आओ हम सभी को लेकर चलें कहीं पर,
बचपन है मेरा बीता उस गांव की जमीं पर,
होता है यारों देखो बचपन बड़ा निराला,
ना भूख की थी चिंता न प्यास का हवाला,
अपनी ही मस्ती में हम बस झूम जाते थे
पेड़ों की डालियां पकड़ भी झूल जाते थे।
कुछ दोस्त भी थे अपने मिलकर सभी हैं खेले,
कभी तो गुल्ली डंडा ,कभी जाते साथ मेले,
कभी कंचे और पतंगों में दिन था गुजर जाता,
कभी दौड़ भाग होती खो खो भी मजा लाता,
जब आइस पाइस खेले तो बड़े मजे होते,
छुप बैठा कोई पीछे उसको जहां में खोजे,
लूडो ओ कैरम बोट भी सब साथ मिलके खेले,
होगी ये क्वीन किसकी सब इसी धुन में खेले,
अब तो ये सारे खेल हैं दिखते नहीं जहां में,
बच्चे भी बड़े हो गए टिकते न एक जगह में,
जब से मोबाइल आया बच्चों के खेल छूटे,
वो रह गए हैं घर पर बिल्कुल ही अब अकेले,
मोबाइल की ये दुनिया है उनको फांस लेती।
हर रोज नए गेम ला ये है जाल डाल देती।
कुछ गेम ऐसे ऐसे आए सुसाइड तक कराए,
मासूम बच्चे हो रहे अब मौत कर हवाले।
बच्चों को है बचाना है सही राह दिखाना,
वो बचपन को जी सके ऐसा उन्हें बनाना।
(मौलिक स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)
"अंजलि श्रीवास्तव अनु "
महमूदाबाद सीतापुर
उत्तर प्रदेश