- शाहजहांपुर। बाल मजदूरी हमारे समाज का वो कड़वा सच है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता बचपन इंसान की जिदगी का सबसे हसीन पल होता है। बचपन में न किसी बात की चिता होती है और न किसी का डर, लेकिन हर इंसान को बचपन में यह पल नसीब हो, यह संभव नहीं है कुछ लोगों का बचपन गरीबी में पेट भरने की जद्दोजहद में काम के बोझ तले दबकर रह जाता है। जनपद में स्थित रेस्टोरेंट, ढाबों दुकानों कारखानों समेत अन्य जगहों पर छोटे -छोटे बच्चों को बाल मजदूरी में पिसते हुए देखा जा सकता है। नाबालिग बच्चों से काम कराना अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन सबकुछ देखकर भी प्रशासन से लेकर अन्य संस्थाएं मौन बनी हैं।
जनपद में दुकानदार, होटल, कारखाना व अन्य फर्म संचालकों से लेकर दुकानदार चंद रुपये देकर मासूम बच्चों से बालश्रम कराते हैं। वहीं मासूमों के अभिभावकों की पैसो की चाहत के चलते वह बाल मजदूरी करते हैं। जनपद में खेलने-कूदने व पढ़ने-लिखने की उम्र में बच्चों को बालश्रम में पिसते देखा जा सकता है। बावजूद इसके प्रशासन लापरवाही बरतते हुए इस अपराध को रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं कर रही हैं। सरकार द्वारा बाल मजदूरी पर अंकुश लगाने के लिए नई-नई योजनाएं बनाई जा रही हैं, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के चलते योजनाएं धरातल पर दिखाई नहीं देती। सरकार के नियमों के अनुसार कोई भी 18 वर्ष से कम आयु का बच्चा, जो मजदूरी करता है, बाल श्रमिक की श्रेणी में आता है।
धरातल पर नहीं आती सरकार की योजनाएं
- ऐसा नहीं है कि बाल मजदूरी रोकने के लिए सरकार काम नहीं कर रही। सरकार की तरह-तरह की योजनाओं के द्वारा गरीब व असहाय बच्चों को सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा, मुफ्त किताबें, मुफ्त स्कूली ड्रेस यहां तक की भोजन प्रदान किए जाने की व्यवस्था है, लेकिन महज दिखावे के लिए चंद बच्चों को इन योजनाओं का लाभ मिल पाता है, जबकि अधिकारियों की अनदेखी से हजारों की संख्या में बच्चे इन योजनाओं से वंचित रह जाते हैं।
चंद रुपयों में खरीदी जाती है बच्चों की मजबूरी
- दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद करने को मजबूर मासूम हो तो यह देखा भी जाऐ लेकिन अधिक पैसे कमाने की लालच बच्चों की मजबूरी का सौदा चंद रुपयों में होता है। कारखाना, होटल, दुकाने, रेस्टोरेंट आदि के संचालक प्रतिदिन 50 से 100 रुपये देकर मासूम बच्चों से दिन भर काम लेते हैं। इतना ही नहीं बाल श्रमिकों का शारीरिक व मानसिक शोषण भी किया जाता है। कहीं स्वजन भी चंद रुपयों के लालच में अपने बच्चों को बाल मजदूरी में धकेल देते हैं। अल्हागंज कस्बे के कारखानों पर ज्यादातर 18 वर्ष के कम आयु के बच्चे बाल मजदूरी कर रहे है। पिछले बर्ष अधिकारियों ने छापेमारी कर बच्चों को बाल मजदूरी करते पकडा भी था जिसके बाद अधिकारियों की सांठगांठ हो गयी और फिर वही बाल मजदूरी शुरू हो गयी। कस्बे की हर गली के कारखानों पर बाल मजदूरी देखने को मिल रही है। अधिकारी खामौश है।
क्या है बाल श्रम कानून
- 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखानों, विभिन्न प्रकार के संस्थानों व खतरनाक कामों में लगाने से रोकने के लिए बाल श्रम (उन्मूलन और विनियमन ) अधिनियम,1986 बनाया गया था। इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए किसी बच्चे को नियोजित या काम करने की अनुमति देता है तो वह कारावास या जुर्माना दोनों प्रकार के दंड का भागी होता है। कोई भी व्यक्ति, पुलिस अधिकारी या निरीक्षण इस अधिनियम के तहत किये गए अपराध की शिकायत समक्ष न्यायालय में दाखिल कर सकता है।