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पति-पत्नी को एक साथ करनी चाहिए शिव-पार्वती की पूजा


 आज (19 अगस्त) हरियाली तीज है। ये साल के महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। विवाहित महिलाएं अपने पति की अच्छी सेहत और सौभाग्य के लिए ये व्रत करती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएं अपने लिए सुयोग्य वर पाने की कामना से ये व्रत करती हैं। ये देवी पार्वती की पूजा करने की तिथि है। हरियाली तीज पर पति-पत्नी एक साथ शिव-पार्वती की पूजा करेंगे तो वैवाहिक जीवन में सुख-शांति के साथ ही प्रेम बना रहता है, ऐसी मान्यताएं हैं।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, शिव-पार्वती घर-परिवार के देवी-देवता हैं। जो लोग इनकी पूजा करते हैं, उनके घर में सुख-शांति और प्रेम बना रहता है। हरियाली तीज खासतौर पर महिलाएं अपने जीवन साथी के सुखी जीवन की कामना से ही करती हैं। ये व्रत निर्जल रहकर यानी अन्न-जल का त्याग करके किया जाता है। अगर इस दिन पति-पत्नी एक साथ शिव-पार्वती का अभिषेक करेंगे तो इनकी मनोकामनाएं जल्दी सफल हो सकती हैं।

साथ में पूजा-पाठ करने से वैवाहिक जीवन में बना रहता है तालमेल

पं. शर्मा कहते हैं, 'शादी के बाद पति-पत्नी को धर्म-कर्म, तीर्थ-दर्शन जैसे शुभ काम एक साथ ही करना चाहिए। ये परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। जब होती है, उस समय वर-वधू एक-दूसरे को वचन देते हैं, इन वचनों में एक वचन यह भी रहता है विवाह के बाद वर-वधू हर धर्म-कर्म और तीर्थ यात्रा एक साथ ही करेंगे। विधिवत पूजा-पाठ में काफी देर तक बैठना होता है, कई तरह की क्रियाएं होती हैं, इन सभी क्रियाओं को पति-पत्नी आपस में तालमेल बनाकर पूरा करते हैं। पूजा-पाठ के समय बने तालमेल का असर वैवाहिक जीवन में भी नजर आता है। इसलिए पति-पत्नी को एक साथ पूजा करने की सलाह दी जाती है।'

एक अन्य मान्यता के मुताबिक, पति-पत्नी अकेले पूजा-पाठ करते हैं तो उन्हें पूजन का पूरा पुण्य नहीं मिल पाता है। इस मान्यता की वजह से भी पति-पत्नी को साथ में पूजा करनी चाहिए।

ऐसे कर सकते हैं शिव पूजा

घर के मंदिर में या किसी अन्य शिव मंदिर में सबसे पहले प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा करें। गणेश पूजन के बाद शिव-पार्वती, कार्तिकेय स्वामी, नंदी की पूजा करनी चाहिए।

पति-पत्नी दोनों एक साथ शिवलिंग और देवी प्रतिमा पर जल चढ़ाएं। दूध चढ़ाएं और फिर जल चढ़ाएं। इसके बाद हार-फूल, वस्त्र आदि चीजें चढ़ाएं। शिवलिंग पर जनेऊ चढ़ाएं और देवी को लाल चुनरी चढ़ाएं। चंदन से तिलक करें। बिल्व पत्र, धतूरा, शमी पत्र, आंकड़े के फूल, गुलाब आदि अर्पित करें। मिठाई का भोग लगाएं। ऊँ नम: शिवाय मंत्र और ऊँ उमा महेश्वराय नमः का जप करें। धूप-दीप जलाकर आरती करें। पूजा के अंत में ई जानी-अनजानी भूल के लिए क्षमा मांगे। इसके बाद प्रसाद वितरित करें और खुद भी ग्रहण करें।

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