नवी ना मुझसे, तू इस कदर नासाज होकर कुछ करम,मेरी किस्मत में कुछ तो साज होबेकद्र,बेबस,बेजान मैं पड़ी हूं।ख्वाबों में खोई,खाली हाथ मैं खड़ी हूंमुझपे मेरे मसीहा,थोड़ा तो मुरव्वत कर दे।कमजोरियों से लड़ने की, कुछ तो कुवत दे देसुना है कि सहमे हुए का ,तू शागिर्द हैफिर इतनी तकल्लुफ,क्यों मेरे इर्द गिर्द है?आंधी तुफा न, अपनों से अदावत होरखना रहम इतना,मेरे सुह्रद सदा सलामत होंकयामत का कभी,न मेरी जिंदगी में जिक्र होमेरे खुदा तुझको,मेरी इतनी सी फिक्र हो।।स्वरचित_मौलिक_अर्चना_गाजीपुर उत्तर प्रदेश