कैसे बने दस्यु से वाल्मीकि ,त्रेता युग में जन्मे रत्नाकर की गाथा गाते हैंचितवन में मिले सोमाली को वह कथा सुनाते हैं।कैसे दस्यु बने *रत्नाकर*वाल्मीकि की गाथा गाते हैं ।।प्रचेता पुत्र रत्नाकर की हम कथा सुनाते हैं।नाम अनेक पड़े जिनके कश्यप ,आर्यपुत्र चवणी, आदिकवि उनकी गाथा गाते हैं।।भील समाज के कुसंस्कारों से जिसने राहगीरों को लूटा।दस्यु बने रत्नाकर की गाथा तुम्हें सुनाते हैं।।*संगति का असर निराला है यह गाथा तुम्हें सुनाते है*चितवन मे आकर नारद मुनि 'चुंगुल मैं फिर फस जाते है ।पेड़ से देखो बंधे मुनि फिरभी कथा सुनाते हैं ।।नारद बोले मुस्का कर क्या मिलता है इन कुकर्मों से।बोले दस्यु फिर नारद से पालन होता है अपनों का।।मुनि बोले फिर जाकर पूछो क्या साथ कुकर्मों का देगे।स्वजनों से जाकर दस्यु ने पूछा, तो ना में उत्तर पाया है।।भाव विमुख हो दस्यु ने फिर मुनि आज निहारा है।हृदय बदलता देख मुनि ने राम राम का जप दे डाला।।भूल गए वो मंत्र राम का।मरा मरा अब जपते हैं।कैसे बने है दस्यु से वाल्मीकि यह गाथा तुम्हें सुनाते हैं।।अपने ही कर कर्मो की ब्रह्मा से क्षमा मागते है।कुछ बर्षों मैं दस्यु से दीमक बन जाते है।।दस्यु की कठिन तपस्या से ब्रह्मा फिर खुश हो जाते है।ब्रह्मा जी फिर दस्यु को वाल्मीकि - वाल्मीकि बुलाते है।।देखो परिवर्तन प्रकृति का जीवन मे फिर अमृत डाला।दस्यु बने वाल्मीकि, महाकाव्य फिर लिख डाला ।।उसी आदि कवि की गाथा हम तुम्हें सुनाते हैं।संस्कृत महाकाव्य की रचना कर जो आदिकवि कहलाए कहलाते है।।योग वशिष्ठ, अक्षर लक्ष्य और रामायण को लिख डाला ।चौबीस हजार श्लोक लिखे और महाकव्य फिर लिख भी डाला ।।आनंद मग्न क्रौंच पक्षी के जोड़े को।बहेलिये ने आज को मार गिराया है।।मादा पक्षी को देखे ऋषिकरुणा से फिर भर जाते है।उस कोमल हृदय महर्षि की हम गाथा तुम्हें सुनाते है।।महाकाव्य रामायण को झट से जिसने लिख डाला।सूर्य ,चंद्र औऱ खगोल नछत्र विद्या का पाठ पढ़ा डाला।।जनक नंदिनी के वन गमन से लेकर, लव- कुश के जीवन की घटना।फिर सियाराम का परिचय भी, और लव कुश की परम प्रतिष्ठा भी।।लव कुश गान जो गाया है।सीता को सम्मान दिलाया है।।*भाव विमुख हो नगरी में जिस ऋषि का आज गुणगान हुआ।*उन महान ऋषि के चरणों मे, मैं अपना शीश झुकाती हूँ ।उस माहापुरष के जीवन का छोटा सा गान सुंनाती हूँ।।
सीता सर्वेश त्रिवेदी जलालाबाद शाहजहांपुर*उत्तर प्रदेश