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चलती-फिरती दुकान के मालिक हैं 'त्रिलोकी


 

--बेरोजगारी से नहीं निराश, साइकिल बनी दुकान
--न लोन, न सरकारी मदद फिर भी चल रही जिंदगी
  • शाहजहांपुर। अभी बेरोजगार दिवस निकल गया। सरकार का काम है, रोज़गार देना। रोज़गार का स्वरूप क्या हो...ये विषय भी जेरे बहस ही है। अधिकांश बेरोजगार को सरकारी नॉकरी चाहिए, लेकिन इतनी आए भी कहां से....सरकार जो निकालती भी है वो ऊंट के मुंह जीरा। तमाम लोग खाली हाथ रह जाते हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार स्व रोज़गार के लिए लोन नहीं बांटती.. खूब प्रचार होता है। मुद्रा लोन, खोखा पटरी लोन, लघु-वृहद उद्योग लोन, ये लोन वो लोन, लेकिन लोन किसको कैसे मिलता है ? वो लेने वाला ही जानता है। तमाम लोग लोन 'डकार' न लेने के लिए भी लेते हैं, तो कई लोन के चक्कर में अपनी इहलीला ही ख़त्म कर लेते हैं। कुछ लोन न चुका पाने के कारण, अपना घर-वार ही दांव पर लगा देते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी चादर के हिसाब से ख़ुद को स्थापित करने का भरसक प्रयास करते हैं। कमतर साधनों में भी ख़ुद को मोहताज न बनने देने का माद्दा रखते हैं। खुद्दार हैं।

जो है उसी से जिंदगी की गाड़ी को आगे चलाने के लिए जद्दोजहद करते हैं। निराशा को अपने जीवन पर हावी नहीं होने देते। कम है पर ग़म नहीं.. जितना है काफ़ी है...ऊपर वाला और देगा...इस भाव के साथ जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाते हैं। वो किसी को कोसते भी नहीं। ऐसे ही एक शख्स हैं. मुहल्ला कूंचालाला निवासी त्रिलोकी कपूरिया उर्फ़ गुरू। पढ़े-लिखे होने के बाद भी जब उनको जॉब ब लोन नहीं मिला तो उन्होंने निराशा बेल को बढ़ने नहीं दिया। करीब 13 वर्ष पहले कुछ पूंजी से चौक में सुबह ब रात को रात एक चबूतरे पर चलताऊ दुकान लगाई, लेकिन जब यहां भी शराबी उधार खोरों ने उनको नुकसान पहुँचाया तो वो एक साइकिल पर ही पूरी दुकान टांगकर जीवकोपार्जन के लिए दृढ़ संकल्पित हो गए। सुबह-शाम दो शिफ्टों में साइकिल पर ही दुकान सजाकर अपना काम शुरू कर दिया। दस वर्ष से एक साइकिल पर ही उनकी चलती-फिरती दुकान है। छोटे चौक से लेकर कोतवाली तक उनकी सीमा रेखा है। लोग उनको गुरू के नाम से जानते हैं। उनका एक बेटा है जिसको वो जैसे तैसे बेहतर तालीम दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। पत्नी भी उनका साथ दे रही हैं। वो उन लोगों के लिए एक नजीर हैं जो कहते हैं कि क्या करें? कोई काम ही नहीं है। त्रिलोकी को सरकारी योजनाओं का भी कोई लाभ नहीं मिल रहा। सरकार से उनको बहुत ज्यादा शिकायत भी नहीं। लेकिन इतना ज़रूर कि बच्चे की परवरिश होने के बाद ठीक ठाक कोई काम मिल जाए। इसके लिए वो मेहनत भी कर रहे हैं।
सभार बलराम शर्मा
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