की दहलीज़ पर डाकघर, कर्मचारी भगवान भरोसे


  • शाहजहांपुर। एक तरफ केंद्र सरकार देश को विकसित राष्ट्र बनाने के सपने दिखा रही है, वहीं उसकी ही एक अहम सेवा डाक विभाग बदहाली के आंसू बहा रहा है। कभी लोगों की ज़िंदगी से सीधे जुड़ा रहा यह विभाग आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। छोटे चौक में स्थित पुराना पोस्ट ऑफिस इसका जीता-जागता उदाहरण है। ये पोस्ट ऑफिस किराए के भवन में चल रहा है, जिसकी हालत इतनी खराब है कि ग्राहक भी उसमें घुसने से डरते हैं। भवन की हालत किसी हॉरर फिल्म के सेट जैसी लगती है सीलन भरी दीवारें, जगह-जगह से उखड़ता प्लास्टर और बदबूदार माहौल। शौचालय की स्थिति इतनी बदतर है कि उपयोग करने लायक नहीं। कर्मचारी डाकघर में रोज़ जान जोखिम में डालकर ड्यूटी निभा रहे हैं। न छत सुरक्षित, न दीवारें टिकाऊ। ऊपर से विभागीय अधिकारियों की बेरुखी ने हालात और भी बदतर बना दिए हैं। किसी भी दिन बड़ी दुर्घटना से इनकार नहीं किया जा सकता।

न चिट्ठी रही, न चिंता!
डिजिटल क्रांति के चलते पत्र व्यवहार लगभग समाप्त हो चुका है। अब डाकघर में गिनी-चुनी सेवाएं ही बची हैं जैसे बचत पत्र, मनी ऑर्डर या रजिस्ट्री। बावजूद इसके यह सेवा आज भी ग्रामीण और कस्बाई भारत की रीढ़ बनी हुई है। लेकिन मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव विभाग की प्राथमिकता पर सवाल खड़े करता है।

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