बसंत का चले बयार री
साथ में होली अलबेली
रंग,गुलाल का सबाब,
ऐसे में कैसे रहेगी नारी।।
सखियों की सजे टोली
एक दूसरे का भिगाऐं,
चोली,बुरा मत मानो री
आया है पर्वश्रेष्ठ होरी।।
छुट्टी भी दे रहा है साथ
फिर क्यूँ टेन्शन है बात
जीवन जिंदादिल नाम
न कोई गिला,सिकवा,काम।।
छुट्टी भी दे रहा है साथ
फिर क्यूँ टेन्शन है बात
जिंदादिल का नाम है
न गिला,सिकवा काम।।
नारी तु भी हकदार है
खुशहाली का,होली है
खेलके रंग,मौजमस्ती
फिर पकाना तु रसोई।।
घर परिवार का धरना
तु ध्यान,बना पकवान
सब खाओ एक संग री
होली है बासंती उपहार।।
प्रेषिका
श्रीमती अरुणा अग्रवाल
लोरमी, जिला मुंगेली, छ, ग,