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4 जुलाई को विवाह, मुंडन, पूजा-पाठ के लिए अबुझ मुहूर्त:भड़ली नवमी पर बिना मुहूर्त देखे किए जाते हैं शुभ काम


  •  4 जुलाई को आषाढ़ शुक्ल नवमी है। इसे भड़ली नवमी कहते हैं। इस दिन आषाढ़ गुप्त नवरात्रि भी खत्म हो रही है। इसके बाद 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी है, इस तिथि से चार महीनों के लिए श्रीहरि विश्राम करते हैं, इसलिए शुभ कामों के लिए मुहूर्त नहीं रहते हैं। देवशयनी एकादशी से पहले आने वाली भड़ली नवमी को अबुझ मुहूर्त माना जाता है यानी इस दिन विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश या नए काम की शुरुआत जैसे शुभ काम बिना मुहूर्त देखे किया जा सकते हैं।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, अभी आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि चल रही है, इस नवरात्रि की अंतिम भड़ली नवमी रहती है। इस नवमी पर गणेश जी, शिव जी और देवी दुर्गा की विशेष पूजा करनी चाहिए। जरूरतमंद लोगों को धन, अनाज, छाता, जूते-चप्पल, कपड़े का दान करना चाहिए।

भड़ली नवमी पर ऐसे करें पूजा-पाठ

  • गणेश जी को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद हार-फूल और वस्त्रों से श्रृंगार करें। चंदन का तिलक लगाएं। ऊँ गं गणेशाय नम: मंत्र का जप करें। दूर्वा और लड्डू चढ़ाएं। धूप-दीप जलाकर आरती हैं।
  • शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं। पंचामृत अर्पित करें। इसके बाद फिर से जल चढ़ाएं। पंचामृत दूध, दही, घी, मिश्री और शहद मिलाकर बनाते हैं।
  • पंचामृत से शिवलिंग का अभिषेक करने के बाद चंदन का लेप करें। इसके बाद बिल्व पत्र, हार-फूल, आंकड़े के फूल, धतूरा आदि पूजन सामग्री चढ़ाएं।
  • दीपक जलाएं और ऊँ उमामहेश्वराय नम: मंत्र का जप करें। मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष की माला का इस्तेमाल करें। जप कम से कम 108 बार करेंगे तो बहुत शुभ रहेगा। मंत्र जप के साथ ही राम नाम का जप भी कर सकते हैं। शिव जी राम नाम के जप से प्रसन्न होते हैं, ऐसी मान्यता है।
  • शिव जी के साथ ही देवी पार्वती की भी पूजा करें। देवी मां को लाल चुनरी और लाल फूल चढ़ाएं। देवी दुर्गा पार्वती जी का ही एक रूप हैं। शिव-पार्वती की पूजा पति-पत्नी को एक साथ करनी चाहिए। ऐसा करने से घर-परिवार सुख-शांति और आपसी प्रेम बना रहता है।

महाविद्याओं की साधना का उत्सव है गुप्त नवरात्रि

गुप्त नवरात्रि में देवी सती की महाविद्याओं के लिए साधना की जाती है। ये साधनाएं तंत्र-मंत्र से जुड़े साधक करते हैं। इन दस महाविद्याओं में मां काली, तारा देवी, षोडषी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, और कमला देवी शामिल हैं।

नवरात्रि ऋतुओं के संधिकाल में आती है। संधिकाल यानी एक ऋतु के खत्म होने का और दूसरी ऋतु के शुरू होने का समय। एक साल में चार बार ऋतुओं के संधिकाल में नवरात्रि आती है। ऋतुओं के संधिकाल में व्रत-उपवास और संयमित जीवन की वजह से हम मौसमी बीमारियों से बच सकते हैं।

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