पूस के रात के अनकहे किस्से
एक कहानी पढ़ी थी बचपन में
दिल दहला देने वाली ।
पूस की रात होती है
कितनी भयानक काली ।
जो गरीब हैं उनका क्या हाल होता होगा ।
जो पैसे पैसे जोड़ जोड़कर भी कंबल ना ले पाता होगा ।
प्रेमचन्द की कहानी बड़े अच्छे से याद है जहन में
था हलकु का हाल बुरा झबरू के संग जो गुजारा था ।
किकुड़ती ठिठुरती ठंड में रखवाली करते हुए भी
जानवरों ने उसका खेत उजाड़ डाला था ।
कभी पत्तों को जलाकर गर्मी लेता,
कभी झबरू को गोद में सुलाकर
उसके तन से निकलते बदबू को भी झेला था ।
मगर पूस की सर्दी कहां कम होने वाली थी ।
हड्डियों को भी जो गला दे ठंड इतनी कड़ाके वाली थी।
सोचती हूं क्या बितती होगी उन किसानों पर ।
जिन्हें पूस की रात गुजारनी पड़ती होगी जागकर अपने खेतों पर ।
हल्कू जैसी ना जाने कितनी कहानी है ।
जिनको बिना कंबल के पूस की रात बितानी है।
अनिता आचार्य महाराष्ट्र