- आतिशबाजी एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ होता है -आग का खेल या अग्निक्रीडा कहा जाता है। बारूद को आग चूण कहा जाता है। यही बारूद आतिशबाजी के नाम से जानी जाती है और बारूद से पटाखें का निर्माण होता है। हम सभी जानते हैं कि यह नुकसानदेह है फिर भी ना जाने क्यों इसे पसंद करते हैं। हम समझने का प्रयास नहीं करते पटाखों से उत्पन्न रंग जो हमको खूबसूरत लगता है वह पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचता है।
हम WHO की माने तो अकेले हमारी राजधानी दिल्ली का आंकड़ा PM 10 तक पहुंच जाता है हम अक्सर शादी त्यौहार आज पर विशेष रूप से अपनी शान समझते हैं ।हमने इतने रुपए की आतिशबाजी चलाई ,कभी विचार किया उस धन के साथ-साथ कितना नुकसान पर्यावरण को हो रहा है। पटाखे में सल्फर वाइडंर्स कई प्रकार की हानिकारक रंग -रंजन पदार्थ होते हैं जो रंग बिरंगी रोशनी पैदाकर हमें आकर्षित करते हैं जिसमें करते हैं बेरियम नाइट्रेट, अल्युमिनियम ,तांवा ,लिथियम और स्ट्रोटियम के मिश्रण से बने होते हैं।यह सभी इतने हानिकारक होते हैं ,इसके प्रभाव से बड़ों को तो नुकसान होता ही है ,बच्चों बहुत प्रभावित करते हैं। उनकी मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, लकवा के शिकायत हो जाती है ।जानवरों और पौधे ,सभी के लिए हानिकारक हैं। इसमें निकलने वाला रसायन जो अल्जाइमर, फेफड़े का कैंसर दमा जैसी घातक बीमारियों को हम सब स्वयं दावत देते हैं। पटाखे की ध्वनि से हमारे कानों की क्षमता कई गुनी कमजोर हो जाती है ।हमारे कानों की क्षमता सिर्फ पांच डेसीबल की होती है। मगर शादी त्यौहार नव वर्ष पर यह ध्वनि यह लगभग 125 डेसीविल तक पहुंच जाती है। जिसके कारण बच्चों में बहरापन यहां तक की कान फटने तक की संभावना रहती है ।दीपावली हमारे लिए निश्चित रूप से अंधकार भगाने का त्यौहार है। मगर जाने अनजाने में हम लोग अंधकार में कर देते हैं ।माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगा दिया गया ,उसके बावजूद भी हम सब इसको अनदेखा करते हैं ।आपको जानकर हैरानी होगी हम लोग प्रतिवर्ष 5000 पेड़ों का प्रदूषण फैलाते हैं ,और इसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य हमारे बच्चों तथा सोचने की शक्ति पर पड़ता है। हमें चिड़चिड़ापन कई घातक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। इसके लिए हमें विचार करना चाहिए ।हमारा धन बचेगा पर्यावरण और स्वास्थ्य इसलिए आप सभी से अनुरोध है कि हम सब मिलकर संकल्प लें कि प्रकाश पर्व पर
अंधकार मिटाएंगे ,
प्रदूषण नहीं फैलाएंगे।
खुद स्वस्थ रहेंगे ,और पर्यावरण, को स्वच्छ बनाएंगे ,
इस तरीके से दीपावली मनाएंगे।
सीता त्रिवेदी लेखक शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश