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संगीत के स्वर बनने से पहले..

 

 

जब कला की कद्र मर जाती हैं,

कलाकार ही कलाकार को

पहचाना भूल जाते हैं।

संगीत के नाजूक स्वरों में

रोटी की महक दूर तलक नहीं आती है

वंचित वर्ग के कलाकार 

दरिद्रता में जीवनयापन नहीं कर पाते हैं,

तब संगीत के स्वर बनने  से पहले

 सब कुछ बिखर जाते हैं।।

 

हुडके की थाप रोटी से छूट जाता हैं,

घर आंगन सुन हो जाता हैं।

कला को कलाकार से ज्यादा,

वंचित कलाकार पराये लगते हैं,

कला थी तो संगीत था,

अब उन्हें ही अकेलापन महसूस होता हैं।

तब संगीत के स्वर बनने 

 से पहले सब कुछ बिखर जाते हैं।।


एकदूजे में नुक्स निकालने लगते हैं,

हर बातों का बेमतलब निकालने लगते हैं।

हंसती हुई जिंदगी, रोते हुए काटने लगते हैं,

तब संगीत के स्वर बनने 

 से पहले सब कुछ बिखर जाते हैं।।


संगीत के नाजूक स्वरों में नमी से जीते हैं,

बीमारी हो या दुख में 

भूखमरी दरिद्रता में 

कलाकारों को प्लेटफार्म 

सभी  छूट  जाते हैं।

कलाकार होते हुए भी,

हर राह पर अकेले चलना पड़ता हैं,

तब संगीत के स्वर बनने 

 से पहले सब कुछ बिखर जाते हैं।।


कलाकारों को मान-सम्मान न देना,

वंचितों को प्रेम न करना।

आभासी दुनिया में कलाकार का 

ख्याल तक न रखना,

तब संगीत के स्वर बनने 

से पहले सब कुछ बिखर जाते हैं।।


गंगा शाह आशुकवि


Akashwani Pauri

Akashwani dehradun 100.5 FM

Akashwani Dehradun

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