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बदल गया कांवड़ यात्रा का स्‍वरूप

 

  • अल्हागंज -18 जुलाई 2022(अमित वाजपेयी). श्रावण मास शुरू होने के बाद कांंवड़िया मेला धीरे-धीरे तेजी पकड़ रहा है। इस बार कांवड़िया अपनी कांवरों पर एक तरफ तिरंगा और दूसरी तरफ भगवा ध्वज लगाकर चल रहे हैं, उनके ओठों पर होता है भारत माता की जय, हर हर बम बम । प्रदेश में भाजपा सरकार होने की वजह से कांवड़िया भयमुक्त हैं, जमकर DJ बजा रहे हैं और उनकी शिव भक्ति भजनों की धुन पर जमकर नृत्य कर रहे हैं वही शिव पार्वती जी के रूप धरे कलाकार अपनी कला का उन्मुक्त भाव से प्रदर्शन कर रहे हैं।


कांवड़ियों की कांवड से लेकर परिधान तक आधुनिकता से सराबोर है। उनके स्वागत तथा जलपान के लिए शिव जी के भक्तों ने जलपान और भंडारे के स्टॉल लगाने की व्यवस्था होना भी शुरु हो गये हैं। होर्डिंग बैनर भी लगना शुरू हो गये है। यह सभी द्रश्य पूरे वातावरण को शिवमय बना रहे हैं। पिछले 20 वर्षों से कांवड़ लेकर गोला गोकर्ण नाथ (छोटीकाशी) जा रहे शिव भक्त बताते है कि पहले की अपेक्षा अब कावड़ियों के प्रति सेवा भाव जलपान भोजन फल फ्रूट से लेकर सभी सुख सुविधाएं शिव भक्तों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही हैं। लेकिन जो बात पुराने समय में थी वह अब नहीं है और ना ही वैसी श्रद्धा भाव आजकल प्रदर्शन ज्यादा हो रहा है भक्ति कम । 


--गंगा जी के घाट पर भई सन्‍तन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुवीर बोलो भाई बम बम--


30 वर्ष पूर्व जब लोग कांवड़ लेकर अपने मित्रों के साथ शिव के दरबार गोला गोकर्णनाथ जल चढ़ाने जाते थे तो फोरलेन हाईवे जैसी सड़के नहीं थी। जगह जगह अब दिखाई दे रहे जलपान के स्टॉल भी नहीं थे। कच्चे-पक्के रास्तों से गुजरना पड़ता था। कांवड़ का स्वरूप वर्तमान जैसा नहीं होता था। वह पहले बासी के झुंड से हरा बांस काटकर उसमें आगे पीछे कांच की बोतलों में गंगाजल भरकर जाते थे। रास्ते में खाने के लिए अधिकतर लोगों के पास चना चबेना सत्तू तथा पुआ घर से लेकर चलते थे। सफर दो रात तथा दो दिनों में पूरा होता था। इस दौरान साखी गाया करते थे। गंगा जी के घाट पर भई सन्‍तन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुवीर बोलो भाई बम बम। 


अब बिकती हैं रेडीमेड कांंवड -

कानपुर व बरेली मंडल के अधिकांश जिलो के कांवरिया गंगा स्नान तथा जल लेने गंगा जी के तट पांचाल घाट (फरूखाबाद) आते हैं। यहां के बांध मार्ग के दोनों तरफ तथा पुल से लगे हाईवे पर कांवड़ियों के लिए रेडीमेड कांंवड भगवा रंग की नेकर, बनियान, कैपरी, टी शर्ट, ओम लिखे हुए बड़े-बड़े झंडे, बांधने वाले पटके तथा केप साथ ही तिरंगे झंडे और ऐसी ही टी-शर्टो का पूरा बाजार लगा हुआ है। कांवड़ ले जाने वाले उत्साही भक्तजन गंगा स्नान कर अपनी चॉइस के अनुसार रेडीमेड कांवड और वस्त्र आदि खरीद कर शिव धाम कूच करते हैं। यहां के दुकानदार रामौतार,रामलखन बताते हैं कि शिव भक्त नई डिजाइन के कांवड़ और वस्त्रों की मांग करते हैं। हम लोग उनकी मांग को पूरा करने का पूरा प्रयास करते हैं। अभी धंधा कुछ मंदा है लेकिन महीने भर में मोटा मुनाफा कमा लेते हैं।


प्राचीन समय से कावड़ एक ही रूप में प्रचलित थी. वह रूप था दोनों कंधों पर श्रवण कुमार की भांती संतुलन बनाकर गंगाजल ले जाना. इस पद्धति के कांवडि़या बहुत विधि-विधान से और नियम संयम से छोटे-छोटे समूह में शिव भजन करते हुए शांति से कांवड़ ले जाते हुए दिखते हैं. यह कावड़िए अपनी पूरी यात्रा पैदल ही संपन्न करते हैं.1990 के बाद कांवड़ का वाहन से कावंड़ स्वरूप ज्यादा प्रचलित हुआ है जिसमें एक वाहन में गांव और मोहल्ले के कावड़िए इकट्ठा होकर गंगा तट तक आते हैं और वापसी में कुछ लोग गंगाजल को कंधे में रखकर पैदल-पैदल वापसी करते हैं. यह पैदल कावड़िए बदलते रहते हैं और उनका स्थान वाहन में बैठे कांवड़िए लेते हैं. वाहन से आ रहे कांवड़िए डी. जे. बजा कर खूब नाच गाना करते हुए जाते हैं वर्तमान में कांवड़ का यही स्वरूप सबसे अधिक प्रचलित है।डाक कावड़ अथवा दौड़ती हुई कावड़ पिछले कुछ वर्षों से डाक कावड़ अधिक प्रचलित हुई है. डाक कावड़ में कांवड़ियों का समूह छोटे चार पहिया वाहन अथवा दो पहिया वाहन से गंगा तट पहुंचता है और फिर यहां से अपने गंतव्य की दूरी को दिन और घंटे के लिहाज से तय कर, एक अथवा दो कावड़िए जल लेकर दौड़ते हैं पीछे-पीछे उनके वाहन दौड़ते हैं. जब एक कावड़िया थक जाता है तो दूसरा कावड़िया दौड़ते हुए कावड़िया से जल लेकर खुद आगे आगे दौड़ना शुरू कर देता है. इस प्रकार गंगा तट से अपने गंतव्य तक लगातार दौड़ते-दौड़ते पहुंचकर ही गंगाजल पहुंचाया जाता है और शिवलिंग को अर्पित कर जलाभिषेक किया जाता है. कांवड़ का यह प्रकार ही डाक कावड़ कहलाता है।

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