29 मार्च, मंगलवार को कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि होने से इस दिन प्रदोष व्रत किया जा रहा है। मंगलवार होने से ये भौम प्रदोष रहेगा। मंगलवार को त्रयोदशी तिथि में भगवान शिव की पूजा करने से बीमारियां और हर तरह की परेशानियां दूर हो जाती हैं। शिव पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार प्रदोष व्रत हर तरह की मनोकामना पूरी करने वाला व्रत माना गया है।
हर महीने कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष की तेरहवीं तिथि यानी त्रयोदशी को ये व्रत रखा जाता है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है। इस व्रत में शाम को प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। सूर्यास्त के बाद और रात्रि आने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है। त्रयोदशी तिथि का हर वार के साथ विशेष संयोग होने पर उसका महत्वपूर्ण फल मिलता है।
क्या करें
चैत्र महीने के दोनों पक्षों में किया जाने वाला प्रदोष व्रत महत्वपूर्ण होता है। इन दिनों में भगवान शिव को खासतौर से जल चढ़ाया जाता है। मंदिरों में शिवलिंग को पानी से भरा जाता है। चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष के प्रदोष व्रत में भगवान शिव को गंगाजल और सामान्य जल के साथ दूध भी चढ़ाया जाता है।
भौम प्रदोष का महत्व
प्रदोष व्रत का महत्व सप्ताह के दिनों के अनुसार अलग-अलग हेाता है। मंगलवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत और पूजा से उम्र बढ़ती है और सेहत भी अच्छी रहती है। इस व्रत के प्रभाव से बीमारियां दूर हो जाती है और किसी भी तरह की शारीरिक परेशानी नहीं रहती है। इस दिन शिव-शक्ति पूजा करने से दाम्पत्य सुख बढ़ता है।
मंगलवार को प्रदोष व्रत और पूजा करने से परेशानियां भी दूर होने लगती हैं। भौम प्रदोष का संयोग कई तरह के दोषों को दूर करता है। इस संयोग के प्रभाव से तरक्की मिलती है। इस व्रत को करने से परिवार हमेशा आरोग्य रहता है। साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
प्रदोष व्रत और पूजा की विधि
प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है। यह व्रत निर्जल यानी बिना पानी के किया जाता है। इस व्रत की विशेष पूजा शाम को की जाती है। इसलिए शाम को सूर्य अस्त होने से पहले एक बार फिर नहा लेना चाहिए। साफ सफेद रंग के कपड़े पहन कर पूर्व दिशा में मुंह कर के भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। पूजा की तैयारी करने के बाद उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुंह रखकर भगवान शिव की उपासना करनी चाहिए।
व्रत के लिए त्रयोदशी तिथि के दिन सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं। शिवजी की पूजा और व्रत-उपवास रखने का संकल्प लें। सूर्य अस्त से पहले नहाकर सफेद और साफ कपड़े पहनें। सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें। फिर मिट्टी से शिवलिंग बनाकर साथ में देवी पार्वती की भी पूजा करें।
‘ऊॅं नम: शिवाय’मंत्र जाप करते हुए शिवजी का अभिषेक करें। भगवान शिव-पार्वती को जल, दूध, पंचामृत से स्नानादि कराएं। बिलपत्र, पुष्प , पूजा सामग्री से पूजन कर भोग लगाएं। भगवान शिव की पूजा में बेल पत्र, धतुरा, फूल, मिठाई, फल का उपयोग करें। भगवान शिव-पार्वती की पूजा के बाद धूप-दीप दर्शन करवाएं। कथा और फिर आरती करें। पूजा के बाद मिट्टी के शिवलिंग को विसर्जित कर दें।