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नये वर्ष की नव नव बेला, नव नव कलियां खिली रहें ।


 नये वर्ष की नव नव बेला,

नव नव कलियां खिली रहें ।

नया वर्ष मंगलमय सबको ,

नव नव खुशियां मिली रहें ।


सत्य सनातन संवत्सर से ,

चैत्र मास प्रतिपदा कहो ।

फसलें वायु प्रकाश नया सब ,

 नव चेतन सा प्राण गहो ।


मनसा वाचा और कर्मणा ,

मानवता हो पग पग में  ।

देश प्रेम वा भाईचारा,

मानव मन के रग-रग में ।


संयम सेवा सह संस्कार से ,

संपूर्ण जगत संपन्न रहे ।

शहर ग्राम की हर बस्ती में ,

सुख शांति धन धान्य लहे ।


बालक वृद्ध बहू बेटी सब ,

घर व बाहर संरक्षित हों  ।

न्याय परायण जन प्रिय जन जन ,

सबको सुलभ उपस्थित हों ।


ऊंच-नीच ना भेद किसी में ,

जात पांत ना हो चक्कर  ।

"अनजान" स मानव मानव हों,

 देश प्रेम की हो शक्कर ।


तभी हमारा नया वर्ष यह ,

तन गंगा सा पावन हो  ।

कर्म शुभाशुभ होय हमारा ,

हर दिन माह सुहावन हो  ।।


स्वरचित व मौलिक 

डॉ. आर. बी. पटेल "अनजान "

शिक्षक व साहित्यकार


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