--सुहागिन महिलाओ ने पूजा अर्चना कर मांगी समृद्धि--
- अल्हागंज। जेष्ठ मास की अमावश्या को भारतीय स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं। वट सावित्री व्रत का पुराणो के अनुसार विशेष महत्व माना गया है। इस बार जेष्ठ अमावस्या होने के कारण बहुत ही अच्छा संयोग माना गया है। इससे माना जाता है कि इस दुर्लभ योग के कारण एक ही दिन किए गए पुण्य का फल कई गुना प्राप्त होता है।
शुक्रवार को अमावस्या के दिन सुहागिन महिलाओ ने वट वृक्ष की पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना की। भारतीय संस्कृति में वट व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। यह व्रत जेष्ठ मास की अमावस्या को पड़ता हैै। इस दिन सुहागिन महिलाऐं विधि विधान से पूजा अर्चना कर पति की लंबी उम्र देने की ईश्वर से प्रार्थना करती है। पूजा में प्रचंड गर्मी व धूप भी महिलाओं की आस्था को नही डिगा पाती। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र में जहां भी वट वृक्ष था वहां पर पूजा करने वाली महिलाओं की भारी भीड़ नजर आई। वट सावित्री व्रत का त्योहार सुहागिनों के प्रमुख पर्वो में एक है।
इस दिन का सुहागिने बडी बेसब्री से इंतजार करती है। शुक्रवार को जेष्ठ अमावस्या होने केे साथ हर वट वृक्ष के नीचे महिलाओं की भारी भीड़ नजर आ रही थी। जेष्ठ अमावस्या होने के कारण महिलाएं सुबह से ही पूजा अर्चना करने मे लग गई। पूरे दिन पूजा करने वाली महिलाओं का तांता लगा रहा। कडी धूप व प्रचंड गर्मी व धूप भी उनकी आस्था नही डिगा सकी। सुहागिनो ने विधि विधान से वट वृक्ष की पूजा अर्चना कर अपने पति को लंबी आयु प्रदान हेतु भगवान से प्रार्थना की। पूजा पाठ करने वाली महिलाओ ने वट वृक्ष केे नीचे दान पुण्य किया साथ ही वट वृक्ष की परिक्रमा की। इस व्रत पर्व को लेकर पुराणों के मतानुसार सावित्री ने अपने मृत पति सत्यवान को इसी वट वृक्ष के नीचे पुर्नजीवित किया था। वट वृक्ष कों अक्षय वृक्ष भी कहा जाता है। यह वट वृक्ष भगवान शिव को अधिक प्रिय है तथा इस वृक्ष में सभी देवताओ का वाश माना गया है (किदवंती) वट वृक्ष के नीचे अपने पति सत्यवान के शव को रखकर यमराज से अपने पति के प्राण बापिस लिये थे।