क्या प्रलय सृष्टि का आ गया ?
क्या प्रलय सृष्टि का आ गया ?
क्या कलयुग घोर, अब छा गया ?
क्या मनुज को महापाप,
अब भा गया ?
क्या ये सब कर,ये मुक्ति पा गया ?
कहीं अहम् की चिंगारी जल रही।
अब रण भीषण हो कह रही।
जिससे नदी लहू की बह रही।
जिसमें मानवता कराह कर मर रही।
क्या अघ, अंधकार हम पर ढा गया?
क्या प्रलय सृष्टि का आ गया?
जो ममता, वात्सल्य की मूर्ति थी।
अपने अरमानों से रिश्ते सिलती थी।
क्यों करुणा उसकी, इतनी सिमट गई?
क्यों हिंसा से जा वो लिपट गई?
क्या पाप, प्रेम को खा गया ?
क्या प्रलय सृष्टि का आ गया ?
सावित्री, जो कभी सत्यवान की ढाल बनी।
यम से भी उसकी जा ठनी।
आज मुस्कान ही, मुस्कान को मार रही।
राजा की भी रानी राज़ रही।
क्या पवित्रता पर पतन, अब गहरा गया ?
क्या प्रलय सृष्टि का आ गया ?
वासना का न, अब कोई अंत रहा।
ये सदा से समाज का दंश रहा।
तब द्रोपदी की, दु: शासन से जंग हुई।
अब मासूम भी, दरिंदगी से नग्न हुई।
क्या आतंक, अब अस्मिता को सहमा गया ?
क्या प्रलय सृष्टि का आ गया ?
स्वरचित_मौलिक_अर्चना आनंद गाजीपुर उत्तर प्रदेश