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घरोंदे टूटने से पहले

 


  • किसी भी चीज़ को तोडना आसान होता है पर बनाने में या जोडने  में बहुत समय लगता है कई बार तो उम्र।        ही निकल जाती है।.चाहे वो रिश्ते हो दोस्ती हो कोई सामान हो या घरौंदा।। सब पर एक ही नियम लागू  होता है  पक्षी तिनका तिनका जोड कर बडी जतन से अपने नौनिहालों के लिऐ आशियाना बनाते है।पर अचानकआऐ तूफान ने घोंसला के साथ ही उसके।  सुनहारे सपनों के।  

 भविष्य। को भी चकनाचूर कर दिया।हरेक का अपना घरौंदा होता  जिसे आवास,.निवास, घर, मकान आशियाना के नाम से जाना  जाता है। ईट, मिट्टी , गारा वा सीमेन्ट  से मकान तो मज़दूर बनाते है ।पर एक मकान  को घर परिवार के लोगों का प्यार, अपनापन,बडों का आशीॅवाद और उनके संस्कार बनाते है। पर पीढियों के अन्तर के कारण आजकल लगभग हर परिवार में परिवार जनों के साथ तालमेल बैठाना बडा मुश्किल होता जा रहा जिसका कारण बदलते परिवेश, बदलती सोच के साथ ही पाश्चात्य संस्कृति को धृतराष्ट्र  की तरह  बिनासोचे -समझे अपनाते चले जाना है।  जब परिवार के हर व्यक्ति के विचारों  में मतैक्य की जगह मतभेद होगे तब  धीरे-धीरे यही मतभेद  मनमुटाव में बदलने लगता है। रिश्तों में दरारें पडने लगती है साथ ही रोज़-रोज़ की चिक -चिक होने लगती है ।तब घर के मुखिया को  सब की खुशियों के लिऐ  टूटते घरौंदे की सिसकी को नज़रअन्दाज़ करते हुऐ परिवारजनों के बिखराव को स्वीकृति देनी पडती है।आदमी ।।गाढी कमाई के साथ ही अपनी जरूरतों को ऐहमियत ना देकर एक छोटा सा प्यारा सा घरोंदा  इसलिऐ बनाता है की बुढापे में सब साथ रहेगें। आजकल बुढापा आने तक बच्चे पैसा कमाने के चक्कर में अपने परिवार को लेकर विदेश चले जाते है । फिर कभी कभार ही आते है। इस तरह परिवारों में अपने आप ही अलगाव हो जाता है। पर   अलगाव का दॅद  उसे  झेलना पडता है जिसका जान से ज्यादा प्यारा।

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