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गुरु पूर्णिमा कल इस पर्व पर महर्षि वेदव्यास के साथ ही भगवान विष्णु, ब्रह्मा और शिवजी की भी पूजा करने की परंपरा

 


  • आषाढ़ पूर्णिमा पर महर्षि वेदव्यास की पूजा की जाती है। क्योंकि इन्होंने ही वेदों की विद्या को चार भागों में बांटकर चार वेद बनाएं और इसके बाद पुराण रचे। इसलिए उनके साथ सभी लोग अपने गुरु की भी पूजा करते हैं। इस बार ये गुरु पूर्णिमा पर्व 13 जुलाई को रहेगा। इस पर्व पर ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी की भी पूजा करने की परंपरा है। क्योंकि इन देवताओं को भी पुराणों में जगत गुरु कहा गया है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर त्रिदेवों की पूजा करने से हर तरह की परेशानियां दूर होने लगती हैं।

गुरु पूर्णिमा पर त्रिदेवों की पूजा

ब्रह्म पुराण के अनुसार जगत के गुरु ब्रह्मा है। वहीं, शिव पुराण में भगवान शिव को सृष्टि के पहले गुरु बताया गया है। वहीं, विष्णुधर्मोत्तर पुराण के मुताबिक इस दिन भगवान विष्णु के ही अवतार वेदव्यास का जन्म हुआ। जिन्होंने सबसे उच्च स्तर के परम ज्ञान को वेद, उपनिषद और पुराणों में लिखा। जिसे समझकर धर्म की रक्षा की जा सकती है। इसलिए गुरु पूर्णिमा पर त्रिदेवों की पूजा भी की जाती है।

पुराणों में गुरु पूजा का पर्व

भविष्योत्तर पुराण में इस पर्व के लिए कहा गया है कि गुरु पूजा करने से ज्ञान, विद्या और पुण्य बढ़ता है। नारदपुराण का कहना है कि ये पर्व आत्मस्वरूप का ज्ञान देने और कर्तव्य बताने वाले गुरु के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने के लिए मनाना चाहिए। गुरु पूर्णिमा पर सिर्फ शिक्षक ही नहीं, बल्कि माता-पिता, बड़े भाई-बहन या किसी विद्वान और सम्माननीय व्यक्ति को गुरु मानकर उनकी भी पूजा की जा सकती है। इस पर्व को अंधविश्वासों के आधार पर नहीं बल्कि श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए।

व्रत और विधान
- गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी नहाकर पूजा करके साफ कपड़े पहनकर गुरु के पास जाना चाहिए।
- गुरु को ऊंचे आसन पर बैठाकर फूलों की माला पहनानी चाहिए।
- इसके बाद कपड़े, फल, फूल और फूल चढ़ाकर श्रद्धा अनुसार दक्षिणा देनी चाहिए। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक पूजा करने से गुरु का आशीर्वाद मिलता है।
- गुरु पूर्णिमा पर वेद व्यासजी द्वारा लिखे ग्रंथों को पढ़ना चाहिए और उनके उपदेशों पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।

गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर घर की सफाई करें उसके बाद नहाकर साफ कपड़े पहनें।
- पूजा स्थान पर पटिए पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर चंदन से 12 सीधी और 12 आड़ी रेखाएं खींचकर व्यास-पीठ बना लें।
- गुरू पूजा के लिए संकल्प लेना चाहिए। और दसों दिशाओं में चावल छोड़ना चाहिए।
- व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम लेकर उन्हें प्रणाम करें और पूजन सामग्री से पूजा करें।
- अपने गुरु या उनके चित्र की पूजा करके श्रद्धाअनुसार दक्षिणा दें। आखिरी में गुरु पूजा के बाद आरती करें और प्रसाद बांट दें।


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