शरद ऋतु में दिन की चमकीली धूप में,
रात की गुलाबी ठंड और टिमटिमाते लाइटों की रौशनी से भरा आमोने दिखता है।
हैं ये लोगों का बड़ा प्यारा उत्सव,
मनाते हैं खुशियों से झूम नाचके लोकोत्सव।
कोई कह दे कि कितना अच्छा लगता हैं,
मेले के ये जैसा सुंदर-सा सजा दिखता हैं।
हंसी-खुशी के पल यहां लोग आके जीते हैं,
नृत्य, गायन-वादन से सजा दरबार दिखता हैं।
खेलकूद से इस उत्सव की शुरुआत होती हैं,
कोई जीतता हैं तो कोई हारता हैं।
न तुम रूठों एकदूजे से,
मगर हारजीत तो बनी रहती हैं।
अन्य प्रांतों से कलाकार यहां आते हैं,
जीवन का संगीत अपनी भाषा लोक संस्कृति, लोकनृत्य में दिखाते हैं।
आमोने, कानकोन दुनियां में,
गोवा का नाम रोशन करता हैं।
इस पवित्र धरती पर,
लोकोत्सव धूमधाम से मनाया जाता हैं।
समुंदर के पानी जैसा यह,
निर्मल, स्वछंद, उत्सव मनमोहक होता हैं।
इस सुनहरी धरा पर,
लोक-कला, नाच-गाकर मनाया जाता हैं।
स्वलिखित, मौलिक रचना
दुर्वा दुर्गेश वारिक "गोदावरी"
गोवा