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एक दुनिया अनकही सी जहां हर रात सजी चमक-दमक के पीछे छुपी एक दुनिया

 

रेड लाइट एरिया की महिलाए

 

                      एक दुनिया अनकही सी जहां हर रात सजी चमक-दमक के पीछे छुपी एक दुनिया अनकही सी,

जहां हर रात सजी महफ़िल,

पर हर सुबह तन्हा गालियां रही वही सी।


ये औरतें, ना कहानियाँ हैं ना कोई कलाकार हैं ।ये हैं ज़िंदा कठपुतलियां जो हर दर्द को खुद ही समेटे इनकी जिम्मेदार हैं ।


न शौक से  ना था ये कोई सपना कभी मजबूरी कभी धोखा दे गया कोई अपना ,ना आई वो शौक से इस में आई वो भी चाहती थी अपनी इज्ज़त ढकना ।


वक्त की मार से जो कभी माँ - बाप की बचपन में थी गुड़ियों, आज इस दलदल में आकर ढूंढती हैं मरने के लिए जहर की पुड़िया ,

आज वही खेल बन गई हैं वक्त के हाथों में जा कर, शरीफ अपनी शराफ़त रखते हैं आज उसे वैश्या कह उसके आंगन में आकर।



एक करुण क्रन्दन, एक वेदना, ये हँसियाँ रोज़ आइनों के सामने,

पर मन रोता है डर जी भर के हैं उसके रग रग नहीं हैं कोई जीवन भर को हाथ थमाने।


हर रात जो सजी हैं दुल्हन सी,

उनके मन में कोई दीया नहीं जलता,

सिर्फ एक रिश्ता बिकता है जो उसके जिस्म की कीमत होती 

पर आत्मा हर बार बिखरता ।


कभी कोई रेखा थी, कभी पूजा अब बस नाम से ही डील होती हैं उसके इज्ज़त की बिकने को,

इसका सच किसी को नहीं दिखता असल जिंदगी नर्क हैं इनकी बहुत कुछ हैं सीखने को ।


कोई बेटी किसी माँ की होती है

कोई माँ किसी बच्चे की होती है पहचाने जाने पर उसका नाम पता चलता है,

सिर्फ देह बन जाती है हर परछाईं उस चौखट की जिस पर बड़े बड़े लोगों के साथ ये शाम ढलता हैं।


ना इज़्ज़त बचा, ना ख्वाब,

पर इंसानियत अब भी ज़िंदा है,

कभी आँखों में देखो,

तो गहरी सागर की गहराई से भी गहरा मानवता हुआ शर्मिंदा हैं।


इंसान को भी चाहिए जीवन की रोशनी हमें चाहिए नई सोच, नया नजरिया,

जहां हर महिला को मिले अपनी असली पहचान,

 कैसे ये भारत था कभी जहां पूजी जाती थी स्त्रियां होती थीं वह भी महान।   


 काजल कुमारी पटना बिहार                                        

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