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मैं एक बेटी हूं। सुनो ! मेरी आवाज़।

 

मैं एक बेटी हूं


मैं एक बेटी हूं।

सुनो ! मेरी आवाज़।

सुनो ! मेरे दिल का दर्द।


कभी कोंख में मिटाई जाती हूं।

कभी प्रेम में समर्पित होती हूं,

तो श्रद्धा बन सौ टुकड़ों में पाई जाती हूं।

तो कभी दहेज की यज्ञ आहुति में जलाई जाती हूं।

मैं एक बेटी हूं।

सुनो ! मेरी आवाज़।

सुनो ! मेरे दिल का दर्द।।


घर की लक्ष्मी तो कही जाती हूं।

पर दीप बेटे के आने पर ही,

जलाया जाता है।

जन्म जिस घर में लेती हूं,

उसी में मुझे पराया कह बुलाया जाता है।

मैं एक बेटी हूं।

सुनो ! मेरी आवाज़।

सुनो ! मेरे दिल का दर्द।।


थोड़ा बड़ी होती हूं,

तो इज्जत का सारा दारोमदार,

हमारे कंधों पर डाल दिया जाता है।

सहमे सिकुड़े जब हम,

स्कूल पहुंचते हैं,

तो फब्तियां तो मनचलों द्वारा कसी जाती है,

पर स्कूल हमारा छुड़ाया जाता है।

मैं एक बेटी हूं।

सुनो ! मेरी आवाज़।

सुनो ! मेरे दिल का दर्द।


पैरों में पंख बांध,

जब मंजिल छूने का मन किया,

तो मां बाप को मना,

मैंने ऊंची एजुकेशन पाई।

घर के हालात तंग देखे,

तो पापा के हाथ बंटाने की कसम खाई।

काम करके जब देर रात घर को निकली,

तो कभी बस स्टैंड पर,

तो कभी टैक्सी, टेंपो में घुरी गई।

हद तो तब हो गई,

जब कभी किसी वहसी ने आकर,

हमारी अस्मत और अस्मिता,

दोनों खत्म कर दी।

पर मीडिया द्वारा मुंह मेरा छिपाया गया।

मैं एक बेटी हूं।

सुनो ! मेरी आवाज़।

सुनो ! मेरे दिल का दर्द।।


स्वरचित_मौलिक_अर्चना आनंद गाजीपुर उत्तर प्रदेश

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