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हे!भविष्य के भगवान सुन लो, आज तेरी पहचान बना रहा हूँ|


 भविष्य के भगवान---(चित्र चिंतन) 

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हे!भविष्य के भगवान सुन लो, 

आज तेरी पहचान बना रहा हूँ|

मैं इंसान तो बना सकता नहीं, 

बस जरा भगवान बना रहा हूँ||


क्योंकि अजीब विडम्बना है, 

तुम्हारे बनाए इस संसार की|

लोगों के खोखले कर्मकांड और, 

उनके जीवन व्यवहार की||


आप जो इंसान बनाते हो न, 

वह दर-दर ठोकर खाता है|

किंतु हम जो भगवान बनाते हैं, 

वह हर पल पूजा जाता है||


मेरी औकात नहीं है प्रभु कि, 

मैं आपसे अपनी तुलना करूँ|

बस आपसे इतनी गुजारिश है कि, 

तुम्हें बनाने में कोई भूल न करूँ||


 जो छेनी हथौड़ी की मार खाकर, 

बिखरते है,वो भगवान नहीं बनते|

जो निज संघर्षो से घबराते हैं वो, 

जीवन में सच्चे इंसान नहीं बनते||


हे!ईश्वर अपने भाग्य विधाता को, 

इंसानों की तरह कभी भुलना नहीं|

अपने भक्तों की अंधभक्ति पाकर, 

अभिमान में कभी भी फुलना नहीं||


रचनाकार:-श्रवण कुमार साहू, "प्रखर"

शिक्षक/साहित्यकार,राजिम,गरियाबंद

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