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श्रीराम कथा में शिव और सती प्रसंग की कथा सुनकर श्रोता हुए भाव विभोर

  • शाहजहांपुर। श्रीराम कथा के तृतीय दिवस में कथा व्यास विजय कौशल महाराज ने सती प्रसंग और पार्वती के जन्म की कथा का विस्तार से वर्णन करते हुए बताया कि जब सीता का भेष धारण कर सती राम जी की परीक्षा लेने गईं, तब राम जी ने सती जी को तुरंत ही पहचान लिया। वे बड़े आश्चर्य में पड़ गए, कि भला सती जी ने किस लिए यह कौतुक किया है, जरूर इसमें कुछ रहस्य है और इस रहस्य के पीछे शिव शम्भू की लीला है। तब शंकर देखेउ धरि ध्याना, सती जो कीन चरित हरि जाना। भगवान श्री राम सती मां को पहचान लेते है और उनको हांथ जोड़ कर प्रणाम करते हैं। अपना भेद खुल जाने पर मां सती लज्जित होती हैं और वहां से अंतर्ध्यान होकर शिव जी के पास पहुंचती हैं। उधर शिव जी सती के इस कृत्य से काफी दुखी हो जाते हैं और राम नाम का सुमिरन करने लगते हैं।


"राम नाम शिव सुमिरन लागे, जानेहु सती जगत पति जागे। तब सती ने शिव जी से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी। शिव ने अपने स्वभाव के अनुरूप अपनी मुस्कान बिखेर दी पर मौन रहे। शिव के मौनव्रत से सती काफी व्यथित रहने लगीं। कुछ समय बाद शिव जी ध्यान मुद्रा से जागे और सती से बोले- "जो प्रभु दीन दयाल कहावा, आरत हरत विविधि जस गावा"। कथा व्यास विजय कौशल महाराज के द्वारा गए गए भजन "यदि नाथ को नाम दयानिधि है तो दया भी करेंगे कभी न कभी" भजन सुन कथा पंडाल में मौजूद श्रोता गण भाव विभोर हो झूमने लगे। कथा के अंतर्गत उन्होंने बताया एक दिन सती को भगवान शिव अपने आराध्य राम की कथा सुना रहे थे तभी आकाश मार्ग से तमाम विमानों को जाते देख सती ने रहस्य पूछा तब शिवजी ने संपूर्ण वृतांत को विस्तार से कह सुनाया। यह जानकर कि पिता दक्ष के घर पर यज्ञ हो रहा है, वह पिता के घर जाने को व्याकुल हो उठी। शंकर जी के मना करने पर भी वह ना मानी। वहां पर शिव जी का बहुत अनादर होता है, यह देखकर सती को क्रोध आ जाता है और वह अपने पिता द्वारा किए जा रहे यज्ञ में आत्मदाह कर लेती हैं ।तुलसी ने लिखा है -कतहुं न देब शंभु कर भागा। सभी देवताओं का यज्ञ में स्थान था किंतु सती के पति शिवजी के लिए कोई स्थान नहीं था। यह सती के लिए बड़ा अपमानजनक था। जब यह समाचार शिव जी को पता चला वह बहुत क्रोधित हो उठे और उन्होंने यज्ञ में आकर यज्ञ को विध्वंस कर दिया, साथ ही दक्ष का सिर काट दिया। तब सभी देवताओं ने शिवजी की आराधना की, तो शिव जी प्रसन्न हुए और उन्होंने दक्ष को बकरे का सिर लगाकर जीवित कर दिया। उसके पश्चात शिवजी कैलाश पर्वत पर समाधि में चले गए। उधर कुछ समय बाद हिमाचल में पार्वती का जन्म होता है। पार्वती के जन्म की बात सुनकर नारद हिमाचल जाते हैं और पार्वती के गुण के बारे में उनके माता-पिता को बताते हैं। कथा के समापन के पश्चात श्री रामजी की आरती "हे राजा राम तेरी आरती उतारूं से कथा का समापन हुआ। कथा के यजमान कर्नल विजय मिश्र सपत्नीक, विजय गुप्ता, वेद प्रकाश गुप्ता अशोक अग्रवाल सपत्नीक, राम चंद्र सिंघल, डीपी सिंह, संजीव कुमार अग्निहोत्री (अध्यक्ष बार एसोसिएशन शाहजहांपुर), एडवोकेट जेपी पांडे, अध्यक्ष बार एसोसिएशन, एडवोकेट दिनेश मिश्रा पूर्व सचिव बार एसोसिएशन, अनूप मिश्रा, पवन गुप्ता, हरेंद्र नाथ त्रिपाठी महाविद्यालय सचिव अवनीश कुमार मिश्रा, प्राचार्य डॉ. अनुराग अग्रवाल, डॉ. प्रभात शुक्ला, डॉ. एसपी डबराल आदि हजारों श्रोता मौजूद रहे। कल की कथा शिव पार्वती विवाह प्रसंग की होगी।

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