शारदीय नवरात्र के इस शुभ अवसर पर,जगत धारिणी मां जगदम्बा की पूजा - अर्चना चारों तरफ हो रही है। जगह - जगह पंडाल सजे हुए हैं, मंदिरों में पूजन, आरती, घंटियों की गूंज दूर तक सुनाई दे रही है। लोग घरों में भी कलश स्थापित कर व्रत,उपवास, पूजा - पाठ इत्यादि कर रहे हैं।
मेरे कहने का आशय यह है कि घर से लेकर मंदिरों तक पूरी तरह से भक्तिमय वातावरण बना हुआ है।
- कहते हैं जब - जब धरती असुरों के अधर्म और अत्याचार से व्याकुल होती है, तब - तब मां जगदम्बा अवतार ग्रहण कर धरती को असुरों के अधर्म और अत्याचार से मुक्त करती है। पूरा सप्तशती ही इसी पर आधारित है। जब - जब असुरों ने देवताओं को स्वर्ग के राज्य से विहीन कर पृथ्वी पर उत्पात मचाया, मां ने अवतरित होकर उनका दुखों से परित्राण किया।
हम पूजा करते हैं और मां को शुंभ - निशुंभ विनाशिनी, महिषासुर मर्दिनी इत्यादि नामों से संबोधित करते हैं।
आखिर ये असुर कौन थे, और मां ने उनका मर्दन क्यों किया ? अगर हम पूजा करें और इसके निहित अर्थ को न समझें, तो फिर पूजा करने का महत्व ही नहीं रह जाता।
मां जिस संदेश को हमें देना चाहती है, अगर हम उसे अपने जीवन में ग्रहण न करें,तो फिर, ये तो मां का ही अपमान हुआ
असुर यानि - असभ्य व्यक्ति ।
इसी का पर्यायवाची 'दानव' जिसका अर्थ एक दुष्ट आत्मा, शैतान या राक्षस होता है।
एक ऐसा व्यक्ति जो अत्यंत दुष्ट,क्रूर और बुरा हो, उसे दानव,असुर या राक्षस कहते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार महर्षि कश्यप की दो पत्नियों अदिति और दिति को सुर और असुर की माता के रूप में जाना जाता है। महादेव के आशीर्वाद से अदिति ने 12 आदित्यों को जन्म दिया, जिन्हें देवता कहा गया, जबकि दिति ने 2 पुत्रों हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप को जन्म दिया, दिति के पुत्र होने के कारण इन्हें दैत्य कहा गया। अपनी शक्ति के घमंड के कारण दैत्यों ने देवताओं और प्राणियों को परेशान करना शुरू कर दिया। इस कारण इनके वंशज राक्षस या दानव कहलाए।
अब तो हम ये समझ ही गए होंगे कि दानव, राक्षस या फिर असुर किसे कहते हैं, और मां ने इनका संहार किया, तो क्यों किया।
मद,मोह, मात्सर्य,लोभ,क्रोध,हिंसा ये ही आसुरी प्रवृत्तियां हैं। सोचने वाली बात ये है कि, क्या हम इनसे ग्रसित नहीं हैं ? क्या हम अपने आचरण द्वारा किसी को आहत नहीं करते हैं ? क्या हम निर्बलों और बेजुबानों को सताते नहीं हैं ? यदि हम गहराई से विचार करें तो पाएंगे कि कहीं न कहीं हम इनसे बुरी तरह जकड़े हुए हैं। इनसे निजात पाए बिना यदि हम मां की आराधना करते हैं तो, ये इनके साथ किया गया हमारा छलपूर्ण दुर्व्यवहार ही होगा।
यदि हम मां की सच्चे मन से आराधना करना चाहते हैं तो, सबसे पहले हमें अपने मन में बसे हुए काम,क्रोध,लोभ,मोह,ईर्ष्या,अहंकार रूपी असुर को मारना होगा, और अपने हृदय में सत्य,प्रेम, करुणा और दया के दीप को प्रज्ज्वलित करना होगा। यही हमारी मां के प्रति सच्ची भक्ति होगी।
अर्चना ,गाजीपुर,उत्तर प्रदेश