"बंद करो उन्हें दूध पिलाना"
आज - कल अपने ही घर के
कुछ बर्तन खड़क रहे हैं।
जाने क्यों ? बिना बात ही
हम पर भड़क रहे हैं।।
जिन्हें वर्षों दूध पिलाया हमनें
आज वे हमसे झड़प रहे हैं।
हमकों ही वे अकड़ दिखा कर
हमसे सब कुछ हड़प रहे हैं।
बंद करो , उन्हें दूध पिलाना
जो आस्तीन में छिपकर काटे।
इज्जत लूटे महिलाओं की
और 'मासूमों' को मारे चांटे।।
दूर रहो उन नेताओं से
जो हिंदू - मुस्लिम में बांटे।
दंगें करवा कर वोट बटोरे
आकाओं के तलुवे चाटे।।
घर हिंदुओ के जला रहे हो
लहू की खेल रहे हो होली।
कहीं गर्दन रेत रहे हो तो
कहीं चला रहे हो गोली।।
सुधर जाओ आतंकी सियारों
नहीं अंजाम भयंकर होगा।
हठ छोड़ शान्ति कर लो
नहीं युद्ध प्रलयंकर होगा।।
यदि ठान लिया हमने
तेरी सारी अकड़ मिटा देंगे।
ग़र आँख दिखाई हमकों
तुमको ! चित्त लिटा देंगे।।
लेकर कटोरा हाथ में
तुम फिरोगे दानें - दानें को।
अनाज नसीब नहीं होगा
तरसोगे पानी पाने को।।
राम कुमार प्रजापति
अलवर, राजस्थान