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चिलौआ में तीन दिवसीय देवी मेला 14 से होगा शुरू

-कोरोना काल से बंद चल रहा था मेला--

-- ‘मेला निकल जइये, फिर फरिया उढ़नियां को का हुइयै। पुरानी कहावत--

  • अल्हागंज-24 मार्च 2022(अमित वाजपेयी)। ऐतिहासिक महत्ता के लिए सुविख्यात क्षेत्र के गांव चिलौआ स्थित मां काली देवी मंदिर पर तीन दिवसीय मेला इस बार लगेगा जिसकी तैयारियां जोरो से शुरु हो गयी है। कोरोना काल के समय से यह मेला नही लग पा रहा था। जो इस बार 14 अप्रेल से शुरू होगा। इस मेले मे होने बाले दंगल के लिए कई जिलों के पहलवान भी पहुंच आते थे। दूर दूर तक के लोग इस मेले का इंतजार करते थे इस बर्ष उनकी मुरादें अवश्य पूरी होगी।

कटरा - फर्रुखाबाद स्टेट हाईवे से करीब एक किलोमीटर पूरब दिशा में बसा गांव चिलौआ इस प्राचीन मंदिर के कारण दूर-दूर तक विख्यात है। हर वर्ष चैत्र मास शुक्ल पक्ष के तेरस पर्व से इस मेले की होने वाली शुरुआत होती है। इस वर्ष यह मेला 14 अप्रैल से प्रारंभ होकर 16 अप्रैल तक चलेगा। मंदिर के साथ ही हर साल यहां लगने वाला मेला भी हजारों साल पुराना बताया जाता है। मेले का प्रमुख आकर्षण यहां होने वाला दंगल होता है। जिसे लोग दूर दूर से देखने आते है। लेकिन इस बार अभी तक दगंल की कोई तैयारी नहीं हुई जिससे लगता है कि इस बार.दंगल होना मुश्किल है क्योंकि कोरोना काल से मेला न लग पाने के कारण परमीशन की समस्या बनी रहती है। जब से परदेश मे रहने बाले क्षेत्रीय लोगो को फता लगा की इस वर्ष मेला लगेगा तो उनमे खुशी का माहौल है और उन लोगो ने अभी से ही तैयारियां शुरू कर दी है। मंदिर मे दुर्गा जागरण  भी होता है। तमाम दुकानदार भी मेला स्थल पर पहुंचने के लिए अभी से तैयारियां शुरु कर दी है। मेले में प्रधान प्रवल पाण्डे ऊर्फ सोनू फौजी, मनमोहन त्रिवेदी, विमल पाण्डे शुभम् त्रिपाठी, गुलाब चंद्र त्रिपाठी, पवन मिश्रा आदि का सहयोग रहेगा। मेले में पुलिस व्यवस्था भी रहेती है। गर्मी की वजह से पानी की भी उचित व्यवस्था की जाती है।

मेला निकल जइये, फिर फरिया उढ़नियां को का हुइयै।’

वर्षों पुरानी यह कहावत आज भी चलन में है। बताते हैं कि इस कहावत की शुरुआत चिलौआ में स्थित देवी मां के मंदिर से हुई थी। प्राचीन समय में इस क्षेत्र में रुहेला सरदारों के शासन के दौरान घटित हुए एक वाकये से ही इस कहावत का जन्म हुआ। मुराद पूरी होने पर भक्तों की और से देवी मइया को फरिया उढ़निया चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। मेले में इसकी कई दुकानें लगती हैं। तमाम लोग मइया के इन वस्त्रों को स्वयं तैयार करके भी लाते हैं।

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