जय जय जय, जय सनातन
तू है पुरा से पुरातन।।
तू समयातीत, तू कालातीत,
त्रिकाल से परे,तू त्रिकालातीत।
न समय बंधे, न काल बंधे,
तू हर पल, क्षण,
हर काल सधे।
तू शाश्वत,सत्य,निरंतर,न्यारा,
बहती तेरी अविरल जल धारा।
तू ही आदि,अनंत,अविचल, अक्षुण्ण,
तू ही पार ब्रह्म,परम पवित्र।
तू आत्म,आनंद,अंतरज्योति प्रतीक,
दिखाता दर्पण,जब मन होता भ्रमित,
वेद,वेदांग सब तुझसे प्रणीत,
गाते हम सब नित तेरे ही गीत।।
सदियों से मिली, ये हमें शाश्वत विरासत,
उज्ज्वल बनाएं,हम इससे अपना अधुनातन,
जय जय जय, जय सनातन,
तू है पुरा से पुरातन।।
स्वरचित_मौलिक_अर्चना, गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश