आज 2 जून है और इसी दिन एक कहावत काफी इस्तेमाल की जाती है, वो है '2 जून की रोटी'। इसको लेकर सोशल मीडिया पर भी काफी जोक्स बनाये जाते हैं। सोशल मीडिया पर आज भी दो जोक्स काफी वायरल हो रहे हैं। एक यूजर कह रहा है कि आज रोटी खाना बहुत जरूरी है, क्योंकि दो जून की रोटी नसीब वालों को ही मिलती है। वहीं, दूसरा यूजर कह रहा है कि 2 जून की रोटी मुश्किल से ओर खुशनसीबों को ही मिलती है।
2 जून की रोटी का असली मतलब
दरअसल, 2 जून की रोटी एक कहावत है और इसका मतलब 2 वक्त के खाने से होता है। अवधि भाषा में जून का
मतलब वक्त अर्थात समय से होता है। इसलिए पूर्व में लोग इस कहावत का इस्तेमाल दो
वक्त यानी सुबह-शाम के खाने को लेकर करते थे। इससे उनका मानना था कि गरीबी में 2 वक्त का खाना भी मिल जाये वही काफी होता है।
माता-पिता अपने
बच्चों को इससे देते है सीख
आज भी माता-पिता
अपने बच्चों को अन्न का अनादर न करने के लिए इस कहावत का इस्तेमाल करते हैं।
बच्चों को खाने को बर्बाद करने से रोकने के लिए कहा जाता है कि आजकल लोगों को दो
जून की रोटी ही मिल जाए बड़ी बात होती है और कुछ लोग खाना बर्बाद कर रहे हैं।
ज्यादातर उत्तर भारत में इस कहावत का इस्तेमाल किया जाता है।
भारत में सबके
नसीब में नहीं 'दो जून की रोटी'
कृषि प्रधान देश
होने के बावजूद देश में कई लोग ऐसे हैं जिनको दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो
पाती है। हालांकि, इन गरीबों के लिए
सरकार कई योजनाएं चला रही है और लाखों-करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। कोरोनाकाल के
बाद से केंद्र की मोदी सरकार गरीबों के लिए मुफ्त अनाज भी उपलब्ध करा रही है, जिससे 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को फायदा हो रहा है।
2 जून की रोटी पर एक कहानी
गोपाल ने आज अपने स्कूल में नया पाठ पढ़ा था. और वो इसी ख़ुशी में इठलाकर चल रहा था कि वो जाकर अपनी माँ को ये पाठ सुनाएगा. किसी के उतरे हुए और जगह-जगह से फटे हुए कपडे पर कुछ टुकड़े लगाकर सिले गए हल्के रंग के स्कूल के कपड़ों में वो खुद को कहीं का राजा समझता था. उसके दोस्त उसे उतरन का पहनावा कहकर चिढाने की कोशिश भी करते, तो भी उसकी मुस्कान कभी कम नहीं होती, क्योंकि उसे लगता था कि दुनिया में बस 2 ही लोग हैं जो सच कहते हैं उसकी माँ और उसकी मैडम. मैडम शब्द भले उसे पुकारना ना आता हो लेकिन माँ ने समझाया था कि उनकी कही हर बात उतनी ही सच्ची हैं, जितनी कि भगवान की उनके घर में उपस्थिति. गोपाल का बाल-मन कभी नहीं मान पाया था कि भगवान नाम कुछ होता हैं. माटी से बने एक लिंग को जिसे माँ भगवान कहती हैं, वो यदि सच हैं तो उसे क्यों नहीं दिखते, वो यदि हैं उसमे हैं तो वहां कौन है. ऐसे कई भारी –भारी सवाल थे, जिनके जवाब गोपाल की माँ को भी नहीं पता थे. लेकिन अब बाल-मन माने भी तो कैसे कि माँ को कुछ पता नहीं हो सकता.
जितनी गोपाल के लिए अक्षरों की दुनिया नई थी, उतनी ही उसकी माँ के लिए भी. ऐसे में जब वो कोई सवाल का जवाब नहीं दे पाती, तो गोपाल से कहती कि जब वो बड़ा हो जाए तो खुद ही जवाब खोज लेना. इन सब विचारों के साथ चलते-चलते गोपाल को याद आया कि श्याम की माँ ने उसे स्कूल छोड़ने को कहा हैं, क्योंकि अब वो स्कूल की फीस नहीं भर सकती. गोपाल ने अपना रास्ता श्याम के घर की तरफ मोड़ लिया,और उसके घर जाके स्थिति को समझने का निर्णय लिया.
गोपाल जब श्याम के घर पहुंचा तो वहां अजीब स्थिति हो रखी थी, श्याम की माँ रो रही थी, तो उसके बापू उदास से बैठे थे. गोपाल ने श्याम से कारण पूछा तो उसने बताया कि अब से उन्हें शायद 2 जून की रोटी भी मिल नहीं सकेगी. गोपाल ने जब श्याम से इसका मतलब पूछा तो श्याम के पास इसका कोई जवाब नहीं था, अपने दोस्त को उदास देखकर गोपाल ने कहा कि रोटी ना सही वो भात खा सकता हैं. रोटी कौन सेहत के लिए बड़ी अच्छी होती हैं. एक तो मोटी उस पर से चबानी भी पड़ती हैं, कभी जल भी गई तो और समस्या. फिर साथ में दाल और सब्जी भी मांगती हैं. अपनी भात का क्या हैं, ना अच्छी सब्जी की जरुरत ना अलग से कोई दाल चाहिए, दांतों को तो कोई कष्ट होगा ही नहीं, बस गप्प से मुंह में गयी और कहाँ घुल गयी पता भी नहीं चलता. श्याम को गोपाल के तर्क में दम लगा,उसने भी अपनी समझदारी दिखाते हुए कहा कि हाँ! भात तो माँ अपने हाथ से भी खिला सकती हैं, वर्ना हम ज्यादा गिरा देते हैं ना. उसने गोपाल को सम्मान की दृष्टि से देखा,जैसे गोपाल ने कोई गूढ़ रहस्य सुलझा दिया हो. गोपाल अपनी बुद्धिमत्ता से बहुत खुश हुआ, लेकिन रोटी के साथ जुड़े 2 जून के शब्द को वो भी समझ नहीं पाया था, और अब इसे पता लगाना ही उसका अगला उद्देश्य था. अब गोपाल कुछ क्षणों में अपने सवालों की टोकरी लेकर माँ के सामने था, उसने पूछा- माँ, रोटी किससे बनती हैं?? माँ ने कहा-आटे से. अभी गोपाल को समझ आया उसने मन में सोचा कि “तो जून कोई आटे का नाम है?? हाँ! यही होगा वो भी तो 2 किलो आटा लाकर देता हैं माँ को, परचून की दूकान से और ध्यान से दूकानदार को डायरी में 2 किलो ही लिखवाकर भी आता हैं, दिनांक के साथ. कितना जिम्मेदार हैं गोपाल” गोपाल एक बार फिर से अपनी बुद्धि पर गौरवान्वित हुआ. अभी उसे जाकर श्याम को बताना चाहिए कि वो जून की जगह किलो की रोटी भी खा सकता हैं. अगली सुबह जब गोपाल स्कूल पहुंचा, तो हर किसी ने उससे श्याम के बारे में पूछा. उसने सबको बताया कि श्याम को अब 2 जून की रोटी नहीं मिलेगी तो उसकी माँ फीस नहीं भरेगी, इसलिए वो स्कूल नहीं आएगा. उसने कक्षा में भी इस जिम्मेदारी को बखूबी से निभाया. उसकी मैडम को जब ये बात पता चली, तो उन्होंने गोपाल को पास बुलाकर श्याम की स्थिति सही से जानने की कोशिश की. अभी गोपाल का उत्साह का चरम पर था, उसने ना केवल पूरी बात बताई बल्कि उसने अपनी समझदारी भी मैडम को बताई, की कैसे उसने श्याम की समस्या को हल कर दिया.
मैडम स्तब्ध थी बाल-मन की दी हुई इस नई परिभाषा से. वो कहना चाहती थी कि 2 जून की रोटी का मतलब हैं वो आवश्यक भोजन जो तुम्हे सुबह-शाम मिलता हैं. जिसके लिए किसान महीनों खेत में हल चलाता हैं,जिसके लिए मजदूर भरी दुपहरी में अपना पसीना बहाता हैं. जिसके लिए गोपाल की माँ घर-घर जाकर काम करती हैं. ऐसा जाने कितना कुछ था मैडम के मन जो वो गोपाल को समझाना चाहती थी, लेकिन आँखों में अटके आंसू गले से निकलने वाली आवाज़ को रोक रहे थे. उसने गोपाल को अगले दिन श्याम को स्कूल लाने और फीस की चिंता ना करने का निर्देश दिया, और मिड-डे-मिल के प्रबन्धन में दिल से लग गई. अब वहां स्कूल के उस माहौल में एक दृढ-निश्चय था परिवर्तन का, एक उम्मीद थी नई संभावनाओं की, जगी हुई मानवीय सम्वेदनाए थी, करुणा थी-जो अपना मार्ग खोज रही थी, समझ थी जरूरत की, और साथ में था गोपाल का मासूम सा सवाल- मैडम मैंने श्याम को सही सुझाव दिया ना?? उसे 2 जून की रोटी की खाने की जगह भात खाने की सही सलाह दी ना?? गोपाल मैडम की नजरों में भी पक्का करना चाहता था वो सम्मान जो उसे श्याम ने दिया था, लेकिन मैडम ये नहीं समझ पा रही थी कि उसे कैसे समझाए कि 2 जून की रोटी का सम्बन्ध सिर्फ खाने से नहीं कमाने से भी हैं……