- ज्येष्ठ मास हिन्दी कैंलेडर का तीसरा महीना होता है। आमतौर पर इस महीने सूर्य वृष और मिथुन राशि में रहता है। जिससे इन दिनों में ग्रीष्म ऋतु रहती है। इस महीने के शुरुआती 15 दिनों बाद शनि जयंती पर्व होता है। इस हिंदी महीने के दौरान सूर्य रोहिणी नक्षत्र में रहता है। तब नौ दिनों तब तेज गर्मी रहती है। इसी काल को नौतपा कहते हैं। उत्तरायण के बाद पांचवा महीना होने से ये देवताओं के दिन का समय रहता है। ज्येष्ठ मास में ही शनिदेव का जन्म हुआ था और हनुमानजी को भी ये महीना बहुत प्रिय है।
ज्येष्ठ महीना देवताओं का दिन
मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण होता है। उसके पांच महीने बाद उत्तरायण सूर्य का आखिरी समय यानी उत्तरकाल होता है। जो कि ज्येष्ठ महीने के समय रहता है। इसे देवताओं का दिन माना जाता है। इसलिए इन दिनों में किए गए दान और शुभ कामों का कई गुना पुण्य मिलता है। इस महीने गभस्तिक रूप में भगवान सूर्य की पूजा करने से दरिद्रता और हर तरह के दोष दूर हो जाते हैं। बीमारियां दूर होती है और उम्र भी बढ़ती है।
हनुमान उपासना का महीना ज्येष्ठ
इस हिंदी महीने के स्वामी मंगल देव हैं। इसलिए इस महीने आने वाले हर मंगलवार को बहुत खास माना जाता है। जिसे बड़ा मंगल कहते हैं। हनुमान जी का प्रिय महीना होने से ज्येष्ठ मास में आने वाले मंगलवार को व्रत रखकर उनकी विशेष पूजा करने की परंपरा है। ग्रंथों में इस बात का जिक्र है कि भगवान राम और हनुमानजी की पहली मुलाकात भी ज्येष्ठ महीने में ही हुई थी। वही, तेलगु कैलेंडर के मुताबिक इस महीने के कृष्ण पक्ष की दशमी पर हनुमान जयंती मनाई जाती है।
शनि देव का जन्म पर्व
ग्रंथों के मुताबिक ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को भगवान शनि देव का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन शनि जयंती मनाई जाती है। जो कि इस बार 30 मई, सोमवार को है। इस पर्व पर न्याय के देवता शनि महाराज की पूजा करने से दोष दूर हो जाते हैं। जिन लोगों पर साढ़ेसाती और शनि की ढय्या है। उनके लिए ये दिन बहुत खास होता है। इस दिन शनि देव से जुड़ी चीजों का दान करने पर परेशानियों से राहत मिलती है।
पानी की अहमियत समझाने वाले व्रत
इस महीने की अमावस्या और पूर्णिमा पर वट सावित्री व्रत किया जाता है। जिसमें महिलाएं बिना पानी पिए व्रत रखती हैं। साथ ही शुक्ल पक्ष की दशमी पर गंगा अवतरण दिवस पर गंगाजल की विशेष पूजा होती है। अगले दिन एकादशी पर बिना पानी पिए व्रत रखा जाता है। जिसे निर्जला एकादशी कहते हैं। वहीं, पूरे महीने जलदान करने की भी परंपरा है। मान्यता है कि इस दान से कई यज्ञ करने जितना पुण्य फल मिलता है।