-- इसे प्रसाद में खाने से दूर होती हैं बीमारियां--
- अश्विन महीने की पूर्णिमा 9 अक्टूबर, रविवार को है। इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं। ज्योतिष का कहना है कि इस दिन चंद्रमा सोलह कलाओं वाला होता है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक इसी दिन कोजागर व्रत भी किया जाता है। इसी को कौमुदी व्रत कहते हैं। इस रात चंद्रमा की किरणों से सुधा यानी अमृत की बारिश होती हैं। चंद्रमा सौलह कलाओं वाला होने के कारण इस रात चंद्रमा की रोशनी को पुष्टिवर्धक माना गया है।
चंद्रमा को लगाते हैं खीर का भोग
शरद पूर्णिमा पर सुबह जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लेकर पूरे दिन व्रत करना चाहिए। अपने आराध्य देव की पूजा करनी चाहिए। फिर शाम को खीर बनाकर रात को शुभ मुहूर्त में सभी देवी देवताओं को और फिर चंद्रमा को उस खीर का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद चंद्रमा अर्ध्य देकर भोजन या फलाहार करना चाहिए। इसके बाद घर की छत पर या किसी खुली और साफ जगह पर खीर रखें और वहीं चंद्रमा की रोशनी में बैठकर भजन-कीर्तन करना चाहिए। इसके बाद अगले दिन सुबह जल्दी उठकर ब्रह्म मुहूर्त में उस खीर को प्रसाद के रूप में खाना चाहिए।
व्रत और पूजा की विधि
1. शरद पूर्णिमा पर सुबह जल्दी उठकर पूर्णिमा का व्रत और पूजा करने का संकल्प लें।
2. नहाकर भगवान का श्रंगार कर के आवाहन, आसान, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करें।
3. रात को गाय के दूध से बनी खीर में गाय का घी, चावल और सूखे मेवे तथा चीनी मिलाकर मध्यरात्रि में के समय भगवान को भोग लगाना लगाना चाहिए।
4. रात में पूर्ण चंद्रमा का पूजन करें तथा खीर का नैवेद्य अर्पण करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें तथा सबको उसका प्रसाद दें।
5. एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोनों में रोली और चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाएं। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें।
6. कलश के जल से रात को चंद्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद भोजन करें और हो सके तो रात्रि जागरण के साथ भजन और कीर्तन करें।
मान्यता: खीर का प्रसाद लेने से दूर होती हैं बीमारियां
मान्यता है कि इस तिथि पर चंद्रमा की पूजा करके चांदनी में खीर रखकर अगले दिन खीर का प्रसाद खाने से हर तरह की बीमारियां दूर हो जाती हैं। इसी तिथि पर कोजागर व्रत और महालक्ष्मी पूजा होती है। इससे घर में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी-देवताओं का पूजन करती हैं। शरद पूर्णिमा से ही कार्तिक स्नान और व्रत प्रारम्भ हो जाते हैं। कार्तिक मास का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही शुरू होता है। शादी के बाद पूर्णिमा पर व्रत करने का नियम शरद पूर्णिमा से लिया जाता है।