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जगमगाये तारों के संग सितारा, हो जाए हम खबर बेखर।

 

जीवन की ढलती शाम 


जगमगाये तारों के संग सितारा,

हो जाए हम खबर बेखर।

रहते हैं आज भी जवा,

जीवन की ढलती शाम को देखकर।।


रोज नई नई चाह, रोज नई नई उमंगे,

जैसे प्रेम में राधा पागल हुई कृष्ण के संगे।

मैं ये पल पल जिज्ञासू, प्रीत की शितलताएँ,

जीवन की ढलती शाम की सुंदर नज़राने।।


जीवन की ढलती शाम का कोई पैमाना नहीं,

यूँही खुशी गम से जिंदगी कटती रहीं।

जैसे सूरज सुबह निकलता है,

शाम को ढल जाता हैं।

जीवन हमारा इसी तरह रंगमंचों का चलता हैं।।


एक उम्र होती है, खेलने कूदने की,

एक उम्र होती हैं हंसने-रोने की।

कुछ पाने की तो कुछ खोने की।

नया कुछ सीखने की ये दौर यूँही चलता रहें,

जीवन की ढलती शाम यूँही गुजरती रहेगी।।


स्वरचित, मौलिक रचना

दुर्वा दुर्गेश वारिक "गोदावरी"

गोवा

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