युगल छवि, उर बैजन्ती माल
युगल छवि, उर बैजन्ती माल,
एहि भांति बसौ मेरो मन नंदलाल।
मोर मुकुट,मुख चंद्र चकोर,
नयन कमल, जो चुराए चित मोर।
किशोरी संग कान्हा ठाणे वृक्ष तमाल,
एहि भांति बसौ मेरो मन नंदलाल।।
श्यामल श्याम, कर्पूर किशोरी,
त्रिभुवन ना देखी ऐसी जोरी।
नयन निहार तुझे हो गई निहाल,
एहि भांति बसौ मेरो मन नंदलाल।।
कटि करधनी, पग पाजेब,
मुरली मन भाए साहेब।
सुध बुध खोए सब, सुन स्वर ताल,
वेणु बजावे, जब बैठ कदम डाल।
युगल छवि उर बैजन्ती माल,
एहि भांति बसौ मेरो मन नंदलाल।।
स्वरचित_मौलिक_अर्चना आनंद गाजीपुर उत्तर प्रदेश