रविवार, 9 अक्टूबर को आश्विन मास की पूर्णिमा है। इसे शरद पूर्णिमा कहा जाता है। धर्म-कर्म के साथ ही आयुर्वेद में भी शरद पूर्णिमा का महत्व बताया गया है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करती हैं। इस दौरान देवी सभी से पूछती हैं को जागृति यानी कौन जाग रहा है? इस वजह से शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा भी कहते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात चंद्र की रोशनी औषधीय गुणों से भरपूर रहती हैं। चंद्र की रोशनी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होती है। इसी वजह से इस पूर्णिमा की रात में घर के बाहर चंद्र की रोशनी में खीर पकाने की परंपरा है। घर के बाहर खीर पकाने से चंद्र की किरणें खीर पड़ती हैं, जिससे खीर में औषधीय गुण आ जाते हैं।
खीर से मिलती एनर्जी और मन होता है शांत
खीर की मिठास से हमें ग्लूकोस मिलता है, जिससे तुरंत एनर्जी मिलती है, लेकिन जिन लोगों को शुगर संबंधी बीमारी है, उन्हें खीर का सेवन करने से बचना चाहिए। खीर में दूध, चावल के साथ सूखे मेवे, केसर डाले जाते हैं, ये सभी चीजें हमें ऊर्जा देती हैं और भूख शांत करती हैं। खीर के सेवन से मन शांत होता है और सकारात्मकता बढ़ती है।
शरद पूर्णिमा पर खीर का सेवन करने की परंपरा क्यों है?
दरअसल ये शीत ऋतु के आगमन का समय है। वर्षा ऋतु जा रही है। दो ऋतुओं का संधिकाल होने से इस समय खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। शरद पूर्णिमा से मौसम में ठंडक बढ़ने लगती है। इस रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि अब शीत ऋतु में हमें गर्म और ऊर्जा देने वाली चीजों का सेवन करना चाहिए।
ऐसे कर सकते हैं महालक्ष्मी की पूजा
शरद पूर्णिमा रात में देवी लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा है, क्योंकि देवी पृथ्वी का भ्रमण करती हैं। रातभर जागकर पूजा-पाठ और मंत्र जप करते रहना चाहिए। घर के अंदर और बाहर दीपक जलाना चाहिए। मंत्र जप कम से कम 108 बार करना चाहिए। जप के लिए कमल के गट्टे की माला का उपयोग करना चाहिए। मंत्र- ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मयै नम:।