अमावस्या को धर्म ग्रंथों में पर्व कहा गया है। इस दिन तीर्थ स्नान, दान और पितरों की विशेष पूजा करने की परंपरा है। जब तिथियों की घट-बढ़ होती है। तब ये तिथि कभी-कभी दो दिन तक भी रहती है। इसलिए जब दोपहर में अमावस्या हो उस दिन पितरों के लिए श्राद्ध-तर्पण किया जाता है। 31 मार्च को ऐसा होगा। वहीं, जब सूर्योदय के समय ये तिथि हो तो स्नान और दान किया जाता है। जो कि 1 अप्रैल, शुक्रवार को करना शुभ रहेगा।
गुरुवार और शुक्रवार को अमावस्या होना शुभ
डॉ. मिश्र का कहना है कि सौम्य वार में पड़ने वाली अमावस्या शुभ होती है। वहीं क्रूर वार के साथ अशुभ फल देने वाली होती है। ज्योतिष ग्रंथों में बताया गया है कि सोम, मंगल, शुक्र और गुरुवार को अमावस्या हो तो ये देश के लिए शुभ होती है। इस योग से अन्य अशुभ ग्रहों के असर में कमी आती है। वहीं, बुध, शनि और रविवार को अमावस्या अशुभ फल देती है।
अमावस्या और पितरों का संबंध
सूर्य की हजारों किरणों में जो सबसे खास है उसका नाम अमा है। उस अमा नाम की किरण के तेज से ही सूर्य धरती को रोशन करता है। जब उस अमा किरण में चंद्रमा वास करना है यानी चंद्रमा के होने से अमावस्या हुई। तब उस किरण के जरिये चंद्रमा के उपरी हिस्से से पितर धरती पर आते हैं। इसीलिए श्राद्ध पक्ष की अमावस्या तिथि का महत्व है।
अमावस्या पर क्या करें और क्या नहीं
1. अमावस्या पर सुबह जल्दी उठकर तीर्थ स्नान करने की परंपरा है। ये न हो पाए तो घर में ही गंगाजल मिलाकर नहा सकते हैं। इसके बाद संकल्प लें और भगवान की पूजा कर के जरूरतमंद लोगों को खाने की चीजें और कपड़ों का दान दें।
2. अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव होते हैं और यह दिन पितरों को समर्पित होता है। इसलिए इस पर्व को पूर्वजों का दिन भी कहा जाता है। इस दिन पितरों की संतुष्टि के लिए श्राद्ध-तर्पण भी किया जाना चाहिए। अमावस्या पर जरूरतमंद लोगों को भोजन कराने से यह सीधा पितरों तक पहुंचता है। अगर ऐसा किया जाए तो इससे पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है।
3. इस पर्व पर किसी जरूरतमंद या बेसहारा लोगों को खाना खिलाएं और दान दें। ऐसा करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है। अमावस्या का दिन बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन मांस-मदिरा और नशीली चीजों का सेवन बिल्कुल न करें। ऐसा करने से पितृदोष लगता है।