कायर की बारात---
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पद लोलुप,स्वार्थी लोग,
मानों है गिद्ध समान|
जहाँ भी मुर्दा दिख पड़े,
उड़ाते हैं दावत जान||
इस दुनियाँ में तुच्छ लोग,
घड़ियाली आँसू बोहाय|
जिनके घर से अर्थी निकले,
उन्हीं से भोज मंगाय||
वो बड़े-बड़े बातन करे,
जिनकी न कोई औकात|
मार पड़े तो भाग खड़े,
वो है कायर की बारात||
बस फोटो की राजनीति,
रील से चलचित्र बनाय|
मानवता जाए चूल्हे में,
अखबार में फोटो छपाय||
जो है कायर और कपटी,
उनकी संगत बुरी बलाय|
जब आग लगी पड़ोस में,
वो तो मंद-मंद मुस्काय||
रचनाकार:-
श्रवण कुमार साहू, "प्रखर"
राजिम,गरियाबंद (छ. ग.)