- अल्हागंज-30 मई 2022(अमित वाजपेयी). प्रत्येक साल ज्येष्ठ मास के अमावस्या तिथि को मनाया जाने वाला वट सावित्री पर्व सुहागिनों ने अपने पति के दीर्घायु एवं अच्छे स्वास्थ्य की कामना के साथ मनाया। पारंपरिक श्रृंगार के साथ सुहागिन महिलाओं ने बांस की बनी डलिया में पूजन सामग्री लेकर वट सावित्री पूजन अनुष्ठान विधि विधान के साथ की।
जेठ की भीषण गर्मी के चिलचिलाती धूप के बीच नंगे पैर पूजा की डाली लिये सुहागिन मंदिर और कस्बें के ब्रह्मनान मोहल्ले मे पुराने बरगद के पेड़ तक पहुंची और पूजन की। क्षेत्र के तमाम देवालयों तथा उन सभी स्थलों पर सुहागिन महिलाओं एवं बच्चों की भीड़ देखने को मिला जहां बरगद के पेड़ हैं। नगर के प्रसिद्ध देवस्थान बारह पत्थर , ब्रह्मनान वार्ड के पुराने बगरगद, सहित गांवों में वटवृक्ष के नीचे सुहागिन महिलाओं द्वारा वट सावित्री पूजन हर्षोल्लास के साथ की गयी है। वट सावित्री पूजन के संबंध में व्रत त्योहार की जानकार सोनी वाजपेयी ने बताया कि आज ही के दिन सावित्री ने बरगद पेड़ के नीचे अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज को शास्त्रगत सवालों से प्रसन्न कर वापस प्राप्त की थी। इसी मान्यता के मुताबिक अपने सुहाग की रक्षा व पति की लंबी उम्र की कामना को लेकर सुहागिन वट सावित्री का पूजन और व्रत करती है। उन्होंने बताया कि वट सावित्री पर्व परंपरा, परिवार और प्रकृति प्रेम का पाठ पढ़ाता है। पुराणों में इसे सौभाग्य को देनेवाला और संतान की प्राप्ति में सहायता प्रदान करने वाला माना गया है। इस व्रत का उद्देश्य सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना है। इस व्रत में वटवृक्ष का बहुत खास महत्व होता है। पुराणों के अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेव का निवास है । ब्रह्मा वट के जड़ भाग में, विष्णु तना में और महेश का वास ऊपरी भाग में है । वटवृक्ष पूजन के लिए सुहागिन महिलाओं ने सोलह श्रृंगार से धज कर निर्जला व्रत के साथ पूजन सामग्री में सिंदूर, रोली, फूल, धूप, दीप, अक्षत, कुमकुम, रक्षा सूत्र, मिठाई, चना, फल, दूध, बांस के पंखे, नये वस्त्र के साथ एकत्रित होकर विधि विधान से वटवृक्ष की पूजा अर्चना की और सावित्री - सत्यवान तथा यमराज के कथा का श्रवण किया। तत्पश्चात हल्दी में रंगे रक्षा सूत्र के रूप में कच्चे धागे लेकर बरगद वृक्ष का सात बार परिक्रमा की और पेड़ में धागे को लपेटते हुये हर परिक्रमा में वृक्ष के जड़ में एक चना चढ़ाया और अपने पति एवं संतान की दीर्घायु होने की प्रार्थना की। इस दौरान वट वृक्ष की जड़ में दूध और जल भी चढ़ाया। पूजन व कथा श्रवण के बाद सुहागिनों ने एक दूसरे को सुहाग व श्रृंगार के सामान भेंट किये । सुहागिनों ने बरगद के कोमल अंकुर को चना के साथ निगलकर व्रत तोड़ी। बाद घरों में आमरस और पूड़ी प्रसाद ग्रहण किया।