'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः'
8 मार्च, दुनिया की आधी आबादी के लिए कुछ विशेष दिन है। महिलाओं को राजनीतिक, सामाजिक,आर्थिक
एवम् सांस्कृतिक रूप से सशक्त बनाने के लिए इस दिन को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। पहली बार 1908 में इसे मनाया गया। हालांकि, सन् 1975 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 8 मार्च को महिला दिवस मनाने की मान्यता दी।
नारी तू नारायणी, तू महान है,तू शिवा, शक्ति, जगत कल्याणी है। ऐसे अनेकों स्लोगन हमें देखने को मिलते हैं ।
कहते हैं -
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः' का मतलब है, जहां महिलाओं की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं. इस श्लोक का मतलब यह भी है कि जहां महिलाओं का सम्मान होता है, वहां दैवीय शक्तियां विराजमान होकर मनोकामनाएं पूरी करने में मदद करती हैं।
लेकिन क्या हमारा समाज वास्तव में महिलाओं को शिवा, शक्ति, नारायणी का सम्मान देता है।
आइए कुछ आंकड़ों पर प्रकाश डालते हैं -
एक रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षित और कार्यरत महिलाओं में 20% को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा, जबकि प्राथमिक शिक्षा प्राप्त महिलाओं में यह आंकड़ा 42% था। कार्य स्थल पर लैंगिक भेदभाव होता है. समान योग्यता के बावजूद भी 62% परिवारों में पति की आय पत्नी से अधिक रहती है.
विशेषज्ञों का सुझाव है कि महिलाओं के लिए सुरक्षित और सहयोगी वर्क प्लेस बनाया जाए, साथ ही घरेलू कार्यों और पालन-पोषण की जिम्मेदारियों को साझा करने की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाए. इसके लिए नीतिगत सुधारों, शिक्षा और व्यवहारिक बदलावों की जरूरत है, ताकि महिलाएं सशक्त होकर हिंसा के खिलाफ आवाज उठा सकें और अपराध बोध से मुक्त हो सकें।
रेप के मामलों में फांसी की सजा का प्रावधान होने के बावजूद 24 साल में पांच दुष्कर्मियों को ही फांसी की सजा मिली है. 2004 में धनंजय चटर्जी को 1990 के बलात्कार के मामले में फांसी दी गई थी. जबकि, मार्च 2020 में निर्भया के चार दोषियों- मुकेश, विनय, पवन और अक्षय को तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी।
भारत में हर घंटे 3 महिलाएं रेप का शिकार होती हैं, यानी हर 20 मिनट में 1.
- देश में रेप के मामलों में 96% से ज्यादा आरोपी महिला को जानने वाले होते हैं.
- रेप के मामलों में 100 में से 27 आरोपियों को ही सजा होती है, बाकी बरी हो जाते हैं.
ये तीन आंकड़े बताते हैं कि सख्त कानून होने के बावजूद हमारे देश में रेप के मामलों में न तो कमी आ रही है और न ही सजा की दर यानी कन्विक्शन रेट बढ़ रहा है।
ये रहे कुछ आंकड़े, जो महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालते हैं।
ये सच है कि पहले की अपेक्षा हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। फिर भी उसे अपने जीवन में कभी न कभी एक महिला होने का मलाल होता है।
ऐसी बात नहीं की वो बौद्धिक स्तर पर पुरुषों की अपेक्षा कमतर है। लेकिन प्रकृति प्रदत्त वो शारीरिक रूप से पुरुषों की अपेक्षा कोमल होती है। जिसका बहुत बड़ा खामियाजा उसे जीवन भर चुकाना पड़ता है। हमारे समाज में पैट्रियार्की भी शायद इसी कारण सदियों से हावी रही।
महिलाओं पर होने वाले अपराध में एक बहुत बड़ा कारण उनका शारीरिक रूप से कमजोर होना और
पैट्रियार्की भी है।
उनको सम्मान देना होगा। उनको आगे आने में सहयोग देना होगा। तभी हम एक मजबूत समाज और देश का निर्माण कर पाएंगे।
मैं प्रेम और करुणा की मूर्ति हूं।
फिर भी प्रेम पाने को,
क्यों दर दर भटकती हूं ?
सदियों से स्नेह से,
सींचा मैंने संबंधों को।
अपनों की खातिर,
बांधा अपने मंजिल के परिंदों को।
संबंधों की चादर,
मैं सपनों में भी सिलती हूं।
फिर भी प्रेम पाने को,
क्यों दर दर भटकती हूं ?
अर्चना आनंद गाजीपुर उत्तर
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः'
Sunday, March 09, 2025
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