- शाहजहांपुर। मुमुक्षु आश्रम में आज श्रीराम कथा के चतुर्थ दिवस में कथा व्यास संत विजय कौशल महाराज ने शिव पार्वती विवाह प्रसंग की कथा भाव विभार हो सुनाई। शिव पार्वती विवाह की कथा सुन कथा पाण्डाल में मौजूद हजारों श्रोता गदगद हो उठे। नारद ने पार्वती के माता-पिता से कहा कि आपकी कन्या का नाम बहुत अच्छा है लेकिन इसका विवाह किसी बेघर बेरूप आदमी से होगा। यह सुनकर पार्वती के माता पिता चिंतित होकर नारद से बाले, हे बाबा मेरी कोमल, सुन्दर व इकलौती संतान का विवाह ऐसे पुरूष से न होकर किसी योग्य वर से कैसे होगा, ऐसा उपाय बताओ। तब नारद बोले-‘देव दनुज नर नाग मुनि कोई न मेटन हार।’ नारद बोले कि आपकी कन्या शिव जी की तपस्या करें, तो इसको शिव की अनुकंपा से अच्छा वर प्राप्त होगा।‘जो तप करे, कुमारि तुम्हारी। भावी मेटि सकई त्रिपुरारी।
नारद तप की बात कह अर्न्तध्यान हो गये। उधर पार्वती के माता-पिता रात भर इस चिन्ता में सो नहीं पाये। यह सोचते सोचते सुबह हो गयी कि पार्वती को तप करने के लिए कैसे समझायेगें। तभी पार्वती आती है और माता-पिता से तप करने की बात कहती है कि एक बाबा सपने में आकर तप करने की बात कह गये थे, सो मैं तप करने के लिए जाना चाहती हूँ। माता-पिता यह सुनकर प्रसन्न हो गये ।पार्वती तपस्या के लिए वन को चली गयी और शिव की कठिन साधना में लीन हो गयी-‘उर धरि उमा प्रान पति चरना,.संवत सहस फूल फल खाये। सार खाई सत बरस गवाये। पार्वती के घोर तप से देव ब्रहा्रवाणी से घोषणा हुई कि पार्वती आंखे खोलो, आपके जैसा घोर तप किसी ने नहीं किया। वर मांगो, पार्वती ने शिव को वर रूप में मांगा। ब्रहा्रवाणी तथास्तु कह आकाश में लीन हो गये। उधर पार्वती के पिता पार्वती को महल में लिवा ले गये। उधर शिव का सती के वियोग में मन नहीं लगा तो वह कैलास छोड़कर चले गये। इधर-उधर जाकर राम कथा सुनते और विचरते रहे। बहुत समय इसी अवस्था में बीत गया। एक दिन स्वप्न में भगवान राम जी आये और बोले कि शिव जी आंखे खोलो। शिव जी ने आंखें खोली, तब राम जी बोले वैसे तो आप हमेशा हमसे वर मागते थे पर आज हम आपसे वर मागने आये है। शिव जी यह सुनकर बोले प्रभु हमको क्यो अपराध मे डाल रहे हो। मैं भला आपको क्या दे सकूगा, आपसे तो मैं हमेशा मांगता रहा हूँ। तब विष्णु जी बोले आप विवाह कर लीजिए, इस पर शिव जी बोले प्रभु एक विवाह कर यह दशा हो गयी अब और विवाह करूगा तो और क्या दशा होगी सोचकर दुखी हूँ। लेकिन विष्णु भगवान ने वर पहले ही मांग लिया था, सो शिव जी को विवाह के लिए राजी होना ही पड़ा भगवान विष्णु अन्तर ध्यान हो गये-अति सुन्दर सुधि सुखद सुशीला, गावई वेद जास जश लीला।। उधर सप्तऋषि पार्वती जी के पास पहुंचे और उन्हें शिव से विष्णु जी शिव जी से विवाह करने का वरदान मांगकर अन्तर ध्यान हुए उधर सप्तऋषि पार्वती जी के पास जा पहुचे और उन्होंने पार्वती को शिव से विवाह करने के लिए कहा। गुरू की आज्ञा मान पार्वती विवाह के लिए तैयार हो गयी। उधर सप्तऋषि शिव जी के पास जा पहुंचे उन्होंने शिव जी से पार्वती के साथ विवाह करने की बात कही और कहा वे आपसे बहुत प्रेम करती है। वे सिर्फ आपसे विवाह करेंगी अन्यथा जीवन भर कुंवारी रहेगी। अपने प्रति पार्वती के प्रेम भाव को देखकर शिव प्रसन्न हो पुनः समाधि में लीन हो गये उधर ताड़कासुर के तांडव से देवता त्राहि-त्राहि करते हुए शिव जी की शरण में जा पहुंचे। देवताओं ने विनती की हे शिव जी आप हमें ताड़कासुर से बचा लीजिए। शिव तथास्तु कह पुनः समाधि में लीन हो गये। देवता समस्या का समाधान न होते देख पुनः शिव जी को समाधि से जगाने लगे लेकिन शिव जी समाधि से विलग नहीं हुए ।तब थक हार कर काम देव को शिव जी की समाधि को भंग करने को भेजा। कामदेव को सम्मुख पाकर शिव जी क्रुद्ध हो गये और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। जिसके तेज से काम देव भसम हो गये। देवताओं में हाहाकार होने लगा। रति करूण विलाप कर शिव जी से अपने पति को जीवित करने की याचना करने लगी। इस पर शिव जी बोले वचन अन्यथा होई न मोरा कृष्ण का पुत्र होई पति तोरा। शिव ने कहा कि द्वापर में कृष्ण का पुत्र तुम्हारा पति होगा। उधर देवताओं ने शिव जी सम्मुख आकर पुनः विवाह करने की याचना की तब शिव तथास्तु कहि प्रसन्न हो अर्न्तध्यान हो गये। उधर शिव जी की बारात सजने लगी उधर पार्वती के विवाह की तैयारियाँ होने लगी। शिव जी की विचित्र अजब-गजब की बारात में भूत पिशाच नाग सर्प देव सपूर्ण श्रृटि सामिल हुई। उधर पार्वती विवाह के लिए नगर सजावट से जगमगा उठा एक दूत शिव जी से बोला-बाबा भांग खाओंगें या दम लगाओंगे अजब-गजब शिव जी की बरात चली शिव जी नंदी पर बैठे। भांग धतूरा खाये सर्प बिछु गले में लटकाये। बारात लेकर हिमाचल पहुँचे भूत पिसाचों की बारात देखकर नगर के लोग भाग गये। जैसे तेसे पार्वती की मां मैना शिव की आरती उतारने आयी। लेकिन शिव के भूत भबूत वाला रूप देखकर आरती का थाल फेक महल में चली गयी। और पार्वती से बोली मै अपनी फूल सी प्यारी बेटी सादी ऐसे भूत से कभी नहीं करूगी। उधर नारद जी प्रभु का यह कोतुक देखकर मैना जी को पूरी बात समझाते है। बात समझने पर मैना जी शिव पार्वती का विवाह बड़ी धूम-धाम से साथ सम्मपन कराती है। शिव पार्वती की बारात होते ही चारो ओर खुशिया छा जाती है। बाराती नाचने गाने डमरू बजाने लगे। मष्तक पै चंदा कि जिसकी जटा मे है गंगा। पाणि ग्रहण जब की न्ह महेशा, हिय हरशे सब सकल सुरेशा।। वेदमंत्र मुनिवर उच्चरहीं जय जय जय शंकर सुत करहीं। शिव पार्वती प्रसंग की कथा यही पर पूर्ण हुई। किशन अग्रवाल हितेश अग्रवाल ने आरती उतारी। कथा स्रोताओं ने रमेश सक्सेना, प्रमोद अग्रवाल, सचिव डॉ. अवनीश मिश्रा डॉ. अनुराग अग्रवाल, डॉ. आलोक मिश्र, पं. राजा राम मिश्र, बाबू राम गुप्ता, धर्मेन्द्र जी, ईशपाल सिंह, ओम सिंह, मनेन्द्र सिंह, अखिलेश मिश्रा, रवि मिश्रा, हरिशरण बाजपेयी, राजीव महेरोत्रा, संतोष पाण्डेय, रानी त्रिपाठी प्रबन्ध त्रिपाठी, ब्रजेश पाण्डेय रामसरे दीक्षित, कैलाश आदि हजारो श्रोतागण उपस्थित रहे।