आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में जब हर कोई अपनी निजी सुविधाओं और महत्वाकांक्षाओं में उलझा है, ऐसे समय में समाजसेवा का महत्व और भी बढ़ जाता है। समाजसेवा केवल दान-पुण्य या आर्थिक सहयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवीय संवेदनाओं का वह स्वरूप है जो हमें एक-दूसरे से जोड़ता है और समाज को एक सशक्त बंधन में पिरोता है।
हमारे आसपास कई ऐसे लोग हैं जिन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं की आवश्यकता है। यदि हर व्यक्ति अपने सामर्थ्य के अनुसार आगे आए और एक कदम बढ़ाए, तो समाज में व्याप्त असमानता को कम किया जा सकता है। समाजसेवा का अर्थ केवल बड़े अभियानों में शामिल होना ही नहीं है, बल्कि छोटी-छोटी मदद भी समाज में बड़ा परिवर्तन ला सकती है। किसी गरीब छात्र को किताबें उपलब्ध कराना, किसी रोगी की दवा का इंतजाम करना, किसी निर्धन परिवार को रोजगार के अवसर से जोड़ना—ये सब समाजसेवा के ही रूप हैं।
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में सामाजिक जिम्मेदारी निभाना हर नागरिक का कर्तव्य होना चाहिए। जब तक हम सभी अपनी जिम्मेदारियों को समझकर निःस्वार्थ भाव से कार्य नहीं करेंगे, तब तक सच्चे अर्थों में विकास संभव नहीं है। समाजसेवा से हमें आत्मिक शांति तो मिलती ही है, साथ ही यह आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श भी स्थापित करती है।
समाजसेवा केवल एक कार्य नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है। यदि हर व्यक्ति यह संकल्प ले कि वह प्रतिदिन समाज के लिए कुछ सकारात्मक करेगा, तो एक नई ऊर्जा और आशा का वातावरण निर्मित होगा। यही वह सोच है जो राष्ट्र को मजबूत बनाती है और समाज को संवेदनशील।



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