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सपने नित नए आने लगे है मन के भाव गुनगुनाने लगे है


 

विषय  मन के भाव

विधा ग़ज़ल 


सपने नित नए आने लगे है 

मन के भाव गुनगुनाने लगे है


आने वाला था वो नहीं आया

कमल के फूल कुम्हलाने लगे हैं


ये उदासी के अंधेरे और तन्हाई,

अब मेरे ख्वाब मुरझाने लगे हैं


जिसको देखो वही उदास हैं अब,

हम पे जो बीती उसे भुलाने लगे हैं


उसके आने की है खुशी ऐसी,

हम भी उम्दा ग़ज़ल गाने लगे हैं।


हमारी गली में वो आए थे इक दिन 

तभी से यहां आने जाने लगे हैं


अब तो हर सिम्त में है तन्हाई,

हम भी ख़ुद से नजरें चुराने लगे हैं


आंखे पथरा गई शाहीन की अब,

आस के दीप बुझ जाने लगे हैं


मौलिक अप्रकाशित स्वरचित 

डॉ संजीदा खानम शाहीन ✍️🌹

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